Aug १३, २०१६ १६:२५ Asia/Kolkata

बच्चों का सही पालन-पोषण कैसे करें?

इस विषय के तहत आज हम बाल यौन शोषण की समस्या और उससे निपटने के उपायों की चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम बाल यौन शोषण की परिभाषा से परिचित होंगे और फिर इससे संबंधित सामाजिक वास्तविकता का अध्ययन करेंगे।

 

एक बात जो प्रकृति में कहीं दिखाई नहीं देती, वह है अपनी ही जाति के बच्चों के साथ बलात्कार या किसी भी प्रकार का यौनाचार। इन्सान ने इस विषय में प्रकृति के सभी नियमों का निर्मम उल्लंघन किया है।

 

यूनिसेफ़ के मुताबिक़, बाल यौन शोषण बच्चों के ख़िलाफ़ शारीरिक एवं मानसिक हिंसा का एक रूप है। बच्चों के साथ यह हिंसा घर, स्कूल, अनाथालय, हॉस्टल, गली, कार्यालय, जेल और हवालात में कहीं भी हो सकती है। इस प्रकार की हिंसा, बच्चे के सामान्य विकास को प्रभावित कर सकती है और बच्चे के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के कुछ मामलों में तो बच्चों की जान भी चली जाती है।

एक वयस्क व्यक्ति द्वारा किसी बच्चे के साथ कोई यौन कार्य करना, बच्चे के सामने कोई यौन कार्य करना, बच्चे को अश्लील सामग्री दिखाना, बच्चे के सामने अश्लील इशारे करना, अश्लील भाषा का प्रयोग करना, बच्चे के गुप्तांगों को छूना और ग़लत नियत से उसे चूमना जौसे कार्य बाल यौन शोषण हैं। 

 

एक व्यक्ति धमकी देकर या शक्ति का प्रयोग करके किसी बच्चे का यौन शोषण कर सकता है, लेकिन अक्सर प्यार और स्नेह का दिखावा करके बच्चों का यौन शोषण किया जाता है। अलग-अलग समाजों के आंकड़े देखकर हैरानी होती है कि इतने व्यापक स्तर पर बाल यौन शोषण का अभिशाप मौजूद है। जो अपराध दूसरे लोगों द्वारा, अजनबियों द्वारा किए जाते हैं, उन से बचने के उपाय अपेक्षाकृत आसान होते हैं, पर यौन शोषण के ज़्यादा अपराध घरों में और परिचित लोगों द्वारा किए जाते हैं।

 

आम धारणा के विपरीत बाल यौन शोषण का इतिहास मानव समाज के इतिहास जितना पुराना है। प्राचीन साहित्य, कला और विभिन्न संस्कृतियों का इतिहास इस वास्तविकता के साक्षी हैं कि हमेशा से ही बच्चों का यौन शोषण किया जाता रहा है। मानवीय समाजों में काफ़ी लम्बे समय तक यौन शोषण को हंसी मज़ाक़ का विषय समझा जाता था। प्रारम्भिक ग्रीक और रोमन हास्य नाटिकाओं के मंच पर छोटी लड़कियों का बलात्कार दर्शकों को हंसाने वाली बात समझा जाता था। इसी तरह परिवारों के लड़के पड़ोसियों या अन्य व्यक्तियों को यौन क्रियाओं के लिए उपहारित किए जाते थे। पहली एवं दूसरी शताब्दी में जीवन व्यतीत करने वाले प्लूटार्क ने अपने नैतिक निबंधों मोरालिया में उल्लेख किया है कि अपने बेटे किस तरह के व्यक्ति को यौन संग के लिए भेंट किए जाने चाहिएं। उस समय सात वर्ष की उम्र से ही लड़कों का इस तरह आदान-प्रदान सहज सामाजिकता थी। बच्चों के वेश्याघरों का ज़िक्र भी आता है। इस तरह की 'बाल सेवाएं' पैसा कमाने के लिए विधिवत मान्यता प्राप्त सेवाएं थीं।

 

