फ़्रांसीसी सैनिकों को किन अफ्रीकी देशों से निकाल दिया गया?
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फ़्रांसीसी सैनिकों को किन अफ्रीकी देशों से निकाल दिया गया?
पार्सटुडे - माली, नाइजर, बुर्किना फासो, चाड और सेनेगल के बाद आइवरी कोस्ट ने भी फ्रांसीसी सैनिकों से निकलने की मांग कर दी है।
पार्सटुडे के अनुसार, आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति अलासेन औतारा ने 2024 के अपने आख़िरी भाषण में मंगलवार की रात देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा: आबीजान में पोर्ट बो के बंदरगाह में 43वीं बीआईएमए मरीन इन्फैंट्री बटालियन का फ़्रांसीसी सेना का मुख्यालय, जनवरी 2025 में आइवरी कोस्ट सशस्त्र बलों को सौंप दिया जाएगा।
आइवरी कोस्ट में फ्रांस के फिलहाल 600 सैनिक हैं। फ्रांस के पूर्व औपनिवेशिक देशों में फ्रांसीसी विरोधी भावनाओं के तेज़ होने के बाद, इस देश की सरकार ने भी पिछले नवम्बर में पश्चिम और मध्य अफ्रीक़ी देशों में अपनी सैन्य उपस्थिति कम करने का निर्णय लिया।
इस संबंध में, आइवरी कोस्ट में फ्रांसीसी सैनिकों की संख्या लगभग 2200 सैनिकों से घटाकर 600 तक कर दी गयी है। अब इतनी ही संख्या में फ्रांसीसी सैनिकों को आइवरी कोस्ट छोड़ना होगा।
फ्रांसीसी सरकार ने सोचा कि फ्रांसीसी सेना को कम करके, वह अभी भी अफ्रीका में अपना सैन्य और राजनीतिक प्रभाव बनाए रख सकती है लेकिन फ्रांस की ये रणनीति भी फेल हो गई।
फ्रांस के पूर्व उपनिवेश, इस यूरोपीय साम्राज्यवादी देश के राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व को पूरी तरह ख़त्म करने और परस्पर सम्मान के साथ संबंधों की मांग कर रहे हैं, न कि वर्चस्ववादी राजनीति पर आधारित।
फ्रांस को अब तक उन 70 प्रतिशत से अधिक अफ्रीकी देशों से निकाला जा चुका है जहां उसकी सैन्य उपस्थिति थी।
इस बड़े यूरोपीय साम्राज्यवादी की सैन्य उपस्थिति केवल जिबूती में 1500 सैनिकों के साथ और गैबॉन में 350 सैनिकों के साथ ही सीमित होकर रह गयी है।
इन घटनाक्रमों को क्षेत्र में बढ़ती फ्रांस विरोधी भावनाओं के बीच, फ्रांस के पूर्व अफ्रीकी उपनिवेशों के साथ लेन देन में व्यापक और मूल परिवर्तनों का हिस्सा माना जाता है।
फ्रांसीसी सैनिकों के निकाले जाने के बाद माली, नाइजर और बुर्किना फासो के अधिकारियों ने रूस और चीन के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, अफ्रीकी देशों ने ख़ुद को पेरिस की बेड़ियों से आज़ाद कर लिया है और अधिक स्वतंत्र और स्वाधीन छवि हासिल करना शुरू कर दिया है।
अफ्रीकी देशों की अपनी यात्राओं के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रॉन लगातार इस बात पर जोर देते हैं कि पेरिस आपका दुश्मन नहीं है।
लेकिन अपने पूर्व उपनिवेशों में अपनी छवि को बहाल करने के लिए, फ्रांस सरकार युवा अफ्रीकियों के बीच अपनी नफरत और औपनिवेशिक छवि को बहाल करने के बारे में सोच रही है।
इन देशों के जवान सूचना के विस्फोट और संचार के विस्तार के साथ वैश्विक स्तर पर अपने देश को ख़ास स्थान दिलाना चाहते हैं हासिल करना चाहते हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में और संकटों के कई दौर में, पिछले वर्षों की तुलना में अफ़्रीका की ओर से अधिक स्वतंत्र आवाज़ सुनी जा रही है।
इससे पहले तक फ़्रांस फ़्रैंकोफ़ोन देशों, फ़्रेंच भाषी देशों और पूर्व फ़्रांसीसी उपनिवेशों का समाज बनाकर इन देशों के विकास और राजनीतिक निर्णयों में प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयास करता रहा है।
हालांकि, अफ्रीका में स्वतंत्रता की लहर के बाद, फ्रांस ने इन देशों के संसाधनों को लूटने के लिए इन देशों में तानाशाही सरकारों का समर्थन करके अपना राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश की है।
1960 के दशक के बाद, फ्रांस अफ्रीक़ा में 30 तख्तापलट का मुख्य खिलाड़ी रहा है। फ्रांस को अफ्रीका में भी शक्ति में पतन जैसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है जो उसे यूरोप में करना पड़ा है।
यही वजह है कि मैक्रोन ने "अफ्रीकी देशों में फ्रांस के प्रति बढ़ते ग़ुस्से" को स्वीकार करते हुए, अफ्रीका के साथ एक नए संतुलित, पारस्परिक और ज़िम्मेदाराना रिश्तों का आह्वान किया है।
फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि अफ्रीका फ्रांस का घर आंगन नहीं है। उनका कहना है कि उनके देश को विनम्र होना चाहिए और अफ्रीकी देशों की बात सुननी चाहिए। (AK)
कीवर्ड्ज़: फ़्रांस, अफ़्रीक़ा
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