May १७, २०१६ १४:४४ Asia/Kolkata

महिला अधिकारों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों के जारी होने और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद अब भी बहुत से देशों में बहुत ही सिस्टमैटिक ढंग से महिलाओं के अधिकारों का भीषण हनन हो रहा है।

महिला अधिकारों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों के जारी होने और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद अब भी बहुत से देशों में बहुत ही सिस्टमैटिक ढंग से महिलाओं के अधिकारों का भीषण हनन हो रहा है। शायद बहुत ही सरलता से यह दावा किया जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों के हनन के संबंध में पूरी दुनिया में सबसे आगे सऊदी अरब है।

इतिहास पर नज़र डालने से यह पता चलता है कि महिलाओं पर सबसे अधिक अत्याचार हुए हैं और वे अपने बहुत से मूल अधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रता के अधिकारों से वंचित हैं। यही कारण है कि विश्व स्तर पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले आंदोलन सामने आए हैं। 21वीं शताब्दी के आरंभ में, महिला आंदोलनों के भरसक प्रयास तथा महिलाओं के समर्थन की परिधि में होने वाली विभिन्न गतिविधियों के परिणाम स्वरूप महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में उल्लेखनीय विस्तार हुआ। वर्ष 1945 में अर्थात द्वितीय युद्ध की समाप्ति और संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन अर्थात जिसकी ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की रक्षा करना तथा विस्तार के अधिकार सहित मानवाधिकारों का समर्थन करना है, से अब तक महिलाओं की स्थिति के बारे में 20 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ बनाए गये जिनमें से हर एक महिलाओं की स्थिति के बारे में विशेष स्थिति को प्रतिबिंबित करने वाले हैं।

 इस संबंध में 1979 का कन्वेन्शन महिलाओं के विरुद्ध हर प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने सहित पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने पर केन्द्रित हुए हैं।

वर्ष 2004 के अंत तक सऊदी अरब की महिलाओं के अलग पहचान पत्र नहीं थे और उनके पिता के पहचान पत्र में उनका नाम लिख दिया जाता था। अब उनके पास उनका अलग पहचान पत्र होता है और शैख़ अब्दुल अज़ीज़ सहित सऊदी अरब के कई धर्म गुरूओं ने आपत्ति जताई कि महिलाओं का चेहरा खुला हुआ नहीं होना चाहिए और यह काम वर्जित है इसीलिए उनके पहचान पत्र पर फ़ोटो नहीं होनी चाहिए। सऊदी अरब की महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं है। सऊदी अरब की सरकार ने घोषणा की है कि महिलाएं नगर परिषद जैसे देश के विभिन्न चुनावों में भाग नहीं ले सकतीं। धर्मगुरूओं ने सरकार के इस फ़ैसले की पुष्टि की और महिलाओं के मतदान को पथभ्रष्टता और पवित्रता के विरुद्ध बताया। अलबत्ता हाल ही में पिछले कुछ महीनों में, आले सऊदी परिवार की ओर से बहुत अधिक सीमित्ताओं के साथ नगर परिषद के चुनावों में महिलाओं की उपस्थिति को स्वीकार किया गया।

सऊदी अरब की लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत अधिक सीमित्ताओं का सामना है। बावजूद इसके सऊदी अरब ने लड़कियों को शिक्षा से रोका नहीं है बल्कि उन्हें मुफ़्त शिक्षा दी जाती है किन्तु विश्वविद्यालयों और स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति बहुत सीमित है। सऊदी अरब के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्राइमरी में 55 प्रतिशत, माध्यमिक में 79 प्रतिशत और हाई स्कूल व इंटर में 81 प्रतिशत छात्र पढ़ते हैं । सऊदी अरब के प्राचीन व पारंपरिक दृष्टिकोणों के कारण बहुत सी लड़किया कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं। सऊदी अरब में क़ानून, इन्जीनियरिंग और तकनीक के विषयों में लड़कियों को पढ़ने का अधिकार नहीं है। सऊदी अरब में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षण संभवनाओं में भेदभाव के दृष्टिगत सऊदी अरब की लड़कियां देश के बहुत से विश्वविद्यालयों और कालेजों से इन्टरनेट के माध्यम से आन लाइन पढ़ाई करती हैं।


