एक दिन इतिहास हमसे पूछेगा: "इतने ज़ुल्म देखकर तुम कहाँ थे?
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पार्सटूडे – जब रूस और अमेरिका अलास्का में अपने भू-राजनीतिक खेल दिखाकर दुनिया का ध्यान खींच रहे थे, तब ग़ाज़ा में एक और कहीं अधिक गंभीर घटना, बिना किसी की नज़रों के, चुपचाप घटित हो रही थी।
(last modified 2025-08-19T14:00:10+00:00 )
Aug १८, २०२५ १७:१० Asia/Kolkata
  • भूख से तड़पता एक फिलिस्तीनी बच्चा
    भूख से तड़पता एक फिलिस्तीनी बच्चा

पार्सटूडे – जब रूस और अमेरिका अलास्का में अपने भू-राजनीतिक खेल दिखाकर दुनिया का ध्यान खींच रहे थे, तब ग़ाज़ा में एक और कहीं अधिक गंभीर घटना, बिना किसी की नज़रों के, चुपचाप घटित हो रही थी।

अल्जीरिया के अखबार "एक्सप्रेसियन" ने सोमवार को एक लेख में लिखा: "ग़ाज़ा इस समय घेराबंदी, विनाश और एक मानवीय संकट झेल रहा है, जो अब तक दुनिया का गंभीर ध्यान नहीं खींच पाया है।" यूरोपीय नेता, जो केवल अपने फायदों के बारे में सोच रहे थे, अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों की बैठक को ही गंभीरता से देख रहे थे। पार्सटूडे की रिपोर्ट के अनुसार, असल में यह बैठक जर्मनी के लिए अपने सैन्य पुनर्निर्माण को जारी रखने का मौका था, तो फ्रांस के लिए अपनी आंतरिक समस्याओं को छुपाने का बहाना। ब्रिटेन ने भी अमेरिका के वफादार साथी की अपनी पुरानी भूमिका निभाई, भले ही इसका मतलब एक ऐसे युद्ध को बढ़ावा देना था जो अमेरिकी हथियार विक्रेताओं को फायदा पहुँचाता हो। इन सबके बीच, यूरोप के आम नागरिक ही हैं जो इन नीतियों की कीमत चुकाएँगे।

 

एक बात तो साफ है कि ट्रम्प भी अपने पुराने सपने, नोबेल शांति पुरस्कार पाने की कोशिश में लगे हैं... अगर अब तक इस पुरस्कार का कोई मतलब बचा हो तो। असल में, शांति का पुरस्कार तो ग़ाज़ा के बर्बाद गलियों में, भूख से दम तोड़ते एक बच्चे की साँसों में, बमबारी से ध्वस्त हुए अस्पताल की राख में और एक अकेले मुल्क के दबे हुए आवाज़ में ढूँढा जाना चाहिए।

 

 

ग़ाज़ा में धीरे-धीरे नरसंहार हो रहा है। जब आर्थिक फायदों के आगे इंसानी गरिमा रौंद दी जाती है, या जब शोक में ग्रस्त माओं की जगह हथियारों के सौदागरों का स्वागत किया जाता है, तो फिर शांति का कोई मतलब नहीं रह जाता।

 

हर राष्ट्र को कब्जे, अन्याय और हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध करने का अधिकार है। लेकिन फिलिस्तीनियों से यह अधिकार क्यों छीना जा रहा है? उनकी जानें क्यों कम कीमती हैं? ग़ाज़ा के बुज़ुर्गों, महिलाओं और खासकर बच्चों को चुपचाप ताकतवरों की अनदेखी में क्यों मरना पड़ रहा है, मानो वे इतिहास के गलत पक्ष में पैदा हुए हों?

 

ग़ाज़ा को बचाना किसी खेमे या देश का पक्ष लेने के बारे में नहीं, बल्कि न्याय की अवधारणा को बचाने, बच्चों की सुरक्षा, इंसानी गरिमा की रक्षा और अत्याचार के विरोध के बारे में है। जो लोग किसी भी सामाजिक स्थिति में देखते, सुनते और जानते हैं फिर भी चुप रहते हैं, वे जिम्मेदार हैं। अपराधों के सामने खामोशी दरअसल उन्हें जारी रखने की मंजूरी है, और अन्याय से आँखें मूंदना उसके लिए रास्ता खोलना है।

 

एक दिन इतिहास हमसे पूछेगा: तुम इतने अत्याचारों पर चुप क्यों रहे? और तब हम यह कहकर जवाब नहीं दे पाएंगे कि हमें पता नहीं था। (AK)

 

कीवर्ड्ज़: इज़राइल, वेस्टबैंक, फ़िलिस्तीन, ज़ायोनी शासन, हिज़्बुल्लाह, हमास,

 

 

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