सऊदी अरब में मानवाधिकार का हनन
सऊदी अरब की संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार परिषद की 3 वर्षीय सदस्यता का आख़िरी साल है।
47 सदस्यी इस परिषद पर पूरी दुनिया में मानवाधिकार के विस्तार व लागू कराने की ज़िम्मेदारी है। इसके बावजूद सऊदी अरब में मानवाधिकार का उल्लंघन व्यापक स्तर पर पूर्व नियोजित रूप से जारी है।
हालिया वर्षों में सऊदी अरब की ओर से मानवाधिकार के हनन की सबसे बड़ी मिसाल, इस देश का यमन पर कायर्तापूर्ण अतिक्रमण है जिसकी अनेक मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी निंदा की है। पश्चिमी हथियारों के ज़रिए इस युद्धोन्माद ने यमन की सभी आर्थिक मूल संरचनाओं, महत्वपूर्ण व्यापारिक, सांस्कृतिक, उपचारिक, शैक्षिक केन्द्रों यहां तक अनाज के गोदामों को भी तबाह कर दिया है। यमन पर सऊदी अरब के निरंतर हमलों में हज़ारों निहत्थे यमनी शहीद व घायल हो चुके हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, यमन पर सऊदी अरब के हमलों में अब तक लगभग 10 हज़ार लोग हताहत और हज़ारों दूसरे घायल हुए हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच और एम्नेस्टी इंटरनेश्नल ने यमन में घरों, बाज़ारों, अस्पतालों, स्कूलों और मस्जिदों पर सऊदी अरब के ग़ैर क़ानूनी हवाई हमलों की 69 मिसालें पेश की हैं कि इनमें से कुछ युद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं।
सऊदी अरब में धार्मिक आज़ादी की स्थिति सबसे बुरी है। इस देश में धार्मिक आज़ादी से संबंधित जांचकर्ताओं की विशेष रिपोर्टों में इस बात का उल्लेख है कि सऊदी अरब में अल्पसंख्यकों में ख़ास तौर पर शिया समुदाय के लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ़्तार किया गया है। इस देश के पूर्वी क्षेत्रों या अहसा के शिया समुदाय के साथ व्यापक स्तर पर भेदभाव किया जाता है। यहां तक कि अहसा के शियों को निजी स्कूलों या बालविहार में काम करने का अधिकार हासिल नहीं है। इसी प्रकार मंत्री, मेयर, कूटनैतिक या एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन में सरकार की ओर से आधिकारिक प्रतिनिधि का पद शियों को नहीं दिया जाता है।
2011 में धार्मिक आज़ादी के विषय की प्रतिवेदक अस्मा जहांगीर ने शियों के साथ भेदभाव का दूसरा उदाहरण पेश किया। सऊदी अरब में धार्मिक मामलों के मंत्रालय की ओर से रियाज़ की जुमा मस्जिद के लिए नियुक्त इमाम मोहम्मद अलउरैफ़ी ने पहली जनवरी 2010 को शुक्रवार की नमाज़ के विशेष भाषण में शियों के ख़िलाफ़ ज़हर उगला था। उन्होंने सऊदी अरब सहित पूरी दुनिया से शियों को मिटाने की बात कही थी। अलउरैफ़ी ने कहा कि शिया वास्तविक मोमिन नहीं है और उनके विचार नास्तिकता पर आधारित हैं जो पारसी धर्म के अवशेष हैं। उन्होंने सभी शियों को ग़द्दार और ईरान पर निर्भर बताया। उन्होंने इससे पहले यमन की सीमा के निकट सऊदी सैनिकों से कहा था कि शिया हौसियों के साथ लड़ाई में जिस शिया को पाएं क़त्ल कर दें। सऊदी अरब में शियों को मस्जिद में पूरी आज़ादी से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है। इस साल भी पिछले वर्षों की तरह सऊदी अरब के अधिकारियों ने थोड़े समय में शियों की 11 मस्जिदों में ताला लगा दिया। यह ऐसी स्थिति में है कि ताज़ा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सऊदी अरब की 2 करोड़ 20 लाख की आबादी में लगभग 10-15 फ़ीसद शियों की आबादी है।
