May २९, २०१६ १६:१९ Asia/Kolkata

ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद तकफ़ीरी विचारधारा इस्लामी समाज में फैली।

ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद तकफ़ीरी विचारधारा इस्लामी समाज में फैली। कुछ अरब मुसलमान देशों के शासक कि जिनके यहां क़बायली प्रशासनिक तंत्र था, ईरान की इस्लामी क्रान्ति से दुश्मनी पर उतर आए जिसे वे अपने लिए ख़तरा समझ रहे थे। हालांकि ईरान की इस्लामी क्रान्ति पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं के आधार पर न्याय व स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाले मूल्यों पर आधारित है।  

इस्लामी गणतंत्र ईरान सभी मुसलमान देशों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए ज़ायोनीवाद के रूप में मौजूद असली दुश्मन के मुक़ाबले में इस्लामी देशों के बीच एकता चाहता था किन्तु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि ज़्यादातर मुसलमान अरब देशों के शासकों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के बढ़े हुए हाथ को ठुकरा दिया और इस्लामी क्रान्ति के दुश्मन से हाथ मिलाकर इस्लामी गणतंत्र को नुक़सान पहुंचाने पर उतर आए। ईरान के ख़िलाफ़ यह दुश्मनी विभिन्न रूप में मौजूद है। जैसा कि कुछ मुसलमान देशों में ईरानोफ़ोबिया और शियाफ़ोबिया को इस दुश्मनी का आधार बनाया गया है। ईरानोफ़ोबिया और शीयाफ़ोबिया को फैलाने में आले सऊद सबसे आगे आगे है और इस काम के लिए वह सऊदी अरब की जनता के तेल के स्रोत को बेचने से प्राप्त डॉलर को ख़र्च करता है। आले सऊद शासकों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ गठजोड़ बनाने के लिए विभिन्न रूप में बहुत पैसे ख़र्च किए। उन्होंने मुसलमान समाजों में शीयों को नास्तिक और शीया मत को इस्लाम से बाहर बताया। वास्तव में तकफ़ीरी व आतंकवादी विचारधारा की जड़ सऊदी अरब में फैली वहाबी विचारधारा से मिली हुयी है। ऐसी विचारधारा जो आज न सिर्फ़ इस्लाम के विभिन्न मतों के बीच फूट का कारण है बल्कि उसने चरमपंथ व हिंसा का समर्थन करके विश्व शांति को ख़तरे में डाल दिया है।

बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि पश्चिमी सरकारें इस्लामी गणतंत्र ईरान से दुश्मनी के कारण, सऊदी अरब द्वारा समर्थित तकफ़ीरी विचारधारा से उपजे आतंकवाद को अच्छे और बुरे दो भाग में बांट कर उदासीन बनी बैठी हैं।

सऊदी अरब की ओर से शीयाफ़ोबिया और शीयों के ख़िलाफ़ फैलायी जा रही नफ़रत सिर्फ़ मध्यपूर्व और अफ़्रीक़ा तक सीमित नहीं है बल्कि पूर्वी एशिया के मुसलमान देश भी शीयों के ख़िलाफ़ वहाबी विचारधारा के फलने फूलने का मंच बन गए हैं। इन देशों में बहुत से राजनेता, संगठन और धर्मगुरु शीयाफ़ोबिया का अपने देश में समर्थन कर रहे हैं।

पिछले कुछ महीने कि जिसमें ईरान-सऊदी अरब के बीच कूटनैतिक संबंध बहुत तनावपूर्ण रहे, आले सऊद शासन के अधिकारियों ने पूर्वी एशिया के मुसलमान देशों सहित विभिन्न मुसलमान देशों का दौरा करके इन देशों के ईरान के साथ राजनैतिक व सांस्कृतिक संबंध को ख़राब करने की कोशिश की। इस काम के लिए आले सऊद शासन ने इन देशों के नेताओं व अधिकारियों को दसियों लाख डॉलर मूल्य के उपहार दिए कि जिसके बारे में कुछ रिपोर्टें मीडिया में भी आयीं।

 

दूसरों को नास्तिक कहने वाली वहाबी विचारधारा, मुसलमान देशों में शीया फ़ोबिया और शीयों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम कर रही है।

