रविवार- 9 अगस्त
9 अगस्त सन 1173 ईसवी को इटली में बनी पीसा के झुके हुए मीनार का निर्माण शुरू हुआ।
9 अगस्त सन 1831 ईसवी को अमेरिका में पहली बार स्टीम इंजन ट्रेन चली।
9 अगस्त सन 1942 ईसवी को ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेता महात्मा गांधी को गिरफ़तार कर लिया।
9 अगस्त सन 1945 ईसवी को ग्रीस हूपर ने कम्प्युटर का पहला बग खोजा।
9 अगस्त सन 1948 ईसवी को उर्दू के प्रख्यात शायर अख़तर शेरानी का लाहौर में निधन हो गया।
9 अगस्त सन 1967 ईसवी को पाकिस्तान की राष्ट्र माता फ़ातेमा जेनाह का निधन हुआ।
- 9 अगस्त 1949 को प्रख्यात रहस्य व रोमांचकारी नाॅविलस्ट जोनाथन केलरमैन का न्यूयाॅर्क में जन्म हुआ। जब केलरमैन 9 साल के थे तो उनका परिवार लाॅस एंजेलिस चला गया। उन्होंने उसी साल से लिखना आरंभ किया।
- 9 अगस्त 1974 को वाॅटरगेट स्केंडल में रिचर्ड निक्सन के त्यागपत्र दे देने के एक दिन बाद जेराल्ड फ़ोर्ड ने अमरीका के राष्ट्रपति के रूप में शथप ग्रहण की। अपने पूर्ववर्ती के त्यागत्र दे देने के कारण वे राष्ट्रपति बनने वाले पहले अमरीकी बने।
9 अगस्त 1974 को उस समय के अमरीकी शष्ट्रपति रिचर्ड निकसन को जिनका सम्बंध रिपबलिकन पार्टी से था वाटरगेट स्कैन्डल के कारण अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा। वाटरगेट के नाम से कुख्यात स्कैनिडल¸ राष्ट्रपति चुनाव में घोटाले के लिये जाना जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान वर्ष 1972 में रिपब्लिकन पर्टी के कुछ लोग डिमोक्रैटिक पार्टी की केन्द्रीय समिति के वाशिगन्टन के वाटरगेट स्थित दफ़तर में घुसे और वहां से उन्होंने न केवल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ चोरी किये बल्कि उनकी बातें सुनने के लिये वहां पर माइक्रोफ़ोंन आदि भी गुप्त रुप से लगा दिये थे। निकसन यधपि इस धांधली द्वारा राष्ट्रपति बन गये परन्तु जब इस धांधली का भांडा फूटा और यह लज्जाजनक राजनैतिक चोरी वाइट हाउस के अन्य अधिकारियों को अपनी लपेट में लेने लगी तो निकसन को त्यागपत्र देना पड़ा और जेराल्ड फ़ोर्ड ने जो निकसन के उपराष्ट्रपति थे चार वषीर्य राष्ट्रपति काल के अन्त तक निकसन के उत्तरधिकारी के रुप में काम किया।
9 अगस्त सन 1919 ईसवी को ईरान के तत्कालीन प्रधान मंत्री वुसूक़द्दौला ने ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री लॉई कर्ज़न के साथ एक लज्जाजनक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते के आधार पर जो 1919 के नाम से प्रसिद्ध है ईरान के आर्थिक सैनिक और राजनैतिक मामले ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में चले गये। ब्रिटेन ने रुस में क्रान्ति आने और ईरान में उसके प्रभाव के लगभग समाप्त हो जाने के बाद यह समझौते किया जो पहले ईरान में उसका प्रतिस्पर्धी था किंतु जनता ने इस समझौता पर कड़ा विरोध व्यक्त किया। दूसरी ओर लीग आफ़ नेशन्ज़ और ब्रिटेन के प्रतिस्पर्धी देशों ने भी इस समझौते का विरोध किया। अंतत: यह समझौता समाप्त हो गया। इसके डेढ़ वर्ष बाद ब्रिटेन ने अपनी चालों से ईरान में विद्रोहकरवाया और रज़ाख़ान को सत्ता में पहुँचाया। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रुप से ईरान पर उसका वर्चस्व स्थापित हुआ।
9 अगस्त सन 1945 ईसवी को जापान के हीरोशीमा नगर पर अमरीका द्वारा पहला परमाणु बम गिराए जाने के तीन दिन बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति हैरी द्रूमैन के आदेश पर जापान के नागासाकी नगर पर भी परमाणु आक्रमण हुआ। कुछ ही क्षणों में जापान का यह नगर तबाह हो गया। इस अमानीय कार्रवाई के पीछे अमरीका का उददेश्य द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को हार भानने पर विवश करना और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना था। आक्रमण होते ही नागासाकी में 80 हज़ार लोग भयानक मौत मर गये और समय बीतने के साथ साथ मरने वालों की संख्या में बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई। इस आक्रमण से जापान हथियार डालने पर तो विवश हो गया किंतु विश्व वासियों के लिए यह भी स्पष्ट हो गया कि अमरीका जैसे परमाणु शक्ति सम्पन्न दुष्ट देश अपने हितों को ख़तरे में देखकर कोई भी अपराध करने से नहीं चूकेंगे।
9 अगस्त सन 1962 ईसवी को जर्मनी के शायर व लेखक हरमैन हीसे का निधन हुआ। वे 1877 में एक धार्मिक परिवार मे पैदा हुए थे। उन्होंने युवाकाल से शायरी आरंभ की और 20 वर्ष की आयु में अपनी शायरी का पहला संकलन प्रकाशित किया। 1912 में हिसे ने स्वीटज़रलैंड की नागरिकता ले ली और वहीं रहने लगे सन 1946 में उन्होंने साहित्य का नोबेल पुरुस्कार प्राप्त किया।
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19 ज़िलहिज्जा सन 1257 हिजरी क़मरी को ईरान के विख्यात धर्मगुरु व स्वतंत्रताप्रेमी संघर्षकर्ता आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद तबातबाई का जन्म हुआ। ईरान में संविधान क्रान्ति के समय उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे इस क्रान्ति के मुख्य नेताओं में गिने जाते है। उन्होंने संविधान क्रान्ति के वरिष्ठ नेता सैयद अब्दुल्ला बहबहानी के साथ मिलकर तत्कालीन क़ाजारियां सरकार के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया जो उस समय जनता को अपने अत्याचारों का निशाना बना रही थी। जनता की स्वतंत्रता और कल्याण के लिए संघर्ष करने के साथ ही सैयद मोहम्मद तबातबाई एक उच्च कोटि के धर्मगुरु भी थे और उन्होंने इसलामी शिक्षाओं के प्रचार व प्रसार के लिए दिन रात अथक प्रयास किया था।