क्या बाइडन, प्रतिबंध समाप्त करने की गुटेरस की मांग स्वीकार करेंगे?
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संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनियो गुटेरस ने अमरीका की जो बाइडन सरकार से मांग की है कि सन 2015 के परमाणु समझौते के आधार पर ईरान के ख़िलाफ़ लगाए गए सभी प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Jul ०२, २०२१ २२:०९ Asia/Kolkata
  • क्या बाइडन, प्रतिबंध समाप्त करने की गुटेरस की मांग स्वीकार करेंगे?

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनियो गुटेरस ने अमरीका की जो बाइडन सरकार से मांग की है कि सन 2015 के परमाणु समझौते के आधार पर ईरान के ख़िलाफ़ लगाए गए सभी प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए।

गुटेरस ने राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद को एक रिपोर्ट भेज कर अमरीका से मांग की है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के तेल संबंधी लेन-देन को प्रतिबंधों से अलग रखने की छूट की समय सीमा बढ़ाई जाए। उन्होंने इस रिपोर्ट में कहा है कि ईरान पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए या परमाणु समझौते में दर्ज प्रतिबंधों की छूट की समय सीमा बढ़ाई जाए और परमाणु समझौते और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 के अंतर्गत ईरान को परमाणु कार्यक्रम से संबंधित गतिविधियों में सहूलत दी जाए। उन्होंने कहा है कि सभी देशों को इस संबंध में ईरान से सहयोग करना चाहिए ताकि जारी कूटनैतिक प्रयासों व क्षेत्र की स्थिरता पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनियो गुटेरस की इन बातों से पूरी तरह स्पष्ट है कि बाइडन के विदेश मंत्री ब्लिकंन समेत अमरीकी अधिकारियों के दावों के विपरीत, जो ज़्यादातर ज़ायोनी शासन के दबाव से प्रभावित हैं, परमाणु समझौते की बहाली के मामले में गेंद ईरान के नहीं बल्कि अमरीका के पाले में है। इसकी वजह यह है कि जैसा कि राष्ट्र संघ में रूस के राजदूत वासिली नेबेनज़िया ने भी कहा है, परमाणु समझौते के बारे में वर्तमान समस्याएं, इस समझौते से अमरीका के निकल जाने के कारण पैदा हुई हैं और ईरान की कोई भी कार्यवाही अकारण नहीं थी बल्कि वह एक तरह से इस समझौते से अमरीका के निकलने पर आने वाली प्रतिक्रिया थी।

गुटेरस की रिपोर्ट में दो बातें काफ़ी ध्यान योग्य हैं। एक तो यह कि कुछ देशों ने, जिनमें मुख्य रूप से यूरोपीय देश शामिल हैं, परमाणु समझौते को बचाने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं की हैं और दूसरे यह कि कुछ पक्ष, परमाणु समझौते में अमरीका के लौटने में रोड़े अटका रहे हैं जिनमें ज़ायोनी शासन सबसे प्रमुख है और फिर सऊदी अरब जैसे कुछ अरब देश भी हैं।

इस लिए चाहे परमाणु समझौते से निकलने का पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का फ़ैसला हो या फिर इस समझौते में लौटने के मामले में वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन की ढिलाई हो, सबके लिए अमरीका ही ज़िम्मेदार है। निश्चित रूप से गुटेरस और अन्य अहम लोगों की मांगों की अनदेखी, इस विचार को बल प्रदान करेगी कि बाइडन भी ट्रम्प की ही तरह, इस्राईली माफ़िया के दबाव में हैं और न सिर्फ़ यह कि अमरीका की मुख्य प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने की ताक़त नहीं रखते बल्कि शायद वे अपने चुनावी नारों और डेमोक्रेटिक पार्टी की सैद्धांतिक नीतियों से भी दूर होते जा रहे हैं। (HN)

 

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