बहरैन, दस युवाओं के मुक़द्दमे की कार्यवाही सेंसर
बहरैन के सैन्य न्यायालय ने दस बहरैनी नागरिकों पर मुक़द्दमे की कार्यवाही की किसी भी प्रकार की ख़बरे प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
बहरैन की लूलू समाचार एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार बहरैन के इन दस नागरिकों को निराधार आरोपों के अंतर्गत मुक़द्दमे का सामना है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन दस लोगों में से चार का प्रशासन ने अपहरण कर लिया है और उन पर मुक़द्दमा बिना बताए ही आरंभ कर दिया गया है।
बहरैन की इस समाचार एजेन्सी ने रिपोर्ट दी है कि बहरैन के सैन्य न्यायालय ने बहरैनी नागरिकों पर जो आरोप लगाए हैं उनमें से एक यह है कि दराज़ क्षेत्र में देश के रक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी से इन लोगों ने ट्रेनिंग ली है।
बहरैन का आले ख़लीफ़ा प्रशासन सुरक्षा से जुड़े मामलों का निराधार बहाना बनाकर व्यापक स्तर पर राजनैतिक और धार्मिक कार्यकर्ताओं के दमन की भूमिका प्रशस्त कर रहा है। इसीलिए अब तक बहरैन के सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है।
वर्ष 2010 के आरंभ और 2011 के आरंभ में जब अरब जगत में अत्याचारी, तानाशाही और बड़ी शक्तियों की पिट्ठू सरकारों के ख़िलाफ़ क्रांतियां आना शुरू हुईं तो बहरैन की जनता, भी जो बरसों से अपने मूल प्रजातांत्रिक अधिकारों से वंचित है, 14 फ़रवरी 2011 को सत्तारूढ़ आले ख़लीफ़ा शासन के ख़िलाफ़ उठ खड़ी हुई। उस दिन को बहरैन के क्रांतिकारी युवाओं ने आक्रोश दिवस का नाम दिया था और सड़कों पर प्रदर्शन आरंभ कर दिया था।
अन्य अरब देशों की तरह बहरैन का जनांदोलन भी सोशल मीडिया पर प्रचार और युवाओं के माध्यम से शुरू हुआ। 14 फ़रवरी सन 2011 को मुख्य प्रदर्शन राजधानी मनामा के पर्ल स्क्वायर पर हुआ जिसमें बाद में तानाशाही शासन ने क्रांति का स्मारक बनने से रोकने के लिए ध्वस्त कर दिया। बहरैन की जनता ने अपना आंदोलन करने के लिए 14 फ़रवरी की तारीख़ का चयन भी सोच समझ कर किया था। 2002 में इसी दिन बहरैन का संविधान पारित हुआ था। (AK)