ईश्वरीय वाणी-८७
पवित्र क़ुरआन में 114 सूरे हैं। इनमें से एक सूरा हाक़्क़ा है। सूरे हाक़्क़ा 69वां सूरा है जिसमें 52 आयते हैं।
पवित्र क़ुरआन में 114 सूरे हैं। इनमें से एक सूरा हाक़्क़ा है। सूरे हाक़्क़ा 69वां सूरा है जिसमें 52 आयते हैं।
सूरे हाक़्क़ा में जिन विषयों पर चर्चा की गई है वे इस प्रकार हैं। प्रलय और उसकी निशानियां, प्रलय आने से पहले की कुछ निशानियां, अतित की अनेकेश्वरवादी जातियां जैसे आद, समूद और लूत और उनका अंजाम, ईमान लाने वालों का सुपरिणाम, सच को झुठलाने वालों का नतीजा और पवित्र क़ुरआन एवं पैग़म्बरे इस्लाम का महत्व आदि।
सूरे हाक़्क़ा का आरंभ इस प्रकार से हो रहा है। वास्तव में घटित होने वाली घटना अर्थात क़यामत। और सचमुच होने वाली घटना क्या है? और तुमको क्या मालूम कि सचमुच घटने वाली घटना क्या है?
पवित्र क़ुरआन ने संसार की समाप्ति से पहले घटने वाली घटनाओं का चित्रण किया है। इससे ईश्वर का उद्देश्य यह है कि मनुष्य को इसका ध्यान रखना चाहिए कि इस संसार का अंत प्रलय से होगा जिसके बाद एक नया जीवन आरंभ होगा। निःसन्देह, प्रलय आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं घटेंगी। इन घटनाओं के परिणाम स्वरूप वर्तमान संसार नष्ट हो जाएगा और लोग पुनः जीवित किये जाएंगे जिसके बाद एक नए जीवन का आरंभ होगा।
सूरे हाक़्क़ा की आयतों में प्रलय को झुठलाने और ईश्वरीय दूतों की अवज्ञा के उल्लेख के साथ यह बताने का प्रयास किया गया है कि प्रलय जैसी अटल वास्तविकता को नकारने वाले घाटा उठाने वाले हैं। सूरे हाक़्क़ा का आरंभ इसी शब्द अर्थात हाक़्क़ा से हो रहा है। क़ुरआन के व्याख्याकारों ने कहा है कि यह प्रलय का ही एक नाम है। इस सूरे की आरंभिक तीन आयतों में बारंबार हाक़्क़ा शब्द का प्रयोग किया गया है जो प्रलय और उस दिन घटने वाली घटना के महत्व को दर्शाता है। यहां तक पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहा गया है कि तुम नहीं जानते कि वह कैसा दिन होगा?
वास्तविकता यह है कि क़यामत या प्रलय का समझना उन लोगों के लिए बहुत कठिन या असंभव लगता है जो बुरी तरह से सांसारिक मायामोह में फंस चुके हैं। यह ऐसे ही है जैसे मां की गर्भ में पलने वाला उस संसार से बिल्कुल भी अवगत नहीं है जहां पर वह आने वाला है।
बाद में सूरे हाक़्क़ा में उन जातियों का उल्लेख किया गया है जो प्रलय और उस दिन घटने वाली घटनाओं को झुठलाया करती थीं। पांचवी आयत में ईश्वर कहता है कि समूद क़ौम तो चिंघाड़ से नष्ट हो गई। प्राचीनकाल में एक जाति रहा करती थी जिसका नाम समूद था। यह लोग हेजाज़ और शाम के बीच पहाड़ी क्षेत्र में रहा करते थे। समूद जाति के बीच ईश्वर ने हज़रत सालेह पैग़म्बर को भेजा था।
समूद जाति के लोग उनपर ईमान नहीं लाए। उन्होंने कहा कि यदि तुम सच कहते हो कि ईश्वरीय प्रकोप आएगा तो तुम कहो और वह आ जाए। इसी बीच बहुत तेज़ बिजली चमकी और मात्र कुछ ही क्षणों में सबकुछ जलकर राख हो गया। इस प्रकार समूद जाति का अंत हुआ।
प्राचीन काल की जातियों में से एक जाति आद भी थी। यह लोग “अहक़ाफ” में रहा करते थे। अहक़ाफ़, सऊदी अरब या यमन का एक क्षेत्र है। आद जाति के लोग शारीरिक रूप से सशक्त होते थे। वे विकसित नगरों में रहते थे। उनके पास खेती की भूमियां और बाग़ थे। आद जाति के बीच हज़रत हूद पैग़म्बर रहा करते थे। आद जाति के लोग बहुत ही उदंडी हो गए थे। वे ईश्वरीय दूत हूद की बात को मानते ही नहीं थे।
अंततः ईश्वरीय प्रकोप से वे सब मारे गए। आद जाति वाले प्रचंड हवा के प्रकोप से मारे गए। उनकी बस्ती में एकदम से तेज़ हवा चलने लगी जिसकी गति लगातार बढ़ती गई। यह प्रचंड हवा सात दिन और सात रातों तक चलती रही। यह हवा तेज़ तो थी ही में बहुत ठंडी भी थी। आयत में कहा गया है कि यदि तुम वहां होते तो देखते कि उनके शरीर किस प्रकार खोखले तने की भांति बिखरे पड़े थे।
सूरे हाक़्क़ा की आठवीं आयत में इस प्रश्न के साथ कि क्या तुम उनमे से किसी को बचा हुआ पाते हो? यह याद दिलाया जा रहा है कि इस समय न तो आद जाति का कोई नामो निशान है और न ही उनके खण्हर या निशानियां हैं। बाद वाली आयत आद और समूद जाति की करनी का उल्लेख करते हुए एक अन्य जाति का उल्लेख करती है ताकि उनका जीवन बाद में आने वालों के लिए पाठ बन सके। आयत कहती है कि और फ़िरऔन तथा जो लोग उससे पहले थे और वह लोग जो उल्टी हुई बस्तियों के रहने वाले थे, सब पाप किया करते थे। फ़िनऔन और उससे पहले रहने वाले तानाशाह तथा उनका अनुसरण करने वाले लोग, सब ही ने ईश्वर का निमंत्रण ठुकराया और वे अनेकेश्वरवादी हो गए।
फ़िरऔन और उसके मानने वालों ने हज़रत मूसा और हारून का विरोध किया। इसके अतिरिक्त “सदूम” के रहने वालों ने हज़रत लूत का विरोध किया। इन दोनो जातियों के अतिरिक्त अन्य जातियों ने भी अपने काल के ईश्वरीय दूत की बात नहीं मानी और उनका विरोध किया जिसके कारण वे ईश्वरी प्रकोप का लक्ष्य बने। इनमें से हर जाति को अलग अलग ढंग के प्रकोप का सामना करना पड़ा जैसे फ़िरऔन तो नील नदी में डूबकर मर गया जबकि लूत जाति, भकंप से नष्ट हो गई।
ग्यारहवीं आयत, संक्षिप्त ढंग से नूह जाति की ग़लतियों और पापों का उल्लेख करते हुए उनको दिये जाने वाले दंड का उललेख करती है कि जब पानी चढ़ने लगा तो हमने तुमको नाव पर सवार किया।
नूह की जाति को जिस बाढ़ का सामना करना पड़ा था उस समय इतने घने बादल घिर आए थे कि चारों ओर अंधेरा छा गया था। फिर इतनी भीषण वर्षा हुई कि मानो बाढ़ ज़मीन से नहीं आसमान से आ रही है। इतनी अधिक वर्षा हुई कि चारों और पानी भर गया। बाढ से उदंड जाति के घर, खेत, खलिहान महल और सबकुछ डूब गए। उस बाढ़ से केवल वे लोग ही सुरक्षित बच सके जो हज़रत नूह के साथ नाव पर सवार हो गए थे।
