मुस्तफ़ा अलअदीब और वह लेबनान जिसका उन्हें पुनर्निर्माण करना है!
लेबनान के नेता मुस्तफ़ा अलअदीब को, जो लेबनान के राजदूत की हैसियत से काम करने का सात साल का अनुभव रखते हैं, सोमवार को संसद से 90 वोट मिले और इस तरह वे अपने तीन प्रतिस्पर्धियों के मुक़ाबले में प्रधानमंत्री नियुक्त हो गए।
लेबनान के प्रधानमंत्री की नियुक्ति के नए चरण में और पिछले कई चरणों के विपरीत इस बात की कोशिश की गई कि इस पद के लिए दृष्टिगत व्यक्ति के नाम की घोषणा समय से पहले न की जाए और जब राजनैतिक धड़ों के बीच सहमति हो जाए तभी उम्मीदवार का नाम सार्वजनिक किया जाए। साद हरीरी के इस्तीफ़े के बाद आम तौर पर प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्ति के लिए वोट हासिल होने से पहले ही उम्मीदवार पर हमले शुरू हो जाते थे या दूसरे शब्दों में किसी काम से पहले ही मोहरा पिट जाता था। इस बार कोशिश की गई कि जब तक पूरी तरह से संतोष हासिल न हो जाए और हर पहलू की समीक्षा न कर ली जाए तब तक इस राजनैतिक समस्या को सामने आने ही न दिया जाए।
मुस्तफ़ा अलअदीब के मुक़ाबले में नुवाफ़ सलाम के जीतने की संभावना अन्य सभी प्रत्याशियों से ज़्यादा दिखाई दे रही थी जिन्हें सऊदी अरब का समर्थन हासिल था लेकिन उन्हें सिर्फ़ 15 वोट मिले। इस बीच समीर जाजा ने राष्ट्रवादी मुखौटा लगा कर और वोटिंग की स्वाधीनता के नारे के साथ अलअदीब को पश्चिम विशेष कर फ़्रान्स का उम्मीदवार दिखाने की कोशिश की जबकि वलीद जुमबुलात के धड़े ने अदीब को वोट तो दिया लेकिन कहा कि वह सरकार में शामिल नहीं होगा। स्पष्ट है कि इस तरह का रुख़ लेबनान के प्रभावी राजनैतिक धड़ों की ओर से राष्ट्रीय एकता की सरकार के गठन के फ़ैसले पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल सकता था।
मुस्तफ़ा अलअदीब को इस स्थिति में लेबनान की संसद से प्रधानमंत्री पद के लिए वोट मिला है जब फ़्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रोन, सोमवार की रात इस देश की यात्रा करने वाले हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह यात्रा, अदीब के चयन से संबंधित है लेकिन सच्चाई यह है कि लेबनान के अधिकतर प्रभावी राजनैतिक धड़े, मुस्तफ़ा अलअदीब पर विश्वास दिखा कर इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि एक ओर अतीत की "सरकार रहित देश" की ग़लती को न दोहराएं और दूसरी तरफ़ वे अपने इस क़दम से बैरूत में धमाके की दुखद घटना के बाद लेबनानी राष्ट्र के लिए एक आशा भरा भविष्य रेखांकित करना चाहते हैं।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव इससे पहले कई बार "सरकार रहित देश" के संबंध में सचेत कर चुके थे लेकिन लगता है कि पिछले कुछ महीनों की घटनाओं ने, जो रफ़ीक़ हरीरी की सरकार के इस्तीफ़े के बाद शुरू होने वाली अशांति और हस्सान दियाब की सरकार की ओर से सुधार कार्यक्रम को व्यवहारिक न बना पाने के कारण सामने आई हैं, सभी को इस निष्कर्ष तक पहुंचा दिया कि लेबनान में बढ़ती हुई समस्याओं को समाप्त करने के लिए उन्हें एक योग्य व समर्थ सरकार को सत्ता में लाना होगा। (HN)
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