Aug ०८, २०१६ १६:२० Asia/Kolkata

जब से 11 सितम्बर की घटना घटी है मुसलमानों को संदेह की नज़र से देखा जा रहा है और मुसलमानों को केवल मुसलमान होने के नाते आतंकवादी कहा जाने लगा है जबकि सच्चाई यह है कि आतंकवाद की सबसे बड़ी भेंट मुसलमान ही चढ़ें हैं।

हालांकि कुछ ऐसे संगठन अस्तित्व में ज़रूर आए हैं जो कहने को तो मुसलमान हैं लेकिन हक़ीक़त में इस्लामी नियमों और सिद्धांतों से उनका कुछ लेदा देना नहीं है और वह इस्लाम के नाम पर वास्तव में इस्लाम को ही नुक़सान पहुंचा रहे हैं और इस शांतिप्रेमी और मानवीय धर्म को बदनाम कर रहे हैं लेकिन यह एतिहासिक तथ्य है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद यूरोप में उभरा और वहीं से सारी दुनिया में फैला है। पश्चिमी सरकारें हालिया कुछ वर्षों में हर प्रकार की आतंकी घटना को मुसलमानों से जोड़ने का प्रयास करती हैं लेकिन इस सच्चाई को नहीं भूलना चाहिए कि 11 सितम्बर की घटना से पहले के वर्षों में आतंकी घटनाओं के क्या कारण थे। 11 सितम्बर से पहले घटने वाली आतंकी घटनाओं की संख्या 11 सितम्बर के बाद घटने वाली आतंकी घटनाओं से कम नहीं बहुत ज़्यादा हैं। उदाहरण स्वरूप वर्ष 1968 से 1992 के बीच हर साल औसतन विश्व स्तर पर 317 आतंकी घटनाएं होती रही हैं। यूरोप में ही वर्ष 1950 से 1991 तक 6151 आतंकी हमले हुए।

 

शीत युद्ध का ज़माना शुरू होने से पहले आतंकवाद कम्युनिज़्म, फ़ाशिज़्म और नाज़िज़्म के रूप में सामने आया और शीत युद्ध के काल में आतंकवाद कैपिटलिज़्म और कम्युनिज़्म के रूप में उभरा और हज़ारों बेगुनाहों की जानें चली गईं। पश्चिमी सरकारों की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार एडल्फ़ हिटलर के नेतृत्व में नाज़ियों ने वर्ष 1933 से 1945 के बीच 2 करोड़ लोगों के अपनी चरमपंथी विचारधारा की भेंट चढ़ा दिया। इनमें लगभग दस लाख लोग तो ऐसे थे जिनकी आयु 18 साल से कम थी।

 

फ़ासीवाद ने भी बेनीटो मसोलीनी के नेतृत्व में 3 लाख लोगों को मौत की नींद सुला दिया। स्टालिन के नेतृत्व में कम्युनिज़्म ने 2 करोड़ लोगों को अपनी ग़ैर इंसानी इच्छाओं की आग में झोंक दिया। अमरीका के नेतृत्व में पूंजीवाद ने भी सीआईए के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से भी तथा कम्युनिज़्म विरोधी संगठनों को हथियार भेजकर अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दीं। शीतयुद्ध के समय एक ओर अमरीका के नेतृत्व वाली शक्तियों और दूसरी ओर सोवियत युनियन के नेतृत्व वाले मोर्चे की ओर से विश्व में आज़ादी के समर्थन के नाम और कम्यनिज़्म के विरोध के लिए इसी प्रकार मज़दूर वर्ग के समर्थन के बहाने आतंकी कार्यवाहियां करवाई गईं। उदाहरण स्वरूप अमरीका की वियतनाम जंग या सोवियत युनियन की अफ़ग़ानिस्तान लड़ाई भी बहुत बड़ी संख्या में बेगुनाहों के मारे जाने का कारण बनी।

 

