तकफ़ीरी आतंकवाद -20
अहमद इब्ने हंबल अहले सुन्नत के एक वरिष्ठ धर्मगुरु हैं, जो इस्लामी शिक्षाओं को समझने के लिए हदीस पर बहुत बल देते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निधन के बाद अहमद इब्ने हंबल पर आरोप है कि उन्होंने बहुत सी नक़ली हदीसे गढ़ लीं। इस्लामी मतों के बीच अहमद इब्ने हंबल के विचारों की समीक्षा इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि सलफ़ियों और वहाबियों का दावा है कि उनके मत का आधार उनके विचार हैं। उनके अनुसरण का दावा करते हुए सलफ़ीवाद का प्रयास है कि इस्लामी जगत के प्रारम्भिक दौर में अपनी जड़ें खोजे। लेकिन हंबलियों ने उनके इस दावे को कभी भी औपचारिकता प्रदान नहीं की है।
हंबली मत के विद्वानों ने सलफ़ीवाद या वहाबियत के ख़िलाफ़ विभिन्न किताबें लिखी हैं और यह साबित किया है कि वहाबियत इब्ने तैमिया के सलफ़ीवाद का ही रूप है। इतिहास के विभिन्न चरणों में हंबली मत के मानने वाले वहाबियों के कट्टर दुश्मन रहे हैं। सलफ़ियों के दावों के बावजूद, अहमद इब्ने हंबल को वहाबियत का जन्मदाता नहीं माना जा सकता। हालांकि अहमद इब्ने हंबल के विचारों में सलफ़ीवाद की कुछ झलक मिलती है। सलफ़ीवाद की बुनियाद, औपचारिक रूप से इब्ने तैमिया के काल में सातवीं हिजरी शताब्दी में रखी गई। इस काल में सलफ़ीवाद की सीमाओं का निर्धारण हुआ। इसमें सबसे अहम भूमिका मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब ने निभाई और इब्ने तैमिया के विचारों को व्यवहारिक बनाया।
तक़ीयुद्दीन अबुल अब्बास अहमद बिन तैमिया सातवीं हिजरी शताब्दी में वर्तमान सीरिया में जीवन व्यतीत करते थे। इब्ने तैमिया का जीवन, उतार चढ़ाव से भरा हुआ था। इब्ने तैमिया उन गिने चुने लोगों में से एक हैं, जिन्होंने युद्ध और लड़ाई में अपना जीवन बिताया। इसी कारण वे हमेशा क़ैद में रहे या उन्होंने निर्वासन का दंड सहन किया। लेकिन इस प्रकार का जीवन उस समय महत्वपूर्ण है, जब यह लोगों में एकता उत्पन्न करने या धर्म के सिद्धांतों की सुरक्षा के लिए हो।
लेकिन दुर्भाग्यवश हम इब्ने तैमिया को देखते हैं कि वे न केवल मुसलमानों के संयुक्त दुश्मनों से मुक़ाबले में जीवन व्यतीत करते हैं, बल्कि हमेशा आम मुसलमानों के धार्मिक मूल्यों के लिए चुनौती पेश करते हैं। इस प्रकार अगर उन्हें क़ैद में डाला गया या निर्वासित किया गया तो उसका आदेश मुसलमानों के लोकप्रिय विद्वानों ने दिया था। इस व्यवहार से आज के वहाबियों या सलफ़ियों की शैली की याद आ जाती है, जो मुसलमानों पर अत्याचार करने वाले अमरीका और इस्राईल जैसे दुश्मनों के बावजूद, इस्लाम के अन्य मतों के अनुयाईयों को काफ़िर कहते हैं।
शैली की दृष्टि से इब्ने तैमिया की रचनाएं, अपने आलोचकों का जवाब हैं। उनकी अधिकांश किताबें अपने विरोधी सूफ़ी, शिया, अशअरी, यहूदी और ईसाईयों की प्रतिक्रिया में लिखी गई हैं। अगर कहीं इब्ने तैमिया ने अपना दृष्टिकोण बयान भी किया है तो वह अपने विरोधियों के सामने चुनौती पेश करने और दुश्मनी की मानसिकता के साथ है। इब्ने तैमिया लिखने और वाद विवाद में एक कट्टर व्यक्ति थे और वाद विवाद में कभी सैद्धांतिक