घरेलू हिंसा भी सऊदी महिलाओं की एक अन्य गंभीर समस्या है। पुरुषों द्वारा मारपीट और हिंसा का शिकार होने के बाद महिलाओं को कोई पूछने वाला नहीं है। सऊदी अरब की एक महिला समर बदवी अपने पहले पति से अलग होने के बाद अपने बच्चे के साथ अपने पिता के घर लौट आती है, पिता उसकी बहुत पिटाई करता है और समर अंततः मार्च 2008 में जेद्दह में महिला सुरक्षा घर में शरण लेने पर विवश हो जाती है। पिता अवज्ञा के अपराध में उसकी शिकायत अदालत में करता है किन्तु इस शिकायत की सुनवाई नहीं हुई। आख़िरकार उसके पिता ने 2009 में फिर उसके विरुद्ध याचिका दायर की किन्तु समर ने अदालत के नोटिस की अनदेखी कर दी और वह तारीख़ पर अदालत में उपस्थित नहीं हुई और फिर अदालत ने उसकी गिरफ़्तारी का वारेंट जारी कर दिया। इस मामले को मानवाधिकार के रक्षक और प्रसिद्ध वकील वलीद अबुल ख़ैर ने उनकी रक्षा के लिए अपने हाथ में ले लिया।  



समर दूसरी शादी करना चाहती थी किन्तु उसके पिता ने इसे अपनी आन बना ली और अभिभावकता के कारण उसकी शादी में रुकावट पैदा करने लगा। समर को इस बारे में न्यायालय से वारेंट मिला ताकि अपने पिता से अपनी अभिभावकता को स्वीकार करे। इस शिकायत के जवाब में उसे अवज्ञा पर आधारित दूसरा नोटिस पकड़ा दिया। इस शिकायत के कारण जिस दिन उनकी तारीख़ थी उनको गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। समर को वर्ष 2008 में स्वतंत्र कर दिया गया। यह स्वतंत्रता, सऊदी अरब और अन्य देशों में मानवाधिकार के रक्षकों की ओर से अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का परिणाम थी। समर के मामले में पूरी दुनिया के मानवाधिकार रक्षकों के प्रयास ने पुरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया और शाह अब्दुल्लाह को उसकी स्वतंत्रता की याचिका को स्वीकार करने पर विवश कर दिया। सऊदी अरब की रूढ़ीवादी और द्वेषपूर्ण व्यवस्था, महिलाओं को विवाह, काम और यात्रा पर बिना किसी अभिभावक पुरुष के जाने की अनुमति नहीं देती। बदवी सऊदी अरब की पहली महिला हैं जिन्होंने अपने पिता अभिभावकता का दुरुपयोग करने की शिकायत की।


सऊदी अरब में महिलाएं, बिना किसी सगे संबंधी के कहीं यात्रा पर नहीं जा सकतीं। हंबली पंथ के धर्म गुरू, बिना किसी सगे संबंधी के साथ महिलाओं की यात्रा को वर्जित क़रार देते हैं। सऊदी अरब में यह क़ानून बड़ी सूक्ष्मता से चलाया जा रहा है और वह महिलाएं घर से बाहर नहीं निकल सकतीं जिनके साथ पुरुष अभिभावक न हो। यह क़ानून देश के भीतर और देश के बाहर यात्रा करने पर जारी होता है।


बैंक, रेस्त्रां और बाज़ार सहित सार्वजनिक स्थल पर सऊदी महिलाएं बिना किसी सगे संबंधी के उपस्थिति नहीं हो सकतीं। सामान्य रूप से रेस्त्रां में दो भाग होते हैं एक कुवारे लोगों का तथा दूसरा भाग शादीशुदा लोगों का। रेस्त्रां के विवाहित लोगों के भाग में छोटे कमरे होते हैं जहां पर महिलाएं अपने चेहरे पर लगे नक़ाब को हटा कर खाना खा सकती हैं। सार्वजनिक स्थलों पर विशेषकर मस्जिद में महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम है। सऊदी महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वह घर से निकलते समय सदैव किसी सगे संबंधी पुरुष के साथ हों नहीं तो अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने वाले विशेष पुलिसकर्मी उन्हें पकड़ लेंगे।

