बहरैन की न्यायिक व्यवस्था, आले ख़लीफ़ा के हाथों की कठपुतली
बहरैन की न्यायिक व्यवस्था बिना किसी स्वाधीनता के इस देश के नेताओं और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ षड्यंत्रों को लागू करने के साधन में परिवर्तित हो चुकी है।
बहरैन की आले ख़लीफ़ा सरकार ने इस देश के धार्मिक नेताओं और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध कड़े व्यवहार में वृद्धि कर दी है। वस्तुतः आले ख़लीफ़ा शासन का प्रयास है कि धार्मिक नेताओं और राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर भारी आरोप लगा कर उन्हें राजनैतिक मंच से हटा दे और इस प्रकार अपने ऊपर होने वाली आपत्तियों को कम कर दे। बहरैन की एक अदालत ने अपनी एक सुनवाई में दावा किया है कि देश के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम के चार बैंक खाते हैं जिनमें 50 लाख दीनार से अधिक रक़म मौजूद है। उन पर यह आरोप एेसी स्थिति में लगाया गया है कि जब वे अदालत में मौजूद ही नहीं थे और उनकी ओर से किसी वकील ने भी अदालत की कार्यवाही में भाग नहीं लिया। उन पर लगे आरोपों में से अब तक कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हो पाया है लेकिन जून 2016 में ही सरकार ने उनकी नागरिकता छीन ली थी।
बहरैन के एक न्यायालय ने इसी तरह इस देश के मानवाधिकार केंद्र के प्रमुख नबील रजब की हिरासत की अवधि, कथित रूप से झूठी ख़बरें फैलाने के आरोप में और 15 दिनों के लिए बढ़ा दी है। यह एेसी स्थिति में है कि जब बहरैन की अदालत ने 29 दिसम्बर 2016 को ही अर्थात एक हफ़्ते पहले ही उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया था लेकिन उनके देश से बाहर न जाने की शर्त लगा दी थी। बहरैन की न्यायपालिका के आदेशों और फ़ैसलों से स्पष्ट हो जाता है कि पूरा न्यायिक तंत्र, आले ख़लीफ़ा शासन के इशारों पर नाच रहा है बल्कि शासन के षड्यंत्रों को लागू कर रहा है। यह स्थिति उन देशों की होती है जहां तानाशाही व्यवस्था होती है और न्याय पालिका या विधि पालिका को तनिक भी स्वाधीनता प्राप्त नहीं होती। बहरैन में भी न्याय तंत्र बिना किसी स्वाधीनता के केवल आले ख़लीफ़ा की सेवा में लगा हुआ है। (HN)