हालांकि वर्तमान समय में कि जिसे आधुनिक काल कहा जाता है, इस अभिशाप में कहीं अधिक वृद्धि हो गई है और यह किसी एक संस्कृति या देश की सीमाओं में सीमित नहीं है।

निःसंदेह, वर्तमान समय में दुनिया भर में बड़े पैमाने पर बाल यौन शोषण की घटनाएं दर्शाती हैं कि हमने बच्चों की सही परवरिश और समय पर उन्हें यौन शिक्षा देने में कोताही से काम लिया है।

 

बाल यौन शोषण के कारण हर दिन लगभग 5 बच्चों की जान चली जाती है। हर 3 लड़कियों में से एक लड़की और हर 5 में से 1 लड़का 18 वर्ष की आयु से पहले बाल यौन शोषण का शिकार होता है। यौन शोषण का शिकार होने वाले 90 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी तरह दोषी व्यक्ति को जानते हैं और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 68 प्रतिशत बच्चे परिवार के ही किसी सदस्य या परिवार के किसी दोस्त के हाथों इस प्रकार अपमानित होते हैं।

 

सन् 2012 में 82.2 प्रतिशत बाल यौन शोषण के दोषियों की आयु 18 से 44 वर्ष थी, जिसमें से 39.6 प्रतिशत की आयु 25 से 34 के बीच थी। अमरीका में प्रतिदिन 4 बच्चों की जान यौन शोषण के कारण चली जाती है और इनमें से 70 प्रतिशत बच्चों की आयु 3 वर्ष से कम होती है।

 

लड़के 48.5 प्रतिशत और लड़कियां 51.2 प्रतिशत लगभग एक ही दर पर यौन शोषण का शिकार होते हैं। अमरीका में हर वर्ष लगभग 30 लाख यौन शोषण की शिकायतें दर्ज की जाती हैं। जेल में बंद रहने के दौरान, 14 प्रतिशत लड़कों और 36 प्रतिशत लड़कियों का यौन शोषण होता है। यौन शोषण का शिकार 25 प्रतिशत नाबालिग़ लड़कियां गर्भवर्ती हो जाती हैं।

 

भारत में कि जो दुनिया भर के 19 प्रतिशत बच्चों का घर है, सबसे अधिक बाल यौन शोषण की घटनाएं होती हैं। वर्ष 2011 में भारत में बाल यौन शोषण के 33,098 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2010 की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक थे। भारत में पर 155वें मिनट में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे का बलात्कार होता है, हर 13वें घंटे में 10 वर्ष की आयु से कम बच्चे का और प्रति 10 बच्चों में से एक का किसी न किसी तरह यौन शोषण किया जाता है। यह चौंकाने वाले आंकड़ें ऐसी स्थिति में सामने आए हैं कि जब भारत में कितने ही मामलों में कोई शिकायत दर्ज नहीं करवायी जाती है और वह संज्ञान में ही नहीं आ पाते।

 

यूनिसेफ़ द्वारा भारत में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 10 प्रतिशत लड़कियां 10 से 14 वर्ष के बीच यौन हिंसा का अनुभव करती हैं और 15 से 19 वर्ष के बीच यह दर 30 प्रतिशत है। कुल मिलाकर 42 प्रतिशत भारतीय लड़कियां अपने बचपन में यौन हिंसा का शिकार हो जाती हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2007 में देश भर में कराए गए अध्ययन के मुताबिक़, 15 करोड़ लड़कियां और 7 करोड़ 30 लाख लड़के किसी न किसी रूप में यौन हिंसा का शिकार हुए हैं।

 

बाल यौन शोषण का शिकार बच्चों में इस प्रकार के लक्षण पाए जा सकते हैं, चलने और बैठने में कठिनाई, गुप्तांगों में दर्द, बिना किसी मेडिकल कारण के शरीर के किसी अंग में दर्द, कपड़ों में ख़ून के धब्बे, दुखी और आत्मघाती व्यवहार, आक्रामक और हिंसक व्यवहार, पॉटी के लिए प्रशिक्षित होने के बावजूद पैंट या बिस्तर गीला करना, बहुत ज़्यादा रोना या एकदम ख़ामोश हो जाना, अवसाद, खाने पीने और सोने में कठिनाई, अलग थलग पड़ जाना और लोगों से दूरियां बना लेना और ख़ुद को नुक़सान पहुंचाना या आत्महत्या का प्रयास करना।

