चुनाव के बारे में वरिष्ठ नेता का दृष्टिकोण
इस्लामी गणतंत्र ईरान में धार्मिक लोकतंत्र व्यवस्था है।
इस व्यवस्था में लोगों के मत को महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि किसी भी चुनाव से महीनों पहले चुनाव आयोजित कराने और उस पर निगरानी करने वाली संस्थाएं सक्रिय हो जाती हैं। हाल ही में संसदीय चुनाव और गार्जियन काउंसिल या निरीक्षक परिषद के चुनाव का आयोजन कराने की ज़िम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों ने ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की है। प्रत्येक चुनाव से पहले वरिष्ठ नेता अधिकारियों को बहुत ही लाभदायक दिशानर्देश देते हैं। आगामी 26 फ़रवरी को आयोजित होने वाले चुनावों के बारे में भी वरिष्ठ नेता ने महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए हैं।
वरिष्ठ नेता के निकट चुनाव राष्ट्र के विभिन्न धड़ों के बीच एक प्रतिस्पर्धा है, जिसमें जीत हमेशा जनता की होती है। इसलिए कि वे देश के भविष्य के निर्धारण में भूमिका निभाते हैं। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैं, अगर ईरानी जनता अच्छी तरह, मज़बूती और दृढ़ता से मैदान में उतरेगी और मतपेटियों को अपने मतों से भर देगी तो ईरान गर्व करेगा, इस्लामी गणतंत्र गर्व करेगा, हार और जीत चाहे किसी की भी हो। वास्तव में जनता की हार और जीत नहीं होती है, जनता हर स्थिति में विजयी होती है। चुनाव के बारे में यह बुनियादी बिंदु है।
इसी कारण है कि वरिष्ठ नेता हमेशा चुनावों में भाग लेने पर बल देते हैं, यहां तक कि उन लोगों को भी चुनाव में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं, जो इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था से कोई मतभेद रखते हैं। इस संदर्भ में वे उल्लेख करते हैं, आज इस व्यवस्था ने देश को स्थिरता प्रदान की है, देश को विकास के पथ पर डाला है, राष्ट्र को सम्मान प्रदान किया है, इससे तो कोई इनकार नहीं कर सकता, आपत्ति करने वालों को यह सब तो पसंद है न, इसलिए उन्हें मैदान में आना चाहिए।
चुनाव के संबंध में दूसरा बिंदु जिस पर वरिष्ठ नेता हमेशा बल देते हैं, यह है कि वोट डालने में सावधानी बरतनी चाहिए। वे कहते हैं कि लोगों को ऐसे उम्मीदवारों को वोट देना चाहिए जो सच्चे हों, लोगों से सहानुभूति रखते हों, जानकार रखते हों और साहसी हों, ताकि देश के विकास में सहयोग के साथ साथ देश की स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा कर सकें। वरिष्ठ नेता यद्यपि विरोधियों से भी चुनाव में भाग लेने का आग्रह करते हैं, लेकिन उनके उम्मीदवा बनने को सही नहीं समझते हैं। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता का कहना है कि दुनिया में कहीं भी, देश की व्यवस्था के विरोधियों को निर्णय लेने वाले निकायों में प्रवेश नहीं दिया जाता। यहां तक कि कहीं कहीं तो एक छोटे से आरोप के बाद ही योग्यता रद्द कर दी जाती है। वरिष्ठ नेता, शीत युद्ध के दौरान, अमरीका का एक उदाहरण पेश करते हैं। शीत युद्ध के दौरान जिन लोगों पर वामपंथी होने का संदेह भी होता था तो उनकी योग्यता रद्द कर दी जाती थी और कुछ को तो जेल में डाल दिया जाता था। यह कठोर व्यवहार लोकतंत्र का पालना कहलाने वाले अमरीका जैसे देश में किया जाता था, जो अब मुसलमानों के साथ किया जा रहा है।
चुनावों के सफल आयोजन के लिए भी वरिष्ठ नेता ने अधिकारियों को कुछ महत्वपूर्ण दिशानर्देश दिए। सबसे पहले उन्होंने उल्लेख किया कि अगर उम्मीदवारों के बीच कोई मतभेद पाया जाता है, तो क़ानून पर भरोसा करना चाहिए और वह इसके समाधान के लिए बेहतरीन न्याय करने वाला है। इसीलिए क़ानून का पालन की सिफ़ारिश करते हुए कहते हैं, सभी को क़ानून पर भरोसा करना चाहिए, हमेशा हमारी यही सिफ़ारिश रही है। चुनाव अधिकारियों से हमेशा मेरी सिफ़ारिश रही है कि अपने स्थान पर अडिग रहो, अडिग और मज़बूत स्थान क़ानूनी बिंदु है, क़ानून का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। इस संदर्भ में वे चुनावों का आयोजन करने वाली संस्थाओं के सम्मान पर भी बल देते हैं और कहते हैं कि उनके अपमान से व्यवस्था में अराजकता उत्पन्न होगी।
पश्चिमी देशों में चुनाव प्रचार में झूठ, आरोप और धोखे से काम लिया जाता है। वरिष्ठ नेता इस प्रकार के प्रचार को इस्लामी गणतंत्र ईरान के लिए उचित नहीं समझते हैं, बल्कि उम्मीदवारों से सिफ़ारिश करते हैं कि उम्मीदवारों को एक दूसरे का अपमान नहीं करना चाहिए, ठीक है कि आप उम्मीदार हैं, आपका मानना है कि आप एक अच्छे इंसान हैं, एक विशिष्ट व्यक्ति हैं, अच्छी बात है, अपनी जितनी प्रशंसा कर सकते हों करिए, लेकिन अपने प्रतिद्वंद्वी का अपमान मत करिए, अपने प्रतिद्वंद्वी पर आरोप मत गढ़िए और पीठ पीछे उसकी बुराई भी मत करिए। यह एक कर्तव्य है और सफल चुनावों के लिए एक मानक है।
दूसरा बिंदु, झूठे वादों और अव्यवहारिक वादों से लोगों को धोखा देने से बचना है। वरिष्ठ नेता इस प्रकार के चुनावी वादों के बारे में चेतावनी देते हुए कहते हैं, उम्मीदवारों को ऐसे वादे नहीं करने चाहिएं, जिन्हें पूरा नहीं कर सकते कुछ उम्मीदवार लोगों से ऐसे वादे करते हैं कि ख़ुद जानते हैं कि वह इन्हें पूरा नहीं कर पायेंगे, कभी कभी तो ग़ैर क़ानूनी वादे करते हैं। कहते हैं कि हम वह काम करा देंगे, जबकि उन्हें पता है कि जिस काम की बात कर रहे हैं, वह ग़ैर क़ानूनी है। ग़ैर क़ानूनी नारे भी नहीं लगाने चाहिएं। लोगों के साथ सही व्यावहार किया जाना चाहिए और उनसे सच्ची बात करनी चाहिए। सही और सफल चुनावों का यह अभिन्न भाग है।
कुल मिलाकर, वरिष्ठ नेता चुनावों को एक महत्वपूर्ण अवसर और अनुकंपा बताते हैं, जिसका आभार व्यक्त करना सबके लिए ज़रूरी है, और वह सही और सफल चुनावों का आयोजन करके संभव हो सकता है।
कुछ समय से ईरान यहां तक कि कुछ अन्य देशों के राजनीतिक वातावरण को प्रभावित करने वाला एक अन्य विषय जेसीपीओए का क्रियान्वयन और ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटना है। चुनाव अधिकारियों से मुलाक़ात में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने परमाणु समझौते के क्रियान्वयन को एक महत्वपूर्ण घटना बताया और राष्ट्रपति, विदेश मंत्री और इसमें शामिल अन्य समस्त अधिकारियों का आभार व्यक्त किया। लेकिन उन्होंने इस ग़लत विचार को कि यह अमरीका की कृपा के कारण हुआ है, कड़ाई से रद्द कर दिया और उल्लेख किया कि हमने परमाणु ऊर्जा में अपनी योग्यता और अपने वैज्ञानिकों के बलबूते और ईरान की विभिन्न सरकारों के सहयोग से विकसित किया है, इस बिंदु तक पहुंचने के लिए इस मार्ग में हमने चार शहीद दिए हैं, हमने ऐसा काम किया है कि जो दुश्मन एक दिन एक सैंट्रीफ़्यूज चलाने की अनुमति नहीं दे रहा था, अब वह वर्तमान वास्तविकताओं के कारण कई हज़ार सैंट्रीफ़्यूज सहन करने के लिए बाध्य है। यह उनकी कृपा से नहीं हुआ है, यह ईरानी राष्ट्र और वैज्ञानिकों की कोशिशों से हुआ है।
वरिष्ठ नेता का कहना है कि ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका और यूरोप ने इसलिए प्रतिबंध लगाए थे, ताकि ईरानी जनता इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था का विरोध करे। लेकिन हमारे लोग डट गए, लोगों के इस तरह डट जाने ने और प्रतिरोध ने, कूटनीति और वार्ता के लिए शक्ति प्रदान की। दुश्मन मजबूर हो गया और जितना भी वह पीछे हटा है, उसका कारण यह है कि जनता ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया, इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया अपने सम्मान का प्रदर्शन किया। यह जितनी भी प्रगति हुई है, ध्यान योग्य कार्य है, महत्वपूर्ण कार्य है और यह जनता के सहयोग और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के जनता से जुड़ाव के कारण है।
वरिष्ठ नेता एक अन्य महत्वपूर्ण विषय की ओर भी संकेत करते हैं। वास्तविकता यह है कि साम्राज्यवादी पश्चिमी सरकारें जानती हैं कि ईरान परमाणु हथियार प्राप्त नहीं करना चाहता है। लेकिन फिर भी उन्होंने ईरान पर क्यों प्रतिबंध लगाए। वरिष्ठ नेता इसका उत्तर देते हुए कहते हैं, यह क़दम ईरानी राष्ट्र पर दबाव डालने के लिए है, ईरानी राष्ट्र की क्रांति को उसके उद्देश्यों से रोकने के लिए, विश्व और इलाक़े में दिन प्रतिदिन बढ़ते ईरान के प्रभाव को रोकने के लिए, यह एक वास्तविकता है।
विश्व के देशों द्वारा इस्लामी क्रांति की महत्वाकांक्षाओं के स्वागत के बारे में वरिष्ठ नेता कहते हैं, ऐसा नहीं है हम इसे निर्यात करना चाहते हैं, बल्कि प्राकृतिक रूप से ऐसा है, यह एक नई बात है, आकर्षक है, साफ़ और सच्चे दिल इसे पसंद करते हैं। इसलिए इस्लामी गणतंत्र का प्रभाव और भरोसा बढ़ेगा। दुश्मन इससे भयभीत होता है। उनका लक्ष्य इसे रोकना है, उनका लक्ष्य लोगों को यह समझाना है कि इस्लामी गणतंत्र धर्म के आधार पर एक व्यवस्था एवं शासन की स्थापना और उसे सफल बनाने में विफल हो गया, वे यही दर्शाना चाहते हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, प्रतिबंधों के हटने से आर्थिक समस्याओं के हल हो जाने के प्रति जनता और अधिकारियों को सचेत करते हुए प्रश्न करते हैं कि अब जबकि प्रतिबंध हट गए हैं, क्या देश की आर्थिक समस्याएं और लोगों की आर्थिक समस्याएं प्रतिबंध हटने से हल हो जायेंगी। नहीं, सही प्रबंधन ज़रूरी है, योजना ज़रूरी है। हमें सही कार्य करना चाहिए और सही कार्य ठोस अर्थव्यवस्था है। ठोस अर्थव्यवस्था की सभी ने पुष्टि की है और उसके लिए योजना बनाई है। अधिकारी इसे सफल बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, उन्हें गंभीरता से यह प्रयास करने चाहिए और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में देश को प्रतिरोधी बनाएं। क्योंकि अगर हमारी निगाहें दूसरों की ओर होंगी और दूसरों के हाथों पर होंगी तो हम कहीं नहीं पहुंच पायेंगे।
आत्मनिर्भरता तक पहुंचने के बारे में वरिष्ठ नेता कहते हैं, हम एक शक्तिशाली राष्ट्र हैं, हमारी क़रीब 8 करोड़ की जनसंख्या है, यह कम जनसंख्या नहीं है, हमारे देश में लाखों शिक्षित युवा हैं, हर क्षेत्र में हमारे पास योग्य लोग हैं, हमारे देश की धरती में व्यापक स्रोत हैं, हमारे देश की जलवायु और मौसम में विविधता है, यह सब सुविधाए हैं, यह सब अवसर हैं। हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और दूसरों का सहारा नहीं लेना चाहिए।