Feb १६, २०१६ १४:५८ Asia/Kolkata
  • सूरे वाक़ेआ
    सूरे वाक़ेआ

सूरे वाक़ेआ प्रलय के दिन के बारे में बात करता है।

सूरे वाक़ेआ प्रलय के दिन के बारे में बात करता है। यह पवित्र क़ुरआन का 56वां सूरा है। यह मक्का में नाज़िल हुआ। इसमें 96 आयतें हैं। इस सूरे की अधिकांश आयतें प्रलय और उसकी घटनाओं के बारे में हैं। इस सूरे में जिन विषयों के बारे में चर्चा की गयी है वे इस प्रकार हैं। प्रलय और उसके आरंभ में होने वाली घटनाएं, इंसानों को तीन भागों में बांटना एक असहाबे यमीन यानी वे लोग जिनके कर्मपत्र उनके दाहिने हाथ में दिये जायेंगे और दूसरे असहाबे शिमाल यानी वे लोग जिनके कर्मपत्र उनके बायें हाथ में दिये जायेंगे और तीसरे असहाबुल मुक़र्रेबीन अर्थात महान ईश्वर के बहुत ही भले व नेक बंदे। स्वर्ग में असहाबे यमीन और मुक़र्रेबीन के स्थान तथा स्वर्ग में मिलने वाली नेअमतें। असहाबे शिमाल और नरक में मिलने वाला उन्हें कड़ा दंड। प्रलय की निशानियां, नुत्फे वीर्य से इंसान की रचना, वनस्पतियों में जीवन, वर्षा का होना, आग का जलना, मृत्यु का समय, लोक से परलोक में स्थानांतरण और मोमिनों को मिलने वाला प्रतिदान एवं काफिरों को मिलने वाला कड़ा दंड।

जब प्रलय की महान घटना होगी यानी जब प्रलय होगा कि उसके घटित होने में कदापि झूठ नहीं है। प्रलय एक गुट को ऊपर ले जाने वाला और दूसरे गुट को नीचे लाने वाला है उस समय ज़मीन थराथरा कर कांप उठेगी पहाड़ टुकड़े -2 हो जायेंगे और धूल की तरह हो जायेंगे।“

जब प्रलय की महान घटना पेश आयेगी तो उसका घटना इतना स्पष्ट होगा कि कोई भी उसका इंकार नहीं कर सकेगा। क्योंकि प्रलय आने से पहले की घटनाएं इतनी महत्वपूर्ण होंगी कि उनका प्रभाव पूरी दुनिया के कोने कोने में स्पष्ट हो जायेगा। उस समय भीषण भूकंप आयेगा। यह इतना तीव्र होगा कि पहाड़ टुकड़े ¬टुकड़े होकर धूल बनकर उड़ने लगेंगे। यह आयतें इस बात की याद दिलाती हैं कि प्रलय में न केवल दुनिया की चीज़ें बदल जायेंगी बल्कि इंसान भी परिवर्तित हो जायेंगे। एक गुट नीचा जबकि दूसरा गुट ऊंचा हो जायेगा। अंहकारियों व अत्याचारियों के स्थान नीचे हो जायेंगे और मोमिन व भले लोग गर्व के शिखर बिन्दु पर होंगे। एक गुट नरक में जायेगा जबकि दूसरा स्वर्ग में।

प्रलय घटित होने की महान घटना बयान करने के बाद, आयत यह बयान करती है कि उस दिन लोगों की क्या हालत होगी और वे तीन गुटों में विभाजित होंगे। इंसानों के उस दिन तीन गुट हो जाएंगे। “तो दाहिने हाथ वाले सौभाग्यशाली, कैसे होंगे दाहिने हाथ वाले। बायें हाथ वाले दुर्भाग्यशाली, कैसे होंगे बायें हाथ वाले“

पहला गुट असहाबे यमीन का है। असहाबे यमीन उन लोगों को कहा जाता है जिनके कर्मपत्र उनके दाहिने हाथ में दिये जायेंगे और यह मुक्ति व सफलता प्राप्त करने वाला गुट होगा। प्रलय के दिन यह केवल मोमिनों एवं अच्छे कार्य करने वालों के साथ किया जायेगा। मोमिनों को कितनी बड़ी सफलता मिलेगी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उसके बाद दूसरे गुट का बयान होता और कहा जाता है कि दूसरा गुट असहाबे शिमाल का है यानी वह गुट जिसका कर्मपत्र उसके बायें हाथ में दिया जायेगा और यह अभागे लोगों का गुट होगा। कर्मपत्र का बायें हाथ में दिया जाना स्वयं इस बात का प्रमाण है कि इस गुट का ठिकाना नरक है और आयत इस गुट के दुर्भाग्य का चित्रण करती है। पवित्र क़ुरआन की आयत आगे तीसरे गुट का चित्रण इस प्रकार करते हुए कहती है, वेही ईश्वर के निकटवर्ती होंगे, नेअमत भरे स्वर्ग में होंगे और नेअमतों से भरे बाग़ में रहेंगे। अगलों में से तो बहुत होंगे किन्तु पिछलों में से कम ही होंगे।“

