बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन की हिंसक नीति के परिणाम
बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन की हिंसक नीति के परिणाम
बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन ने जनता के ख़िलाफ़ दमनकारी नीति तेज़ कर दी है। बहरैनी सैनिकों ने आले ख़लीफ़ा शासन की दमनकारी नीति का विरोध कर रहे बहरैनी कार्यकर्ताओं पर हमला किया जिसमें कई घायल हो गए। इस बीच 17 साल के बहरैनी नौजवान मुस्तफ़ा हमेदान के सिर पर बहरैनी सैनिक ने ऐसी गोली मारी जो जंग के मैदान में इस्तेमाल होती है। कुछ रिपोर्टों में इस नौजवान के हताहत होने की सूचना मिली है।
बहरैन में सुरक्षा स्थिति ऐसी हालत में कड़ी कर दी गयी है कि आले ख़लीफ़ा शासन ने अभी कुछ दिन पहले 3 बहरैनी जवानों को निराधार आरोप में गोलियों से भुनवा दिया। आले ख़लीफ़ा शासन अपराध में तेज़ी लाकर बहरैनी जनता के आंदोलन को दबाने की कोशिश में है। बहरैन में 14 फ़रवरी 2011 से आले ख़लीफ़ा शासन के ख़िलाफ़ क्रान्ति जारी है। बहरैनी जनता इस देश में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, भेदभाव का अंत, राजनैतिक सुधार, मानवाधिकार का पालन, न्याय की स्थापना और आज़ादी की मांग कर रही है।
आले ख़लीफ़ा शासन की ओर से बहरैनी जनता के जारी दमन में मदद करने के लिए इस देश की संसद ने 2015 में आतंकवाद से संघर्ष के नाम पर नया क़ानून पारित किया ताकि विरोधियों का ज़्यादा से ज़्यादा दमन हो सके। ऐसे हालात में आले ख़लीफ़ा शासन ने विभिन्न बहानों से राजनैतिक दलों व कार्यकर्ताओं का दमन तेज़ कर दिया है। आले ख़लीफ़ा शासन आतंकवाद से संघर्ष के क़ानून की आड़ में इस देश में पुलिसिया नीति को तेज़ और ज़्यादा से ज़्यादा घुटन का माहौल पैदा कर रहा है।
आले ख़लीफ़ा शासन की कार्यवाही के कारण बहरैन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले देश के रूप में छवि बन गयी है और यही आले ख़लीफ़ा शासन की हिंसक नीति और ख़ास तौर पर जवानों के बढ़ते जनसंहार की ओर से चिंता बढ़ने की वजह है।(MAQ/T)