घर परिवार और बच्चे २२
हमने उल्लेख किया था कि अनुशासन, जीवन का एक ऐसा सिद्धांत है, जिसके पालन से इंसान की गतिविधियों और आचरण में एक प्रकार की व्यवस्था उत्पन्न हो जाती है और वह जीवन बिताने का सही ढंग एवं समय का सही प्रयोग करना सीख जाता है।
इस्लाम धर्म ने भी अनुशासित जीवन पर काफ़ी बल दिया है। हज़रत अली (अ) ने इस महत्वपूर्ण गुण को एक अन्य अति महत्वपूर्ण मानवीय गुण के साथ बयान किया है। अपनी संतान और उन समस्त लोगों को संबोधित करते हुए कि जिन तक हज़रत अली (अ) का यह संदेश पहुंचेगा, कहते हैं, मैं तुम्हें ईश्वर से डरने और अनुशासन की सिफ़ारिश करता हूं।
सामान्य रूप से बच्चों को अनुशासित बनाने के लिए मां-बाप तीन तरह की शैलियां अपनाते हैं। कुछ लोग बच्चों को अनुसासित बनाने के लिए उन्हें डराते धमकाते हैं, इसलिए कि उनका मानना है कि प्राकृतिक रूप से बच्चे शरारती और शैतान होते हैं। इसलिए उन्हें शरारतों और शैतानी से रोकने के लिए विभिन्न प्रकार की सज़ाओं का प्रयोग करके उन्हें निंयत्रण में रखना चाहिए।
अन्य कुछ लोगों का मानना है कि बच्चे प्राकृतिक रूप से मासूम होते हैं, इसलिए उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए, ताकि जो उनके दिल में आए पूरी आज़ादी के साथ उसे अंजाम दे सकें और अपनी इच्छा पूरी कर सकें। इसलिए उन्हें अनुशासित बनाने की कोशिश करके हमें उनके हाथ पैर नहीं बांध देने चाहिएं, बल्कि उन्हें इतनी आज़ादी मिलनी चाहिए कि वे अपनी प्रतिभा को निखार सकें।
अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे पहले दृष्टिकोण के अनुसार प्रशिक्षण पाते हैं और इस शैली पर चलकर उनका पालन-पोषण होता है तो वे दब्बू हो जाते हैं और बड़े होकर भी उनमें आत्मविश्वास की कमी झलकती है। इस प्रकार के वातावरण में बड़े होने वाले बच्चों से किसी अद्भुत काम को अंजाम देने या नई पहल की आशा नहीं की जा सकती।
दूसरी शैली के मुताबिक़ परवरिश पाने वाले बच्चे न केवल यह कि एक ज़िम्मेदार नागरिक नहीं बन सकते, बल्कि अपना और दूसरों का जीवन भी ख़तरे में डालते हैं। इसलिए कि उन्होंने किसी क़ानून या नियम का पालन करना ही नहीं सीखा। इस प्रकार के लोगों का व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन तबाह हो सकता है।
यद्यपि तीसरी शैली पहली दो शैलियों से इस अर्थ में भिन्न है कि उसमें उक्त कमियां नहीं पायी जातीं। इस शैली के अनुसार, मां-बाप तार्किक रूप से अनुशासन को अपने बच्चों के स्वभाव का भाग बना देते हैं। इस प्रकार के मां-बाप बच्चों की घुट्टी में अनुशासन को शामिल कर देते हैं, अर्थात बच्चे के जन्म के बाद से ही वह इस उद्देश्य को मद्देनज़र रखते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार, अनुशासन का अर्थ इंसान को सिर्फ़ आज्ञाकारी बनाना और आदेश देना ही नहीं है, बल्कि बच्चे के व्यक्तित्व का पूरा सम्मान करते हुए उसे यह सिखाया जाता है कि वह अनुशासित जीवन व्यतीत करके सफल जीवन का भरपूर आनंद ले और अपना लक्ष्य हासिल करे।
यहां हम बच्चों को अनुशासित बनाने और उन्हें अनुशासन सिखाने के कुछ नियमों का उल्लेख कर रहे हैं, जिनके अनुपालन से मां-बाप और प्रशिक्षक निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
