Jun ०७, २०१६ १३:४९ Asia/Kolkata

26 मार्च 2015 को सऊदी अरब के नेतृत्व में क्षेत्रीय देशों के गठबंधन ने दृढ़ता के तूफ़ान नाम से सैनिक आप्रेशन शुरू किया और इसके 27 दिन बाद इस आप्रेशन का नाम बदलकर आशा की बहाली रख दिया गया।

26 मार्च 2015 को सऊदी अरब के नेतृत्व में क्षेत्रीय देशों के गठबंधन ने दृढ़ता के तूफ़ान नाम से सैनिक आप्रेशन शुरू किया और इसके 27 दिन बाद इस आप्रेशन का नाम बदलकर आशा की बहाली रख दिया गया। इस युद्ध में ओमान को छोड़कर फ़ार्स खाड़ी सहयोग परिषद के सभी देश अर्थात संयुक्त अरब इमारात, क़तर, कुवैत और बहरैन सऊदी अरब के नेतृत्व में यमन की मज़लूम जनता पर हमला कर बैठे। जार्डन, मिस्र, मोरक्को और सूडान ने भी उनका साथ दिया।

 

यमन के संचार माध्यम शुरु से ही यह कहते आ रहे हैं कि इस युद्ध में सऊदी अरब को इस्राईल की भरपूर मदद मिल रही है। इस पर ज़ायोनी शासन ने चुप्पी साधे रखी। बाद में पश्चिमी देशों के कुछ संचार माध्यमों ने भी अपनी रिपोर्टों में माना कि इस्राईल इस युद्ध में हथियार सप्लाई कर रहा है और उसके सैनिक भी भाग ले रहे हैं। अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस और तुर्की भी उन देशों में शामिल हैं जो बच्चों का जनसंहार करने वाले इस युद्ध का समर्थन कर रहे हैं। वाइट हाउस ने तो औपचारिक घोषणा की है कि अमरीका के राष्ट्रपति बाराक ओबाम ने सेना को अनुमति दी है कि यमन के ख़िलाफ़ लड़ाई में सऊदी अरब को लाजिस्टिक और इंटेलीजेन्स सपोर्ट दे।

 

सऊदी अरब के नेतृत्व में यमन पर हमलों को एक साल का समय बीत जाने के बाद सबको नज़र आ रहा है कि सऊदी अरब का यह सैनिक अभियान विफल हो गया है और इस हमलावर गठबंधन को यमन में कोई भी निर्णायक सफलता नहीं मिली है। यमन पर सऊदी अरब के गठबंधन की केवल यही उपलब्धि रही है कि बेगुनाह आम नागरिक हज़ारों की संख्या में मारे गए। दुनिया के अत्यंत ग़रीब देशों में गिने जाने वाले इस देश का आधारभूत ढांच ध्वस्त होकर रह गया है। ग़रीबी और भुखमरी इस युद्ध के कारण और भी विकट रूप धारण कर गई है।

 

आम नागरिकों का जनसंहार, महिलाओं और बच्चों पर बमबारी, अस्पतालों और नागरिक प्रतिष्ठानों पर अंधाधुंध हमले यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ की निगरानी में चलने वाले अस्पतालों पर बर्बरतापूर्ण हमले, कलस्टर बमों सहित प्रतिबंधित हथियारों का प्रयोग, यमन का ज़मीनी, समुद्रीय व वायु परिवेष्टन और किसी भी प्रकार की मानवताप्रेमी सहायता को यमन जाने से रोकना। यह यमन में अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों की धज्जियां उड़ाने वाले सऊदी अरब के सैनिक अभियान के कुछ उदाहरण हैं।

 

यमन के विधि केन्द्र ने घोषणा की है कि पिछले साल से अब तक 8 हज़ार 200 यमनी शहीद हो चुके हैं जिनमें 1519 महिलाएं और 1996 बच्चे शामिल हैं। सऊदी अरब के हमलों में 15 हज़ार 184 यमनी घायल हुए जिनमें 3 हज़ार से अधिक संख्या महिलाओं और बच्चों की है।

