अंधाधुंध लड़ाईयों ने अमरीकी साम्राज्य का दिवालिया निकाल दिया
एक प्रमुख अमरीकी लेखक और विश्लेषक रिचर्ड हास ने एक बयान में कहा है कि संयुक्त राज्य अमरीका दुनिया में अस्थिरता और अशांति का बड़ा स्रोत बन गया है और यह देश वैश्विक सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर ख़तरा है।
विदेश संबंध परिषद के प्रमुख के रूप में अपने आख़िरी दिन हास ने एक साक्षात्कार में कहा: हमारी घरेलू राजनीतिक स्थिति न केवल ऐसी है कि जिसका अन्य लोग अनुसरण नहीं करना चाहते हैं, बल्कि वे इसके प्रति नापसंदगी भी रखते हैं। यह वास्तव में हानिकारक है। इससे हमारे दोस्तों के लिए दुनिया में सफलतापूर्वक काम करने की अमरीका की क्षमता पर निर्भर रहना बहुत मुश्किल हो जाता है।
हास ने इससे पहले भी 6 जनवरी, 2021 को अमरीकी कांग्रेस पर हमले के बाद, वैश्विक स्तर पर अमरीका के पतन के बारे में चेतावनी दी थी। हास के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका, सबसे विश्वसनीय खिलाड़ी होने के बजाय, दुनिया में सबसे अविश्वसनीय होकर रह गया है। वह आज दुनिया में अस्थिरता का सबसे बड़ा स्रोत और लोकतंत्र का एक अविश्वसनीय उदाहरण बन गया है। उनका मानना है कि अगर अमरीका के बाद के युग की शुरुआत होगी, तो वह निश्चित रूप से वह दिन होगा जब ट्रम्प के समर्थकों ने कांग्रेस पर धावा बोल दिया था।
हास ने कांग्रेस में इस घटना के अमरीका की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर पड़ने वाले परिणामों के बारे में अपनी चिंता इस प्रकार व्यक्त की: यह संभव नहीं है कि दुनिया में हमें लोग पहले की तरह देखेंगे, सम्मान करेंगे, डरेंगे या निर्भर रहेंगे। अमरीका के बाद के युग की शुरुआत पर सबसे महत्वपूर्ण अमरीकी विदेश नीति थिंक टैंक के प्रमुख की स्वीकृति, वास्तव में अमरीकी साम्राज्य के तेज़ी पतन का सबूत है।
वहीं, शीत युद्ध के बाद के दौर पर नज़र डालने से पता चलता है कि अमरीका ने दुनिया में अस्थिरता और अशांति पैदा करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। 11 सितंबर की घटना के बाद, अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने आक्रामक रुख़ अपनाया और आतंकवाद के खिलाफ़ वैश्विक लड़ाई के बहाने अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमला किया। आतंकवाद के विरुद्ध इस तथाकथित वैश्विक युद्ध में इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, लीबिया और यमन में दस लाख से अधिक लोग मारे गये। इराक़ पर क़ब्ज़े और उसके परिणामों के कारण अंततः दाइश जैसे ख़ूंख़ार आतंकवादी गुटों का गठन हुआ। अमरीका को इन युद्धों से कोई परिणाम नहीं मिला, बल्कि उसे पराजित होकर इराक़ और अफ़गानिस्तान से निकलना पड़ा।
हालांकि वाशिंगटन ने अभी भी इराक़ और सीरिया में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। इन युद्धों ने इस देश के बजट पर भारी दबाव डाला है, जिसे बर्दाश्त करना अब इसके लिए मुश्किल होता जा रहा है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के अनुसार इन लड़ाईयों का ख़र्चा 7 ट्रिलियन डॉलर है।