ईश्वरीय वाणी-८६
सूरे क़लम पवित्र कुरआन का 68वां सूरा है और इसमें 52 आयतें हैं।
सूरे क़लम पवित्र कुरआन का 68वां सूरा है और इसमें 52 आयतें हैं। इस सूरे में हर चीज़ से अधिक पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी और शत्रुओं से मुक़ाबले के विषय पर बल दिया गया है। इस सूरे के व्यापक विषय इस प्रकार हैं। क़लम और लिखावट का महत्व, पैग़म्बरे इस्लाम की विशेष विशेषताओं का उल्लेख, काफिरों की निशानियां और उनकी निंदनीय आदतें, बाग़ के स्वामियों की कहानी, प्रलय के बारे में विभिन्न तथ्य, काफिरों के दंड, अनेकेश्वरवादियों को चेतावनी, पैग़म्बरे इस्लाम को धैर्य करने का आदेश, पवित्र कुरआन की महानता और दुश्मनों के षडयंत्र।
इस सूरे के नाम को इस सूरे की पहली आयत से लिया गया है जिसमें महान ईश्वर क़लम की शपथ ख़ाता है। कुछ लोगों ने इस सूरे का नाम नून बयान किया है जबकि कुछ अन्य ने नून व अलक़लम जैसे इस सूरे के दूसरे नाम भी बयान किये हैं।
क़लम और उस चीज़ की शपथ जिसे वे लिखते हैं। क़लम, पवित्र क़ुरआन का मात्र वह सूरा है जो अरबी के नून अक्षर से शुरू होता है और उसके बाद जीवन के दो महत्वपूर्ण विषयों की शपथ से आरंभ होता है। महान ईश्वर ने इस सूरे के आरंभ में जिस वस्तु की शपथ खाई है विदित में वह एक छोटा विषय प्रतीत होता है। प्राचीन समय में नरकुल के एक टुकड़े और उस जैसी चीज़ तथा एक काले रंग के पदार्थ को मिलाकर क़लम कहा जाता था किन्तु वास्तव में यह वही चीज़ है जो समस्त मानव सभ्यताओं, ज्ञानों, सोचों व विचारों के जागरुक होने, धर्मों के गठन और इंसान के मार्गदर्शन एवं उसकी जानकारी का स्रोत है यहां तक कि इतिहास को दो भागों में बांटा गया है एक इतिहास का काल और दूसरे इतिहास से पहले का ।
इंसान के इतिहास का दौर वहां से आरंभ होता है जब इंसान ने लिखना सीखा और अपने जीवन की घटनाओं को लिखने लगा। इस शपथ का महत्व उस समय स्पष्ट होता है जब हम उस दिन पर ध्यान दें जिस दिन पवित्र की ये आयतें नाज़िल हुईं। जिस दिन यह आयतें नाज़िल हुईं वहां लिखने-पढ़ने वाला कोई मौजूद नहीं था और जो लोग लिखना-पढ़ना जानते थे उनकी संख्या पूरे मक्के में 20 से अधिक नहीं थी। ऐसे वातावरण में क़लम की शपथ खाना विशेष महत्व रखता है।
इसके बाद की आयतें इस बात की सूचक हैं कि शपथ खाने का कारण उन अनेकेश्वरवादियों से पैग़म्बरे इस्लाम की रक्षा व बचाव था जो उन्हें पागल कहते थे। पवित्र क़ुरआन का सूरये क़लम ऐसी स्थिति में नाज़िल हुआ जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी की घोषणा सार्वजनिक कर दी थी और सब लोग उनकी पैग़म्बरी से अवगत हो गये थे। इस आधार पर समस्त अनेकेश्वरवादियों ने ईश्वरीय निमंत्रण के दमन का पूरा प्रयास किया और पैग़म्बरे इस्लाम से सौदेबाज़ी की चेष्टा की। काफिरों व अनेकेश्वरवादियों ने पैग़म्बरे इस्लाम पर जो आरोप लगाये थे उनमें पागल का आरोप सबसे स्पष्ट था। महान ईश्वर इस शपथ में बल देकर कहता है हे पैग़म्बर आप न केवल पागल नहीं हैं बल्कि व्यवहार व शिष्टाचार के चरम शिखर पर हैं आप कृपालु और प्रेम करने वाले हैं और धैर्य एवं वर्णन न किये जाने वाले मनोबल के स्वामी हैं।
