इस्लामी क्रांति का उद्देश्य इस्लामी सभ्यता को व्यवहारिक बनाना है
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि इस्लामी क्रांति का उद्देश्य इस्लामी सभ्यता को व्यवहारिक बनाना है।
सोमवार को इस्लामी-ईरानी आदर्श केन्द्र के सर्वोच्च परिषद के सदस्यों ने वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की। वरिष्ठ नेता ने इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के उद्देश्यों को पांच चरणों में विभाजित किया और इस्लामी सभ्यता को व्यवहारिक होने को क्रांति का पांचवां व अंतिम उद्देश्य बताया। उन्होंने कहा कि इस्लामी सभ्यता का अर्थ सीमाओं का विस्तार नहीं बल्कि राष्ट्रों का इस्लाम से वैचारिक रूप से प्रभावित होना है।
उन्होंने विश्व में प्रचलित विकास के ग़लत और अनुपयोगी आधारों की ओर संकेत करते हुए नये इस्लामी व ईरानी आदर्शों को पेश किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया जिनमें क्रांतिकारी कार्य हों और इसमें धार्मिक शिक्षा केन्द्रों तथा इस्लाम की मज़बूत व समृद्ध संभावाओं से लाभ उठाया जाए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इसी प्रकार दुनिया में मौजूद आदर्शों के बारे में कहा कि विकास के लिए प्रचलित आदर्श, आधारों की दृष्टि से ग़लत और ग़ैर ईश्वरीय सिद्धांतों पर आधारित हैं।
ईरान की इस्लामी व्यवस्था ने विश्व में विकास का नया आदर्श पेश किया है। स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने पूर्व सोवियत संघ के नेता मीख़ाइल गर्बाचोफ़ के नाम अपने पत्र में लिखा था कि हम आपका गम्भीर रूप से इस्लाम को समझने का आह्वान करते हैं यह इस कारण नहीं कि इस्लाम और मुसलमान को आपकी आवश्यकता है बल्कि विश्व व्यापी इस्लामी मूल्यों के कारण जो समस्त राष्ट्रों को मुक्ति प्रदान कर सकता है।
ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए लगभग 37 साल का समय बीत जाने के बावजूद इस्लामी-ईरानी विकास मॉडल के संबंध में अभी बहुत कुछ चर्चा की ज़रूरत है और इस्लामी- ईरानी विकास आदर्श केन्द्र के गठन का एक कारण भी यही आवश्यकता है।