रमज़ान-28 क्या चीज़ आत्मा की शांति का कारण है?
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रमज़ान महीने की 28 तारीख की दुआ का अनुवादः हे ख़ुदा, इस महीने में मेरे मुस्तहब कामों में वृद्धि कर और मेरी दुआओं को स्वीकार करके मेरा सम्मान बढ़ा दे, मुझे अपनी निकटता प्रदान कर, हे वह कि जिसे आग्रह करने वालों का आग्रह कठोर नहीं बनाता है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Apr ३०, २०२२ १५:५४ Asia/Kolkata

रमज़ान महीने की 28 तारीख की दुआ का अनुवादः हे ख़ुदा, इस महीने में मेरे मुस्तहब कामों में वृद्धि कर और मेरी दुआओं को स्वीकार करके मेरा सम्मान बढ़ा दे, मुझे अपनी निकटता प्रदान कर, हे वह कि जिसे आग्रह करने वालों का आग्रह कठोर नहीं बनाता है।

रमज़ान का सुन्दर महीना अपनी समस्त बरकतों के साथ समाप्त हो रहा है, लेकिन उसकी ख़ुशबू हमारी ज़िंदगियों में बाक़ी रह जाएगी। जिन लोगों ने इस महीने में ख़ुदा की बंदगी की मिठास का स्वाद चखा है और अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा किया है, वे ख़ुशहाल हैं। इसी के साथ उन्हें इस बात का दुख है कि यह नूरानी लम्हें समाप्त हो रहे हैं। रमज़ान के महीने के बाद हमें यह समझ में आता है कि वास्तव में इस महीने का कितना महत्व था और इस महीने में ख़ुदा की इबादत से कितनी ख़ुशी प्राप्त होती थी।

आज लोग जिस चीज़ की अपने जीवन में ज़्यादा कमी महसूस करते हैं, वह ख़ुशहाली है। आजकल पश्चिम ने लोगों के मनोरंजन के लिए कई तरह के उपकरण उपलब्ध करा दिए हैं और लोग ज़्यादा से ज़्यादा इनका इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद अवसाद का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और लोग तनाव भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि पश्चिमी संस्कृति में दिखावटी शोर शराबा ज़्यादा है, लेकिन भीतर से वह खोखली है।

इस्लाम में जो चीज़, दिल और आत्मा की शांति का कारण है, वह ख़ुदा की याद है। ख़ुदा क़ुरान में फ़रमाता हैः जान लो, ख़ुदा की याद दिलों को शांति प्रदान करती है। ख़ुदा की याद से शांत होने वाले इन दिलों की ख़ुशी, अल्लाह की बंदगी और लोगों की सेवा के अलावा कुछ नहीं है। इस्लाम के मुताबिक़, मोमिनों के दिलों को ख़ुश करने का एक दूसरा ज़रिया, सदक़ा या दान देना है। सदक़ा देने से ज़िंदगी में बहुत सी बरकतें हासिल होती हैं, उनमें से एक ख़ुशहाल जीवन है।

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इस्लाम दान देने पर काफ़ी बल देता है, ताकि धन वितरण में संतुलन बन सके। दान उस समय अपने शिखर पर होता है, जब इंसान अपनी पसंदीदा चीज़ को दान करता है। कुछ लोगों का मानना है कि दूसरों की उस समय मदद करनी चाहिए जब उन्हें ख़ुद को ज़रूरत न हो। हालांकि वास्तविक भले लोगों के स्थान तक पहुंचने के लिए इंसान को अपनी पसंदीदा चीज़ों को दान में देना चाहिए। जैसा कि क़ुरान में उल्लेख है, कदापि वास्तविक भले लोगों तक नहीं पहुंचोगे, या यह कि जो चीज़ तुम्हें पसंद है उसे ईश्वर के मार्ग में दे दो। इसका मतलब है कि आप दूसरों को ख़ुद से अधिक पसंद करते हैं और जो चीज़ आपको पसंद है वह उन्हें उपहार में दे देते हैं।