 

मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनैशनल ने 26 फ़रवरी 2016 को अपनी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि यमन पर सऊदी अरब के हमलों में कितने बड़े पैमाने पर नुक़सान हुआ है। सऊदी अरब के हमलों से यमन के मूल प्रतिष्ठान ध्वस्त होकर रह गए हैं जबकि 20 लाख से अधिक यमनी नागरिक बेघर हुए हैं।

 

सऊदी अरब के हाथों जारी इस रक्तपात में 14 एयरपोर्ट, 10 बंदरगाहें, 512 पुल और सड़कें, 125 बिजलीघर, 164 जल भंडार, 167 संपर्क केन्द्र, 3 लाख 25 हज़ार 137 मकान, 615 मस्जिदें, 569 स्कूल और कालेज, 39 विश्वविद्यालय, 16 मीडिया संस्थान, 328 चिकित्सा केन्द्र, 970 सरकारी इमारतें, 353 बाज़ार और व्यापारिक केन्द्र, ईंधन और खाद्य पदार्थ ले जाने वाले 584 ट्रक, 328 पेट्रोल पम्प, 546 खाद्य पदार्थों के भंडार, 59 एतिहासिक स्थान, 119 पर्यटक स्थान, 190 कारख़ाने और 42 स्टेडियम ध्वस्त हुए हैं जबकि 3 हज़ार 750 स्कूल बंद हो गए।

 

संयुक्त राष्ट्र संघ का शरणार्थियों के मामलों को देखने वाली संस्था के अनुसार 26 लाख 90 हज़ार लोग इस त्रासदी से प्रभावित हुए हैं। अब तक 1 लाख 70 हज़ार यमनी नागरिक यमन से भागकर जिबूती, सूमालिया और सूडान गए हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि जारी वर्ष के अंत तक अन्य 1 लाख 67 हज़ार लोग बेघर हो जाएंगे।

 

अख़बारुस्साअह नामक न्यूज़ वेबसाइट का कहना है कि हर हफ़्ते 500 से 800 तक यमनी नागरिक यमन के विभिन्न शहरों पर जारी सऊदी अरब की बमबारी के कारण भाग कर जिबूती में शरण ले रहे हैं जहां वह बहुत ही बुरी परिस्थितियों में जीवन बिताने पर मजबूर होते हैं। भीषण गर्मी वाले इस देश में यमनी नागरिकों के पास सिर छिपाने की जगह नहीं होती और खाने पीने की चीज़ों का भी भारी अकाल है।

 

यमन में सऊदी हमलों कारण उत्पन्न होने वाली मानव त्रासदी के कारण देश की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी खाने पीने की चीज़ों के भारी अभाव का सामना कर रही है। 18 लाख से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्टों के अनुसार देश के 80 प्रतिशत आबादी यानी लगभग 2 करोड़ 12 लाख लोगों को मानवता प्रेमी सहायता की भारी आवश्यकता है। सऊदी अरब के युद्ध के कारण 5 साल से कम उम्र के 3 लाख 20 हज़ार बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए हैं।

 

बच्चों के अधिकारों के लिए कार्यरत संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था युनिसेफ़ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि यमन में हर दिन औसतन 6 बच्चे हताहत या घायल हो रहे हैं। ख़तरे में बचपन शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यमन पर सऊदी अरब के हमले शुरू होने से लेकर अब तक 934 बच्चे मारे गए और 1356 घायल हुए हैं। इसी प्रकार पांच साल से कम आयु के लगभग 10 हज़ार बच्चे कुपोषण और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण हताहत हो चुके हैं।

 

