Jun १६, २०२१ १४:५९ Asia/Kolkata
  • कोरोना ने कहां कहां बदल डाला हमारा जीवन!

इतालवी दार्शनिक व समाजशास्त्री जाम्बातिस्ता वीको ने अपनी एक रचना में लिखा हैः ईश्वरीय नियमानुसार ख़ुद को ढालने वाले धार्मिक समाज, परिवारों के कांधे पर आगे बढ़ते हैं और ऐसे समाज में परिवार मुख्य इकाई होता है।

पूरे इतिहास में परिवार के अहम योगदान व रोल को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता लेकिन कोरोना की वजह से जो हालात पैदा हुए उससे परिवार का महत्वपूर्ण रोल पूरी दुनिया में पहले से ज़्यादा ज़ाहिर हुआ। जब पारंपरिक नागरिक संस्थाओं व स्थलों में लोगों की आवा-जाही कम हुयी, तो लोग ज़्यादातर वक़्त परिवार वालों के साथ थे। ऐसे हालात में शिक्षा, स्वास्थ्य की देखभाल और व्यवसायिक काम पारिवारिक माहौल में अंजाम पाया।

इस बात को मानना पड़ेगा कि इस दौरान परिवार वालों के लिए जीवन बहुत कठिन था, लेकिन कोरोना से पहले वाले हालात की ओर पलटना इतना आसान भी नहीं है। इस बार स्कूल लौटना भी विगत की तरह अलग होगा जिसकी हमें और हमारे बच्चों को आदत थी।

इस दौरान पूरी दुनिया में स्टूडेंट्स ने कठिन हालात में मां बाप और प्रतिबद्ध शिक्षकों की मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी, लेकिन बहुत से बच्चों को स्कूल खुलने के बाद अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए ज़्यादा समर्थन की ज़रूरत होगी।

बहुत से स्कूल स्टूडेंट्स को आम शैक्षिक हालत में लाने के लिए एक्सट्रा क्लासेज़ का प्रोग्राम बना रहे हैं। चूंकि इस बात की संभावना है कि स्कूल पूरी तरह न खुल सके, शिक्षा के तरीक़े में स्कूल में हाज़िरी और वर्चुअल तरीक़े से शिक्षा दोनों शामिल हो जाए।         

आज दुनिया में 60 करोड़ से ज़्यादा बच्चे और नौजवान जोड़ना-घटाना जैसे गणित का छोटा सा सवाल नहीं लगा सकते और क़रीब 30 करोड़ बच्चे और नौजवान स्कूल नहीं जा पाते। अफ़्रीक़ा के मरुस्थलीय इलाक़ों में 40 फ़ीसद लड़कियां प्राइमरी से आगे नहीं पढ़ पातीं और क़रीब 40 लाख शरणार्थी बच्चे और नौजवान स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।

 

कोरोना के फ़ैलाव से ये मुश्किलें और बढ़ गयी हैं और इस वायरस ने शिक्षा तंत्र के सामने इतिहास की सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। पूरी दुनिया में क़रीब 1 अरब 60 करोड़ स्टूडेंट्स की शिक्षा कोरोना वायरस से प्रभावित हुयी। स्कूलों और शैक्षिक केन्द्रों में छुट्टी की वजह से उन पर नकारात्मक असर पड़ा।

कोरोना संकट की वजह से निर्धन इलाक़ों या गांव में रहने वाले बच्चों, नौजवानों और बड़ी उम्र के स्टूडेंट्स इसी तरह विक्लांगों, शरणार्थियों और बेघर लोगों के लिए शिक्षा हासिल करने की संभावना कम हो गयी। इसी तरह कोरोना की वजह से लड़कियों और नौजवान औरतों तक शिक्षा की पहुंच के लिए की गयी दसियों साल की कोशिशों के बर्बाद होने का ख़तरा पैदा हो गया। इसी तरह जारी साल में भी कोरोना आर्थिक दुष्परिणाम की वजह से मुमकिन है दसियों लाख बच्चों और नौजवानों को शिक्षा छोड़ना पड़ जाए।

इन सबके बावजूद, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों, टीचरों, स्टूडेंट्स और उनके परिवार की इन हालात में कोशिश तारीफ़ के क़ाबिल है। ये वे लोग हैं जिन्होंने कोरोना के फैलाव, क्वारंटीन और आर्थिक मुश्किलों के बावजूद, हार नहीं मानी और शिक्षा के चेराग़ को जलाए रखा।               

कोरोना के दौर में ऑनलाइन ट्रेनिंग या ऑनलाइन टीचिंग काफ़ी अहमियत मिली और इसे इन हालात में स्टूडेंट्स की सेहत की ओर से संतोष हासिल करने के लिए उचित विकल्प के तौर पर देखा गया। ऑनलाइट टीचिंग के अनेक सार्थक पहलू हैं जिससे स्टूडेंट्स की क्षमता के विकास में मदद मिल सकती है। ऑनलाइन तरीक़े से सीखना की तरीक़ा कई शैलियों का संयोग है जिसमें स्टूडेंट्स अपने दिमाग़ को तेज़ी से इस्तेमाल कर सकता और अपने मद्देनज़र विषय के बारे में अपने क्लास फ़ेलो और टीचर्ज़ से निरंतर संपर्क में रह सकता है।

डिस्टेंस लर्निंग सहित वैकल्पिक शैक्षिक तरीक़ों में विस्तार से, जिसमें टीवी, और रेडियो प्रोग्राम या इंटरनेट के ज़रिए शिक्षा शामिल है, स्टूडेंट्स के लिए सीखने का स्तर बढ़ाने हेतु कुछ शैक्षिक सुविधाएं मुहैया हो सकती हैं। इस तरह के प्रोग्राम से मिडिल क्लास का नौजवान वर्ग और बच्चों को सबसे ज़्यादा लाभ मिलेगा। डिस्टेंस लर्निंग में विस्तार को देशों के आधिकारिक शैक्षिक प्रोग्राम के पूरक की हैसियत से देखा जा सकता और इसमें विस्तार को शिक्षा में मूल रूप से विस्तार के पैमाने में रखा जा सकता जो कोरोना पैन्डेमिक जैसे संकट के मौक़े पर उपयोगी होगा।

ऑनलाइन लर्निंग से स्टूडेंट्स को टेक्नॉलोजी के जगत में दाख़िल होने का अच्छा अवसर मिला जो शायद किसी और तरीक़े इतना ज़्यादा अवसर न मिलता। सभी उम्र के बच्चे वीडियो चैट और दूसरी कई चीज़ें सीख गए, बड़े स्टूडेंट्स ने भी मूल्यवाल सबक़ सीखा। उन्होंने डिजिटल शिक्षा सीखी और समय का प्रबंधन करना सीखा। उन्हें नई ज़िम्मेदारियां सौंपी गयीं।

ज़ाहिर सी बात है कि वर्चुअल लर्निंग क्लास में शिक्षा की जगह नहीं ले सकती, हालांकि उसके साथ पूरक के तौर पर इस्तेमाल हो सकती है, लेकिन पूरी तरह याद करने, कौशल हासिल करने, इनोवेशन इत्यादि जैसी चीज़ों में स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा व ट्रेनिंग की जगह नहीं ले सकती। अलबत्ता जिन लोगों के पास अच्छे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हैं, उनके लिए ऑनलाइन लर्निंग को विभिन्न तरीक़ों से अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। संगीत

ईरान उन देशों में है जिसने कोरोना के फैलाव के आग़ाजं में ही पूरे देश में स्कूल और यूनिवर्सिटी बंद करने का फ़ैसला लिया। ईरान में स्कूल बंद करने और उसकी जगह वैकल्पिक क़दम दो तरीक़े अपनाए गए। एक टीवी के ज़रिए शिक्षा और दूसरे इंटरनेट के ज़रिए वर्चुअल क्लासेज़।

अलबत्ता यूनिवर्सिटी के स्तर पर स्थिति बेहतर थी क्योंकि ईरानी यूनिवर्सिटी में पहले से कुछ हद तक उच्चस्तरीय शिक्षा डिस्टेंस लर्निंग से होती थी और ज़्यादातर यूनिवर्सिटियां वर्चुअल लर्निंग की सुविधा से लैस थीं।

हर दिन दुनिया में साइबर स्पेस के शिक्षा के पूरक के तौर पर इस्तेमाल में तेज़ी से विस्तार हो रहा है। एक्सपर्ट्स कोशिश कर रहे हैं क्लास में सिखाने की टेक्नॉलोजी के इस्तेमाल के लिए ज़्यादा से ज़्यादा प्रभावी शैली इस्तेमाल करें। मिसाल के तौर पर पश्चिम एशिया में ई-लर्निंग में काफ़ी विस्तार हुआ है। एक रिसर्च के मुताबिक़, सरकारें 2023 तक बड़े पैमाने पर पूंजिनिवेश करेंगी ई-लर्निंग में क़रीब 9.8 फ़ीसदी विकसित होगी। ईरान में भी स्थिति अच्छी है और आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक़, ईरान में इंटरनेट का प्रभाव 90 फ़ीसद बढ़ा है जिससे ऑनलाइन क्लास के विस्तार में मदद मिली।  संगीत

कोरोना पैन्डेमिक के दौर में बहुत से टीचरों ने स्टूडेन्ट्स की पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट को रोकने के लिए ना ना प्रकार के सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल किए और उन सभी सविधाओं के फ़ायदा उठाया जिन तक पहुंच मुमकिन थी। इस बीच ऐसे टीचर भी थे जिन्होंने पढ़ाने के साथ साथ त्याग भी सिखाया। ऐसे टीचर भी थे जो कोविड-19 से प्रभावित होने के बावजूद, अस्पताल में बेड से क्लासेज़ लीं, जिससे ईरान में टीचरों के उच्च संस्कार से गर्व का आभास हुआ और उम्मीद बंधी।

इसी तरह के एक टीचर मंसूर हमीदी हैं जो दक्षिण-पश्चिमी ईरान के अहवाज़ से 134 किलोमीटर अमाशिया गांव में छठी क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं। वह कहते हैं कि वह हर दिन 11 ऐसे स्टूडेंट्स को पढ़ाने स्कूल जाते थे जिनके पास टैबलेट या मोबाईल नहीं था कि वे दूसरे बच्चों के साथ ऑनलाइन क्लास में शामिल हो पाते।

हमीदी हर स्टूडेंट को एक घंटा अकेले पढ़ाते थे। जब उनकी इस मेहनत व लगन की तस्वीर व वीडियो क्लिप स्कूल के प्रिन्सपल ने साइबर स्पेस पर अपलोड की तो कुछ परोपकारी लोग सामने आए ताकि बच्चों को टैब्लेट और मोबाइल मुहैया करें। टीचर हमीदी सहति परोपकारी लोगों ने बच्चों को टैबलेट दिए ताकि वे भी बाक़ी बच्चों के साथ ऑनलाइन क्लास में शामिल हो सकें।

टीचर हमीदी कहते हैं कि टीचिंग बहुत ही मूल्यवान पेशा है जिसका सम्मान होना चाहिए। वह कहते हैं कि बच्चों और स्टूडेंट्स से मोहब्बत की वजह से शैक्षिक साल के आग़ाज़ से अहवाज़ शहर से अनाफ़चे गांव पढ़ाने जाते थे। उन्हें उम्मीद है कि हालात जल्द से जल्द बेहतर हों ताकि स्कूल में क्लासेज़ शुरू हो सके।

 

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