रमज़ान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है, इस महीने में अपने ग़रीबों और निर्धनों को दान दो, अपने बड़ों का सम्मान करो और अपने छोटों पर दया करो, अपने रिश्तेदारों से मेल-मिलाप रखो, अपनी ज़बान को सुरक्षित रखो और अपनी आंखों से हराम चीज़ों पर नज़र नहीं डालो, हराम बात सुनने से बचो, दूसर लोगों के अनाथों के साथ मोहब्बत से पेश आओ, ताकि वे तुम्हारे अनाथों से मोहब्बत करें और ईश्वर से अपने पापों के लिए तौबा करो।

रमज़ान क्षमा के स्वीकार होने और ईश्वर की ओर पलटकर जाने का महीना है। जिन लोगों ने अपने जीवन में पाप किए हैं, वे रोज़े द्वारा अपना शुद्धिकरण कर सकते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के अनुसार, इस महीने में पाप माफ़ कर दिए जाते हैं और यह उन लोगों के लिए बड़ी शुभ सूचना है कि जिनसे ग़लतियां हुई हैं। निःसंदेह जो पापी अपने पापों पर शर्मिंदा है अगर वह इस महीने में ईश्वर के लिए रोज़ा रखे और अपने कृत्यों के लिए तौबा करे तो ईश्वर उसके पापों को माफ़ कर देगा।

इस पवित्र महीने में सभी को एकांत में विचार करने का अवसर हासिल हुआ होगा। इस मुबारक महीने की सहरी और इफ़्तार ने हमें इस बात के लिए प्रेरित किया कि हम थोड़ा अपने आचरण और व्यवहार के बारे में चिंतन करें। हालांकि साल भर ऐसा करना अच्छा होगा। इस्लाम में अपने कार्यों के हिसाब-किताब पर बहुत बल दिया गया है। धार्मिक शिक्षाओं में सिफ़ारिश की गई है कि हर व्यक्ति को दिन में कोई समय, अपने कार्यों में चिंतन करने के लिए निर्धारित करना चाहिए और अपनी कमज़ोरियों की दिक़्क़त से समीक्षा करना चाहिए। इस निरंतर समीक्षा को आत्म-आकलन कहा गया है। इस आकलन में हर शख़्स दुनिया के शोर-शराबे से दूर, अपने कार्यों को अपने विवेक की तराज़ू में तोलता है।

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पैग़म्बरे इस्लाम अपने सच्चे और वफ़ादार साथी अबूज़र ग़फ़्फ़ारी को अपनी एक नसीहत में कहते हैं- हे अबूज़र, इससे पहले कि तुम्हारा हिसाब-किताब किया जाए, आत्म-आकलन करो, क्योंकि ऐसा करने से प्रलय के दिन का तुम्हारा काम आसान हो जाएगा, और इससे पहले की तुम्हारी समीक्षा की जाए, ख़ुद अपनी समीक्षा करो और ख़ुद को प्रलय के दिन के लिए तैयार रखो, क्योंकि उस दिन कुछ भी गोपनीय नहीं रहेगा।     

रमज़ान मुबारक के अंतिम दिन विशेष दिन हैं। हज़रत अली (अ) ईद की नमाज़ के ख़ुतबे में रमज़ान के अंतिम दिनों के बारे में फ़रमाते हैं, हे ईश्वर के बंदो, जान लो कि सबसे कम और निकटतम चीज़ जो रोज़ेदार महिला और पुरुषों के लिए उपलब्ध है, यह है कि रमज़ान के अंतिम दिन एक फ़रिश्ता उन्हें पुकार कर कहेगा, हे ईश्वरीय बंदों, तुम्हारे लिए शुभ सूचना है कि तुम्हारे गुनाह अर्थात पाप माफ़ कर दिए गए और अब यह देखो कि भविष्य में कैसे रहना पसंद करोगे।

