आले ख़लीफ़ा शासन को मिली यातनाएं देने की खुली छूट
बहरैन की संसद ने इस देश के संविधान में परिवर्तन करते हुए इस बात की अनुमति दे दी है कि सैनिक न्यायालय में आम लोगों पर मुक़द्दमा चलाया जा सकता है।
बहरैनी जनता के विरुद्ध आले ख़लीफ़ा शासन के अत्याचारों के चलते बहरैन की संसद ने आदेश जारी किया है कि नागरिकों पर सैन्य न्यायालय में भी मुक़द्दमा चलाया जा सकेगा। इस क़ानून के पास होने के साथ ही आले ख़लीफ़ा शासन, तथाकथित आतंकवाद और सुरक्षा मामलों से संबन्धित आरोपियों पर सैनिक अदालतों में केस दायर करेंगे। बहरैन की संसद ने यह क़ानून पारित करके आले ख़लीफ़ा शासन को अधिक से अधिक अत्याचार करने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह नियम, बहरैन में जारी छह साल पुराने संकट को और अधिक जटिल बना देगा और इससे मानवाधिकारों के अधिक से अधिक हनन होने की संभावना पाई जाती है।
बहरैन की संसद की ओर से बनाए गए नए क़ानून की घोषणा के साथ ही इस देश के गृहमंत्रालय ने बताया है कि आतंकवाद से संबन्ध रखने के आरोप में 20 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है जिनमें 4 महिलाएंं भी सम्मिलित हैं। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त लोगों से मुक़ाबले का बहाना पेश करके बहरैन, इस देश की जनता के लिए समस्याएं उत्पन्न कर रहा है।
सैनिक न्यायालय में आम लोगों पर मुक़द्दमा चलाना, वर्तमान शताब्दी में अभूतपूर्व है। यह काम आले ख़लीफ़ा शासन द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के पालन के दावों की पोल खोलता है। बहरैन की जनता के विरुद्ध इस देश की सेना की कार्यवाहियां, अमरीका और ब्रिटेन द्वारा उसके समर्थन के कारण ही संभव हो सकी हैं। उनकी बहरैन में सैनिक छावनियां हैं। यह देश अपने हितों की पूर्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं और एेसे में बहरैनी जनता के हित उनके निकट कोई महत्व नहीं रखते।
राजनैतिक जानकारों का कहना है कि सैनिक न्यायालय में आम लोगों पर मुक़द्दमा चलाने पर आधारित बहरैन की संसद के आदेश के दुष्परिणाम इस प्रकार से सामने आएंगे कि बहरैनवासी अधिक से अधिक सड़कों पर निकलेंगे। बहरैन की जनता ने पिछले छह वर्षों के दौरान यह दर्शा दिया है कि कोई भी चीज़ उनके इरादों के मार्ग में बाधा नहीं बन सकती और अंततः आले ख़लीफ़ा शासन को उनकी मांगों के सामने झुकना ही पड़ेगा।