रय शहर
रय शहर उत्तर में तेहरान, पश्चिम में इस्लाम शहर, रोबात करीम और ज़रन्दिए, पूरब में वरामीन एवं पाकदश्त और दक्षिण में क़ुम ज़िलों से मिला हुआ है।
यह ज़िला तेहरान के दक्षिण में स्थित है और इसका केन्द्र रय है। यहां की जलवायु संतुलित है। इसका भौगोलिक महत्व यह है कि यह पहाड़ी इलाक़े और जंगल के बीच उपजाऊ इलाक़े में स्थित है और प्राचीन काल से ही ईरान के पूरब और पश्चिम के बीच संपर्क का साधन रहा है।
कुल मिलाकर वर्तमान समय में यह एक कृर्षि क्षेत्र है। इस इलाक़े में लगभग एक लाख हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन है और रय के चारों ओर विभिन्न बस्तियां हैं, जिसके कारण यह शहर कृर्षि के केन्द्र से निकलकर एक क्षेत्रीय एवं औद्योगिक इलाक़ा बन गया है।
रय ज़िले की ज़मीन उत्तरी तेहरान में तूचाल चोटियों के दक्षिणी आंचल की सैलाबी मिट्टि और कोहे आराद के इर्दगिर्द की मिट्टियों से मिलकर बनी है। यहां करज नदी से निकलने वाली नहरों एवं नालों द्वारा सिंचाई की जाती है।

वर्तमान समय में रय तेहरान का एक उपनगर है, जो एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक एवं धार्मिक केन्द्र भी है। यह पैग़म्बरे इस्लाम के एक परपौत्र हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी के मक़बरे की बरकतों के कारण है। इसके अलावा, इमाम ज़ादे अब्दुल्लाह और क़ुरान के प्रसिद्ध व्याख्याकार शेख़ सदूक़ के मक़बरे भी यहां स्थित हैं।
प्राचीन रय शहर ईरान के ऐतिहासिक शहरों में से एक है और यह ईरानी सभ्यता का केन्द्र रहा है, जिसे तेहरान की माँ कहा जाता था। इस शहर के प्राचीन क्षेत्रों से मिलने वाली प्राचीन वस्तुएं, जैसे कि पांचवी और चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से संबंधित चित्रकारी हुए मिट्टी के बर्तनों से स्पष्ट हो जाता है कि यह इलाक़ा ईरान की प्रारम्भिक संस्कृति के केन्द्रों में से एक रहा है।
अविस्ता किताब में आर्यनों के ईरान के पठारी इलाक़ों में आगमन के साथ इस बात का एक उल्लेख है कि किस प्रकार उन्होंने 16 इलाक़ों में रहना शुरू किया। उन्हीं इलाक़ों में से एक रय या रक भी है। माद के काल में रय को माद राज़ी कहा जाता था, यह तीसरा माद था, जबकि पहला माद बड़ा माद अर्थात इराक़ और छोटा माद आज़रबाइजान और कुर्दिस्तान का कुछ भाग था।
हखामनेशी काल की धरोहरों में रय के नाम का कई बार उल्लेख मिलता है और शाहों के शिलालेख में भी रय राज्य की ओर संकेत किया गया है। उदाहरण स्वरूप, दारियूश के बीस्तून शिलालेख में रय को रेगा कहा गया है, जिससे हख़ामनेशी काल में रय के महत्व का पता चलता है। रय क्षेत्र ने अश्कानी काल में भी प्रगति की और जैसा कि कहा गया है वसंत में यह राजाओं का निवास स्थल था, जिसे वे अरश किए कहते थे।
सेलूकीयों के शासनकाल में एक भीषण भूकंप में रय शहर नष्ट हो गया। प्रथम सेलूकस के शासनकाल में इस शहर का पुनर्निमाण हुआ। हालांकि वर्तमान शहर का निर्माण सासानी शासनकाल में किया गया था। बहरामगूर सासानी के पुत्र यज़्दगर्द तृतीय के बेटे फ़िरोज़ ने इस शहर का निर्माण करवाया और राम फ़िरोज़ उसका नाम रखा।
सासानी शासनकाल में रय ने तेज़ी से प्रगति की। उस काल के विभिन्न चिन्ह आज तक इस शहर के चारो ओर मौजूद हैं। ईरान पर इस्लाम के प्रभाव के आरम्भिक काल में रय एक बड़ा शहर था। ईरान में इस्लाम के उदय के बाद इस शहर का अधिक विकास हुआ, यही कारण है कि मुस्लिम लेखकों ने इसे उम्मुल बिलाद और शेख़ुल बिलाद के नाम से याद किया है।
इतिहास की दृष्टि से प्राचीन रय शहर को दो भागों में बांटा जा सकता है। प्राचीन रय शहर जो बड़े से तटबंध के बीच अली सोते के दक्षिण में स्थित था और 4,000 ईसापूर्व से संबंधित था। वह रय बरीन या रय उलिया के नाम से प्रसिद्ध था। दूसरे उसके बाद वाली शताब्दियों का रय शहर, जो पहले वाले शहर के दक्षिण पूर्व में और बीबी शहर बानो पहाड़ के दक्षिण में स्थित था, जिसे रय ज़ीरीन या रय सुफ़ला कहते थे। प्राचीन रय के खंडहर वर्तमान शहर के आसपास मौजूद हैं, यह इस्लाम पूर्व और इस्लाम के बाद वाले कालों से संबंधित हैं।

