Jul १७, २०१६ १५:२४ Asia/Kolkata

सूरे मुद्दस्सिर में मानव जाति को प्रलय के दिन की याद, अनेकेश्वरवादियों से संघर्ष, विरोधियों को ईश्वर के प्रकोप से डराने जैसे बिन्दुओं का उल्लेख है।

पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण के मुख्य बिन्दु, प्रलय, घमंडी व्यक्ति की पहचान, कर्म का मनुष्य के अंजाम से संबंध, स्वर्गवासियों की विशेषताएं, नरक की देख रेख करने वाले और ईश्वरीय दंड देने वाले फ़रिश्ते, इस सूरे की विषय वस्तु हैं।

 

मुद्दस्सिर का अर्थ है वह व्यक्ति जो अलग थलग पड़ गया हो। इस सूरे की आरंभिक आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से ईश्वर कह रहा है कि वे विरोधियों के अपमान से दुखी न हों और ख़ुद को अलग थलग महसूस न करें बल्कि पूरे संकल्प के साथ बंदों के मार्गदर्शन के लिए उठ खड़े हों।

 

मुद्दस्सिर सूरे की आरंभिक आयतों में एकेश्वरवाद की अनुशंसा की गयी है और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा जा रहा है कि वे ईश्वर की महानता का गुणगान करें वही ईश्वर जो उनका स्वामी व पालनहार है। इस प्रकार वे सभी झूठे ख़ुदाओं के वुजूद पर प्रश्न चिन्ह लगा दें और अनेकेश्वरवाद के चिन्ह को ख़त्म करें। इन आयतों में इस वास्तविकता की ओर इशारा है कि अनन्य ईश्वर को आस्था व कर्म की दृष्टि से भी और बातचीत में भी महान समझें। उसे हर बुराई से पाक समझें। उसके बाद ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम से कह रहा है कि वे अपने वस्त्र को पाक करें।

 

पवित्र क़ुरआन के कुछ व्याख्याकर्ताओं का मानना है कि वस्त्र से अभिप्राय मनुष्य का कर्म हो सकता है क्योंकि इंसान का कर्म उसके लिए वस्त्र के समान है। कुछ व्याख्याकर्ताओं का कहना है कि इस आयत में वस्त्र से अभिप्राय मनुष्य का मन व आत्मा है। अर्थात अपने मन व आत्मा को हर बुराई से पाक करो क्योंकि जिस स्थान पर वस्त्र का पाक होना ज़रूरी है उस स्थान पर ख़ुद इंसान का पाक होना प्राथमिकता रखता है। कुछ व्याख्याकर्ताओं के अनुसार वस्त्र से अभिप्राय वही वस्त्र या लिबास है जो इंसान पहनता है क्योंकि लेबास का पाक साफ़ होना इंसान के व्यक्तित्व और उसकी संस्कृति की महत्वपूर्ण निशानियों में है।

 

मुद्दस्सिर सूरे की आयत नंबर 7 में ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम से कह रहा है कि वे उसके लिए धैर्य अपनाएं और नास्तिकों व अनपढ़ लोगों की ओर से पहुंचने वाले दुख का दृढ़ता से सामना करें। ईश्वर का पैग़म्बरे इस्लाम से यह कहना एक ओर इस बात का पता देता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के कंधों पर कितना बड़ी ज़िम्मेदारी थी तो दूसरी ओर यह बिन्दु भी स्पष्ट होता है कि ईश्वर का सबसे अच्छा व संपूर्ण बंदा भी उसकी ओर से आवश्यकतामुक्त नहीं हो सकता बल्कि दिन प्रति दिन उन्हें ईश्वर की ज़रूरत बढ़ती जाती है यहां तक कि वे ईश्वर के सामने ख़ुद को कुछ नहीं समझते। दृढ़ता अपनाने के लिए इसलिए कहा गया है क्योंकि ईश्वर की ओर लोगों के मार्गदर्शन के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन धैर्य है। धैर्य सभी कार्यक्रम को लागू करने की गैरंटी है इसलिए बार बार पवित्र क़ुरआन में धैर्य अपनाने पर बल दिया गया है। जैसा कि धैर्य के महत्व पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ईमान के संबंध में धैर्य व दृढ़ता का स्थान वैसा ही है जैसा शरीर के संबंध में सिर का है।”

 

यही कारण है कि ईश्वरीय दूतों के व्यक्तित्व की सबसे अहम विशेषता यह थी कि वे धैर्यवान थे। जब कोई अप्रिय घटना या सख़्त मुश्किल पड़ती की तो उनका धैर्य और बढ़ जाता था।

