May २०, २०२४ १२:१४ Asia/Kolkata
  • पश्चिम की सुरक्षा गारेंटी पर अफ्रीकियों को भरोसा नहीं रहा
    पश्चिम की सुरक्षा गारेंटी पर अफ्रीकियों को भरोसा नहीं रहा

कई कारणों से अफ्रीकी अब पश्चिम की सुरक्षा गारेंटी पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।

पार्सटुडे- अफ्रीका में पश्चिम के राजनीति और सैनिक हस्तक्षेप का इतिहास, इस महाद्वीप के संसाधनों के लगातार दोहन का परिचायक रहा है।  यह हस्तक्षेप न केवल शांति की स्थापना में बाधा रहा बल्कि अफ्रीका के अधिक निर्भर और अस्थिर होने का कारण भी बना है।

इतिहास गवाह है कि अफ्रीकी देश लंबे समय से गृहयुद्ध, अशांति, आतंकवाद और आंतरिक अस्थिरता का शिकार रहे हैं।  पश्चिमी शक्तियों विशेषकर संयुक्त राजय् अमरीका और फ्रांस तथा ब्रिटेन जैसी औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीकी देशों के साथ कई सैन्य समझौते किये।  यह समझौते कभी भी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए बल्कि उनके उल्टे ही परिणाम सामने आए हैं।  इनके बाद अफ्रीकी देश आत्म निर्भर होने की जगह पर पश्चिम पर अधिक निर्भर हुए हैं।

आतंकवाद का अवसर

कांगो रिपब्लिकन, नाइजीरिया, लीबिया, माली, सोमालिया और सूडान आदि वे देश हैं जिनको गंभीर ढंग से आतंकवाद का समाना है।  वहाबी विचारधारा से प्रभावित अलक़ाएदा, दाइश या इस जैसे अन्य सलफी जेहादी गुट, अफ्रीकी देशों में अस्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।  यह आतंकी गुट, व्यवस्था में पाई जाने वाली कमज़ोरियों और सामाजिक समस्याओं का दुरूपयोग करते हुए अपने लिए रंगरूटों की भर्ती करते हैं।  इन हालात में पश्चिमी देश इन देशों में सुरक्षा स्थापित कराने और आतंकवाद को समाप्त कराने के बहाने सैन्य समझौते करते हैं जिनमें से अधिकांश पूरी तरह से विफल रहते हैं।

स्रोतों पर नियंत्रण

अफ्रीकी देश सिरालिओन के राष्ट्रपति की पत्नी Fatima Maada कहती हैं कि देश की जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि हमको अपने ही इन संसाधनों के बारे में कोई फैसला लेने की इजाज़त नहीं है।  बड़ी ताक़तें हमेशा ही देश में अशांति फैलाकर विरोधियों का समर्थन करते हुए देश के विकास में बाधा बने रहते हैं।  यह दृष्टिकोण, अफ्रीका महाद्वीप को अस्थिर बनाने में पश्चिमी देशों की विध्वंसक नीतियों को पेश करता है।

औपनिवेशिक सीमाएं

अफ्रीका में उपनिवेशवाद की लूट का क्रम पंद्रहवी शताब्दी से शुरू हुआ जो सन 1884-1885 के बर्लिन सम्मेलन के साथ अपने चरम को पहुंचा।  इस कांफ्रेंस में यूरोपीय देशों ने अफ्रीका महाद्वीप को आपस में बांट लिया था।  इस बंदरबांट में क़ौमी, सियासी और कल्चरल सीमाओं को अनदेखा कर दिया गया।  यही विषय आज भी इस महाद्वीप में झड़पों और अशांति का कारण बना हुआ है।

हस्तक्षेप का जारी रहना

अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता के बाद पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों ने आर्थिक और सैन्य समझौते करके इस महाद्वीप पर अपने प्रभाव को सुरक्षित रखने का प्रयास किया।  फ्रांस एसीमिलेशन पालिसी का प्रयोग करते हुए इस महाद्वीप के फैंकोफोन देशों पर अब भी अपना आर्थिक और सैन्य नियंत्रण बनाए हुए है ताकि मौक़ा मिलते ही वह वहां पर सैनिक हस्तक्षेप कर सके।  मिसाल के तौर पर सन 2002 से 2004 तक आइवरी कोस्ट में होने वाले गृहयुद्ध में संघर्षरत पक्षों में से एक पक्ष का साथ देकर फ्रांस ने यह काम किया।

अमरीका की भूमिका

अमरीका भी सैनिक समझौते करके अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने के चक्कर में रहता है।  उदाहरण के लिए 2018 में घाना के साथ सैनिक समझौता करके अमरीका ने यही काम किया।  इस समझौते के हिसाब से अमरीकी सैनिकों को यह अधिकार है कि वे स्थानीय सरकार की अनुमति के बिना ही घाना में बने रहें और वहां पर सैन्य कार्यवाहियां भी कर सकते हैं।  हालांकि घाना की जनता ने इस समझौते का खुलकर विरोध किया।  इसके विरोधी अमरीकी सैन्य समझौते को घाना की एकता एवं संप्रभुता के लिए गंभीर ख़तरे के रूप में देख रहे हैं।

सैन्य हस्तक्षेप

सन 2011 में लीबिया पर नेटो का हमला भी पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेप का नमूना है जिसके परिणाम स्वरूप करनल क़ज़्ज़ाफ़ी मारा गया और उसकी सरकार का तख़्ता पलट गया।  यह काम अधिक अस्थिरता और अशांति का कारण बना।  इस सैन्य हस्तक्षेप के बाद लीबिया एक अस्थिर देश में परिवर्तित हो चुका है।  वर्तमान समय में इस देश के अलग-अगल हिस्सों पर विभिन्न छापामार और आतंकवादी गुटों का नियंत्रण है।  इस अस्थिरता के दुष्प्रभाव, तटीय क्षेत्रों पर अधिक पड़े हैं जिससे आतंकवादी गुटों को अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिला है।

यह कहा जा सकता है कि अफ्रीका महाद्वीप में पश्चिम का सैन्य और राजनीतिक हस्तक्षेप, उसके द्वारा इस महाद्वीप के संसाधनों के दोहन को जारी रखने का तरीक़ा है।  यह हस्तक्षेप न केवल यह कि शांति और स्थिरता का कारण नहीं बना बल्कि इसने अफ्रीका को दूसरों पर अधिक निर्भर कर दिया।  यही वजह है कि अफ्रीकी देश, पश्चिम की सुरक्षा गारेंटी पर भरोसा नहीं करेंगे। एसे में वे अपनी सुरक्षा और विकास के लिए क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग करना चाह रहे हैं।           

स्रोतः Maxwell Boamah Amofa. 2024. Seeds of chaos: Here’s why Africa can’t trust Western ‘security guarantees’. RT

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