ईश्वरीय वाणी-८४
सूरए तहरीम मदीना में नाज़िल हुआ और इसमें कुल 12 आयतें हैं।
सूरए तहरीम की आरंभिक आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी पत्नियों के बीच के आपसी विषयों का उल्लेख है। इसी प्रकार इस सूरे में मोमिन बंदों पर ध्यान देने, परिवार के शिक्षा व प्रशिक्षा के मामलों का ध्यान रखने, पापों से प्रायश्चित, नास्तिकों और मुनाफ़िक़ों के ख़िलाफ़ जेहाद और ईश्वरीय दूत की दो पत्नियों का उल्लेख है।
सूरए तहरीम की आरंभिक आयत यह बताती है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने एक हलाल चीज़ को अपने ऊपर हराम कर लिया और उन्होंने एसा अपनी कुछ पत्नियों की आपत्ति के कारण किया था। सूरए तहरीम की इस आयत की पृष्ठभूमि के बारे में बताया गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम की कुछ पत्नियां केवल अपनी बात से नहीं बल्कि राज़दारी का भी ध्यान नहीं रखती थीं जो वफ़ादारी पत्नी होने की महत्वपूर्ण निशानी है। पैग़म्बरे इस्लाम की दो पत्नियों ने एक एसी बात जिसे पैग़म्बरे इस्लाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, आम कर दी और अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम बनाए। इस बात से पैग़म्बरे इस्लाम को दिली तकलीफ़ पहुंची।
इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप पैग़म्बरे इस्लाम ने कुछ चीज़ें अपने ऊपर हराम कर लीं। सूरए तहरीम की आरंभिक आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम का समर्थन करते हुए उन दोनों पत्नियों की आलोचना की गई है और उन्हें चेतावनी दी गई है कि केवल पैग़म्बर की पत्नी हो जाना ही स्वर्ग में प्रवेश तथा नरक से बचने के लिए काफ़ी नहीं है। यही वजह है कि ईश्वरीय पैगम्बरों हज़रत नूह और हज़रत लूत की पत्नियों ने अपने पतियों से विश्वासघात किया और नतीजे में नर्क की आग में फंस गईं।
पैग़म्बरे इस्लाम पूरी सृष्टि के लिए एक महान हस्ती हैं और उनका अस्तित्व पूरी मानव जाति के लिए विभितियों का स्रो है। अतः यदि उनके घर के भीतर उनके विरुद्ध साज़िश हो तो चाहे वह छोटी ही क्यों न हो उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
सूरए तहरीम की पहली आयत में ईश्वर ने अपने पैग़म्बर की गरिमा की रक्षा के लिए कहा हैः हे पैग़म्बर तुम उस चीज़ को जिसे ईश्वर ने तुम्हारे लिए हलाल क़रार दिया है कि अपनी पत्नियों की मर्ज़ी के अनुसार अपने ऊपर हराम करते हो।
इस सूरे में आगे चलकर कहा गया है कि किसी को भी ईश्वर द्वारा हलाल घोषित की गई चीज़ को हराम और हराम घोषित की गई चीज़ को हलाल कहने का अधिकार नहीं है। क्योंकि क़ानून बनाने का अधिकार केवल ईश्वर को है। सूरए तहरीम की आयत नंबर पांच पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नियों को चेतावनी देती है कि वह इस धारणा में न रहें कि पैग़म्बरे कदापि उन्हें तलाक़ नहीं दे सकते और भी न सोचें कि यदि पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें तलाक़ दे दिया तो इससे अच्छी पत्नियों उनका स्थान नहीं लेंगी। इस आयत में अच्छी पत्नियों की छह विशेषताएं गिनवाई गई हैं।
मुस्लिम और मोमिन होना, विनम्र होना, अपनी ग़लती की क्षमायाचना करने वाली होना, इबादत करने वाली होना, पलायन करने वाली होना। यह विशेषताएं सभी मुसलमानों के लिए अच्छी पत्नी का आधार और कसौटी बन सकती हैं।
