सोमवार- 17 अगस्त
17 अगस्त सन 1945 ईसवी को इंडोनेशिया में हॉलैंड के साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष आरंभ हुआ।
यह संघर्ष अहमद सोकार्नो के नेतृत्व में 4 वर्षों तक जारी रहा। इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश पर हॉलैंड ने इन्डोनेशिया व हॉलैंड संघ के नाम से एक सरकार बनायी। 1956 में इंडोनेशिया गणराज्य ने उस संघ को भंग करके अपनी स्वाधीनता की घोषणा की और अहमद सोकर्नो को इंडोनेशिया का पहला राष्ट्रपति चुना गया।
- 17 अगस्त सन् 1743 को स्वीडन और रूस के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गये।
- 17 अगस्त सन् 1869 को पहली अंतर्राष्ट्रीय नौकायन प्रतियोगिता लंदन की टेम्स नदी पर आयोजित हुई।
- 17 अगस्त सन् 1914 में लिथवानिया ने जर्मनी के समक्ष आत्मसमर्पण किया।
- 17 अगस्त सन् 1917 में इटली ने तुर्की के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की।
- 17 अगस्त सन् 1947 को भारत की आज़ादी के बाद पहली ब्रिटिश सैन्य टुकडी स्वदेश रवाना हुई
- 17 अगस्त सन् पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ियाउल हक और अमेरिका के राजदूत अर्नोल्ड राफेल की 1988 को एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई।
- 17 अगस्त सन् 1999 को तुर्की में आए भीषण भूकंप के कारण कम हज़ारों लोगों की जान गई थी।
17 अगस्त सन 1960 ईसवी को पश्चिमी अफ्रीक़ा महाद्वीप के देश गैबन को स्वतंत्रता मिली।
15वीं शताब्दी के अंत में पुर्तग़ालियों ने पहली बार गैबन के क्षेत्र पर क़दम रखा किंतु इसवी विशेष प्रकार की भौगोलिक स्थिति के कारण 19वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र की सही अर्थ में खोज न हो सकी। 19वीं शताब्दी के मध्य में फ़्रांसीसी इस क्षेत्र पर उतरे और बर्लिन कॉन्फ़्रेंस में इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण मजबूत कर लिया किंतु 1960 में गैबन ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और यहॉ प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू हुइ।
267 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला यह देश कांगो कैमरुन और गिनी देशों के पड़ोस में स्थित है।
17 अगस्त सन 1987 ईसवी को हिटलर के सहयोगी रुडोल्फ हेस ने ब्रिटेन की जेल में आत्महत्या कर ली। वे सन 1894 ईसवी में जन्मे थे। वे नाज़ी दल के संस्थापकों तथा हिटलर सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों में थे। 1933 ईसवी से उन्होंने हिटलर के सहायक के रूप में कार्य किया। जर्मनी की पराजय के बाद नोरनबर्ग में युद्ध अपराध न्यायालय में रुडोल्फ हेस पर मुक़ददमा चला गया और फिर उन्हें आजीवन कारावास का दंड दे दिया गया। उन्होंने 17 अगस्त सन 1987 ईसवी को जेल में अपने हाथ से अपने जीवन का अंत कर लिया।
17 अगस्त सन 1988 ईसवी को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ियाउल हक़ और पाकिस्तान में अमरीकी राजदूत आर्नोल्ड रैफ़ेल एक विमान दुर्घटना में मारे गये। उनका विमान उड़ान भरने के बाद दुर्घटना ग्रस्त हो गया था।
17 अगस्त सन 1999 ईसवी को तुर्की के इज़मीर शहर में बहुत ही भयानक भुकम्प आया। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7 दशमलव 4 मापी गयी। इसमें 17 हज़ार से भी अधिक लोग मारे गये थे।
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27 मुर्दाद सन 1319 हिजरी शम्सी को ईरान के प्रसिद्ध चित्रकार कमालुल मुल्क के नाम से विख्यात मोहम्मद गफ़फ़ारी का पूर्वीत्तरी ईरान के नगर नीशाबूर में निधन हुआ। उन्होंने तेहरान दारुल फुनून नामक शिक्षा केंद्र में शिक्षा ग्रहण की और चित्रकला के क्षेत्र में जो उनका प्रिय विषय था कई सफलताएं अर्जित कीं। बाद में वे नासिरुद्दीन शाह क़ाजार के दरबार में काम करने लगे और फिर ईरान में रज़ा शाह के सत्तासीन होने के बाद उन्होंने उसका व उसके बेटे का चित्र बनाने से इंकार कर दिया जिसके कारण उन्हें नीशापुर के एक गांव में देशनिकाला दे दिया गया और वहीं उनका निधन हुआ।
27 मुर्दाद सन 1367 हिजरी शम्सी को इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 598 के अंतर्गत दोनों देशों के बीच औपचारिक रुप से युद्ध विराम की घोषणा की गयी। ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के पश्चात बड़ी शक्तियों ने जो अपने हितों को ख़तरे में देख रही थीं ईरान के विरुद्ध विभिन्न षडयंत्र आरंभ कर दिया। इसी परिप्रेक्ष्य में इराक़ के राष्ट्रपति सददाम हुसैन ने बड़ी शक्तियों विशेषकर अमरीका के प्रोत्साहन पर निराधार बहानों से ईरान पर आक्रमण कर दिया। परंतु ईरानी जनता के समर्थन से सेना ने कड़ा प्रतिरोध किया और इराक़ को उसके इरादों में सफल नहीं होने दिया।
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27 ज़िलहिज्जा सन 691 हिजरी क़मरी को फ़ार्सी के विश्व विख्यात कवि साहित्यकार और विद्वान शैख़ मुसलेहुद्दीन सादी शीराज़ी का निधन हुआ। उन्होंने अपनी मातृभूमि शीराज़ में आरंभिक शिक्षा की प्राप्ति के बाद उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए इराक़ के बग़दाद नगर का रुख़ किया। उन्होंने अपनी शिक्षा और ज्ञान को अंतिम चरण तक पहुँचाने के लिए विश्व के अनेक देशों विशेष रुप से इस्लामी देशों की यात्रा की। इन यात्राओं के दौरान शैख़ सादी ने विभिन्न समाजों और उनके रीति रिवाजों इसी प्रकार विभिन्न ऐतिहासिक धार्मिक एवं सामाजिक स्थलों के दर्शन किया। यात्रा पूरी करने के बाद उन्होंने अंत्यंत मूहत्वपूर्ण व लाभदायक पुस्तकें लिखीं।
उनकी पुस्तकों में गुलिस्तान और बूस्तान नामक पुस्तकें बहुत विख्यात हैं।