Feb १०, २०१६ १५:२७ Asia/Kolkata

हमने उल्लेख किया था कि बच्चों के लिए अच्छे नाम का चयन करना मां-बाप की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से है।

हमने उल्लेख किया था कि बच्चों के लिए अच्छे नाम का चयन करना मां-बाप की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से है। नाम का इंसान के व्यक्तित्व और सैल्फ़ कंसैप्ट पर गहरा प्रभाव पड़ता है और सैल्फ़ कंसैप्ट का विकास बच्चे के विकास के साथ साथ होता है। किसी भी व्यक्ति का नाम उसके सैल्फ़ कंसैप्ट के निर्माण की प्रक्रिया में प्रभावी होता है, इसलिए कि लोग नाम द्वारा जो संदेश देते हैं उससे इस छवि के निर्माण में सहायता मिलती है। इससे हम इस नतीजे पर पहुंचे थे कि बच्चों के नाम के चयन में मां-बाप को बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए।

आधुनिक काल में बच्चों के पालन पोषण के लिए मां-बाप ने विभिन्न प्रकार की शैलियों को अपनाया और तरह तरह के अनुभव किए हैं, लेकिन इस बीच सबसे प्रभावशाली शैली पहले ही दिन से शिशु के साथ प्यार के संबंध को मज़बूत बनाना है।

हर इंसान प्यार और स्नेह का पात्र बनना चाहता है। बचपने से बुढ़ापे तक इंसान अपने इर्दगिर्द के लोगों से प्यार किए जाने की चाहत रखता है। प्यार लोगों को आपस में मज़बूती से जोड़ता है। प्यार इंसानों में एक दूसरे के प्रति सुरक्षा और देखभाल का आभास कराता है और कठिनाईयों को सहन करने की शक्ति प्रदान करता है। बच्चों को दिया गया प्यार और स्नेह हर उस चीज़ से अधिक मूल्यवान होता है कि जो एक परिवार उन्हें उपलब्ध करा सकता है। जीवन केवल कड़े और सख़्त सिद्धांतों पर आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन में रंग भरने और उसमें आत्मा डालने के लिए प्यार की ऊष्मा ज़रूरी है। आदेश और सिद्धांतों वाला परिवार कि जहां प्रेम का अभाव हो लक्ष्यहीन है। परिवार के सदस्यों को अगर कोई चीज़ आपस में जोड़कर रख सकती है तो भावनात्मक रिश्ता और प्यार है।

बच्चों के जीवन को प्यार और उसका अभाव दोनों ही अत्यधिक प्रभावित करते हैं। इसी कारण अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) बच्चों से बहुत अधिक प्रेम करते थे और उन्हें अधिक सम्मान देते थे। विशेष रूप से वे अपने नाती इमाम हसन और इमाम हुसैन से न केवल प्यार और स्नेह करते थे, बल्कि इसका इज़हार भी करते थे। यहां तक कि अगर सजदे की स्थिति में कभी इमाम हुसैन उनकी पीठ पर सवार हो जाते थे तो वे अपने सजदे को इतना लम्बा कर दिया करते थे कि इमाम हुसैन ख़ुद उतर आएं। इस प्रकार उन्होंने अपने साथियों और अनुयाईयों को बच्चों से स्नेह का पाठ पढ़ाया।

आधुनिक काल में वर्ष 1949 से 2001 के बीच प्रकाशित होने वाले शोधों के परिणामों पर नज़र डालने से पता चलता है कि मां-बाप द्वारा बच्चों से प्यार या उन्हें नज़र अंदाज़ करने का उनके आचरण, आत्म सम्मान, आत्म अवधारणा, भावनात्मक स्थिरता, और मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों को शुरू से ही शारीरिक और मानसिक ज़रूरतों की आपूर्ति में संतुलन बनाए रखने के लिए मां-बाप और परिजनों की ओर से भावनात्मक संबंधों की ज़रूरत होती है। इस प्रकार की ज़रूरतों की आपूर्ति से मानसिक स्वास्थ्य और शांति की प्राप्ति के लिए भूमि प्रशस्त होती है। इसके परिणाम स्वरूप प्राप्त होने वाली विशेषताओं में से मानसिक शांति, आत्मविश्वास, मां-बाप पर भरोसा, दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक आचरण करने का पाठ और भटकने से बचने का नाम लिया जा सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के साथ प्यार और दुलार से न यह कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहते हैं, बल्कि यह उनकी नैतिक, धार्मिक और शैक्षिक परवरिश के लिए एक बेहतरीन माध्यम बन सकता है। अगर मां-बाप अपने बच्चों के साथ भावनात्मक संबंधों की स्थापना करते हैं तो बच्चे उनपर भरोसा करते हैं, जीवन के कठिन क्षणों में उन्हें अपना सहारा समझते हैं और उनके रिश्तों में किसी प्रकार की कोई झिझक एवं हिचकिचाहट नहीं रहती।

अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे मां-बाप द्वारा उत्पन्न किए गए प्यार और स्नेह के वातावरण में बड़े होते हैं, तो वे स्कूल में भी उन बच्चों की तुलना में अच्छा करते हैं कि जिन्हें इस प्रकार का वातावरण नहीं मिलता है। एक बच्चा कि जो यह जानता है कि उसे प्यार किया जा रहा है तो वह अपने जीवन की शुरूआत बहुत आत्मविश्वास के साथ करता है। वह प्रसन्न और शांत रहता है। जिस बच्चे को प्यार किया जाता है वह दूसरों के साथ शांतिपूर्ण आचरण करता है और कठिनाईयों को अच्छे ढंग से सहन कर सकता है। प्यार और स्नेह के अभाव में बच्चे की दुनिया बेरंग और सूनी हो जाती है। इस प्रकार का बच्चा परिजनों और दूसरे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए दुर्व्यवहार करता है और उग्र हो जाता है। यहां यह बिंदु ध्यान योग्य है कि अगर बचपन में मां-बाप का प्यार नहीं मिला है तो जीवन भर कोई भी चीज़ उसकी क्षतिपूर्ती नहीं कर सकती।

जिस बच्चे को प्यार मिलता है, तो उसे इस बात का आभास होता है कि वह प्यार करने योग्य है, इससे उसमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। मां-बाप का प्यार बच्चों को दयालु बनाता है। अगर बच्चे को प्यार नहीं मिलेगा तो उसका दिल कठोर हो जाएगा और उसमें दूसरों के प्रति सकारात्मक सोच उत्पन्न नहीं होगी। प्यार और स्नेह से जीवन के प्रति बच्चे में सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है और मां-बाप के प्रति उसमें अधिक ज़िम्मेदारी का एहसास पैदा होता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिकांश मां-बाप अपने बच्चों से बेपनाह प्यार करते हैं। हालांकि कुछ लोग यह सोचते हैं कि यह बात बच्चे अच्छी तरह जानते हैं कि उनके मां-बाप उन्हें काफ़ी प्यार देते हैं, इसलिए इस संबंध में बच्चों को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। इस प्रकार की सोच रखने वाले मां-बाप इस महत्वपूर्ण बिंदु से अनभिज्ञ हैं कि बच्चों को मां-बाप के प्यार और मोहब्बत के प्रति लगातार आश्वस्त करने की ज़रूरत है। मां-बाप का प्यार उनकी बातों और व्यवहार से ज़ाहिर होना उतना ही ज़रूरी है, जितना ख़ुद प्यार करना। बच्चे इतने समझदार नहीं होते हैं कि वे यह समझ सकें कि मां-बाप द्वारा बुरा भला कहने और सज़ा दिए जाने में भी प्यार और ममता छुपी होती है। वे मां-बाप के इस प्रकार के कार्यों को प्यार की कमी के रूप में देखते हैं। अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहता है तो मां-बाप और बच्चों के बीच न दिखने वाली खाई दिन प्रतिदिन चौड़ी होती चली जाती है।

बच्चों से प्यार और स्नेह का इज़हार करना उनके व्यक्तित्व को आकार देने में दो प्रकार से प्रभावी हो सकता है। पहला यह कि उनके अंदर मौजूद योग्यताओं और प्रतिभाओं का प्रकट होना काफ़ी हद तक उन्हें प्यार और स्नेह प्राप्त होने पर निर्भर करता है। कुछ समय पूर्व की ही बात है, जब बच्चों के पालन-पोषण में मोहब्बत और स्नेह की भूमिका को पूर्ण रूप से नज़र अंदाज़ कर दिया गया था और अधिकांश परिवार पालन-पोषण और बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए उन्हें शारीरिक सज़ा दिए जाने और उनके ख़िलाफ़ हिंसापूर्ण व्यवहार को ही बेहतरीन विकल्प समझते थे। लोग ऐसे मां-बाप और शिक्षक को अच्छा समझते थे कि जिससे बच्चे अधिक डरते हों।

हालांकि अब इस विषय को इससे बिल्कुल विपरीत दृष्टि से देखा जा रहा है। बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षी-दीक्षा के विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों की प्रतिभाओं के प्रकट होने और उनकी योग्यताओं के निखरने में जो भूमिका प्रेम और स्नेह अदा कर सकते हैं वह कोई चीज़ अदा नहीं कर सकती। अब सफ़ल मां-बाप या शिक्षक उन लोगों को कहा जाता है कि जो अपने बच्चों और छात्रों से प्रेम एवं स्नेह के आधार पर दोस्ताना और घनिष्ठ संबंधों की स्थापना में सफल रहते हैं। दूसरे यह कि प्यार और स्नेह से बच्चों में जीवन और दूसरे लोगों के प्रति सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है, जो न केवल उनके अपने जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि एक आदर्श समाज के निर्माण के लिए बहुत अहम है।

दूसरी ओर आज के आधुनिक दौर में टेक्नॉलॉजी की प्रगति और उसके बेलगाम इस्तेमाल के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के परिणाम स्वरूप लोग अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए फिर से धार्मिक मूल्यों की ओर आशा की दृष्टि से देख रहे हैं। यहां तक कि पश्चिमी जगत में भी लोगों ने इस बात को समझ लिया है कि कम्पयूटर गेम्स, मनोरंजन करने वाली वेब साइटें, सोशल मीडिया पर की जाने वाली गतिविधियां, टीवी और सिनेमा जैसी चीज़ें उनके बच्चों की मानसिक एवं आत्मिक ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकतीं और परिवार की नींव सही एवं धार्मिक परवरिश के बिना मज़बूत नहीं हो सकती।