कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ क्यों नहीं दे रहे अरब देश?
भारत प्रशासित कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है। फ़ार्स की खाड़ी के अरब देशों का भी पाकिस्तान को समर्थन नहीं मिल रहा है। इसके पीछे आर्थिक कारण को बड़ी वजह माना जा रहा है। लेकिन आने वाले समय में वे देश जो अभी पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे हैं वे भारत के साथ रहें, ऐसा ज़रूरी नहीं है।
जब संयुक्त अरब इमारात ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा की थी तो मोदी को मुस्लिम देश द्वारा सम्मान दिए जाने का पाकिस्तान में मौन विरोध हुआ था। अब जब मोदी को पिछले दिनों ऑर्डर ऑफ ज़ाएद सम्मान ने नवाज़ा गया तो भारत ने कश्मीर में धारा 370 को हटा दिया था और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। इस बार पाकिस्तान में यूएई के इस क़दम का खुला विरोध हुआ। पाकिस्तानी सीनेट के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपना संयुक्त अरब इमारात का दौरा रद्द कर दिया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम देशों के रवैये पर देशवासियों की निराशा पर कहा है कि उन्हें निराश होने की ज़रूरत नहीं है, यदि कुछ देश अपने आर्थिक हितों के कारण इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं, वे आख़िरकार इस मुद्दे को उठाएंगे, समय के साथ उन्हें ऐसा करना होगा।
कश्मीर के मुद्दे ने पाकिस्तान को असमंजस में डाल दिया है। आर्थिक मुश्किलों में फंसा पाकिस्तान एक ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का फिर से भरोसा जीतने की कोशिश में लगा है, तो कश्मीर मुद्दे ने उसे अपना ध्यान बांटने को मजबूर कर दिया है और जब उसने पश्चिमी देशों से इतर निगाह घुमाई तो पाया कि फ़ार्स की खाड़ी के अरब देश उससे दूर जा रहे हैं। इस्लामी एकता बिखर रही है और कभी कश्मीर पर बार-बार प्रस्ताव पास करने वाले इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी के सदस्य देश अब कश्मीर पर भारत का साथ खुलकर न भी दे रहे हों, लेकिन कुछ बोल नहीं रहे हैं। इस बीच जीसीसी के देशों ने भारत और पाकिस्तान से विवाद कम करने का अनुरोध किया है। सऊदी अरब ने भी न तो भारतीय क़दम की निंदा की है और न ही कोई रवैया तय किया है।
हां यह ज़रूर है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान जो हमेशा से दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी धर्म के लोगों पर अत्याचार हो उसके ख़िलाफ़ ज़रूर आवाज़ उठाता है और इस बार भी उसने कश्मीर के मामले में भारत सरकार से अपील की, कि कश्मीर के मामले में इस राज्य के लोगों पर अपनी राय ज़ोर ज़बरदस्ती से न थोपी जाए। तेहरान ने यह भी उम्मीद जताई है कि कश्मीर मामले में भारत और पाकिस्तान अपना विवाद कूटनैतिक तरीक़े से सुलझाएंगे। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने भी कश्मीर के बारे में कहा है कि, "हमें उम्मीद है कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के प्रति न्यायोचित नीति अपनाएगी।” ईरान के साथ-साथ तुर्की ने भी कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के साथ बात की है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तय्यब अर्दोग़ान ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को कश्मीर पर पूरे समर्थन का वादा किया है और संयुक्त राष्ट्र संघ से सक्रिय भूमिका निभाने को कहा है।
इन सबके बीच संयुक्त अरब इमारात पाकिस्तान की परेशानी का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। अब तक दोनों देशों की दोस्ती को अत्यंत गहरी दोस्ती कहा माना जाता रहा है। पाकिस्तान न केवल इस्लामी देशों के संगठन का सदस्य है वह फ़ार्स की खाड़ी के सुन्नी देशों के मोर्चे का भी अहम सदस्य है। यमन युद्ध में सऊदी अरब द्वारा बनाए गए मोर्चे में पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ़ सैन्य गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। यूएई ने कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के मध्य लगातार बढ़ते जा रहे तनाव के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देकर पाकिस्तान की समस्याएं बढ़ा दीं हैं। दूसरी ओर उसने संकेत भी दिया है कि आर्थिक कठिनाईयां झेल रहे पाकिस्तान से उसकी दूरियां बढ़ रही हैं।
कश्मीर पर मध्यपूर्व की प्रतिक्रिया से लगता है कि पाकिस्तान और ईरान तथा तुर्की के विपरीत अरब देशों की कश्मीर को लेकर अब उतनी दिलचस्पी नहीं बची है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह है कि सऊदी और यूएई हालिया तेल संकट के बाद व्यापार पर ध्यान दे रहे हैं और भारत उनके बड़े व्यापारिक और निवेश सहयोगियों में एक के रूप में उभरा है। अरब देशों के भारत और पाकिस्तान दोनों के ही साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने भारत को कभी अपना दुश्मन नहीं समझा है। भारत के 70 लाख से अधिक कुशल कामगार अरब देशों में काम कर रहे हैं और वहां के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। भारत वहां के प्रमुख देशों के लिए निवेश का प्रमुख केंद्र है। हाल में कश्मीर समस्या की शुरुआत पर सऊदी अरब, भारत में 15 अरब डॉलर के निवेश को अंतिम रूप देने में लगा था।
भारत ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान अरब देशों के साथ अपने संबंध बढ़ाने में महत्वपूर्ण पहल की है। आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने और फ़ार्स की खाड़ी के देशों में काम करने वाले भारतीयों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने के अलावा इसका उद्देश्य आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष भी रहा है। सऊदी अरब को कट्टरपंथी और तकफ़ीरी आतंकवाद का जनक माना जाता है। लेकिन इधर कुछ वर्षों में उसकी भी नीतियों में बदलाव आया है। कश्मीर पर पाकिस्तान का अलग थलग पड़ना इसका नतीजा हो सकता है। पाकिस्तान में भी इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि उसे मुसलमान देशों का समर्थन क्यों नहीं मिल रहा है?
कुल मिलाकर फिलहाल पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लाने के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने का फ़ैसला किया है। सुरक्षा परिषद में नाकामी के बावजूद पाकिस्तान हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठा रहा है और भारतीय नेता और राजनयिक उस पर आपत्ति कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और पाकिस्तान की तू-तू मैं-मैं जारी रही तो हो सकता है कि फ़ार्स की खाड़ी के अरब देश कश्मीर पर बोलने को मजबूर हो जाएं लेकिन यह भी संभव है कि कश्मीर में उनकी रही सही दिलचस्पी भी ख़त्म हो जाए। (RZ)