तेहरान के मुसल्ला का परीचय
इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से समूचे ईरान में जुमे की नमाज़ नियमित और वैभवशाली ढंग से आयोजित होती है।
इस मध्य तेहरान में आयोजित होने वाली जुमे की नमाज़ राजनीतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखती है। यद्यपि तेहरान की नमाज़े जुमा तेहरान विश्व विद्यालय में आयोजित होती है परंतु पूरे वर्ष में नमाज़े जुमा, नमाज़े ईदे फित्र और ईदे क़ुरबान या ईदुल अज़हा की नमाज़ों ने तेहरान में मुसल्ला के निर्माण को आवश्यक बना दिया।
ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की सहमति के बाद तेहरान के अब्बासाबाद क्षेत्र में मुसल्ला बनाने की योजना पारित हो गयी। उल्लेखनीय है कि तेहरान के मुसल्ला का निर्माण गम्भीर रूप से वर्ष 1995 से आरंभ हुआ जो अब भी जारी है।
तेहरान के मुसल्ले के निर्माण में इस बिन्दु पर ध्यान दिया गया कि भौगोलिक दृष्टि से वह तेहरान के केन्द्र में हो। चूंकि जुमे की नमाज़ जिन मस्जिदों में होती है प्रायः वे नगर के केन्द्र में होती हैं और तेहरान के मुसल्ले में जामे मस्जिद के निर्माण का भी सुझाव दिया गया। इसके अलावा अब्बासाबाद क्षेत्र की ज़मीन का विस्तृत होना और उसके पास कई राजमार्गों का होना और उसके किनारे से मैट्रो लाइन का गुज़रना मुसल्ले के निर्माण के लिए इस स्थान को चुने जाने का कारण है।
इमाम खुमैनी मुसल्ले का प्रयोग केवल प्रतिदिन और जुमे की नमाज़ के लिए नहीं हो रहा है बल्कि इस प्रकार से उसे बनाया गया है कि वहां विभिन्न कार्य किये जाते हैं। इमाम खुमैनी मुसल्ले में कांफ्रेन्स, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमीनार आयोजित करने के लिए बड़े- बड़े हाल, इसी प्रकार इस्लामी क्रांति संग्रहालय, एम्फ़ी थिएटर, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र, इस्लामी शिक्षा केन्द्र, हस्त उद्योग, इस्लामी कला, इस्लामी संस्कृति और प्रसार शिक्षा जैसे केन्द्र भी इस स्थान पर सक्रिय हैं। वर्ष 2001 के आरंभ से प्रतिवर्ष ईदे फित्र की नमाज़ वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई की इमामत में पढ़ी जाती है और वर्ष 2007 से अब तक मार्च व अप्रैल महीने में अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला आयोजित हो रहा है जबकि पवित्र कुरआन की प्रदर्शनी जैसे दूसरे कार्यक्रम भी इस स्थान पर होते हैं। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के वास्तुकार और डिज़ाइनर डाक्टर परवीज़ मुय्यद अहद हैं। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी की जो केन्द्रीय इमारत है वह क़िबला रुख है और जो दूसरी इमारतें बनायी गयी हैं वह भी क़िबला रुख हैं। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी की डिज़ाइनींग इस प्रकार की गयी है कि उसके निर्माण में चौदह मामूसों के नाम पर चौदह मीनारें, 12 इमामों के नाम पर 12 प्रांगण और पंजतन पाक के नाम पर पांच प्रवेश द्वार हैं। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के सबसे बड़े हाल की ऊंचाई कर्बला के 72 शहीदों के नाम पर 72 मीटर है जबकि पैग़म्बरे इस्लाम की उम्र के 63 वर्ष होने के दृष्टिगत जामे मस्जिद के गुम्बद की ऊंचाई 63 मीटर है। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी में सात गुंबद हैं जिनके निर्माण में ईरान के विभिन्न क्षेत्रों के गुंबदों के निर्माण को ध्यान में रखा गया है। इसका जो सबसे बड़ा गुंबद है वह इस्लामी जगत का सबसे बड़ा गुंबद है और उसके निर्माण में बहुत ही अनुपम व अद्वितीय शैली का प्रयोग किया गया है। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी में पंजतन पाक के नाम पर पांच प्रवेश द्वार हैं। यानी एक द्वार का नाम रसूल्लाह, दूसरे का नाम अमीरूल मोमिनीन, तीसरे का फ़ातेमतुज़्ज़हरा चौथे का इमाम हसन और पांचवें का इमाम हुसैन है। कांप्लेक्स के हर प्रवेश द्वार पर दो मीनारें और एक बड़ा हाल है और एक गुंबद तथा कई इमारते हैं।
मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के पूरे कांप्लेक्स में 14 मीनारे हैं जिनमें से दो मीनारे बन चुकी हैं और यह इस्लामी जगत की सबसे ऊंची और अद्वितीय मीनारे हैं। इन मीनारों की ऊंचाई 140 मीटर है और मीनारों के अंदर घुमावदार सीढ़ियां हैं जिनके बीच से लिफ्ट गुज़रती है।
सबसे बड़ा हाल जामेअ मस्जिद और मीनार के बीच में हौजी की 72 मीटर ऊंचा है और उसका मुहाना 110 मीटर है। इस अय्वान की डिज़ाइनिंग इस प्रकार से की गयी है कि जो हाल ईरान की दूसरी मस्जिदों में हैं उनसे यह अद्वितीय और भिन्न है।
मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के वातावरण को शीतलता प्रदान करने के लिए विभिन्न हौज़ों और फव्वारों का प्रयोग किया गया है। मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के केन्द्रीय हौज़ का क्षेत्रफल 2500 वर्ग मीटर है। इसी प्रकार मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी कांप्लेक्स को हरा -भरा बनाने के लिए जो डिजाइनींग की गयी है उसका विशेष महत्व है इस प्रकार से कि कांप्लेक्स के हर भाग को हरा- भरा करने को दृष्टि में रखा गया है।
नमाज़े जुमा के लिए जो पांच बड़े बड़े हाल बनाये गये हैं वे मुसल्लये इमाम ख़ुमैनी के केन्द्रीय प्रांगण के उत्तर में स्थित हैं। यह इमारत एक मंजिला है और 31500 वर्ग मीटर इसका क्षेत्रफल है। इसे 12 डिग्री के लेवल पर बनाया गया है और इसमें पुरुष नमाज़ पढ़ते हैं जबकि आधे मंज़िले का निर्माण 17 डिग्री के लेवल पर किया गया है और इसका क्षेत्रफल 8800 वर्गमीटर है और इसमें महिलाएं नमाज़ पढ़ती हैं। इसमें एक साथ 70.000 हज़ार लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं। इस इमारत के दक्षिणी भाग में इमामे जुमा का कमरा और वे सीढ़ियां हैं जिनके माध्यम से इमारत की छत से केन्द्रीय प्रांगण में पहुंचा जा सकता है। इसी प्रकार नमाज़ पढ़ने वाले मुसल्ला के पश्चिम से पश्चिमी प्रांगण में प्रवेश के बाद जुमे की नमाज़ के कमरे में पहुंच सकते हैं। जिन बड़े कमरों व हाल में नमाज़े जुमा होती है उनके भीतरी और बाहरी भागों को कीलाक्षर जैसी विभिन्न प्रकार की सुन्दर लीपियों में पवित्र पवित्र कुरआन के सूरों, दुआओं, हदीसों अर्थात कथनों और ईरान की इस्लामी व्यवस्था के वसीयत पत्र से सुसज्जित किया गया है। इसी प्रकार हाल की छत और दीवार की सुन्दरता देखकर वह शांति मिलती है जिससे इंसान महान ईश्वर के अलावा सब कुछ भूल जाता है।
मुसल्ला के दक्षिणी भाग में नमाज़ के लिए जो पांच बड़े बड़े हाल बनाये गये हैं उनके साथ- साथ आने- जाने के लिए रास्ते भी बनाये गये हैं और रास्ते के साथ- साथ हाल की जो दीवारें हैं उन्हें बहुत ही सुन्दर टाइलों और पवित्र कुरआन की आयतों से सुसज्जित किया गया है।
