May ११, २०१६ १६:०२ Asia/Kolkata

जब बात खदानों में बच्चों के काम करने की होती है तो किसी भी तर्क से इस प्रकार के काम का औचित्य नहीं पेश किया जा सकता।

 खेद की बात यह है कि दुनिया भर में खनिकों के अधिकारों के हनन के बारे में रिपोर्टें प्राप्त होती रहती हैं।

संयुक्त अरब इमारात, दक्षिणपश्चिमी एशिया तथा अरब प्रायद्वीप के पूर्व में स्थित है और मध्य पूर्व के दक्षिण में स्थित है। दक्षिण से क़तर और सऊदी अरब तथा पूरब से ओमान तथा उत्तर से फ़ार्स की खाड़ी से इसकी सीमाएं मिली हुई हैं। संयुक्त अरब इमारात, सात छोटे रजवाड़ों को अबू ज़हबी, दुबई, शारजा, अजमान, फ़ुजैरा, रासुल ख़ैमा और उम्मुल क़वीन को मिलकर बना है। यह 2 दिसंबर वर्ष 1971 में ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ और इस प्रकार संयुक्त अरब इमारात अस्तित्व में आया।

दुबई, संयुक्त अरब इमारात के सात रजवाड़ों का एक शहर है जिसकी जनसंख्या सात रजवाड़ों में सबसे अधिक है और अबू ज़हबी के बाद सबसे बड़ा शहर भी है। पिछले दशकों के दौरान यह शहर सोने के व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र बन चुका है। इस प्रकार से लगभग दुनिया के 40 प्रतिशत सोने की लेन देन इस शहर में होती है और यह शहर स्वयं को सोने का शहर कहलवाना पसंद करता है।

बाज़ारों में मौजूद सोने और उनके लाभप्रद व्यापार के पीछे कटु वास्तविकताएं छिपी हुईं हैं जो विदित रूप से लोगों को धोखा देती हैं। सोने को निकालने, उसे साफ़ करने और उसे सुन्दर आभूषणों में ढालने के समस्त चरणों में कटु वास्तविकताएं छिपी हुई हैं । सोने की खदानों में काम करना, सबसे कठिन व जटिल काम है।

खनिकों को सुरक्षा प्रदान करने और उनके काम के स्तर को उठाने के लिए सौ वर्षों से होने वाले समस्त प्रयासों के बावजूद अब भी बहुत से अवसरों पर खदानों में काम सबसे ख़तरनाक काम समझा जाता है और इसके लिए बहुत अधिक सावधानी और होशियारी की आवश्यकता है। इसके बावजूद जब खदानों में बच्चों के काम की बात होती है तो किसी भी तर्क से इस काम का औचित्य नहीं पेश किया जा सकता । खेद की बात यह है कि दुनिया भर में खनिकों के अधिकारों के हनन के बारे में रिपोर्टें प्राप्त होती रहती हैं। आज बारी है संयुक्त अरब इमारात की।

ह्यूमन राइट्स वाच के शोध से पता चलता है कि किस प्रकार सोने की आपूर्ति के क्रम में मज़दूर बच्चों से निश्चेतना, बच्चों के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। इस संस्था ने विभिन्न दस्तावेज़ और प्रमाण प्राप्त किए हैं जिनसे पता चलता है कि घाना में, किस प्रकार सोने के सौदागर बिना लाइसेंस के खदानों से जहां बच्चों का काम प्रचलित है, सोने की ख़रीदारी करते हैं और यह खदाने उसे निर्यातक कंपनियों को बेच देते हैं जो खदानों से सोना निकालेन में खनिक बच्चों की रक्षा और पहचान के लिए उचित संसाधनों और उपकरणों से लैस नहीं होतीं। घाना की कुछ निर्यातक कंपनियां, कालोटी तथा एमीरेट्स गोल्ड जैसी दुबई की सोने की सफ़ाई करने वाली बड़ी कंपनियों को सोने निर्यात करती हैं।

ह्यूमन राइट्स वाच के शोधकर्ता जुलियन केपेनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में संकेत किया है कि केवल पिछले महीने ही मैंने घाना में आशांति क्षेत्र की एक सोने की खदान का दौरा किया, सूरज की तपती धूप में, बड़े बड़े पत्थरों के बीच तथा अन्य छोटे बड़े लोगों के साथ इस्हाक़ नामक एक छोटा सा बच्चा खुदाई में व्यस्त था। इस दृश्य ने मुझे पिछले कुछ वर्ष पहले की याद दिला दी जिसमें घाना में खदान में पत्थरों के गिरने के कारण 16 लोग मारे गये थे। इस्हाक़ ने मुझसे कहा कि खदान में पूरे समय काम काम करने के लिए उसने स्कूल छोड़ दिया है। वह खुदाई भी करता है और खदान के बड़े बड़े पत्थरों को इधर उधर भी करता है। इसी प्रकार सोने की सफ़ाई और उसकी फ़िनिशिंग के दौरान निकलने वाला विषैला पदार्थ भी सभी के लिए विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

 जब मैंने इस्हाक़ से पारे के विषैले पदार्थ के बारे में पूछा तो उसे कुछ भी नहीं पता था।

घाना में बिना लाइसेंस की खदानें, बहुत ही ख़तरनाक स्थान हैं जहां किसी भी बच्चे को नहीं होना चाहिए। घाना में सोने की छोटी खदानों में लगभग दस लाख लोग काम करते हैं और इस देश के लगभग चालीस प्रतिशत सोने का उत्पादन करती हैं। यह खदानें समान्य रूप से बिना लाइसेंस के काम करती हैं और परिवार के सदस्यो के साथ बच्चे अपनी आजीविका चलाने तथा स्कूल की फ़ीस जमा करने के लिए यहीं से पैसे कमाते हैं।

15 से 17 वर्ष की आयु के हज़ारों बच्चे सोने की खदानों में काम करते हैं और उस अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों को जो ख़तरनाक उद्योगों में बच्चों के काम करने पर रोक लगाता है और घाना के 18 वर्ष के कम आयु के बच्चों के काम करने पर रोक लगाने के क़ानूनों धता बताती हैं। बहुत से छोटे बच्चे ग़ैर क़ानूनी छोटी खदानों में काम करते हैं। इस प्रकार से घाना के एक तिहाई खदान उद्योग में कम आयु के बच्चे काम करते हैं। यह बच्चे ऐसी स्थिति में काम करते हैं कि इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। उनको अंधकारमयी सुरंगों में जाना होता है और बोझ उठाना होता है जिसका भार उनसे भी भारी और ज़्यादा होता है।

इन खदानों में काम बच्चों के लिए संकटमयी हो सकता है क्योंकि उस जगह वह भारी चीज़ों को इधर उधर ले जाते हैं, वहां नुकीली चीज़ें होती हैं और वहां के वातावरण में सोने की सफ़ाई से निकलने वाला विषैला पदार्थ फैला हुआ होता है जिससे बच पाना असंभ होता है। इन बच्चों के काम करने की परस्थितियों बहुत ही ख़तरनाक होती है । ख़तरनाक वातावरण का यह अर्थ होता है कि यह बच्चे विस्फोटक और विषैले पदार्थों से उत्पन्न होने वाली बीमारियों का शिकार रहते है। छोटी आयु के मज़दूरों का वेतन भी उन्हीं जैसा कम होता है।

इनमें से कुछ बच्चे 25 मीटर गहरी खदान में काम करते हैं जबकि कुछ सोने की सफ़ाई से निकलने वाले पारे के विषैले पदार्थ के शिकार होते हैं जो उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं और उनको बहुत अधिक हानि पहुंचाते हैं। पारे की सहायता से सोना निकाला जाता है। यह वही सोना है जो दुबई के बाज़ारों में दुनिया भर के दलालों और व्यापारियों के हाथ ख़रीदा व बेचा जाता है। प्रत्येक दशा में संयुक्त अरब इमारात वह एकमात्र देश नहीं है जिसने अपने सोने की मार्केट चमकाने के लिए घाना जैसे देशों की भांति बच्चों को सोने की खदानों में मज़दूर लगा दिया हो। यह काम एशिया और अफ़्रीक़ा के अन्य देशों में भी होता है। एक अनुमान के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग दस लाख बच्चे, छोटी व पत्थरों की खदानों में काम करते हैं।

 यह बच्चे, बहुत ही विषम परिस्थितियों में जीवन व्यतीत करते हैं और इनकों विभिन्न प्रकार की बीमारियों और घावों का सामना रहता है। दुनिया के बहुत से स्थानों पर पत्थर की खदान मौजूद हैं जिनमें पत्थरों को खींचने तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के दौरान सांस के रास्ते धूल और मिट्टी हल्क़ में पहुंच जाती है और जिसे पुरुषों विशेषकर बच्चों को सांस की बीमारियों का सामना होता है।

खेद की बात यह है कि बच्चों की स्थिति को सुधारने के लिए होने वाले बहुत से कामों के विपरीत,बच्चे अब भी बहुत ख़राब और दयनीय स्थिति में काम कर रहे हैं। पिछले वर्ष भी इस स्थिति में कुछ अधिक सुधार नहीं हुआ और केवल 15 वर्ष की अवधि में इस संख्या में केवल एक तिहाई की कमी आई है। वर्तमान समय में एशिया, अफ़्रीक़ा और लैटिन अमरीका में काम के मामले में बच्चों की स्थिति बहुत ही ख़राब है। एशियाई और अफ़्रीक़ी बच्चों के लिए यह स्थिति चेतावनी जनक है।

 एशिया में हर 11 बच्चों में एक काम करने पर विवश है। अफ़्रीक़ा में भी यह आंकड़ा कुछ कम नही है। खदानों में काम करने वाले बच्चों की संख्या बहुत ही अधिक है। यह ऐसी स्थिति है कि वर्ष 2015 तक बच्चों के समस्त काम रद्द कर दिए जाने थे किन्तु यह केवल वादा था जो व्यवहारिक नहीं हो सका।

प्रत्येक दशा में सोने की खदान में व्यस्त लोगों की यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिष्चित करें कि उनकी परियोजनाओं में बच्चे काम नहीं करेंगे। इसी प्रकार इस उद्योग का विकास और प्रगति दूसरों के अधिकारी के हनन का साधन नहीं बनेगा। खदान मालिकों, सोने और हीरों के व्यापारियों और सोने उद्योग में सक्रिय लोगों को चाहिए कि वह सोने को निकालने और उसे बेचने के बारे में अपनी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को व्यवहारिक बनाने के लिए काम और प्रयास करना चाहिए।

 उनको विश्वास होना चाहिए कि खदानों में, सोने की सफ़ाई व फ़िनिशिंग की जगहों पर मज़दूरों के अधिकारों पर नज़र रखने के लिए क़ानूनी बनाएं जिनमें कार्यस्थलों पर बच्चों की उपस्थिति को रोकना इत्यादि शामिल हो। अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विकास व सहयोग की संस्था जैसी कुछ संस्थाओं व सोने के व्यापार के नियमों में इनमें से कुछ क़ानूनों की ओर संकेत किया गया है। घाना में सोना ख़रीदने वाली कंपनियों को अपने कामों पर अधिक ध्यान देना चहिए ताकि किसी भी प्रकार से कोई व्यक्ति बच्चों को इस काम में न लगा सके।