रमज़ान मुबारक के अंतिम दिनों में एक महत्वपूर्ण कार्य, इस महीने में अंजाम दिए गए कामों की समीक्षा करना है। ईमान रखने वाले इंसान को इस महीने के शुरू से अपनी इबादतों का हिसाब करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि ईश्वर की मेज़बानी के आरम्भ और उसके समक्ष उपस्थित होते समय कहां था और अब कहां पहुंच गया है। ईश्वर और धर्म और उसके दूतों के बारे में उसके ज्ञान में कितनी वृद्धि हुई है। ईश्वर के आदेशों का किस प्रकार पालन किया है और ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कितना प्रयत्न किया है? ईमान रखने वाला इंसान यह देखता है कि इस महीने में परलोक के लिए कितनी पूंजी एकत्रित की है? अब जबकि यह महीना समाप्त हो रहा है, इबादत के प्रति उसकी रूची में वृद्धि हुई है या उसके भीतर कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

अगर रोज़ेदार इस महीने में अपने भीतर किसी परिवर्तन का आभास नहीं करे तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि यह स्वयं उसकी ग़लती है। इसलिए कि रमज़ान ईश्वरीय अनुकंपाओं और रहमत का महीना है और इस महीने में आसमान के द्वारा ज़मीन वालों के लिए खुल जाते हैं। अतः वह कितना आलसी बंदा है कि जो ईश्वरीय बरकतों और रहमतों में से कुछ भी हासलि नहीं कर सका। अगर यह सही है तो इंसान को ईश्वर से दुआ करना चाहिए कि उसके पापों को क्षमा कर दे और अपनी असीम रहमत से उसपर दया करे।

रमज़ान मुबारक व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता में सुधार का बेहतरीन अवसर है। अगर इंसान इस महीने में अपने व्यवहार पर नज़र डाले और नैतिकाता को अपने मन में बसा ले तो इस महीने के बाद भी वह इसे जारी रख सकता है। इन नैतिकताओं में से एक अपने मातहतों के साथ अच्छा बर्ताव करना है। इस्लामी शिक्षाओं में अपने अधीन लोगों के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार न करने को ईमान वालों का गुण और अपने अधीन लोगों पर अत्याचार करने को नादान लोगों की विशेषता क़रार दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संदर्भ में फ़रमाया है, इस महीने में जो कोई भी अधीन लोगों के साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार करेगा, ईश्वर उसके साथ विनम्रता से पेश आएगा।

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इफ़्तार के वक़्त दुआ पढ़ने का काफ़ी महत्व है। इफ़्तार का समय दुआओं के क़बूल होने के लिए  बेहतरीन समय है। हज़रत अली इफ़्तार के वक़्त यह दुआ पढ़ते थेः हे ईश्वर हमने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरे दिए हुए रिज़्क़ से इफ़्तार किया, हमारी इस इबादत को स्वीकार कर, निःसंदेह तू ज्ञानी और सुनने वाला है। इफ़्तार के वक़्त सूरए क़द्र की तिलावत की सिफ़ारिश की गई है। इफ़्तार के वक़्त दान करना, चाहे कुछ खजूरें या शरबत ही क्यों न हो, पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सीरत है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः रमज़ान के महीने में जो कोई किसी दूसरे को खाना खिलाएगा, ईश्वर उसे 30 ग़ुलामों को आज़ाद करने का सवाब देगा और उसकी एक दुआ स्वीकार करेगा।

हम ख़ुदा से दुआ करते हैं कि इस पवित्र और आध्यात्मिक महीने के सुन्दर क्षणों में हमें अहले बैत (अ) और महान धार्मिक हस्तियों के अनुसरण का अवसर प्रदान कर और हमें ईमान का असली स्वाद चखा दे। हमें वास्तविक ज्ञान प्रदान कर और दुनिया में हमारे गौरव में इज़ाफ़ा कर दे। हमारे अन्दर ग़रीबों और ज़रूरमंदों से मोहब्बत और उनकी मदद करने की भावना जगा दे और दुनिया और आख़िरत में हमारा कल्याण कर।

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