बच्चे के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार और विन्रमता से पेश आना इस लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में सबसे पहला क़दम है। बच्चे उस व्यक्ति पर भरोसा करते हैं, जो उनके साथ हमदर्दी करता है और मोहब्बत से पेश आता है। जिस व्यक्ति पर वह विश्वास करते हैं उसकी बात पर ध्यान देते हैं।
अनुशासन सिखाते समय बच्चों के प्रोत्साहन को नहीं भूलना चाहिए। आप उस समय को याद कीजिए कि जब अंतिम बार आपका प्रोत्साहन किया गया हो। उस पल आप कैसा महसूस कर रहे थे? अगर प्रोत्साहन सही तरीक़े और समय पर किया गया होगा तो अब भी वह आपको एक मीठा एहसास करा रहा होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रोत्साहन से लोगों में आत्मविश्वास बढ़ता है। प्रोत्साहन मन और आत्मा को ऊर्जा प्रदान करता है और आगे बढ़ने के लिए भूमि प्रशस्त करता है।
प्रोत्साहन को प्रभावी बनाने के लिए ज़रूरी है कि वह संतुलित हो और ईमानदारी के साथ हो। इसके अलावा प्रोत्साहन सीधे रूप से और विशेष तौर पर होना चाहिए। एक बच्चे का प्रोत्साहन करते समय इसके बजाए कि कितनी अच्छी आर्ट है, यह कहना, तुम्हारी चित्रकारी में रंगों की विविधता और चयन ने मुझे बहुत प्रभावित किया है अधिक प्रेरित एवं उत्साहित करता है। एडिसन के बारे में कहा जाता है कि बचपने में वह एक दब्बू और अयोग्य क़िस्म का बच्चा था और सामान्य से अधिक बड़ा सिर होने के कारण लोग उसे एक असामान्य लड़का समझते थे। लेकिन ख़ुद एडिसन का कहना है कि अगर मेरी मां मुझे प्रेरित नहीं करती और मेरा साहस नहीं बढ़ाती तो मैं अविष्कारक नहीं बन सकता था।
बच्चों को अनुशासित बनाने के लिए आदर्श पेश करें। बच्चे के लिए सबसे पहला आदर्श उसके मां-बाप ही होते हैं। इसलिए ख़ुद मां-बाप को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और अपने व्यवहार एवं आचरण से बच्चों को अनुशासन सिखाना चाहिए।
बच्चों तक अनुशासन का संदेश केवल ज़बान द्वारा नहीं जाना चाहिए, बल्कि व्यवहार से उन्हें यह संदेश दिया जाना चाहिए। ईरान के विद्वान शहीद मुतहरी कहते हैं कि इंसान को व्यवहार से ज़्यादा कोई चीज़ प्रभावित नहीं करती है। आप देखते हैं कि लोग दर्शनशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों की तुलना में ईश्वरीय दूतों का अधिक अनुसरण करते हैं।
उसका कारण यह है कि दर्शनशास्त्री और बुद्धिजीवी अकसर थ्योरी अर्थात दृष्टिकोण पेश करते हैं। लेकिन ईश्वरीय दूत और प्रतिनिधि ऐसा नहीं करते, बल्कि वे पहले ख़ुद कोई काम अंजाम देते हैं, उसके बाद उसकी सिफ़ारिश करते हैं। इंसान जब कोई सिफ़ारिश करने से पहले ख़ुद उसका पालन करता है, तो उसका असर कई गुना अधिक हो जात है।
अगर मां-बाप या प्रशिक्षण ख़ुद ही अनुशासित नहीं होंगे तो निरंतर अनुशासन का पाठ पढ़ाने और बच्चों के जीवन से अव्यवस्था को दूर करने के प्रयासों का कोई लाभ नहीं होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चे अपना अधिकांश ज्ञान आंखों से देखकर सीखते हैं और अपने आदर्श के रूप में ढलना चाहते हैं।