ऐसा धन जो जर्मनी के लोगों को ग़रीब बना रहा है
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पार्स टुडे — जर्मनी उच्च धन उत्पादन और असमान आय वितरण के ख़ामियों वाले चक्र में फंसा हुआ है
(last modified 2025-10-29T12:09:30+00:00 )
Oct २९, २०२५ १७:३७ Asia/Kolkata
  • जर्मनी में असमानता
    जर्मनी में असमानता

पार्स टुडे — जर्मनी उच्च धन उत्पादन और असमान आय वितरण के ख़ामियों वाले चक्र में फंसा हुआ है

पार्स टुडे ने अपनी पिछली रिपोर्टों में जर्मनी के सामाजिक-आर्थिक समुदाय की कई समस्याओं और चुनौतियों को उजागर किया है। स्कूलों में हिंसा से लेकर जर्मनी की कंपनियों के दिवालियापन तक, इन मुद्दों ने इस यूरोपीय देश को विभिन्न सामाजिक और आर्थिक संकटों का सामना करने के लिए मजबूर किया है। बीपीबी अर्थात सिविल एजुकेशन एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी में असमानता और विशेष रूप से लैंगिक अंतर की स्थिति स्पष्ट हुई है। ये आंकड़े जर्मनी के औद्योगिक आय वितरण में असमानता को दर्शाते हैं।

 

जर्मन विशेषज्ञों के अनुसार, जर्मनी में असमानता पिछले वर्षों में बढ़ी है। बीपीबी जर्मनी ने बताया कि उच्च आय वर्ग कुल उपलब्ध आय का 23 प्रतिशत प्राप्त करता है, जबकि निम्न दो वर्ग मिलकर केवल 9 प्रतिशत ही प्राप्त करते हैं। इन आंकड़ों का मतलब है कि जर्मनी में गरीबी का खतरा गंभीर रूप से बढ़ गया है। हाल के वर्षों में, लगभग 15 प्रतिशत लोग गरीबी के जोखिम में रहे हैं।

 

लैंगिक अंतर भी बढ़ रहा है। 2023 में महिलाओं की कम घण्टावार मजदूरी और कम कार्य समय के कारण उनकी आय पुरुषों से लगभग 39 प्रतिशत कम थी। जर्मनी की महिलाओं की कम आय केवल कामकाजी अवसरों की कमी के कारण नहीं, बल्कि उनके घण्टावार वेतन में भी लगभग 18 प्रतिशत की कमी थी।

 

बीपीबी ने यह भी कहा कि संपत्ति वितरण में लैंगिक अंतर, आय वितरण से भी अधिक गंभीर है। उच्च आय वर्ग कुल संपत्ति का लगभग 68 प्रतिशत नियंत्रित करता है, जबकि महिलाओं के पास बहुत कम संपत्ति होती है और उन्हें विरासत में भी कम मिलता है।

 

रिपोर्ट निष्कर्ष देती है कि पिछले दशकों में जर्मनी में आर्थिक असमानता में वृद्धि सामाजिक-आर्थिक नीतियों और मूल्यों के कारण हुई है। जैसे कि संपत्ति और विरासत पर कर, सार्वजनिक सेवाएं आदि। रिपोर्ट का मानना है कि जर्मनी में धन उत्पादन तो अधिक है, लेकिन वितरण का तरीका ऐसा है कि जितना अधिक धन का उत्पादन होता है, असमानता उतनी ही बढ़ती है। और जर्मनी के लोग इस आर्थिक-सामाजिक विरोधाभास में फंसे हुए हैं। MM