अगर आप लोगों को ईश्वर की ओर बुला रहे हैं तो स्वयं सबसे अधिक उपासना करते और अपने दायित्वों को अंजाम देते हैं और अगर लोगों को बुरे कार्यों से मना करते हैं तो सबसे पहले स्वयं बुरे कार्यों से दूरी करते हैं। आपके विरोधी आपको कष्ट पहुंचाते हैं परंतु आप उन्हें नसीहत करते हैं आपके विरोधी आपको बुरा- भला कहते हैं परंतु आप उनके लिए दुआ करते हैं वे आप पर पत्थर फेंकते हैं, कूड़ा फेंकते हैं किन्तु आप उनके मार्गदर्शन के लिए ईश्वर की बारगाह में दुआ करते हैं। हदीस में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” मैं नैतिकता व शिष्टाचार को उसके चरम बिन्दु पर पहुंचाने के लिए आया हूं।“
सूरे क़लम की पांचवीं और 6ठी आयत में महान ईश्वर कहता है शीघ्र ही तुम देखोगे और वे भी देखेंगे कि तुममें से पागल कौन है।
पैग़म्बरे इस्लाम का सही व सूक्ष्म दृष्टिकोण और उनके दृष्टिकोण व समझदारी की छाया में इस्लाम का तेज़ी से बढ़ना इस बात का सूचक है कि वह बुद्धि और होशियारी के स्रोत हैं और पागल वे लोग थे जिन्होंने सच्चाई और पथप्रदर्शन के सूरज का विरोध किया।
पवित्र क़ुरआन का सूरे क़लम सत्य का इंकार करने वालों और पैग़म्बरे इस्लाम के विरोधियों का इंकार करने वालों की कुछ अप्रिय विशेषताओं को बयान करता है और वह पैग़म्बरे इस्लाम को उनके मार्ग पर चलने से रोकता है। सूरे क़लम की 10 से 13 तक की आयतों में महान ईश्वर कहता है” आप हर उस व्यक्ति की बात न मानियेगा जो बहुत अधिक क़समें खाता है, जो दूसरों में बहुत अधिक अवगुण खोजता रहता है, चुग़ली करता- फिरता है भलाई से रोकता है सीमा का उल्लंघन करने वाला व पापी है। इसके अलावा दूसरों का हक़ मारने वाला, क्रूर और अधर्मी भी है।
इस प्रकार पवित्र कुरआन स्पष्ट करता है कि इस्लाम और क़ुरआन तथा पैग़म्बरे इस्लाम के विरोधी झूठ बोलने वाले, तुच्छ, दूसरों में दोष ढूंढने वाले, चुग़लखोर, उद्दंडी और पापी होते हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस प्रकार के तुच्छ व्यक्तियों द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम जैसी महान हस्ती के विरोध के अलावा किसी और चीज़ की अपेक्षा नहीं की जा सकती और इस प्रकार के व्यक्तियों से इस बात की अपेक्षा थी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम का विरोध करेगें। यह वही लोग थे जब उनके सामने पवित्र कुरआन की आयतें पढ़ी जाती थीं तो वे कहते थे कि यह अतीत के लोगों की काल्पनिक कथायें व बातें हैं।
पवित्र क़ुरआन के सूरे क़लम की 17 से 33 तक की आयतों में बाग़ के मालिकों की कहानी बयान की गयी है। इस कहानी में बड़ी सुन्दरता के साथ उन अत्याचारियों के अंजाम को बयान किया गया है जो दुनिया की धन- सम्पत्ति से सम्पन्न होने के कारण दूसरों को गिरी नज़र से देखते थे। पवित्र कुरआन इस कहानी को बयान करने के साथ चेतावनी देता है कि अगर इंसान दुनिया की धन -सम्पत्ति और भौतिक संसाधनों के कारण अहंकारी बन जाये और उसके अंदर एकाधिकार की भावना घर कर जाये और हर चीज़ को अपने लिए चाहे और दूसरों को वंचित कर दे तो उसका अंजाम बाग़ के मालिकों से बेहतर नहीं होगा। प्रसिद्ध कथन के अनुसार यह बाग़ यमन में था और उसका मालिक एक बूढ़ा मोमिन था। उसे जितनी ज़रूरत होती थी उसे वह ले लेता था और शेष ग़रीबों एवं आवश्यकता रखने वाले व्यक्तियों में बांट देता था परंतु जब उसका निधन हो गया तो उसके बेटे बाग़ के मालिक हो गये और उन्होंने कहा हम स्वयं ही इस बाग़ के उत्पाद के अधिक पात्र हैं।
