Apr १०, २०२४ १८:२५ Asia/Kolkata
  • इराक़ और जापान में जनसंहार को भूल जाओ, यूक्रेन के बारे में बात करो/ इराक़ युद्ध में अमरीका की समाचार प्रबंधन तकनीक
    इराक़ और जापान में जनसंहार को भूल जाओ, यूक्रेन के बारे में बात करो/ इराक़ युद्ध में अमरीका की समाचार प्रबंधन तकनीक

जापान में अमरीकी बमबारी का शिकार जापानियों की आवाज़ को दबाने के अनुभव ने अमरीका को इराक़ में मीडिया में विशेष तकनीकों को शामिल करने के लिए तैयार किया।

पार्सटुडे- अमरीकी मिशन ने वियतनाम युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापानियों की आवाज़ का बहिष्कार करने वाले समाचारयुद्ध से सीख लेते हुए इराक़ में जीत को, इराक़ियों तथा अमरीकियों के दिलों और दिमाग़ों को जीतने के रूप में परिभाषित किया।

इस काम के लिए मीडिया को, दक्षिण एशियाई युद्धों के विपरीत, नरम शक्ति के अभ्यास के लिए एक मज़बूत ताक़त के रूप में भर्ती किया गया जहां पर इसको सामान्यतः पांचवें स्तंभ के रूप में देखा जाता है।

वियमनाम युद्ध के बारे में अमरीकियों के लिए यह स्पष्ट था कि सैनिक दृष्टि से बहुत ही कमज़ोर दुश्मन ने विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना को इसलिए परास्त किया क्योंकि उसको जनसमर्थन हासिल था।  यही कारण था कि इराक़ में धारणा प्रबंधन, एक रणनीतिक प्राथमिकता बन गया था।  इसी के साथ जापान में अमरीकी बमबारी का शिकार जापानियों की आवाज़ का बहिष्कार करने के अनुभव ने अमरीका को इराक़ में मीडिया में विशेष तकनीकों को शामिल करने के लिए तैयार किया।

सैन्य इकाइयों में पत्रकारों को शामिल करने से अमरीका को उस बैकग्राउंड को कंट्रोल करने में मदद मिली जिस दृष्टिकोण से वे इस युद्ध को देख रहे थे।

अमरीकी सैनिकों को होने वाली समस्याएं और उनकी पीड़ा तो अमरीकी स्मृति में प्रमुख रही जबककि इराक़ियों को होने वाली समस्याओं और परेशानियों को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया।  यह मात्र संयोग नहीं था।  यह सोच, युद्ध के आरंभ से भी पैदा हो चुकी थी।  यह इसलिए हुआ क्योंकि अमरीकी समाज अपने सैनकों की पीड़ा पर ध्यान देने में लग गया जिससे वहां के लोगों का वह सवाल ही दब गया कि उनके देश के सैनिकों को क्यों एक अमानवीय अभियान पर इराक़ भेजा गया?

इस प्रकार अमरीकी जनता ने एक अन्यायपूर्ण युद्ध में अपने सैनिकों को भेजने पर सवाल उठाने के स्थान पर अपने ही सैनिकों की पीड़ा पर अपनी सहानुभतियों को केन्द्रित कर दिया।

इसी बीच मीडिया रूपी साफ्ट पावर के लिए नकारात्मक समाचारों और डेटा पर अंकुश लगाने की आवश्यकता का आभास किया जाने लगा।  कम संख्या में अमरीकी सैनिक उन इराक़ी लड़ाकों के हाथों मारे गए जिनको तथाकथित छापामार कहा जा रहा था हालांकि उनमें से अधिकांश, अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए संषर्घरत थे जो अमरीकी सैन्य अभियान को अपने देश के परिवेष्टन के रूप में देख रहे थे।

संयुक्त राज्य अमरीका ने सन 2004 के वसंत में इराक़ के लड़ाकों को बास पार्टी के वफादारों और विद्रोहियों के ग्रुप में डाल दिया।  शब्दों के इस खेल ने इराक़ में अपनी मात्रभूमि की रक्षा करने वालों की वैधता पर ही प्रश्न लगा दिया।  अमरीकी सेना से शाब्दिक खेल के माध्यम से वास्तविक स्थिति के बारे में अमरीकी जनता की धारणाओं को बदलना शुरू कर दिया।

यह वास्तविकता है कि बहुत से इराक़ी आज भी 2004 से 2011 तक की समय अवधि को अपने देश के अधिग्रहण के रूप में देखते हैं।  उनकी इच्छा है कि अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य अभियान को काश वे उतनी ही आसानी से समाप्त कर देते जितनी आसानी इसको उनपर थोपा गया था।

पश्चिमी संचार माध्यमों में इस विषय पर बहुत ही कम टीका-टिप्पणी की गई कि इराक़ पर हमला, अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों के हिसाब से अवैध और ग़लत था।

इराक़ की संप्रभुता के उल्लंघन के साथ ही वहां पर फ़ल्लूजा तथा अन्य स्थानों पर अरमीकी सैनिकों द्वारा किये गए युद्ध अपराधों को मीडिया की कवरेज से वैसे ही हटा दिया गया जिस तरह से जापानियों की पीड़ा के समाचारों को दबा दिया गया था।

इराक़ियों का मानना है कि उनके देश पर आक्रमण एक ग़लती था जिसने उनके समाज को बुरी तरह से प्रभावित करते हुए उनके लिए बहुत से दुष्परिणाम पेश किये।

हालांकि इराक़ पर अरमीकी आक्रमण और यूक्रेन के विरुद्ध रूसी सैन्य कार्यवाही के साथ ही जापानी लोगों के जनसंहार के बारे में अमरीकी जनता के व्यवहार में जो अंतर पाया जाता है वह खुले पाखंड से भी बढ़कर है।

यह बात सर्वविदित हैं कि यूक्रेन संकट के संदर्भ में अमरीकी मीडिया में विलादिमीर पुतीन की निंदा और रूस को अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति जवाबदेह ठहराने का आह्वान अधिक हावी रहा है।

हालांकि इसी मीडिया ने सन 2002 और 2003 में सद्दाम के ख़तरे को बढा-चढाकर पेश करने और इराक़ में सामूहिक विनाश के हथियारों की मौजूदगी के बारे में जनता की राय को धोखा देने के लिए तरह-तरह की बातें पेश कीं जिसकी कोई आलोचना नहीं हुई।  यह वैसा ही मश्हूर अमरीकी औचित्य है जिसमें कहा जाता है कि यदि हमने कुछ लाख जापानियों को नहीं मारा होता तो दूसरा विश्वयुद्ध कई वर्षों तक जारी रहता।

हालांकि अमरीकी मीडिया ने यूक्रेन युद्ध के संबन्ध में रूस से जुड़े क़ानूनी सवालों को पूरी शक्ति के साथ पेश किया जबकि इसी मीडिया ने इराक़ पर अमरीका के आक्रमण के बारे में इसी प्रकार के सवाले उठाने में जनता की राय को दिगभ्रमित कर दिया।  जापान के संबन्ध में भी अमरीका पहले एसी हरकत कर चुका है।

वहां की मुख्यधारा मीडिया का यह मानना है कि इराक़ एक भुला दिया गया देश है और जापानी नगरों पर अमरीकी बमबारी भी अतीत का विषय है। युद्ध विरोधियों और शांति समर्थकों के बीच भी अब इराक़ युद्ध के बारे में बात करने की इच्छा दिखाई नहीं देती है।  कुछ अवसरों पर तो एसा भी हुआ है कि इस संबन्ध में आयोजित कार्यक्रमों में लोगों ने भाग लेने से इन्कार कर दिया।

यह खेदजनक चुप्पी, इस कटु सत्य की ओर संकेत करती है कि इराक़ पर हमले के बीस वर्षों के बाद अमरीकी प्रचारतंत्र, उसी तरह से इस युद्ध को जीत गया है जैसे उसने जापान के संबन्ध में अपने दुष्प्रचारों से विजय प्राप्त की थी।

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