आतंकवाद तथा जनसंहार का पश्चिम की ओर से समर्थन शीत युद्ध के बाद भी जारी रहा। शीत युद्ध के बाद भी यूरोप और बल्कान में जातीय व राष्ट्रवादी युद्ध व आतंकवाद के दृष्य सामने आए जिनमें अधिक संख्या में महिलाएं और बच्चे मारे गए। इन लड़ाइयों में 3 लाख आम नागरिक मारे गए और हज़ारों महिलाओं से दुराचार किया गया। 11 जुलाई सन 1995 ईसवी को सर्ब सेना सर्बनीत्सा शहर में घुस गई और फिर सर्ब सैनिकों ने इस शहर में 8 हज़ार मुसलमानों का जनसंहार किया। यह जनसंहार ऐसे समय किया गया कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय सेनाओं के नियंत्रण वाला सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। आज भी आतंकवाद से लड़ाई, आज़ादी की रक्षा और मानवाधिकार की सुरक्षा के नाम पर मुसलमानों को हिंसा का निशाना बनाया जा रहा है।

 

पिछले दस साल के दौरान विश्व भर में होने वाले आतंकी हमलों के आकंड़ों की समीक्षा करने से पता चलता है कि लगभग 60 प्रतिशत आतंकी हमले मुसलमान क्षेत्रों में हुए हैं और लगभग 75 प्रतिशत मरने वाले मुसलमान होते हैं। अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय की निगरानी में काम करने वाले नेशनल कंसरशियम फ़ार्स स्टडी एंड रिएक्शन आन टेररिज़्म की रिपोर्टों के अनुसार आतंकी हमलों के स्थानों के भौगोलिक विभाजन तथा इन हमलों में मारे जाने वालों के बारे में समीक्षा से पता चलता है कि वर्ष 2015 में वैसे तो 92 देशों में आतंकी हमले हुए लेकिन 55 प्रतिशत से अधिक घटनाएं पांच देशों इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और नाइजेरिया में हुई हैं। इस वर्ष आतंकी हमलों में सबसे अधिक 6932 लोग इराक़ में तथा इसके बाद 5292 लोग अफग़ानिस्तान में, 4886 लोग नाईजेरिया में 2748 लोग सीरिया में और 1081 लोग पाकिस्तान में मारे गए। नाइजेरिया के बारे में यह बता देना भी ज़रूरी है कि इस देश की लगभग आधी आबादी मुसलमान है लेकिन फिर भी अधिकतर आतंकी हमले देश के उत्तरी भागों में बोको हराम संगठन की ओर से होते हैं और यह क्षेत्र मुसलमान बाहुल क्षेत्र हैं।

 

अध्ययनों से पता चलता है कि आतंकी हमले विश्व के 63 प्रतिशत आतंकी हमले मूल रूप से मुसलिम देशों जैसे इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजेरिया, मिस्र, बांग्लादेश, सीरिया और लीबिया में हुए जबकि विश्व के अन्य भागों में 37 प्रतिशत आतंकी घटनाएं हुई हैं। आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या को देखा जाए तो 78 प्रतिशत लोग मूल रूप से मुस्लिम बाहुल देशों जैसे इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजेरिया, मिस्र, बांग्लादेश, सीरिया और लीबिया के रहने वाले थे। 22 प्रतिशत लोग ही एसे थे जिनका संबंध अन्य क्षेत्रों से था।

 

यदि घायलों को देखा जाए तो 77 प्रतिशत से अधिक लोगों का संबंध इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजेरिया, मिस्र, बांग्लादेश, सीरिया और लीबिया से था और केवल 23 प्रतिशत लोगों का संबंध विश्व के अन्य भागों से था। रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2014 में 95 देशों में आतंकी हमले हुए लेकिन 60 प्रतिशत से अधिक घटनाएं इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, भारत और नाइजेरिया में हुए। इसी प्रकार आतंकी हमलों में होने वाली मौतों में 78 प्रतिशत का संबंध पांच देशों इराक़, नाइजेरिया, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और सीरिया से था। इस साल सबसे अधिक 9929 लोग इराक़ में 7512 लोग नाइजेरिया में, 4505 लोग अफ़ग़ानिस्तान में, 1757 लोग पाकिस्तान में और 1698 लोग सीरिया में मारे गए।