उन सबने ग़रीबों व निर्धनों को न देने का फैसला किया। उनके इस फैसले का कारण कंजूसी और ईमान में कमज़ोरी थी। क्योंकि उन्हें इतनी आवश्यकता नहीं थी कि वे अपनी बाग़ के कुछ फलों को निर्धनों के लिए विशेष न करें। उनके इस निर्णय के बाद आसमानी बिजली गिरी और उसने उनके बाग़ को जलाकर राख के ढ़ेर में बदल दिया। अगले दिन सुबह बाग के मालिकों ने, जो बूढ़े मोमिन के बेटे थे, यह सोचकर एक दूसरे को धीरे से आवाज़ दी कि अब बाग़ के फल तोड़ने योग्य हो गये होंगे और उन्होंने एक दूसरे से कहा अपने बाग़ की ओर चलो अगर फल तोड़ना चाहते हो जबकि आपस में वे धीरे- धीरे कहते थे कि ध्यान रखना आज एक निर्धन व दरिद्र भी तुम्हारे पास न आने पाये। ऐसा प्रतीत होता है कि पिता के अच्छे कार्यो के कारण कुछ निर्धन प्रति वर्ष बाग़ों से फलों के तोड़े जाने की प्रतीक्षा में रहते थे ताकि कुछ फल उन्हें भी मिलेंगे।
अतः मोमिन बूढ़े के कंजूस बेटे चुपके से गये ताकि कोई समझ न पाये कि फल तोड़ने का समय आ गया है परंतु जब वे लोग बाग़ के पास पहुंचे तो देखा कि राख के ढ़ेर के अलावा कुछ और नहीं है तो उन लोगों ने कहा सच में हम गुमराह हैं बल्कि हम निर्धन व वंचित हैं हम निर्धनों व आवश्यकता रखने वालों को वंचित करना चाहते थे किन्तु अब हम भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे अधिक वंचित हो गये।
उन लोगों के बीच एक मोमिन व्यक्ति था जो उन लोगों को कंजूसी और लालच से मना करता था। उसने उन लोगों से कहा क्या मैं नहीं कहता था कि क्यों ईश्वर का गुणगान नहीं करते हो? उन लोगों ने अपनी निश्चेतना, आत्म मुग्धता और पाप को स्वीकार किया और कहा हमारा पालनहार हर प्रकार के अत्याचार से पवित्र है निश्चित रूप से हम अत्याचारी थे। हमने स्वयं अपने ऊपर और दूसरों पर अत्याचार किया। उसके बाद उन सबने एक दूसरे की ओर रुख करके उनकी भर्त्सना करना आरंभ कर दी और हर एक असली पाप की ज़िम्मेदारी दूसरे पर डालने लगा और उसकी कड़ी भर्त्सना करता था। बाग़ के मालिक जब अपने दुर्भाग्य की गहराई को समझ गये तो उन सबकी आवाज़ बुलंद हो गयी और सबने ऊंची आवाज़ में कहा धिक्कार हो हम पर कि हम अत्याचारी थे। पवित्र क़ुरआन की शैली यह है कि वह अच्छे और बुरे दोनों लोगों के जीवन को बयान करता है ताकि एक दूसरे की तुलना करके अच्छी तरह पहचाना जाये। इस आयत में भी सदाचारियों को मिलने वाला प्रतिदान और काफिरों को दिये जाने वाले दंड की बात की गयी है और सदाचारियों के मुकाबले में काफिरों एवं अनेकेश्वरवादियों के घाटे का एक और उदाहरण पेश किया गया है। महान ईश्वर सूरे क़लम की 43वीं और 44वीं आयत में कहता है (उस समय को याद करो) उनकी निगाहें झुकी होंगी अपमान उन पर छा रहा होगा उन्हें उस समय भी सजदा करने के लिए बुलाया जाता था जब वे भले- चंगे थे अतः तुम मुझे छोड़ दो और उसको जो इस वाणी को झुठलाता है।
हम ऐसे लोगों को क्रमशः विनाश की ओर ऐसे मार्गों से ले जायेंगे जिसे वे नहीं जानते।“ अपराधी लोगों को जब सज़ा सुनाई जाती है तो आम तौर पर वे अपने सिर नीचे झुका लेते हैं और उनके पूरे अस्तित्व से अपमान झलकता है। ईश्वरीय दरबार में भी जिन लोगों को दंड सुनाया जायेगा वे इस दुनिया में महान ईश्वर के मुकाबले में विनम्र नहीं थे और उन्होंने सज्दा नहीं किया और उनके अंदर अहं व उद्दंडता की भावना प्रलय तक उनके साथ जायेगी तो वे किस प्रकार सज्दा करेंगे?