वे लोग ईमान में न केवल दूसरों से आगे हैं बल्कि अच्छे कार्यों व मानवीय व्यवहार में भी दूसरों से आगे हैं। वे लोगों के आदर्श हैं इसीलिए वे महान ईश्वर की बारगाह में निकटवर्ती लोगों में से हैं। वे हर प्रकार की नेअमतों से भरे बाग़ों में रहेंगे और वे भौतिक एवं आध्यात्मिक हर प्रकार की नेअमतों से लाभांवित होंगे।

पवित्र क़ुरआन के सूरे वाक़ेआ की 15 से 26 तक कि आयतें उन नेअमतों को बयान करती हैं जो महान ईश्वर के भले बंदों को मिलेंगी और उनमें से हर एक बहुत ही उत्तम व बेहतर होगी इस प्रकार से कि उस्के उत्तम होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे जड़ित तख्तों पर तकिया लगाये आमने-सामने होंगे।“

स्वर्ग में स्वर्गवासी ऐसी सभा में बैठेगें जो प्रेम और खुशी से भरी होगी। स्वर्ग में रहने वाले तख्त पर बैठेंगे और उन्हें जो खुशी मिलेगी किसी चीज़ से भी उसकी तुलना नहीं की जा सकती और न ही किसी शब्द के माध्यम से उनकी विशेषता बयान की जा सकती है। वास्तव में स्वर्ग में रहने वालों का एक महत्वपूर्ण आनंद यही उनकी सामूहिक सभा है।

तरुण नवयुवक उनकी सेवा में होंगे। इन नवयुवकों के हाथ में शीतल व पवित्र पेय होगा और वे स्वर्गवासियों को उसे पिलायेंगे। इसी प्रकार स्वर्गवासी जो भी फल खाना चाहेंगे वे हाज़िर होंगा और वे जिस पक्षी का मांस खाना चाहेंगे वह भी उपलब्ध होगा। इसी तरह स्वर्ग में रहने वालों को बहुत ही सुन्दर एवं पवित्र पत्निया होंगी। उन महिलाओं की आंखें बड़ी¬- बड़ी होंगी और वे बहुत ही सुन्दर होंगी। वे लालमणि की भांति सुन्दर होंगी। महान ईश्वर स्वर्ग की इन नेअमतों को बयान करने के बाद कहता है कि यह उन अच्छे कार्यों का बदला है जिसे वे अंजाम देते थे। उसमें वे न कोई अर्थहीन बात सुनेंगे और न ही पाप की।

वहां पर जो कुछ भी है वह बहुत ही सुन्दर और पवित्र है महान ईश्वर कहता है कि वहां पर सलाम के अतिरिक्त कुछ सुनने को ही नहीं मिलेगा। स्वर्गवासियों की सभाएं प्रेम और दोस्ती से भरी होंगी वह जिस चीज़ को सुनेंगे वह केवल सलाम होगा। वहां पर महान ईश्वर स्वर्ग में रहने वाले अपने बंदो को सलाम कहेगा, उसके फरिश्ते उसके बंदों को सलाम करेंगे। इसी प्रकार स्वर्ग में रहने वाले एक दूसरे को सलाम करेंगे।

सूरे वाक़ेआ की 27 वीं और उसके बाद की आयतें असहाबे यमीन की बहुत ही सुन्दर शब्दों में विशेषता बयान करती और कहती हैं कि उनके कर्मपत्र ईश्वरीय परीक्षा में पास होने के चिन्ह के रूप में उनके दाहिने हाथ में दिये जायेंगे। वे भी स्वर्ग की नेअमतों से बहुत ही प्रसन्न होंगे। अलबत्ता श्रेणी की दृष्टि से साबेक़ून अर्थात निकट वर्ती बंदों से कम होंगे।

असहाबे शिमाल वे लोग हैं जिनके कर्मपत्र उनके बायें हाथ में दिये जायेंगे। उनका ठिकाना नरक होगा। वे गर्म हवाओं, गर्म व खोलते पानी और मोटे एवं काले धूएं की छाया में रहेंगे। ऐसी छाया न ठंडी होगी और न आरामदायक। सूरे वाकेआ की 45 से 48 तक की आयतों में असहाबे शिमाल के इस बुरे अंत के कारणों को बयान किया गया है। पहला यह है कि वे दुनिया में ईश्वर की नेअमतों से ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। दूसरा कारण यह था कि वे पापों पर आग्रह करते थे और तीसरा यह था कि वे प्रलय का इंकार करते और कहते थे कि जब हम मर जायेंगे और सड़- गल कर मिट्टी हो जायेंगे तो क्या हमें दोबारा ज़िन्दा कर दिया जायेगा? क्या हमारे पूर्वज भी जीवित किये जायेंगे?

सूरे वाक़ेआ की 49वीं और 50वीं आयत कहती है” कह दो कि न केवल तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को बल्कि सबको एकत्रित किया जायेगा जिसका दिन ज्ञात और नियत है।“

सूरे वाक़ेआ की 63वीं और उसके बाद की आयतों में प्रलय के कारणों को बयान किया गया है और इंसान के जीवन के लिए आग, पानी और भोजन जैसी जो चीज़ें महत्वपूर्ण हैं, उनकी ओर संकेत किया गया है। महान ईश्वर कहता है” क्या जो चीज़ तुमने बोई थी उसके बारे में सोचा? उसे तुम उगाते हो या हम उगाते हैं?

स्पष्ट है कि इंसान का कार्य केवल बो देना है परंतु उसे उगाना महान व सर्वशक्तिमान ईश्वर का काम है। वैज्ञानिक व विद्वान कहते हैं कि वनस्पति के निर्माण में जिस संरचना व तकनीक का प्रयोग किया गया है वह एक आद्दौगिक नगर के बराबर है जिसमें विभिन्न कारखाने हों और वह आश्चर्यजनक व जटिल हो। महान ईश्वर ने दाने के अंदर एक जीवित और बहुत ही सूक्ष्म प्राणी की रचना की है और जब वह उचित वातावरण प्राप्त करता है तो आरंभ में वह दाने के अंदर मौजूद भोजन का प्रयोग करता है और उसके बाद दाना अंकुरित हो जाता है और उसकी जड़ें ज़मीन में फैल जाती हैं। उसके बाद वह बड़ी तेज़ी से ज़मीन में मौजूद खादय पदार्थों से लाभ उठाता है और दाने के अंदर मौजूद व्यवस्था विकसित व बढ़ने लगती है। इस प्रकार उसके अंदर तना और पत्तियां व बालियां अस्तित्व में आ जाती हैं। परिणाम स्वरूप कभी एक दाने से सैकड़ों या हज़ारों दाने निकलते हैं। महान ईश्वर कहता है यदि हम चाहें तो उसे चूर- चूर कर दें और फिर तुम बातें बनाते रह जाओ।“

महान ईश्वर कहता है हम तेज़ हवा भेज सकते हैं जो दानों को सुखा दे और उन्हें तोड़ दे या उनके लिए कोई समस्या उत्पन्न कर दे जिससे सारी फसल बर्बाद हो जाये तो इंसान को जान लेना चाहिये कि यह समस्त बरकतें किसी और स्थान से हैं। तुम जो पानी पीते हो क्या तुमने उसके बारे में कभी सोचा? क्या तुमने उसे बादलों से बरसाया या हमने बरसाया? अगर हम चाहें तो अत्यंत खारा बना सकते हैं तो तुम क्यों आभार प्रकट नहीं करते?

हां अगर महान ईश्वर पानी से कहता कि वह भाप बनकर आसमान में चला जाये और उससे खारे पानी का बादल बन जाये तो समुद्र के पानी की भांति वर्षा का पानी खारा हो जाता। अलबत्ता उसने ऐसा नहीं किया। न केवल पानी में मौजूद लवणों को इस बात की अनुमति नहीं दी कि वे भाप बनकर उपर जायें बल्कि हानिकारक जीवाणुओं को भी भाप बनकर आसमान में जाने की अनुमति नहीं दी कि वे वर्षा के पानी और बादलों को दूषित कर दें। इसी कारण वर्षा का पानी शुद्ध और पवित्र होता है।

प्रलय का दूसरा प्रमाण आग की रचना है और इंसान के जीवन में वह एक महत्वपूर्ण चीज़ है और उसके अनगिनत लाभ हैं। महान ईश्वर कहता है फिर क्या तुमने उस आग के बारे में सोचा जिसे तुम जलाते हो। क्या तुमने उसके वृक्ष को पैदा किया है या हमने हमने उसे एक अनुस्मृति और मरुभूमि के यात्रियों और ज़रूरमंदों के लिए लाभदायक बनाया है।“

इस मूल्यवान नेअमत के कारण उसकी सराहना करनी चाहिये फिर इंसान को महान ईश्वर के नाम का गुणगान करना चाहिये। इंसान के जीवन का बहुत ही संवेदनशील समय उसकी मौत का समय है। उस समय जो लोग मरने वाले व्यक्ति के पास होते हैं वे उसे निराश देखते हैं वह उस दीपक की भांति होता है जो बुझने वाला होता है और वह धीरे- धीरे बुझने लगता है और जो लोग मरने वाले के पास होते हैं वे उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकते। पवित्र क़ुरआन ने इस हालत को बयान करके प्रलय की बहस को बहुत अच्छे अंदाज़ में पूरा किया और कहता है तो जिस समय प्राण गले में पहुंच जाता है तुम उस समय केवल मूल दर्शक बने रहते हो अगर तुम सही कह रहे हो तो प्राण को शरीर में क्यों नहीं लौटा देते? तुम्हारी इस कमज़ोरी का कारण यह है कि मौत और जीवन का स्वामी ईश्वर है और वही है जो मारता एवं जीवित करता है।