इस रिपोर्ट के अनुसार यमन में इस युद्ध से बच्चों पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभावों के आयाम बहुत अधिक हैं। बहुत से बच्चों को बलवत लड़ाकों में शामिल कर लिया गया है। इनमें 848 बच्चों एसे हैं जिनकी आयु 10 साल से कम है।

 

यमनी महिलाएं युद्ध से उपजी भयानक सामाजिक व आर्थिक पीड़ाओं के साथ अपना जीवन बिता रही हैं। वह इन्हीं परिस्थितियों में रहने पर मजबूर हैं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। यमन में जारी झड़पों ने महिलाओं के लिए हालात को बहुत त्रासदीपूर्ण बना दिया है। बहुत सी यमनी महिलाएं अपने परिवार का ख़र्च चलाने और पैसे की ज़रूरत पूरी करने के लिए कठिन संघर्ष कर रही हैं। दूसरी ओर चिकित्सा एवं शिक्षा सुविधाओं और रोज़गार के अवसरों के अभाव के कारण परिस्थितियां और भी कठिन हो गई हैं।

 

चिंता का एक विषय यह भी है कि युद्ध के दुष्परिणाम वर्षों बाद तक जारी रहते हैं। अनाथ बच्चे और विधवा महिलाएं युद्ध रुक जाने के बाद भी कठिन परिस्थितियों और पीड़ाओं का सामना करने पर मजबूर होती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारी अहलाम सोफ़ान का कहना है कि युद्ध वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक नुक़सान पहुंचाने की आशंका महिलाओं और लड़कियों को होती है। पुरुष युद्ध में चले जाते हैं तो घर की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर आ जाती है। यह महिलाएं अपनी और अपने बच्चों की रक्षा के लिए तथा घर की ज़रूरत की चीज़ों का प्रबंध करने के लिए पलायन पर विवश होती हैं जिससे उनके लिए ख़तरे और भी बढ़ जाते हैं। इस प्रकार की महिलाओं का लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, उचित आवास का अभाव, ग़रीबी, मानसिक दबाव और दूसरी अनेक समस्याएं इन महिलाओं के सामने होती हैं।

 

युद्ध के दौरान महिलाओं और बच्चों को लड़ाके भी निशाना बनाते हैं और युद्ध अपराध अंजाम देते हैं। महिलाओं और बच्चों का यौन शोषण भी युद्ध वाले क्षेत्र में गंभीर चिंता का विषय है। यमन की महिलाएं भी इनमें शामिल हैं। जो सऊदी सैनिक यमन में दाख़िल हुए हैं और उन्होंने अलग अलग देशों से किराए पर जो सैनिक यमन में उतारे हैं उनके बारे में यह शिकायतें मिल रही हैं कि वह बड़ी निर्लज्जता के साथ महिलाओं का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं।

 

इन दिनों यमन में संघर्ष विराम की बात चल रही है। यमन में युनिसेफ़ के प्रतिनिधि जूलियान हारनीस ने कहा है कि यदि यमन में युद्ध विराम हो जाता है तो इस बात की आशा है कि मानवता प्रेमी सहायता पीड़ितों तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन सच्चाई यह है कि इस युद्ध से जो शारीरिक व मनोवैज्ञानिक नुक़सान आम नागरिकों को पहुंचा है वह वर्षों तक जारी रहेगा।

 

 यह परिणामहीन लड़ाई है जिसका नतीजा आम नागरिकों के जनंसहार और नागरिक प्रतिष्ठानों की तबाही के अलावा कुछ नहीं है। यमनी महिलाएं पीड़ा की प्रतिमा बनी हुई हैं। किसी का बच्चा मारा गया है, किसी का पति हताहत हुआ है कोई अपने पूरे परिवार में अकेला जीवित बचा है। यह सब कुछ हो रहा है और विश्व की बड़ी ताक़तें ख़ामोश हैं। एक पूरा राष्ट्र पीड़ाएं झेल रहा है, अत्याचार का सामना कर रहा है और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं।