सऊदी अरब में मौत का बादशाह
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मिरअतुल जज़ीरा नामक वेबसाइट ने बताया है कि सऊदी सरकार ने इस देश में आस्था संबंधी पांच कैदियों की अंतिम सज़ा पास कर दी है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Dec १२, २०२२ १७:२९ Asia/Kolkata

मिरअतुल जज़ीरा नामक वेबसाइट ने बताया है कि सऊदी सरकार ने इस देश में आस्था संबंधी पांच कैदियों की अंतिम सज़ा पास कर दी है।

इस मीडिया ने एक जानकार स्रोत के हवाले से बताया कि रियाज़ सरकार ने "मुहम्मद अली अल-शेक़ाक", "मंसूर समीर अल-हायेक", "मरज़ूक मुहम्मद ज़ैफ़ अल-फ़ज़ल" और "राद मुहम्मद ज़ैफ़ अल-फ़ज़ल" को मौत की सजा सुनाई है। इन चारों सउदी नागरिकों को मौत की सज़ाए मौत से सऊदी सरकार द्वारा मौत की सज़ा पाने वालों की संख्या बढ़कर 63 हो गई।

इससे पहले अरब प्रायद्वीप में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम  करने वाली समिति ने एक रिपोर्ट में घोषणा की थी कि नाबालिग़ों के लिए मौत की सज़ा का सिलसिला जारी है।

ये तथ्य इस कड़वी सच्चाई को उजागर करते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी और सऊदी पेट्रोडॉलर के प्रभाव के कारण मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन और ऊपर से मनमानी फांसी, सऊदी अरब में एक सामान्य और रोज़मर्रा की बात बन गई है।

सऊदी अरब ने पिछले दस वर्षों में फांसी का अपना ही रिकॉर्ड बनाया है और यह एसी स्थिति में है कि जब उसने 2013 से इस वर्ष अक्तूबर तक 1100 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिनमें से 990 से अधिक को सऊदी अरब के प्रिंस सलमान बिन अब्दुलअजीज के शासनकाल के दौरान फांसी दी गयी है।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि मुहम्मद बिन सलमान के युवराज बनने से पहले भी सऊदी अरब एक दमनकारी देश था लेकिन उनके सत्ता में आने के बाद दमन में एक अभूतपूर्व तरीके से तेज़ी आ गयी है इसलिए जो कोई भी सरकार की आलोचना करता है या अपने अधिकारों की रक्षा की कोशिश करता है उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और उसे गंभीर यातनाएं दी जाती हैं और लंबे क़ैद में उसे डाल दिया जाता है।

पिछले दो वर्षों के दौरान आले सऊद शासन ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी की छाया में आलोचकों और कार्यकर्ताओं के दमन को तेज़ कर दिया है और इसने सऊदी अरब को मानवाधिकारों के सबसे ख़राब उल्लंघनकर्ताओं में से एक बना दिया है।

सऊदी अरब में अतीत से ही दमन चला आ रहा था लेकिन सऊदी अरब के युवराज "मुहम्मद बिन सलमान" के कार्याकाल के दौरान यह एक अभूतपूर्व तरीके से बढ़ा ऐसे में जो भी उनकी नीतियों का विरोध करता है तो उसे दमन और प्रताड़ना का शिकार बनाया जाता है।

इस आधार पर कहा जा सकता है कि दमन, नज़रबंदी और मनमानी फांसी की नीतियों का शिकार सिर्फ़ सऊदी जनता ही नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र और दुनिया में लाखों अन्य लोग भी हैं जो किसी न किसी तरह से सऊदी अरब से पीड़ित हैं। पेट्रोडॉलर की नीतियां और यमन में लाखों निर्दोष लोग, सऊदी शासन के हस्तक्षेप और आक्रामकता की क़ीमत चुका रहे हैं। (AK)

 

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