हमें बड़ा बनाओ! मेलोनी और ट्रम्प का साम्राज्यवादी भ्रम
(last modified Thu, 01 May 2025 09:01:16 GMT )
May ०१, २०२५ १४:३१ Asia/Kolkata
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    हमें बड़ा बनाओ! मेलोनी और ट्रम्प का साम्राज्यवादी भ्रम

पार्सटुडे - सर्वेक्षणों से पता चलता है कि ट्रम्प और मैलोनी उस प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पश्चिमी शक्ति के पतन से भयभीत है।

इतालवी प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने डोनल्ड ट्रम्प के साथ हाल ही में हुई बैठक के दौरान "पश्चिम को पुनः महान बनाओ" का खोखला नारा बुलंद किया।

यह नारा, ट्रम्प के प्रसिद्ध "अमेरिका को फिर से महान बनाओ" कैम्पेन की याद दिलाता है, यह भविष्य के लिए एक यथार्थवादी योजना नहीं है, बल्कि हिंसक पश्चिमी आधिपत्य के युग की वापसी के लिए एक खतरनाक उदासीनता की निशानी है, यह युग साम्राज्यवाद, विनाशकारी युद्धों और वैश्विक संसाधनों की लूट से बुरी तरह प्रेरित था।

 

पश्चिम की "महानता": अपराध और शोषण का दूसरा पहलू

 

जब पश्चिमी नेता अतीत की "महानता" की बात करते हैं, तो उनके मन में क्या चीज़ें घूमती रहती हैं? क्या उनका आशय उसी काल से है जब यूरोप और अमेरिका ने क़त्लेआम और ग़ुलामी के माध्यम से महाद्वीपों को ख़ाक व ख़ून में बदल दिया था? क्या जिस महानता की वे तलाश में हैं वह ग़ुलामी, मूल अमेरिकियों के नरसंहार, चीन में अफीम युद्ध तथा अफ्रीका और मध्यपूर्व के साम्राज्यवादियों के समान है?

पश्चिमी इतिहास खूनी घटनाओं से भरा पड़ा है: बेल्जियम कांगो नरसंहार से लेकर जिसमें लाखों लोगों की जान चली गई, वियतनाम, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में विनाशकारी अमेरिकी युद्ध तक। आज वही साम्राज्यवादी शक्तियां लोकतंत्र और मानवाधिकारों की आड़ में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार की मुख्य समर्थक बन गई हैं।

क्या यही वह "महानता" है जिसे मैलोनी और ट्रम्प बहाल करना चाहते हैं?

 

आज पश्चिम: शक्ति का पतन और बहुध्रुवीय विश्व का ख़ौफ़

 

ट्रम्प और मैलोनी एक ऐसे आंदोलन का नेतृत्व करते हैं जो पश्चिमी शक्ति के पतन से भयभीत है। चीन का उदय, नैटो से रूस का प्रतिरोध तथा दक्षिण की वैश्विक चेतना ने ज़ाहिर कर दिया कि कि पश्चिमी आधिपत्य का दौर समाप्त हो चुका है लेकिन बहुध्रुवीय दुनिया को अपनाने के बजाय, पश्चिमी राजनेता सैन्यवाद, एकतरफा प्रतिबंधों और आर्थिक युद्ध को बढ़ावा देकर अपने आधिपत्य और एकाधिकार के बचे खुचे हिस्सों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

चीन, रूस और ईरान के विरुद्ध अमेरिकी प्रतिबंध, ज़ायोनी शासन को बिना शर्त समर्थन तथा स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को कमज़ोर करने के प्रयास, ये सभी वैश्विक प्रभुत्व खोने के पश्चिम के भय को ज़ाहिर करते हैं लेकिन यह रणनीति न केवल पश्चिम को "महान" बनाती है, बल्कि इसने उसे एक अलग-थलग और अविश्वसनीय अभिनेता में बदल दिया है।

 

रूल बेस्ड आर्डर या संगठित बदमाशी?

 

पश्चिम "रूल बेस्ड आर्डर" का दावा करता है लेकिन व्यवहार में यह व्यवस्था वाशिंगटन और ब्रुसेल्स द्वारा वांछित नियमों को दूसरों पर थोपने के अलावा और कुछ नहीं है।

जब अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की उपेक्षा करता है, जब यूरोप अपने वीटो पावर का उपयोग इज़राइली अपराधों को समर्थन देने के लिए करता है और जब अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय केवल अफ़्रीक़ी और रूसी नेताओं पर मुकदमा चलाने का प्रयास करता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून केवल कमज़ोर लोगों पर ही बाध्यकारी है।

ग़ज़ा इस प्रवृत्ति का एक स्पष्ट उदाहरण है: जबकि पश्चिम फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार का समर्थन करता है, वही देश "मानवाधिकारों" के बहाने दूसरों पर प्रतिबंध लगाते हैं। यह नैतिक दोहरापन पश्चिमी "महानता" की वास्तविक प्रकृति को उजागर करती है: लोकतंत्र के नाम पर वर्चस्व, स्वतंत्रता के नाम पर शोषण है।

 

क्या पश्चिम सचमुच "महान" बनना चाहता है?

 

यदि पश्चिम वास्तव में "महानता" चाहता है तो उसे अपने काले इतिहास से सीखना होगा: प्रतिबंधों और युद्ध के बजाय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ओर वापसी।

हमलावर शासन का समर्थन करने के बजाय, मज़लूम राष्ट्रों के अधिकारों का सम्मान करें, सैन्यवाद के बजाय कूटनीति और वैश्विक न्याय का पालन करें लेकिन मैलोनी और ट्रम्प के नारे ज़ाहिर करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सुधार नहीं, बल्कि धमकाने के युग की वापसी चाहते हैं।

उनके साहित्य में "ग्रेटर वेस्ट" का अर्थ 20वीं सदी के साम्राज्यवाद की ओर वापसी है, एक ऐसा रास्ता जो न केवल विश्व को स्थिर करने में नाकाम रहता है बल्कि तनाव की आग को भी बढ़ाएगा।

 

सच्ची महानता न्याय और शांति की स्थापना में निहित है, वर्चस्व में नहीं

 

आज विश्व को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो पतनशील साम्राज्यों की यादों के बजाय राष्ट्रों के बीच न्याय और समानता में विश्वास रखते हों।

सच्ची "महानता" विश्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों की संख्या में नहीं है, न ही यूरोप के दमनकारी प्रतिबंधों में है, न ही इज़राइल के अपराधों के प्रति चुप्पी में है।

अगर पश्चिम पुनः "महान" बनना चाहता है, तो उसे शोषण और युद्ध बंद करना होगा तथा युद्ध को बढ़ावा देने वाला नहीं, बल्कि शांति का संरक्षक बनना होगा।

लेकिन जब तक ट्रम्प और मैलोनी जैसे राजनेता साम्राज्यवादी साम्राज्य के सपने से चिपके रहेंगे, तब तक यह सपना न केवल साकार नहीं होगा, बल्कि पश्चिम के पतन में तेजी आएगी। (AK)

 

कीवर्ड्ज़: अमरीका, अमेरिका, ट्रम्प, डोनल्ड ट्रम्प, डोनाल्ड ट्रम्प, इटली

 

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