आयत नंबर 6 परिवार के महत्व के बारे में है। इसमें सभी इंसानों का ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट कराया गया है कि अपनी पीढ़ी और परिवार के संबंध में अपने दायित्वों का आभास करना चाहिए और उनके वैचारिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक और सामाजिक विकास के संबंध में किसी भी प्रकार की कमी नहीं करनी चाहिए। आयत कहती है कि हे वह लोगो जो ईमान लाए हैं स्वयं को तथा अपने परिवार को उस अग्नि से बचाओ जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं।
अच्छे कामों का आदेश देना और बुराई से रोकना आपस में एक दूसरे के प्रति सभी मुसलमानों की दायित्व है। लेकिन इस आयत से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि अपनी पत्नी और बच्चों के संबंध में इंसान पर बहुत अधिक दायित् होते हैं और उसकी ज़िम्मेदारी है कि जहां तक हो सके उनके प्रशिक्षा और शिक्षा का प्रबंध करे, उन्हें गुनाहों से रोके और उन्हें अच्छे कर्मों का निमंत्रण दे और केवल उनके शारीरिक आहार की चिंता में न रहे।
हम जानते हैं कि समाज छोटी छोटी इकाइयों का संग्रह का नाम है और यह छोटी इकाई परिवार है। अतः जब इन छोटी इकाइयों में सुधार के काम होंगे तो पूरा समाज स्वस्थ हो जाएगा। यह ज़िम्मेदारी सबसे पहले चरण में मां बाप की होती है। विशेष रूप से हमारे इस दौर में जब बड़ी मज़बूत और ख़तरनाक लहरें उठ रही हैं और हर इंसान का कर्तव्य है कि गुनाहों को रेखांकित करके उनसे दूर रहने के लिए ख़ुद को इस्लामी शिष्टाचार औज्ञ मूल्यों से सुसज्जित करे। आत्म निर्माण के साथ ही उसे चाहिए कि अपने घर, परिवार और रिश्तेदारों के बारे मे सोचे उन्हें भी मानवीय नैतिक मूल्यों से सुसज्जित करके बुराइयों और भ्रष्टाचार से बचाए।
रवायतों में आया है कि जब यह आयत नाज़िल हुई तो पैग़म्बरे इस्लाम के एक सहाबी ने सवाल किया कि हम अपने परिवार को नर्क की आग से कैसे सुरक्षित रख सकते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने जवाब दिया कि उन्हें अच्छे कर्मों का आदेश दो और बुराइयों से रोको। अगर उन्होंने तुम्हारी बात मान ली तो यह समझो कि तुमने उन्हें नर्क से बचा लिया है और यदि उन्होंने तुम्हारी बात न मानी तब भी तुम ने अपना दायित्व पूरा कर दिया है।
तौबा और प्रयश्चित, पापों को छोड़कर ईश्वर की सेवा में शरण लेना एसा विषय है जिसका उल्लेख सूरए तहरीम की आयत संख्या 8 में किया गया है और इसे मुक्ति का पहला क़दम माना गया है। असली और विशुद्ध तौबा वह है जो ईश्वर के लिए हो और ईश्वर को ख़ुश करना उसका ध्येय हो। यह आयत वास्तव में नर्क की आग से मुक्ति का रास्ता दिखाती है और कहती है कि हे ईमान लाने वालो ईश्वर की बारगाह में तौबा करो, एसी तौबा जो विशुद्ध हो।
पैग़म्बरे इस्लाम की एक हदीस में बताया गया है कि सहाबी मआज़ इब्ने बल ने तौबए नसूह या विशुद्ध तौबा का अर्थ पूछा तो जवाब में पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि इसका अर्थ यह है कि इंसान ने जब गुनाह से तौबा किया तो फिर हरगिज़ उस गुनाह की ओर न लौटे जैसे छाती से निकला हुआ दूध पुनः उसके भीतर वापस नहीं जाता। यह कोमलता भरा उदाहरण यह बताता है कि विशुद्ध तौबा से इंसान के मन मस्तिष्क में क्रान्ति आ जाती है और गुनाह की ओर जाने का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है। तौबा से गुनाह माफ़ हो जाते हैं और इंसान की ईमान की शक्ति बढ़ती है तथा ईमान का प्रकाश क़यामत के दिन मोमिन बंदों का मार्गदर्शन करेगा।
