Dec २१, २०२२ १६:४१ Asia/Kolkata

श्रीलंका की नौसेना ने बताया है कि उसने हिंद महासागर के उत्तरी तट से 104 रोहिंग्या मुसलमानों को निजात दी है।

लगभग एक दशक से रोहिंग्या मुसलमान विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में पलायन कर्ताओं का जीवन गुज़ार रहे हैं।  इनमें से अधिकांश बांग्ला देश में शरणार्थी शिविरों में  मौजूद हैं। 

जिन शरणार्थी शिविरों में रोहिंग्या मुसलमान जीवन गुज़ार रहे हैं वहां पर जीवन व्यतीत करने की सबसे कम संभावनाएं हैं विशेषकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में।  बांग्लादेश की सरकार ने घोषणा की है कि वह रोहिंग्या पलायनकर्ताओं को देश के सुदूर क्षेत्रों में स्थानांतरित करना चाहती है।  इससे रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं क्योंकि रिपोर्टों में बताया गया है कि बांग्लादेश के सुदूर द्वीप एक प्रकार से नर्वासन क्षेत्र हैं जहां पर जीवन की संभावनाएं बहुत कम हैं।  शायद यही वजह है कि विश्व समुदाय ने इस बारे में बांग्लादेश को सचेत किया है।

इसी बीच बांग्ला देश की सरकार का कहना है कि वहां पर रोहिंग्या मुसलमानों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होने वाली आर्थिक, सामाजिक और वत्तीय समस्याओं के कारण उसकी विश्व समुदाय की ओर से सहायता की जाए।  रोहिंग्या मुसलमानों की समस्याओं के संदर्भ में यह बात तो स्पष्ट है कि बांग्ला देश के काक्स बाज़ार नामक क्षेत्र में दस लाख से अधिक रोहिंग्या रहते हैं जहां पर संभावनाएं बहुत ही कम हैं।  वहां पर रहने वालों के मन में अपने भविष्य को लेकर कोई आशा नहीं है क्योंकि म्यांमार में वे अपना सबकुछ लुटाकर जहां पहुंचे हैं वहा ज़िदगी की बुनियादी चीज़ें भी नहीं हैं।

दूसरी ओर उनकी सहायता करने में बांग्ला देश की सरकार की अक्षमता ने उनको अधिक निराश किया है।  पहले बांग्लादेश और म्यांमार की सरकारों के बीच एक समझौता हुआ था।  इस समझौते के आधार पर परिस्थितियों के सामान्य होने पर रोहिंग्या मुसलमानों को धीरे-धीरे उनके जन्मस्थल राख़ीन भेज दिया जाएगा जो म्यांमार का एक प्रांत है।  रोहिग्या मूल रूप से इसी प्रांत के निवासी हैं।  म्यांमार की सरकार ने इस समझौते को व्यवहारिक रूप नहीं दिया बल्कि वह तो अब भी राख़ीन प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को ज़बरदस्ती वहां से भगाने की कोशिशें कर रही है। 

संयुक्त राष्ट्रसंघ ने रोहिंग्या मुसलमानों को विश्व की एसी सबसे अत्याचारग्रस्त अल्पसंख्य जाति बताया है जो शर्णार्थी शिविरों में अत्यन्त दयनीय स्थति में जीवन गुज़ार रहे हैं।  दुनिया में मानवाधिकारों के समर्थन का ढिंढोरा पीटने वाले भी रोहिंग्या मुसलमानों की सहायता के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।  एसा लगता है कि उन्होंने इस ओर से अपनी आंखें मूंद रखी हैं।

यह रवैया रोहिंग्या मुसलमानों को उनके अपनी मातृभूमि से ज़बरदस्ती निकाल बाहर करने के लिए म्यांमार की सैनिक सरकार अधिक दुस्साहसी बना रहा है।  म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की संपत्ति पर वहां के बौद्ध अतिवादियों और सेना ने क़ब्ज़ा कर रखा है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ के मौन के कारण पूरे विश्व के सामने रोहिग्या मुसलमानों के जातीय सफाए की कार्यवाही जारी है।  इस कार्यवाही से जो बच निकलने हैं उनको बांग्ला देश जैसे देशों में जाकर अत्यंत विषम परिस्थितियों में ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है।

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें

टैग्स