Aug १३, २०१६ १४:४७ Asia/Kolkata

बच्चों को अनुशासित बनाने और पारिवारिक जीवन को व्यवस्थित रखने के लिए बच्चों की आयु और अन्य परिस्थितियों को मद्देनज़र रखते हुए नियम बनाए जाने चाहिएं।

इसी प्रकार, बच्चों की आयु के साथ साथ नियमों में भी परिवर्तन करते रहना चाहिए। अगर पांच वर्ष के बच्चे को हम यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि रोड क्रॉस करते समय हमारा हाथ थामे रहे तो यह तार्किक बात होगी। लेकिन अगर यही बात हम 15 वर्षीय लड़के को समझाने का प्रयास कर रहे हैं, तो इसे किसी भी रूप में तार्किक नहीं कहा जा सकता और किसी युवक से इस तरह की आशा रखना सही नहीं है।

 

इसी प्रकार, बच्चों के कांधों पर बड़ी ज़िम्मेदारियों का बोझ नहीं लादना चाहिए। इसलिए कि बच्चे इस तरह की ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकते, परिणाम स्वरूप मिलने वाली असफलता उनके खाते में लिखी जाती है, जिसका परिणाम मनमुटाव, अलग थलग पड़ जाना और झूठ के रूप में सामने आता है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हवाले से फ़रमाया है कि ईश्वर उस व्यक्ति पर अपनी कृपा करे जो अच्छाई में अपने बच्चों की सहायता करे। किसी ने पैग़म्बरे इस्लाम से प्रश्न किया किस प्रकार अच्छाई में उनकी सहायता की जा सकती है? हज़रत ने फ़रमाया, बच्चे ने अपनी क्षमता के अनुसार जो कुछ अंजाम दिया है, उसे स्वीकार करे और जो काम बच्चे के लिए अंजाम देना कठिन है, उसका आदेश न दे।

 

घर को व्यवस्थित रखने और अनुशासन बनाए रखने के लिए जो नियम बनाए जा रहे हैं, उनमें परिवार की स्थिति को मद्देनज़र रखा जाना चाहिए और परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ साथ नियमों में भी बदलाव करते रहना चाहिए। इस संदर्भ में कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पारिवारिक नियम बच्चों की आयु और परिवार की परिस्थितियों के अनुसार होने चाहिएं। इसके लिए कोई निर्धारित एवं सार्वभौमिक नियम नहीं है। आप अपने परिवार, बच्चों और समाज के मूल्यों एवं परिस्थितियों के मद्देनज़र नियम बनाएं।

 

बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए अनुशासन के लाभों और अनुशासनहीनता के दुष्प्रभावों का उल्लेख किया जाना ज़रूरी है, ताकि उन्हें उसके अति महत्वपूर्ण मूल्यों और घातक परिणामों का ज्ञान हो सके और उनमें इसके लिए उत्साह पैदा हो। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर बच्चे मां-बाप या शिक्षक के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं, तो उसका मूल कारण उस आदेश में निहित लाभों और मूल्यों से अनभिज्ञता है। इसका दूसरा कारण बिना समझे बूझे आदेश जारी कर देना और उसके बारे में कोई स्पष्टीकरण न देना है। इसके अलावा, किसी ऐसे काम के लिए आदेश दिया जा रहा है, जो बच्चे की शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता के अनुसार नहीं है। इसका एक अन्य कारण, आदेश देने की सही शैली से अनभिज्ञता हो सकता है।

 

बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय तानाशाही रवैय्ये से बचना चाहिए। इसलिए कि इसके घातक परिणाम निकलते हैं। अनुशासन का पाठ बिना विनम्रता और क्षमा के नहीं पढ़ाया जा सकता। नियमों के उल्लंघन की समस्या का बहुत ही धैर्य से सामना करना चाहिए लेकिन उनका अनुपालन करवाए जाने पर अटल रहना चाहिए।

 

घर में अनुशासन और व्यवस्था की स्थापना के लिए जो नियम हम बना रहे हैं, उनके कार्यान्वयन के लिए हमें दृढ़ता से काम लेना चाहिए और हिचकिचाहट से बचना चाहिए। इसलिए कि अगर हम ढिलाई एवं हिचकिचाहट से काम लेंगे तो बच्चों को इसका ग़लत संदेश जाएगा और अनुशानहीनता में उनका रुझान बढ़ेगा। बच्चे अगर हमारे संकोच से अवगत हो जाते हैं तो वह हमारी बातों को गंभीरतापूर्ण नहीं लेते और हमसे वाद-विवाद करने लगते हैं। संभव है वे असमंजस में पड़ जाएं और समझ ही न सकें कि इस काम को अंजाम दें या अंजाम न दें। उल्लेखनीय है कि बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए निरंतरता एवं पूर्ण दृढ़ता दिखानी चाहिए।

 

अनुशासन सिखाने और ग़लत व्यवहार को सुधारने के लिए एक एक क़दम आगे बढ़ने की ज़रूरत होती है। सही आदतों को अपनाने के लिए सही समय की प्रतीक्षा की ज़रूरत होती है और तुरंत ऐसा होना संभव नहीं होता है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक एक क़दम आगे बढ़ा जाए और वर्तमान परिस्थितियों को नज़र में रखा जाए।