इतिहासकारों ने इस्लाम पूर्व और इस्लाम के बाद के रय इलाक़े के क्षेत्रफल का उल्लेख किया है। पहली ईसवी शताब्दी के लेखक इज़ूदूर खाराकसी यूनानी ने लिखा है कि रय माद के समस्त शहरों में सबसे बड़ा है। इस्लाम के बाद के लेखकों के अनुसार, चौथी हिजरी शताब्दी में रय जेबाल प्रांत का सबसे बड़ा केन्द्र था।
इब्ने हौक़ल का कहना है कि बग़दाद के बाद, पूरब में रय से बड़ा कोई शहर नहीं था। बहरहाल प्राचीन रय शहर और इलाक़ा, बाबिल और नैनवा के समान था।
इस शहर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास तीन सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मिलता है। लेकिन स्पष्ट रूप से इस्लाम पूर्व और माद शासनकाल में अविस्ता, बाइबिल और प्राचीन यूनानी एवं लैटिन शिलालेखों में उसके नाम का उल्लेख है।
ऐतिहासिक रय इलाक़ा, सिल्क रोड के मार्ग में स्थित था। यह विभिन्न धार्मिक विश्वासों और विचारों का भी केन्द्र था। यह इलाक़ा न केवल हज़ारों साल तक सिल्क रोड से गुज़रने वाले कारवानों और संस्कृतियों के मिलाप का स्थान था, बल्कि इसके समृद्ध होने के कारण हमेशा सरकारों और सैन्य शक्तियों की नज़रें उस पर गड़ी रहती थीं।
इस्लाम के उदय और 642 ईसवी में मुसलमानों द्वारा रय पर विजय प्राप्त करने के बाद, धीरे धीरे इलाक़े के लोग इस्लाम स्वीकार करते गए। इसके बाद से ख़लीफ़ाओं के शासन ने रय पर विशेष ध्यान दिया। दूसरी हिजरी शताब्दी में मोहम्मद अब्बासी ने, जो अल-मेहदी के नाम से मशहूर था, अपने पिता मंसूर दवानीक़ी के शासनकाल में रय शहर का विकास किया। 141 हिजरी में अब्बासी ख़लीफ़ा मूंसर ने अपने बेटे मोहम्मद को ख़ुरासान के शासन से लड़ने के लिए भेजा जो बग़ावत का एलान कर चुका था। यात्रा के दौरान मोहम्मद ने ख़ुद रय में पड़ाव डाला और अपने सैनिकों को लड़ने के लिए ख़ुरासान भेजा। वह 144 हिजरी तक वहीं ठहरा रहा। 146 हिजरी में वह फिर से रह आया और 151 हिजरी तक वहीं रहा उसके बाद बग़दाद वापस लौट गया। इसी दौरान अब्बासी ख़िलाफ़त की राजधानी बग़दाद के विस्तार की योजना शुरू हुई। मोहम्मद अब्बासी ने रय के विस्तार को भी उचित समझा और इस कार्य को शुरू किया।
बीबी शहर बानो पहाड़ के दक्षिण में शहर के एक भाग का निर्माण 152 से 158 हिजरी के दौरान किया गया और इसका नाम मोहम्मदिया रखा गया। मेहदी के युवराज काल में ढलने वाले सिक्कों पर मोहम्मदिया देखा जा सकता है। सातवीं हिजरी शताब्दी के प्रसिद्ध सैलानी याक़ूत हमवी ने भी रय के बारे में अपनी प्रसिद्ध किताब मोअजमुल बुलदान में मोहम्मदिया और रय के विस्तार का उल्लेख किया है।
चौथी हिजरी की शुरूआत में रय के विकास का नया चरण आरम्भ हुआ, यह ज़ियारी परिवार के पहले राजा मर्दावीज दैलमी के शासनकाल में हुआ। मर्दावीज 315 हिजरी में राजनीति में ज़ाहिर हुआ और 319 में उसने रय को अपनी राजधानी बनाया। आले बूया के शक्तिशाली होने के साथ ही रय का महत्व अधिक हो गया। ईरान में आले बुया के शासनकाल में रय राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र था, इसी कारण इस शहर में ज्ञान एवं साहित्य में प्रगति हुई और यहां कई विद्वानों, साहित्यकारों और कवियों ने जन्म लिया। आले बुया के काल के विशिष्ट राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हस्तियों में से इस परिवार के वज़ीर साहिब बिन इबाद का नाम लिया जा सकता है।
इस बुद्धिमानी वज़ीर को ज्ञान एवं साहित्य में काफ़ी रूची थी। वह विद्वानों एं साहित्यकारों का बड़ा सम्मान किया करता था। इसी कारण इस काल में रय साहित्यकारों, कवियों और विद्वानों का केन्द्र बन गया। कहा जाता है कि साहिब बिन इबाद के पुस्तकालय में 1 लाख 20 हज़ार किताबें मौजूद थीं। ईरानी कला के बेहतरीन नमूने नामक किताब के लेखक आर्थरपोप ने दसवीं ईसवी शताब्दी में इबाद के पुस्तकालय की किताबों की संख्या पूरे यूरोप की किताबों के बराबर बतायी है।