मानवाधिकार की प्रतिवेदक मार्ग्रेट सेकागिया ने 2008 से 2014 के वर्षों में अपनी रिपोर्टों में सऊदी अरब में मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं की स्थिति की अनेक मिसालें पेश की हैं। जिन विषयों को उन्होंने चिंता का विषय कहा है वे इस प्रकार हैं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को धरना- प्रदर्शन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न होना, मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं को धमकी व यातना देना, जेल में अकेले रखने और क़ैदियों को उपचारिक सेवा न देना, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के सफ़र पर रोक और मानवाधिकार संगठनों का पंजीकरण न होना।
सऊदी अरब में विपक्षी आज़ादी के साथ राजनैतिक व सामाजिक गतिविधियां नहीं कर सकते। इसी प्रकर उन्हें अपने विचार आज़ादी के साथ बयान करने की इजाज़त नहीं है। सऊदी अरब में आले सऊद शासन के अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले लेखकों ने ब्रिटेन जैसे दूसरे देशों में पनाह ली है या वर्षों से सऊदी जेलों में बंद हैं। 17 मई 2011 को सैकड़ों सऊदी नागरिकों ने जिन्हें इस देश में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार किया गया, जेल की दयनीय स्थिति की शिकायत करते हुए सऊदी अधिकारियों से निवेदन किया कि वे राजनैतिक बंदियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यहवार रोके और उनके मूल अधिकारों का सम्मान करे। गिरफ़्तार हुए लोगों ने जेल की सेल में गुंजाइश से ज़्यादा क़ैदियों की संख्या, उनके साथ दुर्व्यवहार, कम गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ दिए जाने और क़ैदियो की तुलना में सोने के लिए तख़्त की कमी की शिकायत की और बल दिया कि सोने की जगह कम होने के कारण क़ैदी एक साथ नहीं सो पाते बल्कि बारी बारी सोने पर मजबूर हैं क्योंकि सेल में 15 लोगों की भी गुंजाइश नहीं है और उसमें कम से कम दुगुना लोगों को बंद किया जाता है।
इन क़ैदियों ने इसी प्रकार क़ैदियों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता बहुत ख़राब होने के कारण बहुत से क़ैदियों के बीमार होने का उल्लेख किया। इन क़ैदियों ने बताया कि क़ैदियों को आधा पका हुआ खाना दिया जाता है जिसमें कीड़े-मकोड़े भी पड़े होते हैं। इसी प्रकार 32 क़ैदियों के लिए जो खाना भेजा जाता है वह 5 क़ैदियों के लिए भी काफ़ी नहीं होता। एक क़ैदी ने बताया कि जेल के एक कॉरिडोर में 6 कोठरियों और 6 बाथरूम से ज़्यादा नहीं है लेकिन उसमें 250 लोगों को रखा जाता है।
ह्यूमन राइट्स वॉच में सऊदी अरब के मामले के ज़िम्मेदार एडम कूगल सऊदी अरब में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में कहते हैं,“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामूहिक कार्यक्रम के आयोजन व धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकारों की स्थिति सऊदी अरब में हर दिन बुरी से बुरी होती जा रही है। सऊदी अरब में सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को जेल में डाल दिया गया है और उन्हें लंबी सज़ाएं सुनायी गयी हैं। 2011 में अरब बसंत के आरंभ होने के समय से सऊदी अरब में प्रशासनिक तंत्र हर विरोधी स्वर को दबा रहा है। आपको सऊदी अरब में शायद ही कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता मिले जो जेल से बाहर हो। यह देश मनमानी कर रहा है। इसी प्रकार इस देश में दंड देने का क़ानून नहीं है। कुल मिलाकर दंड देने वाले सुव्यवस्थित क़ानून नहीं हैं।”
सऊदी अरब में जेल के भीतर की स्थिति के बारे में आने वाली ज़्यादातर रिपोर्टें, इस देश में क़ैदियों की दयनीय स्थिति और उनके ऐसे अधिकारों के उल्लंघन का पता देती हैं जिनकी मिसाल नहीं मिलती। आले सऊद शासन ने क़ैदियों व जेल की स्थिति के संबंध में कड़े उपाय अपनाकर जेल के भीतर से सूचना मिलने के हर प्रकार के मार्ग को बहुत हद तक बंद कर दिया है। इस बारे में सऊदी अरब की राष्ट्रीय मानवाधिकार समिति अपनी रिपोर्ट में यूं इशारा करती है, “सऊदी अरब में जेल क़दियों से इस तरह भरे हुए हैं कि क़ैदियों के सोने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।”
ऐसे बहुत से क़ैदी है जिनके अपराध साबित नहीं हुए हैं और वे वर्षों से जेल में क़ैद हैं। अलख़ुबर में हुए धमाके के बाद गिरफ़्तार हुए कुछ शीयों की स्थिति 20 साल के बाद भी स्पष्ट नहीं हुयी है। उनमें से कुछ अभी भी जेल में हैं। 9 शिया जवान ऐसे हैं जिन्हें 13 साल जेल में रखा गया है और उन्हें सऊदी मीडिया भूले हुए क़ैदी के रूप में याद करता है।
सऊदी अरब में लगभग 90 लाख विदेशी मज़दूर हैं। इनमें से लाखों मज़दूर सऊदी अरब में पलायनकर्ताओं के लिए कठिन हालात के कारण, इस देश को छोड़ कर चले गए हैं। विदेशी मज़दूरों को अपने मालिकों से इजाज़त के बिना जो आम तौर पर सऊदी कंपनियां या वे लोग होते हैं और मज़दूरों का शोषण करते हैं, सऊदी अरब से बाहर निकलने या कंपनी बंदलने का अधिकार हासिल नहीं है। सऊदी अरब जाने वाले ज़्यादातर वे लोग हैं जो काम की तलाश में गए हैं। यह लोग बहुत ही दयनीय स्थिति में जीवन गुज़ारते हैं। पलायन करने वालों व मज़दूरों को ज़बरदस्ती छिपाना, उन्हें यातना देना, उनका शोषण करना और इसी प्रकार संबंधित संघ तक उनकी पहुंच न होना, इन लोगों के अधिकारों के हनन की कुछ मिसाले हैं।
सऊदी अरब में कोई भी क़ानून मज़दूरों के कम से कम वेतन की गैरंटी नहीं देता। स्थानीय मज़दूरों को भी पलायनकर्ता मज़दूरों की तरह देर से वेतन मिलता है या फिर उनसे भी बेगारी करायी जाती है। इस संदर्भ में महिला मज़दूरो की स्थिति और बुरी है। मज़दूरों के शोषण का एक कारण यह भी है कि ठेकेदारों को मज़दूरों के रहने के लिए रेज़िडेंट पर्मिट दिलाने वाले सिस्टम में बहुत कमियां हैं। इसके अलावा मज़दूरों के मामलों से संबंधित अदालत में न्यायिक प्रक्रिया बहुत सुस्त होने के साथ बहुत ख़र्चीली होती है। इतनी ख़र्चीली होती है कि कम आय वाले मज़दूर इसका ख़र्च नहीं उठा सकते। वेतन न देना, पासपोर्ट ज़ब्त करना, रेज़िडेन्ट पर्मिट न बढ़ाना, विदेशी मज़दूरों के शोषण के कुछ हथकंडे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने अभी हाल में पहली बार सऊदी अरब के सैन्य गठजोड़ को थोड़े समय के लिए, बाल अधिकार के हननकर्ताओं की काली सूचि में शामिल किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सऊदी सैन्य गठजोड़ को यमन में सैन्य टकराव में 60 फ़ीसद बच्चों की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने सऊदियों के दबाव में इस सैन्य गठजोड़ को बाल अधिकार हननकर्ताओं की काली सूचि से निकाल दिया।
ह्यूमन राइट्स वॉच में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी फ़िलिप बोलोपियन का कहना है, “सऊदी अरब हालांकि मानवाधिकार परिषद का सदस्य है, किन्तु यमन में मानवाधिकार के उल्लंघन का बहुत काला इतिहास है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों को चाहिए कि यमन की जनता का साथ दें और तुरंत सऊदी अरब को निलंबित करें।”
193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में ये देश दो तिहाई मत के ज़रिए उस देश की सदस्यता को जनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से निलंबित कर सकते हैं जिसने अपनी सदस्यता के दौरान सुनियोजित रूप से मानवाधिकार का उल्लंघन किया हो।