 

बच्चों को अनुशासित बनाने की प्रक्रिया में एक अन्य उपयोगी सिद्धांत, उनकी कुछ ग़लतियों के प्रति अनजान बनना और उन पर ऐसा ज़ाहिर करना है, मानो कुछ हुआ ही नहीं है। इसके दो लाभ हैं, पहला यह कि बच्चे का सम्मान बाक़ी रहता है, विशेषकर जब उसने वह ग़लती छुपकर की हो। इस प्रकार उसे अपने कर्म पर पुनर्विचार का अवसर मिल जाता है। दूसरे यह कि प्रशिक्षक का सम्मान और गरिमा बच्चे की नज़र में बाक़ी रहती है। इस संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, अनजान बनकर अपने मान सम्मान का सम्मान करो।

 

हज़रत अली (अ) प्रशिक्षक के अनजान बनने की शैली की प्रशंसा करते हुए कहते हैं, अनजान बनो, इसलिए कि तुम्हारा यह काम तुम्हारी प्रशंसा का कारण बनेगा। इस सिद्धांत का पालन जीवन के हर चरण में विशेष रूप से बचपन में प्रशंसनीय है, इसलिए कि बच्चा अनजाने में काफ़ी ग़लतियां करता है। अगर मां-बाप या प्रशिक्षक बच्चे की हर ग़लती पर सज़ा देने लगेंगे तो वे हमेशा सज़ा की स्थिति में ही रहेगा, जिसके घातक परिणाम निकल सकते हैं।

 

इसके अलावा बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए कुछ व्यवहारिक क़दम उठाए जा सकते हैं, जैसे कि मां-बाप या प्रशिक्षक को चाहिए पहले वे उस आदत या ग़लती को निर्धारित करें, जिसे वे सुधारना चाहते हैं। मोटे तौर पर कुछ कहने के बजाए निर्धारित मुद्दे पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। बच्चों से केवल इतना कह देना काफ़ी नहीं है कि नियमित रहो, बल्कि उसके लिए स्पष्ट करना चाहिए कि आप चाहते हैं वह पढ़ाई करने के बाद, अपनी किताबों और अन्य चीज़ों को व्यवस्थित रूप से रखे।

 

इस संदर्भ में दूसरा व्यवहारिक क़दम यह है कि आप बच्चे के सामने स्पष्ट कीजिए कि उससे आप क्या आशा रखते हैं। जो काम आप उसे बताना चाहते हैं, पहले उसे ख़ुद करके दिखायें। अगर आप बच्चे को यह बताना चाहते हैं कि कोई चीज़ मांगने के लिए रोने का सहारा न ले, तो उसे ऐसा करके बताईए और स्पष्ट कीजिए कि अगर रोकर वह कोई चीज़ प्राप्त करना चाहता है तो ऐसा नहीं होगा और वह चीज़ उसे नहीं दी जाएगी। इस प्रकार वह समझ सकता है कि आप उससे किया आशा रखते हैं।

 

अनुशासन सिखाने के लए तीसरा व्यवहारिक नियम यह है कि आप अपने दिशा निर्देशों को खेल के रूप में पेश करें। अगर आप बच्चों को खेल खेल में कोई चीज़ सिखा रहे हैं, तो निश्चित रूप से इस प्रकार आपका समय उनके साथ वाद विवाद और आदेशों का पालन कराने की तुलना में कम ख़र्च होगा। उदाहरण स्वरूप, यह कहना कि चलो हम मिलकर यह खिलौने एकत्रित करके इनके स्थान पर रखते हैं और यह काम शुरू करते हैं, गिनती गिनकर, एक, दो, तीन..., आहा, बहुत अच्छा, देखो हमने मिलकर तीन मिनट में यह काम पूरा कर लिया। वास्तव में तुमने बहुत अच्छी तरह अपना काम अंजाम दिया है, शुक्रिया। इस प्रकार, बच्चा खेल खेल में अपनी ज़िम्मेदारी अंजाम देना सीख जाएगा और इसमें उसे आनंद भी आएगा।

 

इसी प्रकार व्यक्तिगत रूप से बच्चे की प्रशंसा करने के बजाए उसके काम और आचरण की प्रशंसा या आलोचना की जानी चाहिए। उदाहरण स्वरूप, यह कहने के स्थान पर कि अब तुम कितने अच्छे बच्चे हो गए हो, कहा जाना चाहिए कि बहुत अच्छा है, तुम कितनी शांति से बैठो हो। इस प्रकार अपनी आलोचना या प्रोत्साहन को विशेष आचरण पर केन्द्रित करें। यह सिफ़ारिश ग़लत काम से रोकने में अधिक व्यवहारिक है। जैसे कि अगर आपका बच्चा नींद से उठने के बाद, बिस्तर नहीं समेटता है तो उससे यह न कहें कि तुम कितने गंदे बच्चे हो, बल्कि उसके स्थान पर कहना चाहिए कि तुम अपना बिस्तर नहीं समेटते तो हो इसलिए मैं तुमसे नाराज़ हूं।