ज़ंगेज़ूर कॉरिडोर: शांति का मार्ग या साजिश का पुल?
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पार्स टुडे - हाल के हफ्तों में वाइट हाउस में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच ज़ंगेज़ूर कॉरिडोर को लेकर हुए समझौते की खबर सामने आई है।
(last modified 2025-08-19T13:59:35+00:00 )
Aug १७, २०२५ १७:३४ Asia/Kolkata
  • निकोल पाशिनियन, डोनल्ड ट्रम्प और इल्हाम अलीयोफ़
    निकोल पाशिनियन, डोनल्ड ट्रम्प और इल्हाम अलीयोफ़

पार्स टुडे - हाल के हफ्तों में वाइट हाउस में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच ज़ंगेज़ूर कॉरिडोर को लेकर हुए समझौते की खबर सामने आई है।

पश्चिम एशिया की भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, वाइट हाउस में एक ऐसा समझौता हुआ है जो ऊपर से तो शांति का संदेश देता है, लेकिन अंदर से साजिश की गंध आती है। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ंगेज़ूर कॉरिडोर, जिसे "ट्रम्प रूट" के नकली नाम से भी जाना जाता है, कोई सामान्य ट्रांज़िट रास्ता नहीं बल्कि दक्षिण काकेशस में सत्ता के समीकरणों को पुनर्लिखित करने का एक हथियार है।

 

क्या है यह कॉरिडोर?

 

यह 43 किलोमीटर लंबा मार्ग आर्मेनिया के स्यूनिक प्रांत से गुजरते हुए अज़रबैजान को नखचिवन से जोड़ेगा और "मध्य कॉरिडोर" का हिस्सा बनेगा जो मध्य एशिया से यूरोप तक फैला है। लेकिन खबरों के मुताबिक, इस मार्ग का 99 साल का नियंत्रण एक अमेरिकी-आर्मेनियाई कंसोर्टियम को सौंपा जाना पूरे क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी है।

 

साजिश का बड़ा खेल

 

यह प्रोजेक्ट केवल परिवहन से कहीं आगे की चाल है। यह नाटो और इजरायली शासन की उस रणनीति का हिस्सा है जिसका मकसद तेहरान को घेरना, मास्को को कमजोर करना और बीजिंग पर अंकुश लगाना है।

 

काराबाख से ज़ंगेज़ूर तक: एक संकट की जड़ें

 

1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन ने काराबाख विवाद को भड़का दिया। आर्मेनिया ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया, और ईरान, रूस तथा मिन्स्क समूह ने मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ रहा। दशकों तक काकेशस क्षेत्र में राजनयिक गतिरोध छाया रहा। 2020 में तुर्की के खुले सैन्य समर्थन से लड़ी गई जंग ने काराबाख को फिर से अज़रबैजान के हवाले कर दिया। नवंबर 2020 की युद्धविराम समझौते में "पहुंच मार्गों के अवरोधों को दूर करने" का जिक्र करते हुए ज़ंगेज़ूर कॉरिडोर की योजना को बहाना बनाया गया। हालांकि ईरान ने उदारता से अरास गलियारे के जरिए अज़रबैजान को नखचिवन तक पहुंच प्रदान की थी, लेकिन पश्चिम के दबाव ने इस कॉरिडोर को ईरान और रूस पर प्रहार करने के औजार में बदल दिया।

 

यूरेशिया को काबू में करने की रणनीति: ईरान, रूस और चीन पर नकेल

 

अगर आर्मेनिया की इस कॉरिडोर पर संप्रभुता कमजोर पड़ती है, तो "ट्रम्प रूट" अमेरिका के लिए कैस्पियन सागर और मध्य एशिया के ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच का द्वार खोल देगा। यह प्रोजेक्ट ईरान, रूस और चीन को नियंत्रित करने की त्रिपक्षीय रणनीति का हिस्सा है। यूक्रेन युद्ध के बीच, रूसी सेनाओं को काकेशस से हटाने और आर्मेनिया व अज़रबैजान के नाटो में शामिल होने की अटकलों ने मॉस्को के प्रभाव को किनारे कर दिया है। चीन भी मध्य एशिया की ऊर्जा और खनिज संपदा तक पहुंच में सीमित हो रहा है, और उसकी बेल्ट एंड रोड परियोजना खतरे में पड़ गई है।

 

ईरान के लिए, यह कॉरिडोर आर्मेनिया के साथ उसके जमीनी संपर्क के टूटने और उत्तर-पश्चिमी ट्रांजिट मार्गों के तुर्की तक सीमित हो जाने का मतलब है। ईरान ने बार-बार चेतावनी दी है कि उसका आर्मेनिया से संपर्क नहीं टूटना चाहिए। ईरानी अधिकारियों का कहना है कि काकेशस ईरान की ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है, और इस क्षेत्र को विदेशी ताकतों के प्रभाव क्षेत्र में नहीं बदलना चाहिए। (AK)

 

कीवर्ड्ज़:  ईरान,  आज़रबाइजान, आर्मीनिया, अमरीका, ट्रम्प, डोनल्ड ट्रम्प

 

 

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