May १५, २०१६ १६:४४ Asia/Kolkata
  • वरिष्ठ नेता ने विशुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को बयान करने को धार्मिक मार्ग दर्शन बताया

शनिवार को तेहरान के धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के धर्मगुरूओं और धार्मिक छात्रों ने वरिष्ठ नेता से भेंट की।

इस भेंट में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आज की दुनिया में धर्मगुरूओं और तानाशाही के विरुद्ध आंदोलनों की भूमिका को स्पष्ट किया। वरिष्ठ नेता ने समाज में धर्म और इस संबंध में धर्मगुरूओं की भूमिका के संदर्भ में कहा कि अगर समाज की हर ज़रूरत सही ढंग से मौजूद हो परंतु समाज में धर्म न हो तो वह राष्ट्र लोक- परलोक में वास्तविक घाटा उठायेगा और उसे समस्याओं का सामना होगा और समाज को एक धार्मिक समाज में बदलने की भारी ज़िम्मेदारी धर्मगुरूओं और धार्मिक छात्रों की है। 

वरिष्ठ नेता ने विशुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को बयान करने को धार्मिक मार्ग दर्शन बताया। वरिष्ठ नेता ने धार्मिक संदेहों की वृद्धि में साइबर स्पेस के प्रभावों और युवाओं के ज़ेहनों को खराब करने के पीछे राजनीतिक कारणों की ओर संकेत किया और कहा कि यह क्षेत्र वास्तव में रणक्षेत्र है और धर्मगुरूओं एवं धार्मिक छात्रों को चाहिये कि वे ज्ञान के हथियार से लैस होकर भ्रष्ट विचारों का मुकाबला करें।

वरिष्ठ नेता ने रूढ़ीवादी, धार्मांधी, आध्यात्मिक सच्चाई से दूर और संकीर्णता से ग्रस्त इस्लाम को भ्रष्ट विचारों का प्रतीक बताते हुए कहा कि क़ैंची के दूसरे फल में अमरीकी इस्लाम है जो शुद्ध इस्लाम के मुकाबले में खड़ा है। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण पर आधारित शुद्ध इस्लाम की समझ को धर्मगुरुओं का महत्वपूर्ण दायित्व बताते हुए कहा कि ईश्वरीय पैग़म्बर इसी शुद्ध विचार को फैलाने के लिए आए थे। आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने जनता के व्यवहारिक मार्गदर्शन को उनके वैचारिक मार्गदर्शन का पूरक बताया।

उन्होंने धार्मिक छात्रों पर ख़ूब पढ़ाई करने और आत्म निर्माण पर बल दिया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका की जनक्रांति का विफलता का एक महत्वपूर्ण कारण सही व एक धार्मिक नेतृत्व का न होना है। वरिष्ठ के अनुसार इन देशों में धर्म लोगों को सड़कों पर ले आया परंतु चूंकि इन देशों के धार्मिक तंत्र बिखरे हुए थे इसलिए वहां पर इस्लामी जागरुकता न तो जारी रह सकी और न ही आवश्क परिणाम तक पहुंच सकी परंतु इस्लामी गणतंत्र ईरान में धर्मगुरूओं और जनता की उपस्थिति ने क्रांति के जारी रहने को संभव बना दिया है।