सूरे हाक़्क़ा की बारहवीं आयत इस प्रकार के ईश्वरीय प्रकोप के कारण का उल्लेख करते हुए याद दिलाती है कि हम यह बातें इसलिए बताते हैं कि तुमको कुछ याद दिलाएं ताकि जो इससे पाठ लेने वाले हैं वे पाठ हासिल कर सकें। हमारा लक्ष्य लोगों का मार्गदर्शन और प्रशिक्षण है ताकि वे परिपूर्णता तक पहुंच सकें। बाद वाली आयतें क़यामत या प्रलय की ओर संकेत करती हैं। इन आयतों से पता चलता है कि इस नशवर संसार का अंत और नए संसार का आरंभ एक बहुत ही भीषण एव महान आवाज़ से होगा। इसको क़ुरआन में सूर फूंकना कहा गया है। 13 से 15 आयतों में ईश्वर कहता है कि फिर जब सूर में एक बार फूंक मार दी जाएगी और धरती तथा आकाश यकायक टुकड़े टुकड़े कर दिये जाएंगे तो उस समय क़यामत आ ही जाएगी और आसमान फट जाएगा।
विशेष बात यह है कि प्रलय के आने के समय न केवल यह की धरती और पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे बल्कि क़यामत की घटना से आकाशों में भी हलचल होगी। आकाश के तारे और गृह भी प्रलय की घटना से सुरक्षित नहीं रह पाएंगे। दूसरे शब्दों में वर्तमान धरती और आकाश सबकुछ नष्ट हो जाएंगे जिसके बाद एक नया जीवन आरंभ होगा जो पिछले जीवने से भिन्न व परिपूर्ण होगा।
सूरे हाक़्क़ा की 19वीं आयत के बाद मनुष्यों के दो प्रकार के गुटों का उल्लेख किया गया है। इनमें से एक गुट ऐसा होगा जिसका कर्मपत्र उसके दाएं हाथ में होगा जबकि दूसरा गुट वह होगा जिसका कर्मपत्र उसके बाएं हाथ में होगा। इन आयतों में बताया गया है कि उस दिन हरएक को उसके किये के अनुसार ही कर्मपत्र दिया जाएगा और अपने कर्मपत्र के साथ ही वह ईश्वर की सेवा में उपस्थित होगा। आयत कहती है कि जिसको उसका कर्मपत्र दाहिने हाथ में दिया जाएगा वह बड़ी ही प्रसन्नता से लोगों से कहेगा कि आओ मेरा कर्मपत्र पढ़ो। मुझको पता था कि प्रलय आने वाली है और मुझको मेरी करनी का फल मिलेगा।
प्रलय के दिन विशेषकर हिसाब किताब पर विश्वास का लाभ यह है कि मनुष्य के भीतर ईश्वरीय भय पैदा होता है और उसके भीतर ज़िम्मेदारी की भावना जागृत होती है। इसका मनुष्य के प्रशिक्षण में विशेष स्थान है।
अब दूसरे गुट के बारे आयत कहती है जिसका कर्मपत्र उसके बाएं हाथ में दिया जाएगा तो वह कहेगा कि काश! मुझको मेरा कर्मपत्र दिया ही न जाता और मुझको न पता होता कि मेरा हिसाब किताब क्या है? काश मौत ने हमेशा के लिए मेरा काम तमाम कर दिया होता।
सूरे हाक़्क़ा पवित्र क़ुरआन की महानता और उसकी आयतों के सच्चा होने पर बल देता है। इसमें कहा गया है कि यह ईश्वर का कथन है जिसमें मनुष्य के कथन का कोम मिश्रण नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल होने वाला क़ुरआन, पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शन है। अनेकेश्वरवादी कभी तो पैग़म्बर को कवि तो कभी जादूगर कहा करते थे। पवित्र क़ुरआन उनकी बातों को रद्द करते हुए कहता है कि न तो वे कवि हैं और न ही जादूगर बल्कि वे ईश्वरीय दूत हैं। ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन, किसी एक जाति के लिए नहीं बल्कि प्रलय तक आने वाली समस्त जातियों से संबन्धित है।