Aug २४, २०१६ १२:४१ Asia/Kolkata
  • गुरुवार - 27 अगस्त

27 अगस्त सन 1999 ईसवी को भारत ने करगिल संघर्ष के दौरान अपने यहाँ बंदी बनाये गये पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा किया।

  • 27 अगस्त सन 1870 ईसवी को भारत के पहले मज़दूर संगठन के रूप में श्रमजीवी संघ की स्थापना की गई।
  • 27 अगस्त सन 1781 ईसवी को टीपू सुल्तान के पिता  हैदर अली ने ब्रिटिश सेना के विरुद्ध पल्लीलोर का युद्ध लड़ा।
  • 27 अगस्त सन 1939 ईसवी को जेट इंधन वाले विश्व के पहले विमान ने जर्मनी से उड़ान भरी।
  • 27 अगस्त सन 1976 ईसवी को भारतीय सशस्त्र सेना की प्रथम महिला जनरल मेजर जनरल जी अली राम मिलिट्री नर्सिंग सेवा की निदेशक नियुक्त हुईं।
  • 27 अगस्त सन 1979 ईसवी को  आयरलैंड के समीप एक नौका विस्फोटित हुई।
  • 27 अगस्त सन 1985 ईसवी को नाइजीरिया में सैनिक क्रान्ति में मेजर जनरल मुहम्मद बुहारी की सरकार का तख्ता पलटा गया तथा जनरल इब्राहिम बाबनगिदा नये सैन्स शासक बने।
  • 27 अगस्त सन 1990 ईसवी को अमरीका ने वाशिंगटन स्थित इराक़ी दूतावास के 55 में से 36 कर्मचारियों को देश से निकाल दिया।
  • 27 अगस्त सन 1991 ईसवी को मालदोवा ने सोवियत संघ से स्वतंत्रता की घोषणा की।
  • 27 अगस्त सन 2003 ईसवी को 60 हजार वर्षों के अंतराल के बाद मंगलग्रह पृथ्वी के सबसे निकट पहुंचा।

27 अगस्त सन 1999 ईसवी को भारत ने करगिल संघर्ष के दौरान अपने यहाँ बंदी बनाये गये पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा किया। करगिल युद्ध, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल ज़िले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है। कश्मीर के अलगावादी छापामारों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया। भारत ने दावा किया था कि घुसपैठ करने वालों में पाकिस्तानी सैनिक भी हैं जबकि पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा था कि घुसपैठ करने वाले अलगावादी छापामार हैं और पाकिस्तानी सेना उनकी केवल सहायता कर रही है। यह युद्ध 30,000 भारतीय सैनिकों और 5,000 अलगावादी छापामारों के बीच लड़ा गया। भारत की थल और वायुसेना ने भी इस युद्ध में भाग लिया। यह युद्ध ऊँचाई वाले क्षेत्र पर हुआ जिसके कारण दोनों पक्षों को काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था।

27 अगस्त सन 326 ईसवी को रोम सम्राज्य के नव स्थापित नगर कुसतुनतुनिया को इस सम्राज्य के पूर्वी क्षेत्र की राजधानी चुना गया।

यह नगर तत्कालीन शासक कैन्सटैन्टीन के आदेश पर बनाया गया इस लिए इसका नाम भी कैन्सटैन्टीन पूल पड़ा किंतु बाद में बदलकर कुसतुनतुनिया हो गया। वर्ष 1453 ईसवी में यह नगर उसमानी शासक सुलतान मोहम्मद के अधिकार में चला गया और उसका नाम इस्तांबूल रख दिया गया। इस्तानबूल इस समय तुर्की का भारी जनसंख्या वाला महत्वपूर्ण नगर है।

 

27 अगस्त सन 1991 ईसवी को योरोप के पूरब में स्थित मॉलडोवा देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की। यह देश विभिन्न समयों में विभिन्न जातियों और देशों के नियंत्रण में रहा। इनमें यूक्रेन, उसमानी शासन, रुस और रोमानिया का नाम लिया जा सकता है। रुस में वर्ष 1917 में आने वाली क्रान्ति के बाद मॉलडोवा रोमानिया से जुड़ गया। और द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम समय में जर्मनी और रोमानिया के अपने अतिग्रहित क्षेत्रों से पीछे हटने के बाद मालडोवा सोवियत संघ का एक सदस्य गणराज्य बन गया। 1980 के दशक के अंतिम दिनों में सोवियत संघ के विघटन की प्रक्रिया के आरंभ हो जाने के बाद मालडोवा को रोमानिया का भाग बनाने के कुछ आंदोलन चले किंतु लोगों में इस विषय को लेकर भारी मतभेद उत्यन्न हो गया और यह देश विभजन की कगार पर पहुँच गया। यहॉ तक कि इस देश में जनमत संग्रह कराया गया। जिससे पता चला कि अधिकांश लोग मालडोवा के रोमानिया में विलय के विरोधी और इस देश की पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। उसके बाद यह देश स्वतंत्रता की ओर बढ़ा।

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6 शहरीवर सन 1371 हिजरी शमसी को ईरान के प्रसिद्ध धर्मगुरु आयतुल्ला सैयद अब्दुल मजीद ईरवानी का निधन हुआ। उनका जन्म सन 1313 हिजरी शम्सी में तबरेज़ नगर में हुआ था। वे उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्ति के लिए तबरेज़ से कुम गये जहॉ उन्होंने इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्ला बुरुजर्दी जैसे प्रतिष्ठित धर्मगुरुओं से शिक्षा ली। उन्होंने इस्लामी क्रान्ति के दौरान शाह के विरुद्ध व्यापक संघर्ष किया। शाह के सुरक्षा कर्मियों ने कई बार उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया किंतु वे स्वतंत्रता संघर्ष से अलग नहीं हुए। इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद भी आयतुल्लाह सैयद अब्दुल मजीद ईरवानी, शिक्षा देने के अतिरिक्त सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय रहे।

 

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7 मोहर्रम सन 601 हिजरी क़मरी को सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में विख्यात भूगोल शास्त्री और इतिहासकार युसुफ़ बिन याक़ूब शैबानी दमिशक़ी का जन्म हुआ। वे इब्ने मुजाविर के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपना बचपन और जवानी बग़दाद में बितायी और इस नगर के विख्यात विद्वानों और ज्ञानियों से शिक्षा ली। इसके बाद वे भारत चले गये और फिर वहॉ से सउदी अरब की यात्रा पर गए। उन्होंने अपनी पुस्तक तारीखुल मुसतबसिर में इस क्षेत्र की सामाजिक , भौगोलिक और राजनैतिक स्थिति को विस्तार से बयान किया है। पश्चिमी देशों के बहुत से पर्यटकों और पूर्वविदों ने उनकी इस पुस्तक से लाभ उठाया है। सन 690 हिजरी क़मरी में इबने मुजाविर का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया।