इस्राईलः अमेरिका की एक ख़तरनाक और भयावह योजना
(last modified Fri, 26 Apr 2024 12:37:05 GMT )
Apr २६, २०२४ १८:०७ Asia/Kolkata
  • इस्राईलः अमेरिका की एक ख़तरनाक और भयावह योजना

पार्सटुडेः सत्तर के दशक के बाद दुनिया में एक नक़ली शासन के रूप में इस्राईल के फलने-फूलने में संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा हाथ रहा है।

अमेरिकी बजट का अरबों डॉलर इस्राईली शासन की क्षमताओं को बढ़ाने और उसे मजबूत करने पर ख़र्च किया जाता है। किसी भी क़ीमत पर अवैध अधिकृत शासन को अमेरिका का खुला समर्थन कोई अजीब घटना नहीं है। लेकिन पश्चिम एशिया में स्थानीय राजनेताओं और प्रतिरोध समूहों के साथ क्षेत्रीय युद्ध की कगार पर पहुंच चुके संयुक्त राज्य अमेरिका से यह साल पूछा जाना चाहिए कि एक ऐसा शासन जो हथियारों से लैस है और दुनिया पर हमलावर है, साथ ही उसका ही बनाया हुआ है, उसके साथ क्या किया जाना चाहिए। एक ऐसा शासन जो अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका के हितों को ख़तरे में डालेगा। अमेरिका के मानवीय दावों के बारे में हास्यास्पद बात यह है कि एक तरफ़ सरकार फ़िलिस्तीनियों को नुक़सान पहुंचाने में शामिल है और दूसरी तरफ़ ग़ज़्ज़ा को मानवीय हवाई सहायता भेजकर उनके ज़ख़्मों पर मलहम लगाने की दिखावटी कोशिश कर रहा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने राजनयिक अतीत में औपनिवेशिक और तानाशाही नेताओं का समर्थन किया है, लेकिन इस संघर्ष में देश की स्थिति के बारे में जो अनोखी बात है वह इस्राईल के साथ इसका अनूठा संबंध है। जैसा कि नोम चॉम्स्की बताते हैं कि इस्राईल ने पश्चिम एशिया में अरब राष्ट्रवाद की संभावना को नष्ट कर दिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए क्षेत्र के संसाधनों को लूटने का ज़रिया बन गया। इसके बाद से ही अमेरिका और इस्राईल के बीच गठबंधन बरक़रार है। इस्राईल अपने पाश्विक हमले के लिए कोई मानवीय सीमा नहीं मानता और अमेरिका में भी युद्ध अपराध करने वाले इस्राईल को सार्वजनिक रूप से ना कहने का नैतिक साहस नहीं है। अमेरिका और इस्राईल के बीच यह वर्तमान आदान-प्रदान एक सम्मोहक मामला है कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका एक दुष्ट शासन बन गया है जो चाहकर भी इस बुराई को कंट्रोल नहीं कर सकता है।

इस्राईल को पश्चिम एशिया में एकमात्र लोकतंत्र के रूप में स्थापित करना एक कड़वी विडंबना है, जबकि यह वर्तमान में दुनिया की सबसे निर्लज्ज और क्रूर क़ब्ज़ा करने वाली शक्ति है, और इसकी जड़ें फ़िलिस्तीनी लोगों को उनकी भूमि से निष्कासित करने और मिटाने में निहित हैं। अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मानक ही एकमात्र आदर्श हैं जो विश्व समुदाय को यह कहने में मदद करते हैं कि क्या सही है या क्या ग़लत, लेकिन इस्राईल के मामले में, इसके नेता शुरू से ही बिना किसी पश्चाताप या परिणाम के नियमों को तोड़ते रहे हैं।

इस बार भी संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा इस्राईल के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के उल्लंघन पर टिप्पणी के बाद इस्राईल और यूएन के बीच तनाव बढ़ गया है। इससे पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र के पास इस्राईल जैसे शासनों पर अधिक प्रभाव नहीं है जो ऐतिहासिक रूप से शांति अपील के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अक्षमता के कारण ज़ायोनी शासन के अपराध लगातार जारी हैं, जिससे हाल के महीनों में शासन के हमलों में 34,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की शहादत हुई है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। (RZ)

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