नियमों का पालन नहीं करते थे। उदाहरण स्वरूप, जब वे सूफ़ियों के विश्वासों की आलोचना करते हैं तो मुहियुद्दीन अरबी जैसे महान विद्वान एवं रहस्यवादी को बुरी बुरी गालियां देते हैं। अशअरियों के इमाम अशअरी से बहुत ही अतार्किक बातों को जोड़ते हैं। जब अल्लामा हिल्ली के सवालों का कोई जवाब बन नहीं पड़ता तो उनके लिए ग़लत और नीच शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार शिया विरोधी उनकी किताब आरोपों और झूठ से भरी पड़ी है।
इब्ने तैमिया के व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उनकी मानसिकता ख़राब थी और शैक्षिक विचारों के लिए कोई तार्किक आधार नहीं था। यही कारण है जो उनके विचारों में विरोधाभास पाया जाता है। इसलिए कि एक ओर कट्टरता के कारण पूर्ववर्तियों के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं और कोशिश करते हैं कि अहमद इब्ने हंबल के सलफ़ीवाद की सीमाओं को न लांघे, तो दूसरी ओर दर्शनशास्त्र के ज्ञान के कारण, दार्शनिक विषयों को छेड़ते हैं और विरोधाभास को दूर करने के स्थान पर ख़ुद विरोधाभास का शिकार हो जाते हैं।
साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के कारण वर्ष 705 हिजरी में इब्ने तैमिया को मिस्र निर्वासित कर दिया गया। मिस्र में डेढ़ वर्ष तक उन्हें जेल में क़ैद करके रखा गया। दमिश्क़ के नागरिकों के नाम लिखे गए पत्र में उनके निर्वासन के कारणों में ईश्वर के लिए शरीर का मानना, यह विश्वास कि ईश्वर ऊंचाई पर है और ईश्वर के किसी विशेष स्थान पर होने पर विश्वास बताया गया और लोगों से अपील की गई कि उनके ग़लत विश्वासों के प्रति होशियार रहें। जेल से रिहा होने के बाद इब्ने तैमिया को अलैक्ज़ैंडरिया के क़िले में रहने पर बाध्य होना पड़ा। इब्ने तैमिया के फ़तवों और विचारों ने न केवल मुसलमानों के किसी एक मत के विश्वासों बल्कि समस्त मुसलमानों के विश्वासों को चुनौती दी।
इब्ने तैमिया ने एक ग़लत विचारधारा की बुनियाद रखी, जिसे बाद में उनके शिष्यों ने आगे बढ़ाया। इस विचारधारा के कारण ऐसे विश्वासों का जन्म हुआ, जो पूर्व सलफ़ीवाद में अभूतपूर्व थे, जैसे कि किसी को वसीला या माध्यम क़रार देना, शफ़ाअत या सिफ़ारिश, पैग़म्बरे इस्लाम की ज़ियारत के लिए यात्रा करना और क़ब्रों या मज़ारों पर फ़ातेहा पढ़ने के लिए जाना हराम या वर्जित हैं।
इब्ने तैमिया ने शिया मत पर बहुत प्रहार किए हैं। दुर्भाग्यवश उन्होंने ज्ञान के आधार पर शिया धर्म की आलोचना या बुराई नहीं की, बल्कि निराधार बातों और आरोपों के आधार पर यह हमले किए हैं।
इब्ने तैमिया ने अपनी आलोचना में कुछ मतों की कमज़ोरियों और कमियों को एकत्रित करके उन्हें शिया धर्म से जोड़ दिया। इन कमियों को शिया मुसलमानों से जोड़कर उन्होंने शियों को ख़ूब बुरा भला कहा और उन्हें दुश्मन क़रार दे दिया। इब्ने तैमिया की एक अन्य विशेषता जो हंबलियों से विरोधाभासी है, यह है कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों विशेष रूप से हज़रत अली (अ) से शत्रुता एवं द्वेष रखता है। वह उनके सदगुणों का इनकार करने के लिए कभी ऐसी ऐसी हदीसों का इनकार कर देता है कि जो निरंतरता से पहुंची हैं और जिनके सही होने में कोई संदेह नहीं है।
