घर परिवार और बच्चे २१
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो अनुशासनहीन हो और सफल हो?
आपकी नज़र में एक ऐसे व्यक्ति की सफलता की अधिक संभावना है जो अनुशासित और व्यवस्थित है या ऐसे व्यक्ति की जो अनुशासनहीन और अव्यवस्थित है। इन सवालों का जवाब देते समय हमें ज्ञात होगा कि हम सभी इस बात पर सहमत हैं कि सफल जीवन का एक मूल सिद्धांत, अनुशासन है।
अनुशासन, जीवन का एक ऐसा नियम है, जिसके पालन से इंसान की गतिविधियों और आचरण में एक प्रकार की व्यवस्था उत्पन्न हो जाती है और वह जीवन बिताने का सही ढंग एवं समय का सही प्रयोग करना सीख जाता है। यद्यपि अनुशासन इंसान के आचरण और उसके रहन सहन में प्रकट होता है, लेकिन उसकी जड़ें इंसान के मन और विचारों में होती हैं। अव्यवस्थित मन और विचार इंसान के जीवन को भी अव्यवस्थित बना देते हैं और व्यवस्थित एवं अनुशासित विचार इंसान के आचरण को व्यवस्थित बनाते हैं।
इंसान को अनुशासन बचपन से ही सिखाया जाना चाहिए। बड़े होकर अनुशासन सीखना बहुत कठिन कार्य है। इंसान के जीवन में अनुशासन के महत्व के लिए इतना ही कहना काफ़ी है कि हज़रत अली (अ) ने इस महत्वपूर्ण गुण को एक अन्य अति महत्वपूर्ण मानवीय गुण के साथ बयान किया है। अपनी संतान और उन समस्त लोगों को संबोधित करते हुए कि जिन तक हज़रती अली (अ) का यह संदेश पहुंचेगा, कहते हैं, मैं तुम्हें ईश्वर से डरने और अनुशासन की सिफ़ारिश करता हूं।
अनुशासन शब्द दो शब्दों अनु और शासन से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है स्वयं पर शासन करना अर्थात स्वयं को निंयत्रण करना। अंग्रेज़ी में इसके लिए डिसिपिलिन शब्द का प्रयोग किया जाता है। अनुशासन से तात्पर्य भी यही है कि इंसान व्यक्तिगत रूप से अपने व्यवहार और गतिविधियों में एक विशेष नियम का पालन करे और उन्हें व्यवस्थित बनाए। स्वयं को निंयत्रित करे और अपना मार्गदर्शन करे और परिणाम पर नज़र रखते हुए कोई काम करने के लिए क़दम आगे बढ़ाए। इंसान अपने जीवन के हर चरण में अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदारी होता है, इस अंतर के साथ कि किशोरावस्था में यह ज़िम्मेदारी, क़ानूनी रूप भी धारण कर लेती है।
यहां यह बिंदु उल्लेखनीय है कि कोई बड़ी ताक़त, सज़ा का डर, कड़े से कड़ा क़ानून, सीमितता, मां-बाप और शिक्षक हर पल और जीवन के हर चरण में इंसान को निंयत्रित नहीं कर सकते। इसलिए इंसान की इस प्रकार परवरिश की जानी चाहिए कि वह स्वयं अपने व्यवहार और आचरण को निंयत्रित कर सके। वह जीवन के हर चरण में बुद्धिमानी से व्यवहार कर सके और अपने कार्यों को योजना के अनुसार अंजाम दे सके। इस अर्थ में अनुशासन, शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण के मूल उद्देश्य का निर्धारण करता है।