यद्यपि सऊदी अरब में महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध है किन्तु बहुत अधिक सीमत्ताएं और प्रतिबंध हैं, महिलाओं को चाहिएकि वह काम शुरु करने से पहले इस्लामी मामलों के मंत्रालय से अनुमति लें। इस संस्था ने महिलाओं को नौकरी पर रखने के लिए बहुत अधिक सीमित करने वाले क़ानून लगा रखे हैं। उनका कहना था कि इस संस्था ने महिलाओं को नौकरी पर रखने के लिए पांच शर्त लगा रखी है। महिलाओं का काम, जीवन के संचालन के लिए आवश्यक आय का कारण बने, यदि आवेदन करने वाली महिला यह सिद्ध करने में सफल न हो सकी कि उसे जीवन यापन के लिए अधिक पैसे की आवश्यकता है तो इस्लामी मामलों का मंत्रालय उसे काम करने से मना कर सकता है या उसके आवेदन की अनदेखी कर सकता है, महिलाओं काम केवल महिला वाले वातावरण में होना चाहिए और अजनबी लोगों को उस स्थान पर जाने की अनुमत नहीं होगी। इस आधार पर महिलाएं, लड़कियों के स्कूल, सिलाई के कारख़ानों, अस्पतालों में नर्स इत्यादि का काम कर सकती हैं। किसी सगे संबंधी के बिना महिलाओं की यात्रा और चेहरा दिखाना हराम अर्थात वर्जित है।


सऊदी अरब के क़ानून में टीचर और नर्स के अतिरिक्त महिलाओं के किसी भी काम करने पर प्रतिबंध है। महिलाओं का प्रशिक्षण, केवल लड़कियों की कक्षा तक ही सीमित है और उन्हें लड़कों को पढ़ाने की अनुमति नहीं होती। इन सबके बावजूद बहुत से कामों में महिलाओं की उपस्थिति सीमित है और उन्हें इस काम के लिए भी पति या अपने अभिभावक की अनुमति लेनी पड़ती है। इसी प्रकार वहाबी कठमुल्लाओं ने हर उस काम को जो पुरुष और महिला के एक साथ या एक स्थान पर काम करने का कारण बनता है, वर्जित घोषित कर रखा है।


सऊदी अरब में महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव का एक अन्य उदाहरण, महिलाओं को सामाजिक व राजनैतिक पद प्राप्त करने से रोकना है। सऊदी अरब में महिलाएं कार्यकारिणी, मंत्रालय, कार्यालय और न्यायालय का पद प्राप्त नहीं कर सकतीं, इसी प्रकार सऊदी अरब में महिला न्यायाधीश नहीं बन सकती। पढ़ी लिखी महिलाएं भी आर्थिक कंपनियों में काम नहीं मिलता। हालिया वर्षों में सऊदी अरब में महिलाओं के काम करने का स्तर अपनी ही जगह पर बाक़ी रहा और उसमें वृद्धि देखने को नहीं मिली। इस प्रकार से कि केवल पांच प्रतिशत पढ़ी लिखी महिलाएं ही काम कर रही हैं। महिलाओं के काम करने का यह स्तर, दुनिया में काम करने के स्तर में सबसे नीचे है।


सऊदी अरब की महिलाओं को ड्राइविंग की भी अनुमति नहीं है। सऊदी अरब के धर्मगुरूओं के उच्च परिषद ने 1990 में एक फ़त्वा जारी करके ड्राइविंग को धर्म के विरुद्ध बताकर महिलाओं की ड्राइविंग को वर्जित घोषित कर दिया है। उसके बाद से इस प्रतिबंध को हटाने के लिए बहुत अधिक प्रयास किए गये किन्तु सऊदी अरब के कठमुल्लाओं के विरोध के कारण यह प्रतिबंध यथावत बाक़ी रहा। 24 अगस्त 2006 में भी सऊदी अरब की परामर्श सभा के सदस्य ने महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार देने के बारे में पेश की गयी योजना को रद्द कर दिया। इसी प्रकार के कठमुल्लाओं का कहना है कि महिलाओं की ड्राइविंग से पथभ्रष्टता और पवित्रता को नुक़सान पहुंच सकता है इसलिए महिलाओं के लिए ड्राइविंग हराम है। सऊदी अरब में आरटीओ विभाग में काम करने वालों ने भी कहा है कि महिलाओं की ड्राइविंग पर प्रतिबंध इसलिए लगा है ताकि वह अपने चेहरे को ढांपे रहें, इस स्थिति में उनके लिए ड्राइविंग करना कठिन है और इससे दुर्घटना में वृद्धि हो सकती है। सऊदी अरब में ड्राइविंग करने वाली पहली महिला के रूप में मनाल शरीफ़ जद्दा की सड़कों पर स्टेयरिंग पर आठ मिनट बैठने में सफल रही। उनके आठ मिनट के ड्राइविंग की वीडियो क्लिप को पांच लाख लोगों ने देखा। वह इसके कुछ दिन बाद सऊदी अरब की धार्मिक पुलिस के हाथों गिरफ़्तार हुईं और जेल भेज दी गयीं।


टैग्स