 

बाल यौन शोषण का एक महत्वपूर्ण कारण लापरवाही है। परिवार में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार कभी अनजाने में किया जाता है और कभी जानबूझकर। अनजाने में इस तरह की घटनाएं उस समय होती हैं जब, मां-बाप लापरवाही से काम लेते हैं। देखभाल के लिए बच्चों को दूसरों के हवाले कर देना इस तरह की लापरवाहियों में से एक है। उदाहरण स्वरूप, मां-बाप घर से बाहर जाना चाहते हैं और वह बच्चे को किसी पड़ोसी के हवाले कर देते हैं, या घर में बच्चे को ट्यूटर या किसी दोस्त के साथ अकेला छोड़ देते हैं।

 

ऐसे परिवारों में कि जिनमें महिलाएं घर से बाहर कार्य करती हैं और बच्चों को देखभाल के लिए दूसरे लोगों को सौंप दिया जाता है, बाल यौन शोषण की घटनाएं अधिक देखने में आती हैं। संभव है मां-बाप बच्चों का पूरी तरह ख़याल रखते हों, लेकिन खेलने या पढ़ने के लिए वे उन्हें पड़ोसी के घर भेज देते हैं। इस प्रकार बाल यौन शोषण के लिए वे भूमि प्रशस्त कर देते हैं। इसलिए कि बाल यौन शोषण के दोषियों की एक बड़ी संख्या पड़ोसियों और पारिवारिक दोस्तों की होती है।

 

बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार की समस्या से यूं तो समस्त समाज ग्रस्त हैं, लेकिन जीवन शैली का अंतर और विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों के कारण यह समस्या कुछ देशों और समाजों में कहीं अधिक है। उन्हीं में से एक बच्चों को पड़ोसियों के घर भेजने का चलन है, जो एशिया विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक है। इसी प्रकार, संयुक्त परिवारों और ऐसी जगहों पर बाल यौन शोषण की संभवाना अधिक होती है, जहां बच्चों से खेतों या उद्योगों में काम लिया जाता है। आम धारणा के विपरीत गांवों में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यहार की घटनाएं अधिक होती हैं। गांवों में बच्चों से खेतों पर काम लिया जाता है, जहां वे घंटों किसी व्यस्क व्यक्ति के साथ काम करते हैं, जिससे उनके यौन शोषण की संभावना में वृद्धि हो जाती है।

 

मां-बाप की लापरवाही के अलावा, आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग और नकारात्मक वातावरण में परवरिश पाने वाले लोग सुनियोजित ढंग से बाल यौन शोषण का कारण बनते हैं।

  

हमारे समाज के अधिकांश बच्चों को इसलिए इस ख़तरे का सामना करना पड़ता है, क्योंकि हमारे समाज में बाल यौन शोषण पर बातचीत एक टैबू या निषेध बात समझी जाती है। हालांकि अब यह टैबू टूटता जा रहा है और अब खुलकर इस पर बात करने का सिलसिला शुरू हो रहा है और बाल अधिकार एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा इस संबंध में अध्ययन किए जा रहे हैं।

 

जैसा कि कहा जाता है, रोकथाम उपचार से बेहतर है, बाल यौन शोषण की समस्या के संबंध में भी रोकथाम का महत्व बहुत अधिक है। हालांकि अध्ययनों से यह साबित होता है कि जब किसी समाज में कोई समस्या संकट का रूप धारण कर लेती है, उस समय सरकार या समाज को उसके समाधान की चिंता होती है। उदाहरण स्वरूप, वेश्यावृत्ति, नशा, मानवाधिकारों का हनन, महिलाओं की सुरक्षा आदि। बाल यौन शोषण की समस्या को भी इसी श्रेणी में डाला जा सकता है।