 

समीक्षाओं से पता चलता है कि विश्व भर के 57 प्रतिशत से अधिक आतंकी हमले मुसलिम क्षेत्रों और मुख्य रूप से इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया और सीरिया में हुए। विश्व के अन्य भागों में 43 प्रतिशत हमले हुए। आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो 77 प्रतिशत से अधिक लोगों का संबंध मूल रूप से मुसलिम बाहुल देशों इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया और सीरिया से था जबकि 23 प्रतिशत का संबंध अन्य देशों से था। घायलों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो 75 प्रतिशत से अधिक का संबंध मूल रूप से मुसलिम देशों इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया और सीरिया से था। केवल 25 प्रतिशत घायलों का संबंध विश्व के अन्य देशों से था।

 

आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2013 में भी 57 प्रतिशत आतंकी हमलों, 66 प्रतिशत मौतों और 75 प्रतिशत घायलों का संबंध तीन देशों इराक़ पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से था। इस साल इराक़ में 6378, अफ़ग़ानिस्तान में 3111 और पाकिस्तान में 2315 लोग आतंकी हमलों की भेंट चढ़े। क्षेत्रों के भौगोलिक विभाजन की दृष्टि से देखा जाए तो 67 प्रतिशत हमले मूल रूप से मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हुए इनमें इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया, यमन, सीरिया और सूमालिया में हुए। आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो 86 प्रतिशत मौतें मुस्लिम बाहुल देशों जैसे इराक़, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया, यमन, सीरिया और सूमालिया में हुईं। 14 प्रतिशत से कम मौतें विश्व के अन्य क्षेत्रों की हैं। घायलों पर नज़र डाली जाए तो 82 प्रतिशत घायलों का संबंध मुसलिम बाहुल क्षेत्रों व देशों जैसे इराक, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नाइजेरिया, यमन, सीरिया और सूमालिया से था। 17 प्रतिशत घायल का संबंध अन्य क्षेत्रों से था।

 

अमरीका के आतंकवाद निरोधक राष्ट्रीय केन्द्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 से 2011 के बीच आतंकी हमलों में मरने वाले 80 प्रतिशत से अधिक मुसलमान थे। वर्ष 2012 में प्रकाशित होने वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि धर्म को दृष्टिगत रखा जाए तो पांच साल के दौरान आतंकी हमलों में मारे गए लोगों में 82 से 97 प्रतिशत का संबंध इस्लाम धर्म से था।

इसी प्रकार इसी संस्था ने वर्ष 2009 में अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अलक़ायदा ने अन्य धर्मों के लोगों की तुलना में सात गुना अधिक मुसलमानों को अपने हमलों का निशाना बनाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2014 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इराक़ में दाइश का मुख्य निशाना मुसलमान हैं।

 

वर्ष 2013 में नेशनल कंसरशियम फार टेररिज़्म स्टडीज़ और इंटरनैशनल टेररिज़्म स्टैटिस्टिक सेंटर ने अमरीका की मरीलैंड युनिवर्सिटी में अपनी संयुक्त रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि वर्ष 2013 और 2014 के दौरान लगभग 50 प्रतिशत आतंकी हमलों और इन हमलों में 60 प्रतिशत मरने वालों का संबंध तीन देशों इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से थे। यह तीनों ही मुसलिम बाहुल कदेश हैं।

 

दस साल से अधिक समय हो रहा है कि जहां कहीं भी आतंकी हमला होता है तत्काल मुसलमानों का नाम ज़बान पर आ जाता है। एसा लगता है कि लोगों के की नज़र में इस बात का महत्व ज़्यादा है कि आतंकी हमला करने वालों का संबंध किस धर्म से था जबकि पूरे विश्व में आतंकवादी की सबसे बड़ी भेंट ख़ुद मुसलमान चढ़ रहे हैं।