 

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं, “ईश्वर कहता है कि जिस समय मेरे किसी बंदे को जान या माल की ओर से कोई मुसीबत आती है और वह धैर्य के ज़रिए उसका मुक़ाबला करता है तो मुझे शर्म आती है कि प्रलय के दिन उसके कर्म पत्र को खोलूं या उसके कर्म को परखूं।”

 

मुद्दस्सिर सूरे की 18 से 25वीं तक की आयत में ईश्वर कहता है, “उसने क़ुरआन से मुक़ाबला करने के बारे में सोचा। वह मार डाला जाए किस तरह उसने यह सोचा। उसे फिर मौत आए कि किस तरह उसने शैतानी चाल तय्यार की। उसके बाद उसने त्योरी चढ़ाई,मुंह बनाया, फिर सत्य से मुंह फेर कर चला गया और घमन्ड किया। अंततः उसने कहा यह क़ुरआन तो पहले वालों की तरह एक जादू है। यह इंसान का कथन है।”

 

ये आयतें क़ुरैश के मशहूर लोगों में से एक वलीद बिन मुग़ैरा मख़ज़ूमी के बारे में है। उसने ईश्वर की ओर से अपार अनुकंपाओं से संपन्न होने के बाद भी सत्य का इंकार किया। पैग़म्बरे इस्लाम को जादूगर और पवित्र क़ुरआन को जादू कहा। इस्लामी इतिहास में आया है कि एक बार हज के अवसर पर अरब के अनेकेश्वरवादी दारुननद्वा नामक स्थान पर जमा हुए और वहां पर अबू जेहल, अबू सुफ़्यान, वलीद बिन मुग़ैरा और नज़्र बिन हारिस जैसे सरदारों ने आपस में परामर्श किया कि किस तरह एकजुट होकर पैग़म्बरे इस्लाम का मुक़ाबला करें। वलीद ने जो मक्के का मशहूर आदमी था और अनेकेश्वरवादी उसकी बुद्धि का लोहा मानते थे, उन लोगों को संबोधित करते हुए कहा, तुम लोग उच्च कुल व बुद्धिमान लोग हो। अरब हर ओर से तुम लोगों के पास आते हैं और तुमसे अपनी मुश्किल का हल पूछते हैं इसलिए बेहतर होगा तुम सब लोग एक बात कहो। उसके बाद वलीद ने उन लोगों से पूछाः तुम्हारा इस व्यक्ति (पैग़म्बरे इस्लाम) के बारे में क्या नज़रिया है? उन्होंने कहा, शायर है। वलीद ने त्योरी चढ़ाते हुए कहा, हमने बहुत शेर सुने हैं किन्तु उनकी बातें शेर से मिलती जुलती नहीं हैं।

 

उन्हें ज्योतिष समझें

वलीद ने कहा कि जब उनके पास जाओगे तो उनकी बातों में ज्योतिषियों की तरह भविष्यवाणी जैसी कोई चीज़ नज़र नहीं आएगी।

उन्हें पागल समझें

वलीद ने कहा, जिस वक़्त उनके पास जाओगे तो पागलपन का कोई लक्षण नहीं पाओगे।

उन्होंने कहा तो फिर पैग़म्बरे को जादूगर समझें।

वलीद ने कहा, जादूगर किस अर्थ में?

उन्होंने कहा, जो दोस्तों के बीच दुश्मनी डाल दे।

वलीद ने कुछ सोचा और कहा, हां वह जादूगर हैं और ऐसा ही करते हैं।

 

यह ऐसी हालत में है कि अज्ञानता के काल का बुद्धिमान व्यक्ति यह बात अच्छी तरह जानता था कि पवित्र क़ुरआन न तो इंसान और न ही जिन्नात का कथन है। बल्कि इसकी बहुत ही शक्तिशाली जड़ है जिसकी शाखें फलदार और बहुत ही आकर्षक हैं। वलीद ख़ुद यह नहीं समझ सका कि उसने अपनी इस बात से पवित्र क़ुरआन की बहुत अच्छी प्रशंसा की है। उसने अपनी बात से यह दर्शा दिया कि पवित्र क़ुरआन इतना आकर्षक है कि हर इंसान के मन को सम्मोहित कर लेता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पवित्र क़ुरआन जादूगरों के काम से किसी तरह की समानता नहीं रखता बल्कि आध्यात्म से समृद्ध कथन है और बहुत ही गहरा प्रभाव रखता है। वलीद के कहने के अनुसार, अगर यह इंसान का कथन होता तो दूसरे भी क़ुरआन का जवाब ले आते। हालांकि पवित्र क़ुरआन ने बारंबार लोगों को मुक़ाबले के लिए आमंत्रित किया है और इस्लाम का कोई भी बड़े से बड़ा दुश्मन जो अरबी भाषा में दक्ष था, पवित्र क़ुरआन के एक सूरे जैसा कोई सुरा पेश कर पाता और यही पवित्र क़ुरआन का चमत्कार है।

मुद्दस्सिर सूरे की तीन आयतों में ईश्वर ने क़सम खायी है। वे आयतें 32 से 34 तक हैं। इन आयतों मे ईश्वर ने चांद, रात और सुबह की क़सम खायी है कि ये चीज़े सृष्टि के जटिल रहस्य हैं। इन क़समों में इस महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत है कि हर इंसान अपने कर्म के अधीन है। जो लोग भले कर्म करते हैं वे ऐसे लोग हैं जिन्हें कर्मपत्र दाहिने हाथ में दिया जाएगा। ये वे लोग हैं जो ईश्वर पर आस्था और भले कर्म से, ग़ुलामी समान इच्छाओं की ज़न्जीरों को तोड़ चुके हैं और बिना किसी रोक टोक के स्वर्ग में जाएंगे।

 

मुद्दस्सिर सूरे की कुछ आयतों में दाहिने हाथ में कर्मपत्र पाने वाले और उनके मुक़ाबले में मौजूद गुट का यूं उल्लेख किया है, “वे स्वर्ग के बाग़ में होंगे और अपराधियों से पूछेंगे क्या चीज़ तुम्हारे नरक में आने का कारण बनी।” अपराधी इस सवाल के जवाब में अपने पापों को इसका कारण बताते हुए कहेंगे, “हम नमाज़ नहीं पढ़ते थे।” अगर नमाज़ पढ़ते तो नमाज़ से ईश्वर की याद मन में जागृत होती, नमाज़ हमे बुरायी से रोकती और ईश्वर की ओर जाने वाला सीधा रास्ता दिखाती।

 

नरक वासियों का दूसरा जवाब यह होगा, “हम वंचितों को खाना नहीं खिलाते थे।” इस आयत में वंचितों को खाना खिलाने की बात कही गयी है किन्तु इससे अभिप्राय उनकी मूल ज़रूरतों खाना पानी, कपड़ा और घर इत्यादि है और इस आयत में इससे अभिप्राय अनिवार्य धार्मिक कर ज़कात है। क्योंकि अगर कोई व्यक्ति ग़ैर अनिवार्य दान दक्षिणा नहीं करता तो वह नरक में नहीं जाएगा।

 

नरकवासी स्वर्गवासी के सवाल के जवाब में आगे कहेंगे, “हम बुरे लोगों के साथ उठते बैठते थे और प्रलय के दिन का हमेशा इंकार करते थे यहां तक कि हमे मौत आ गयी।”

 

स्वर्गवासियों व नरकवासियों के बीच इस बातचीत से पता चलता है कि नमाज़, ज़कात और असत्य के मार्ग पर चलने वालों से दूरी और प्रलय पर विश्वास, मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए बहत ज़रूरी है। क्योंकि अगर इंसान ने इन चीज़ों पर अमल न किया तो हिसाब किताब के दिन सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश भी उन्हें लाभ न पहुंचा सकेगी और वे हमेशा नरक में रहेंगे।

 

क्योंकि सिफ़ारिश के लिए पृष्ठिभूमि का मुहैया होना ज़रूरी है। इंसान के पाप इस पृष्ठिभूमि के मुहैया होने में रुकावट बनते हैं। सिफ़ारिश उस स्वच्छ पानी की तरह है जिसे कमज़ोर पौधे की जड़ पर डाला जाता है और सीधी सी बात है कि अगर पौधे सूख गया हो तो उस पर स्वच्छ पानी का असर नहीं होगा और उससे सूखा नेहाल हरा नहीं होगा।

 

साथ ही आयत का यह टुकड़ा इस बिन्दु पर बल देता है कि सिफ़ारिश के लिए कुछ शर्त ज़रूरी है। सिफ़ारिश पाप करने के लिए हरी झंडी नहीं है बल्कि इंसान के प्रशिक्षा के लिए ऐसा तत्व है जो उसे कम से कम उस चरण तक पहुंचा सकती है कि उसकी क्षमा हो जाए। इसी प्रकार इंसान का ईश्वर और उसके दूतों के साथ संपर्क न टूटने पाए।