इस प्रकार का दृष्टिकोण, इब्ने तैमिया के हदीस की ओर रुझान के बिल्कुल विपरीत है। जो इब्ने तैमिया धार्मिक विश्वास के संबंध में कमज़ोर से कमज़ोर हदीस को स्वीकार कर लेता है, वह ऐसी प्रमाणित हदीसों की उपेक्षा कर देता है जो उसके विचारों से मेल नहीं खातीं।
इब्ने तैमिया की रचनाओं पर नज़र डालने से पता चलता है कि उसने दो बार हज़रत अली (अ) के प्रति द्वेष से काम लिया है। पहला, हज़रत अली (अ) के सद्गुणों, उनकी विशिष्टताओं और उनकी शान में नाज़िल होने वाली आयतों एवं हदीसों का इनकार करके और दूसरे उनका अपमान करके।
इब्ने तैमिया मुसलमानों के बीच भाई के चयन से संबंधित हदीस को झुठलाता है। इस हदीस के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मदीना वापसी के बाद, मुसलमानों के बीच भाईचारे का अनुबंध कराया और ख़ुद हज़रत अली (अ) के साथ यह अनुबंध किया। हालांकि वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरू तिरमिज़ी और अहमद बिन हंबल ने मसनद में इस हदीस का उल्लेख किया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथियों और इतिहासकारों में से इब्ने इसहाक़, इब्ने हेशाम, इब्ने सअद, इब्ने हब्बान, इब्ने अब्दुल बर, इब्ने कसीर, इब्ने अबिल हदीद, इब्ने सैय्यदुन्नास, इब्ने असीर और सुयूती ने इस हदीस का उल्लेख किया है।
इसी प्रकार, अनस के अनुसार, एक भुना हुआ पक्षी पैग़म्बरे इस्लाम (स) को उपहार स्वरूप दिया गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वर से दुआ करते हुए कहा कि हे ईश्वर तू अपने सबसे विशिष्ट बंदे को यहां भेज, ताकि वह मेरे साथ मिलकर यह पक्षी खा सके ।इसके तुरंत बाद हज़रत अली (अ) वहां पहुंचे और उन्होंने हज़रत के साथ भोजन किया।
इब्ने तैमिया हर उस हदीस को ख़ारिज कर देता है, जिसमें हज़रत अली (अ) का गुणगान है, यद्यपि उस हदीस को वरिष्ठ सुन्नी विद्वानों ने अपनी किताबों में प्रमाणित किया हो।
इब्ने तैमिया ने इसी प्रकार हज़रत अली की शान में अन्य दर्जनों आयतों एवं हदीसों को रद्द किया है। हज़रत अली (अ) के युद्धों की समीक्षा करते हुए वह उन्हें सत्ता का लालची व्यक्ति बताता है, कि जो लोगों को अपना अनुसरणकर्ता बनाने के लिए युद्ध करता है, न कि ईश्वर के आदेशानुसार। वह कहता है, जो व्यक्ति मआविया को बुरा भला कहता है, उसे अली को भी ऐसा कहना चाहिए। इसलिए कि उन्होंने सत्ता के लिए मुसलमानों से युद्ध किया और उनका ख़ून बहाया। इब्ने तैमिया हज़रत अली (अ) के ज्ञान, इस्लाम के मार्ग में किए गए युद्धों और उनकी वीरता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है, जबकि समस्त इतिहासकारों और मुस्लिम विद्वान उनके इस गुणों को स्वीकार करते हैं।
यहां यह सवाल उठता है कि क्यों इब्ने तैमिया हज़रत अली (अ) के स्थान और उनकी महानता के बारे में इस प्रकार का दृष्टिकोण रखता है, जबकि समस्त मुसलमान इस पर विश्वास रखते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शियों से दुश्मनी के अलावा, वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों से व्यक्तिगत द्वेष रखता था।