दुर्भाग्यवश कुछ मां-बाप अपने बच्चों को अपने आचरण और व्यवहार से प्रभावित करने के स्थान पर केवल उन्हें निंयत्रित करना चाहते हैं। इसलिए उनके लिए सीमाओं का निर्धारण करते हैं, आदेश जारी करते हैं, हुक्म चलाते हैं और उन्हें धमकियां और सज़ा देते हैं। निश्चित रूप से बच्चों को निंयत्रित करने के लिए उठाए जाने वाले इस प्रकार के क़दमों का कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आएगा। अन्य कुछ मां-बाप इस संबंध में अपनी व्यक्तिगत रूचि के आधार पर बच्चों के लिए क़ानून और नियम बनाते हैं। कभी हम देखते हैं कि मां-बाप अपने बच्चों को ऐसे कामों के लिए मजबूर करते हैं कि जो वे ख़ुद करना चाहते थे लेकिन नहीं कर सके। दूसरे शब्दों में मां-बाप अनचाहे रूप से अपने बच्चों को अपने जैसा बनाना चाहते हैं और इसे पालन-पोषण का नाम देते हैं।
लेबनानी विद्वान ख़लील जुबरान के अनुसार, आप अपने बच्चों को अपनी मोहब्बत दे सकते हैं, लेकिन उन पर अपनी पसंद नापसंद और महत्वकांक्षाओं को थोपने का प्रयास नहीं कर सकते। आप उनके शरीर को घरों में बंद करके रख सकते हैं, लेकिन उनकी आत्मा की परवरिश भविष्य के आकार के अनुसार होनी चाहिए। आप उनकी तरह होने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी तरह बनाने की कोशिश मत कीजिए, इसलिए कि जीवन लौटता नहीं है और बीते हुए कल की क़ैद में नहीं ठहरता। हम अपने बच्चों के मालिक नहीं हैं, हम उनके संरक्षक हैं।
हालांकि बच्चों को अनुशासन सिखाने का मतलब कड़े नियम बनाना नहीं है, इसलिए कि बच्चे कड़े नियमों को सहन नहीं कर सकते। बल्कि इसका अर्थ बुरी आदतों से बचाना और अच्छी आदतों का आदी बनाना है। उदाहरण के रूप में बच्चों के रोने और चिल्लाने और ग़लत मांगों के सामने झुकना भी उन्हें अनुशासनहीनता सिखाना है।
विलियम सीज़र का कहना है, जब बच्चे किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि अब उन्हें पूर्ण रूप से निंयत्रण में रखना संभव नहीं है। इसलिए कि युवाओं का अधिकांश समय ऐसे लोगों के साथ और ऐसी संस्थाओं में गुज़रता है कि जो घर के बाहर हैं। स्कूल, शिक्षक, सहपाठक, खेल का मैदान, दोस्त, टीवी और कम्पयूटर सबने उनके चारो ओर एक घेरा बना रखा है। ऐसी स्थिति में हमें उनके साथ अपना संपर्क बढ़ाना चाहिए और उन पर अपना असर डालने के लिए उनके साथ समय बिताना चाहिए। बच्चों को कम से कम महीने में एक बार अपने साथ बाहर ले जायें और कुछ घंटे आमने सामने गुज़ारें। इस दौरान उनसे उनकी महत्वकांक्षाओं, आशाओं और इच्छाओं के बारे में बातचीत करें। इस बात को लेकर चिंतित न हों कि वे आपकी बातों को गंभीर रूप में ले नहीं ले रहे हैं। वर्षों तक बच्चों के सलाहकार के रूप में मुझे जो अनुभव प्राप्त हुआ है, उसके आधार पर कह सकता हूं कि अधिकांश बच्चों को अपने मां-बाप से इस बात की तुलना में कि वे हमारे जीवन में हस्तक्षेप करते हैं, इस बात को लेकर अधिक शिकायत थी कि वे उनके मामलों में कोई रूची नहीं लेते हैं।
बच्चों को निंयत्रण करने के लिए तानाशाही और ज़ोर ज़बरदस्ती की शैली को त्यागना होगा, बल्कि उनके जीवन पर गहरी छाप छोड़ने के लिए तार्किक एवं भावनात्मकता का रास्ता चुनना होगा, ताकि धीरे धीरे उनकी इच्छाओं और रूचियों को प्रभावित किया जा सके। हम सब अपने कामों को व्यवस्थित करने के लिए कुछ नियम बनाते हैं। उदाहरण स्वरूप, कार्यालय में फ़ाइलों को विभिन्न रंगों और नम्बरों के साथ रखते हैं। कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने और समय की पांबदी के लिए उन्हें डायरी में दर्ज करते हैं। कुछ इसी तरह की शैली अपनाकर अपने बच्चों के कामों को व्यवस्थित करने में उनकी सहायता कर सकते हैं और उन्हें अनुशासित बना सकते हैं।