पश्चिमी देश वहाबियों के रूढ़ीवादी व चरमपंथी विचारों का प्रचार करके जनमत की नज़र में इस्लाम को हिंसा व चरमपंथ का समर्थक दर्शाने में लगे हुए हैं। इस संदर्भ में वहाबी शीया फ़ोबिया के ज़रिए पश्चिम की मदद कर रहे हैं। शीया मत पवित्र क़ुरआन की न्याय व शांति प्रेमी शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के आचरण का प्रचार करता है। पश्चिम में इस्लाम के दुश्मन यह नहीं चाहते कि पश्चिमी जगत की जनता तक उस शुद्ध इस्लाम का संदेश पहुंचे जिसे पैग़म्बरे इस्लाम लाए थे।

एक ओर वहाबी विचारधारा तकफ़ीरी व आतंकवादी गुटों का समर्थन करने के साथ साथ हिंसा व चरमपंथ के प्रचार के ज़रिए पश्चिम में इस्लाम के दुश्मनों को यह मौक़ा दे रहे हैं कि वे इस्लाम को हिंसा व चरमपंथ का समर्थक दर्शाएं। दूसरी ओर वहाबी, मुसलमान देशों में शीयाफ़ोबिया के ज़रिए शांति, न्याय व एकेश्वरवाद पर आधारित इस्लाम के संदेश को जनता तक पहुंचने से रोक रहे हैं।

ज़्यादातर मुसलमान देशों में शीया अल्पसंख्यक हैं और इनमें से ज़्यादातर देशों में उन्हें नाना प्रकार की रुकावटों व सीमित्ताओं का सामना है। जिस प्रकार की सीमित्ताएं स्वतंत्रता का राग अलापने वाली पश्चिमी सरकारों ने मुसलमानों के लिए खड़ी की हैं उससे ज़्यादा कठोर सीमित्ताएं मलेशिया और इंडोनेशिया ने शीयों के लिए खड़ी की हैं। इंडोनेशिया और मलेशिया में शीयों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है मानो वे मुसलमान न हों।

 लगभग तीन साल पहले मलेशिया में पाहांग राज्य में इस्लामी क़ानून परामर्श कमेटी ने शीया मत का अनुसरण और उसके प्रचार पर रोक लगा दी। पाहांग राज्य की इस्लामी व मालायी परंपरा की संरक्षक परिषद ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए इस राज्य में शीया मत के विस्तार को रोकने के लिए अपनी गतिविधियां शुरु कीं। खेद के साथ कहन पड़ रहा है कि दुनिया में मुसमलानों के आबादी की दृष्टि से सबसे बड़े देश इंडोनेशिया में शीया विरोधी विचार बहुत ज़्यादा फैल गए हैं और इस देश में शीयों को बहुत ज़्यादा सीमित्ताओं व ख़तरों का सामना है। इंडोनेशिया में इस तरह की घटनाएं भी हुयीं कि शीयों के घर जलाए गए और शीयों का जनसंहार हुआ।

पूर्वी एशिया में वहाबी विचारधारा के प्रचारक बारंबार यह दुष्प्रचार करते हैं कि शीयों ने पवित्र क़ुरआन में फेर-बदल किया है। इसी प्रकार यह दुष्प्रचार कि शीयों की पवित्र क़ुरआन पर आस्था नहीं है। ये दोनों ही आरोप शीयों की आस्था से मेल नहीं रखते। वहाबी धर्मगुरु जानबूझ कर द्वेष के कारण शीयों पर इस तरह के निराधारा आरोप लगाते हैं। कुछ समाजों में जिन्हें शीयों की आस्था के बारे में बहुत कम ज्ञान है, इस दुष्प्रचार के फैलने में आले सऊद शासन की ओर से ख़र्च किए जा रहे डॉलर का भी रोल रहा है जिसे वे तेल बेच कर हासिल करता है।

