लंदन मेट्रो में फिर धमाका
इराक़ और सीरिया में दाइश की पराजय तो अब बिल्कुल क़रीब है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह आतंकी संगठन पूरी तरह विलुप्त हो गया हैं, बल्कि शायद यह स्थिति उसे और ख़तरनाक बना दे और इस स्थिति में इस संगठन के आतंकी ज़मीन पर अपने क़ब्ज़े का दायरा बढ़ाने और अपना शासन स्थापित करने के बजाए अलग अलग जगहों पर छिप कर हमले करेंगे।
लंदन और पेरिस में जो हमले हुए हैं वह शायद दाइश की नई रणनीति का झलक है। इस तरह यह आतंकी संगठन अपनी हार का बदला लेने और अपना अस्तित्व बचाए रखने की कोशिश करेगा।
इन आतंकी हमलों से निश्चित रूप से यूरोप के उन संगठनों को बल मिलेगा जो शरणार्थियों के ख़िलाफ सक्रिय हैं।
लंदन धमाके में जो बम प्रयोग किया गया वह स्थानीय रूप से बनाया गया बम था और यह बहुत महत्वपूर्ण घटना है। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश के भीतर ही कुछ तत्व या संगठन हैं जो पूरी तरह प्रशिक्षित हैं। यह आतंकी हमला पहले के आतंकी हमलों से अलग है जिनमें चाक़ू से हमला किया गया या बेगुनाह लोगों को गाड़ी से कुचलने की कोशिश की गई।
इस प्रकार के हमलों का बहुत बुरा असर एक करोड़ से अधिक शरणार्थियों पर पड़ेगा जो यूरोपीय देशों में पहुंचे हैं और जिनमें अधिकतर मुसलमान हैं। हालांकि यह लोग अलग अलग क्षेत्रों में अपनी दक्षता से यूरोपीय समाजों की सेवा कर रहे हैं।
यूरोपीय देशों में मुसलमानों पर हमले तेज़ हो गए हैं जिसके कारण बहुत से लोग भय में जी रहे हैं।
यूरोपीय देशों में आम नागरिकों पर जो आतंकी हमले हो रहे हैं उनकी जितनी निंदा की जाए कम है, लेकिन इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि ख़ुद मुसलमान और अरब अपने देशों में इस प्रकार के हमलों में सैकड़ों गुना अधिक क़ुरबानी दे रहे हैं। इस बिंदु पर राजनेताओं को विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है।
साभार रायुल यौम