अगर हम अपने बच्चों को हमेशा यह बताने की कोशिश करें कि किस तरह चीज़ों को उनके स्थान पर रखें, तो उन्हें अपने जीवन को व्यवस्थित बनाने में हमेशा दूसरों की सहायता की ज़रूरत महसूस होगी।
जो बच्चे अनुशासित होते हैं, वे दूसरों की तुलना में स्वयं पर अधिक नियंत्रण रख सकते हैं और उनमें अधिक आत्मविश्वास होता है।
वे अधिक ज़िम्मेदार होते हैं और ख़ुश रहते हैं और घर, स्कूल एवं समाज में दूसरों की सहायता करते हैं। वे इस बात को लेकर आश्वस्त होते हैं कि उनके दृष्टिकोण और भावनाओं पर ध्यान दिया जाएगा और अगर उनसे कोई ग़लती हो भी गई तो उसके लिए उनके साथ मार-पीट नहीं की जाएगी, बल्कि उनके मां-बाप उनसे हर स्थिति में प्यार करते हैं।
वे यह भी जानते हैं कि अपनी ग़लतियों और ग़लत व्यवहार के लिए वे ज़िम्मेदार हैं। वे हमेशा अच्छे विकल्पों का चयन अपनी इच्छा अनुसार करते हैं, न कि किसी डर और भय के कारण। अनुशासित बच्चे अपने इर्दगिर्द के माहौल से ख़ुश रहते हैं, और उसे अधिक ख़ुशहाल बनाने का प्रयास करते हैं, इसी कारण वे दूसरों को आसानी से अपना दोस्त बना लेते हैं।
हम अपने बच्चों को कैसे अनुशासित बनाते हैं, यह उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उन्हें अनुशासित बनाते हैं या नहीं। बच्चों को अनुशासित बनाने का मतलब यह नहीं है कि उन पर चिल्लाया जाए और नाराज़गी ज़ाहिर की जाए, बल्कि इसके लिए बहुत ही विनम्रतापूर्ण व्यवहार की ज़रूरत है। इस प्रकार आप अपने बच्चे से आसानी से संपर्क स्थापित कर सकते हैं और उसे यह समझाने में सफल हो सकते हैं कि यह ग़लत व्यवहार अस्वीकार्य है और इससे बेहतर विकल्प का चयन करके अपनी ग़लती को सुधारा जा सकता है।
मां-बाप की सबसे कठिन, महत्वपूर्ण एवं गंभीर ज़िम्मेदारियों में से एक बच्चों को अनुशासन सिखाना है और इसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समय, ऊर्जा और पर्याप्त धैर्य की ज़रूरत है। आज की भाग दौड़ वाली जीवन शैली प्रभावी अनुशासन के रास्ते में एक रुकावट है।
प्रभावी अनुशासन के लिए बच्चे के उचित एवं स्वीकार्य व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिए। एक अनुशासित व्यक्ति अपनी ख़ुशियों पर दूसरों की ख़ुशियों को प्राथमिकता दे सकता है और वह दूसरों की ज़रूरतों पर ध्यान रखता है।
सम्मान, प्रभावी अनुशासन का आधार है। बच्चे को अपने मां-बाप, शिक्षक और अन्य लोगों का सम्मान करना आना चाहिए। अतः प्रभावी अनुशासन से तात्पर्य ऐसा अनुशासन है कि जो परस्पर सम्मान के आधार पर हो। इसका लक्ष्य, बच्चे को ख़तरों से सुरक्षित रखना, आत्म अनुशासन सीखने में सहायता करना, स्वस्थ विवेक का विकास करना और ज़िम्मेदारी की भावना उत्पन्न करना है।
इस लक्ष्य तक पहुंचने में पेश आने वाली रुकावटों में से एक बड़ी रुकावट कथनी और करनी में अंतर होना है।