हालांकि इंटरनेट पर सिर्फ़ सर्च द्वारा शीयों की धार्मिक व इस्लामी वेबसाइटों तक पहुंच कर उनके बारे में सभी जानकारी हासिल की जा सकती है। शीयों का धर्मशास्त्र पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के कथन, बुद्धि और इजमा पर आधारित है। इजमा का अर्थ होता है किसी विशेष विषय पर धर्मगुरुओं की सर्वसम्मति। वास्तव में पवित्र क़ुरआन इस्लामी धर्मशास्त्र का मुख्य व पहला स्रोत है। तीन दूसरे स्रोत भी पवित्र क़ुरआन की आयत और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के कथन पर आधारित हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन की एक मशहूर आयत में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों का अनुसरण करने का आदेश दिया गया है। वह आयत यूं है, अतीउल्लाह व अतीउर रसूल, व उलिल अम्रे मिनकुम। इस आयत में ईश्वर ने जिस तरह अपने अनुसरण का आदेश दिया है उसकी तरह पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के अनुसरण का आदेश दिया है।

 पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ताओं ने जिसमें सुन्नी मत के बड़े व्याख्याकर्ता शामिल हैं, इस बात पर एकमत हैं कि इस आयत में उलिल अम्र से अभिप्राय पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने विभूतियों से भरे अपने जीवन के अंतिम दिनों में लोगों को मस्जिद में बुलाया और बहुत ही अहम बात लोगों से कही। यह बात इस्लामी इतिहास में हदीसे सक़लैन के नाम से प्रसिद्ध है। शीया और सुन्नी दोनों ही मत के धर्मगुरु इस कथन पर सर्वसम्मत हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, इस बात में शक नहीं कि मैं तुम्हारे बीच दो चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं अगर उससे जुड़े रहे तो मेरे बाद कभी पथभ्रष्ट नहीं होगे। एक ईश्वर की किताब जो आसमान से ज़मीन तक जुड़ी रस्सी है और दूसरे मेरे परिजन। ये दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे यहां तक कि कौसर के हौज़ पर मुझसे मिलेंगे। इसलिए ध्यान रहे कि मेरे बाद तुम लोग इन दोनों चीज़ों के साथ कैसा व्यवहार करते हो।

पैग़म्बरे इस्लाम का यह कथन, उनके पवित्र परिजनों के हर बुरायी से पाक होने पर तर्क है। क्योंकि इस कथन में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन को उस किताब के साथ रखा है जिसमें किसी प्रकार की गुमराही की संभावना नहीं है और पवित्र क़ुरआन के साथ पवित्र परिजनों का दामन थामे रखने को पथभ्रष्टता से बचने का साधन क़रार दिया गया है। तो इन दोनों में से किसी एक को छोड़ना पथभ्रष्टता का कारण बनेगा।

 

विभिन्न मुसलमान देशों में शीयों पर ना ना प्रकार की पाबंदियों का कारण उनकी आस्था की जानकारी न होने के कारण है। इस्लामी मतों को एक दूसरे के निकट लाने वाली समितियों की अधिक सक्रियता और संयुक्त बैठकों में सभी इस्लामी मतों के धर्मगुरुओं की उपस्थिति से इस्लामी शिक्षाओं की ग़लत व्याख्या पर आधारित वहाबी विचारधारा के ज़रिए मुसलमानों के बीच फूट डालने के इस्लाम दुश्मन के षड्यंत्र को नाकाम बनाया जा सकता है। शीया सुन्नी मतों के बीच मतभेद नई बात नहीं है किन्तु इन मतभेदों पर हमेशा धार्मिक स्कूलों में चर्चा होती थी। साथ ही इन शास्त्रार्थों में इन दोनों में से कोई भी मत किसी दूसरे को नास्तिक नहीं कहता था बल्कि दोनों मतों के धर्मगरुओं के बीच सौहार्द बना रहता था। विभिन्न मतों के मुसलमान पूरे इतिहास में एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण जीवन बिताते आए हैं। इस वक़्त में अधिकांश मुसलमान देशों में विभिन्न इस्लामी मतों के अनुयायी एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं।

 ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि वहाबियों की ओर से शीयों के ख़िलाफ़ व्यापक दुष्प्रचार के बावजूद विभिन्न मुसलमान देशों में शीया व पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन के मत की ओर बड़ी संख्या में लोग उन्मुख हुए हैं।


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