पश्चिमी प्रांगण के उत्तर और पश्चिम में जो सुन्दर सीढ़ियां हैं उनके माध्यम से मुसल्लाह के ऊपर हाल की छत पर पहुंचा जा सकता है। अलबत्ता मुसल्ला के दक्षिणी भाग के अंत में तेहरान की जामेअ मस्जिद बनाने की योजना है और इस माध्यम से वह चौड़े,ऊंचे और खुले प्रांगण से जुड़ जायेगी।
इमाम खुमैनी मुसल्ले का क्षेत्रफल पहले चरण में 6 लाख 72 हज़ार वर्ग मीटर है और भविष्य में उसमें वृद्धि का भी सुझाव दिया गया है। योजना के अनुसार लगभग 4 लाख 50 हज़ार वर्गमीटर पर इमारतों का निर्माण किया जायेगा जिसमें विभिन्न प्रांगण होंगे और उन सब में 10 लाख लोग एक साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं। इसी प्रकार इमाम खुमैनी मुसल्ले में एक ऐसा स्थान बयाये जाने का प्रस्ताव है जो ईरानी राष्ट्र के अपने महान नेता से विदा लेने की याद दिलाये।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इमाम खुमैनी मुसल्ले में जिन इमारतों का निर्माण हो चुका और जिनका निर्माण हो रहा है वे क्षेत्रफल और विभिन्न धार्मिक कार्यों को अंजाम देने में ईरान और मध्यपूर्व के स्तर पर अद्वितीय हैं।
इमाम खुमैनी मुसल्ले की इमारत के निर्माण में इस प्रकार कार्य किया गया है कि इस्लामी और ईरानी वास्तुकला को देखा जा सकता है। इमाम खुमैनी मुसल्ले की मुख्य इमारत को इस प्रकार से बनाया गया है कि भूकंप और तूफान आदि उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। वास्तव में इमाम खुमैनी मुसल्ले के निर्माण से जो ज्ञान व अनुभव प्राप्त हुए हैं उसने इस बात की संभावना उत्पन्न कर दी है कि ईरान की सतह पर बनने वाली दूसरी मस्जिदों और मुसल्लों के निर्माण में इन उपलब्धियों से लाभ उठाया जाये। उल्लेखनीय है कि इमाम खुमैनी मुसल्ला विशेषकर तेहरान मुसल्ले की इमारत के निर्माण के समस्त चरणों की वीडियो फिल्म भी बनाई गयी है।
यहां इस बिन्दु का उल्लेख आवश्यक है कि कुछ तकनीकी मामलों को ध्यान में रखने के कारण इमाम खुमैनी मुसल्ले के निर्माण के समय में वृद्धि हो गयी है। उदाहरण स्वरूप एक बड़े हाल का क्षेत्रफल 6600 मीटर है और उसमें कोई स्तंभ नहीं है। इस प्रकार की इमारत जहां वास्तुकला की दृष्टि से आकर्षक है वहीं इसके लिए निर्माण के लिए अधिक समय की आवश्यकता है। इसके अलावा चूंकि सुन्दर टाइलों के काम को भी दक्षता के साथ अंजाम देने में समय लगता है इसलिए हाल के भीतरी भागों को टाइलों से सुशोभित करने के लिए काफी समय की आवश्यकता है। विभिन्न हालों को पवित्र कुरआन के सूरों और उनकी आयतों से सुसज्जित किया गया है। इन हालों में जो शिलालेख लगाये जा रहे हैं उसे भी ईरान के बेहतरीन व कुशल सुलेखक अंजाम दे रहे हैं।
अंत में कहना चाहिये कि इमाम ख़ुमैनी मुसल्ला जहां बहुत बड़ा और वैभवशाली है वहीं उसमें मस्जिदों की सादगी को भी ध्यान में रखा गया है। इसके निर्माण में समृद्ध ईरानी और इस्लामी वास्तुकला को दृष्टि में रखना इस बात का सूचक है कि उसके निर्माण में इस्लामी आध्यात्मिकता को ध्यान में रखा गया है। इसके गुंबद, मीनारें, हाल और प्रांगण, दर्शक को आत्मिक शांति प्रदान करते हैं और मुसल्ला की दीवारों को देखकर जो पवित्र कुरआन की आयतों, दुआओं और कथनों आदि से सुसज्जि हैं, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम आध्यात्मिक वातावरण का भ्रमण कर रहे हैं। इस स्थान को सुन्दर ईरानी व इस्लामी वास्तुकला से सुसज्जित करना, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों को अंजाम देने के लिए एक प्रकार के आध्यात्मिक स्थान का सूचक है। प्रिय