सूरए तहरीम की अंतिम तीन आयतों में मोमिन और काफिर महिलाओं के उदाहरण दिए गए हैं। यह आयतें मुस्लिम महिलाओं और विशेष रूप से पैग़मबरे इस्लाम की पत्नियों को चेतावनी देती हैं कि वह स्वयं को मोमिनों के समूह के अनुसार ढालें गुमराह और विश्वासघाती महिलाओं के समूह के अनुरूप नहीं। पहले सदाचारिता से दूर दो महिलाओं का अंजाम बयान किया गया है जिनकी परवरिश ईश्वरीय दूत के घर में हुई थी लेकिन उन्होंने इन पैग़मबरो के दुशमनो से सांठ गांठ कर ली तथा घर के राज़ दुशमनो को बता दिए। आयत नंबर 10 में कहा गया है कि जो लोग काफ़िर हो गए हैं ईश्वर उनके लिए नूह की पत्नी और लूत की पत्नी का उदाहरण देता है। यह दोनों हमारे दो नेक बंदों की सरपरस्ती में थीं लेकिन दोनों महिलाओं ने उनके साथ विश्वासघात किया अतः इन दोनों पैग़मबरों से उनका संबंध उन्हें कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सका उनसे कह गया कि तुम भी दूसरे लोगों के साथ नर्क की आग में प्रवेश करो।
इसके बाद दई मोमिन महिलाओं की मिसाल दी गई है जिनमें पहली मुज़ाहिम की पुत्री हज़रत आसिया हैं। वह फ़िरऔन की पत्नी थीं जो कुफ्र में इतना आगे निकल गया था कि उसने एलान कर दिया था कि मैं तुम लोगों का बड़ा पालनहार हूं। जब हज़रत आसिया ने जादूगरों के सामने हज़रत मूसा का चमत्कार देखा तो उनका दिल गहराई तक ईमान के प्रकाश से जगमगा उठा और वह उसी समय हज़रत मूसा पर ईमान लाईं। हालांकि वह फ़िरऔन की पत्नी थीं और दरबार में उन्हें हर प्रकार का आराम और हर सुविधा प्राप्त थी वह जो चाहती थीं हासिल कर लेती थीं लेकिन उन्होंने इन सामयिक सुख सुविधाओं से मुंह फेर लिया ईश्वर के स्मरण की लज़्ज़त की ओर उन्मुख हुईं। आसिया अपना ईमान छुपाए हुए थीं।
जब फ़िरऔन को उनके ईमान का भनक लगी तो उसने उन्हें ईश्वर की उपासना से रोक दिया लेकिन हज़रत आसिया ने फ़िरऔन की बात नहीं मानी। फ़िरऔन ने यह देखकर आदेश दिया कि उनके पांवों बांध दिए जाएं और उन्हें धूप मे छोड़ दिया जाए तथा उनके सीने पर पत्थर बा बड़ा टुकड़ा रख दिया जाए। इस महान महिला ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी ज़बान से जो वाक्य अदा किए वह इस दुआ के वाक्य थे। हे पालनहार मेरे लिए स्वर्ग में अपनी बारगाह में शरण स्थल बना मुझे फिरऔन और उसके कर्मों से मुक्ति दे और मुझे इस अत्याचारी समूह से नजात दे।
ईश्वर ने इस मोमिन महिला की दुआ सुन ली और उन्हें स्वर्ग मे स्थान दिया और फिरऔन जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की ताक़त आसिया के ईमान को दाग़दार नहीं कर सकी बल्कि आसिया जन्नत में सर्वोच्च महिलाओं के समूह का भाग बन गईं।
एक रवायत में पैग़म्बरे इस्लमा कहते हैं कि स्वर्ग में चार महिलाएं सबसे महान हैं। खदीजा, फ़ातेमा, मरियम और आसिया।
इमरान की पुत्री मरियम दूसरी महान हस्ती हैं जिन्हें सूरए तहरीम में आदर्श मोमिन महिला के रूप में पेश किया गया है। सूरे की बारहवीं आयत में कहा गया है कि और ईश्वर ने मरियम बिंते इमरान की भी मिसाल दी है जिन्होंने अपना दामन साफ़ रखा और हमने अपनी रूप उनमें डाल दी। वह ईश्वर की आज्ञा से पति के बग़ैर महान पैग़म्बर की मां बनी।
इसके बाद कहा गया है कि उन्होंने ईश्वर तथा उसकी पुस्तकों की पुष्टि की और ईश्वर के अनुसरणर्ताओं में थीं।
हज़रत मरियाम ईमान के महान दर्जे पर थीं कुरआन ने उनकी पवित्रता की प्रशांस की है और क़ुरआन की विभिनन् आयतों में इस महान महिला का उल्लेख किया गया है। एक सूरे के नाम भी उनके नाम पर रखा गया है। क़ुरआन ने अपनी इन आयतों में उन यहदियों का उत्तर दिया है जो हज़रत मरियम पर लांछन लगाने की कोशिश करते थे।