Aug २७, २०१६ ११:५९ Asia/Kolkata

हमने इस्लाम से पूर्व और इस्लाम के काल में ऐतिहासिक शहरे रय के अतीत के बारे में आपको बताया था।

यह भी बताया था कि शहरे रय के लोगों द्वारा इस्लाम स्वीकार किए जाने के बाद इस शहर ने विकास और प्रगति की चोटियां तय की हैं और यहां तक कि इस शहर का नाम उम्मुल बेलाद और शैख़ुल बेलाद पड़ गया। ईरान में आले बूऐ शासन श्रंखला के काल में रय शहर, उनके राजनीति व संस्कृति का केन्द्र था और इसीलिए इस शहर में ज्ञान व साहित्य में बहुत अधिक विकास हुआ और इस शहर में बहुत से बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और शायरों का पालन पोषण हुआ। इस कार्यक्रम में हम इस्लामी काल में रय शहर के इतिहास पर चर्चा करेंगे।

 

रय शहर में साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में चहल पहल, अधिक समय तक नहीं रही और महमूद ग़ज़नवी के नियंत्रण के दौर में इस शहर ने बहुत त्रासदियों और कटु घटनाओं का सामना किया। महमूद ग़ज़नवी ने शहरे रय में शीया मुसलमानों का जमकर जनसंहार किया। उसने शहर के शीया महापुरुषों को फांसी पर चढ़ा दिया और सरकारी काम से शीयों को निकाल दिया। महमूद ग़ज़वनी के शहर पर नियंत्रण की घटनाओं में से एक महत्वपूर्ण घटना,  किताबों को जलाने की थी। उसके आदेश पर इब्ने ओब्बाद के प्रसिद्ध पुस्ताकलय को जला दिया गया और बाक़ी बची पुस्तकों को ग़ज़वनियों की सरकार के केन्द्र ख़ुरासान पहुंचा दिया गया। यधपि शहरे रय को ग्यारहवीं शताब्दी में ग़ज़नवियों के विध्वंसक हमलों का सामना करना पड़ा किन्तु सलजूक़ियों के शासन काल में यह दोबारा आबाद हो गया।

तुग़रूल टावर

 

वर्ष 434 हिजरी क़मरी में रय पर सलजूक़ियों ने नियंत्रण कर लिया और तुग़रल सलजूक़ी शान और रोब व दबदबे के साथ रय शहर पहुंचा और उसने नीशापूर से इस शहर में राजधानी स्थानांतरित करने का आदेश दिया। इस दौर में तुग़रल के आदेश पर नई इमारतें बनाई गयीं जिनमें से एक तुग़रल टावर है जो अब भी रय शहर के पूरब में स्थित है। इस काल में ईरानी कलाओं पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया। सलजूक़ी शासन काल में कच्ची मिट्टी का उद्योग, अपनी सुन्दरता और परिपूर्णता के चरम पर पहुंच गये और रय शहर में कच्ची मिट्टी के सुन्दर डिज़ाइन वाले बर्तन बनाए जाते थे।

सलजूक़ी शासन काल में बहुत से स्कूल बनाए गये और स्कूलों के अतिरिक्त उस काल में रय में प्रसिद्ध मस्जिदें और बहुत से धार्मिक स्थल व ख़ानक़ाहे भी मौजूद थीं। ख़वारज़्मशाहियान के शासन काल में शहरे रय, अतीत की भांति ईरान के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता था, यहां तक कि मंगोलों का षड्यंत्र इस शहर में प्रविष्ट हो गया। वर्ष 617 हिजरी क़मरी में मंगोलों ने रय शहर पर हमला कर दिया और इस शहर में जनसंहार किया और शहर को तबाह व बर्बाद कर दिया तथा इसी को ही पर्याप्त नहीं समझा बल्कि इस शहर के बहुत से लोगों को अपने साथ ले गये ताकि आगामी युद्ध में उन्हें ढाल के रूप में प्रयोग करें और उन्हें रणक्षेत्र में भेज सकें। मंगोलों के इतिहास में आया है कि ईलख़ान मंगोल ने रय शहर को अपने मनोरंजन शहर के रूप में चुना। अभी इस शहर पर मंगोलों के हमले के प्रभाव ख़त्म नहीं हुए थे कि वर्ष 786 हिजरी क़मरी में तैमूर के सिपाहियों ने इस पर हमला कर दिया और इस शहर को तबाह कर दिया। उसके बाद से यह शहर फिर कभी आबाद नहीं हुआ। रय शहर के खंडहरर अब भी वर्तमान शहर में देखे जा सकते हैं।

तुग़रूल टावर

 

ईरान में ग्यारहवीं शताब्दी हिजरी क़मरी बराबर 17वीं शताब्दी ईसवी में सफ़वी शासन श्रंखला के सत्ता में आने से इस शासन श्रृंखला के राजाओं की ओर से इस शहर को धार्मिक शहर के रूप में चुना गया। यद्यपि सफ़वी शासन काल और उसके बाद, इस बड़े शहर में आबादी बढ़ी और इसमें चहल पहल शुरु हुई किन्तु कभी भी यह अपने अतीत के वैभव को प्राप्त नहीं कर सका। राजधानी के रूप में क़ज़वीन और उसके बाद इस्फ़हान के चयन के बाद, उसका विकास और प्रगति, शहरे रय को अधिक प्रगति नहीं दिला सकी। अफ़ग़ानियों के हमलों विशेषकर अफ़शारियों के शासन काल में जिसमें उन्होंने अपनी प्रगति का कारण भारी कर, युद्ध और झड़पें बताया, रय को पूरी तरह तबाह कर दिया गया। किन्तु इन सबके बावजूद ज़ंदिया शासन काल में रय ईरान के 16 प्रांतों में से एक था और इसे राजधानी रय का नाम दिया गया था और केन्द्र का शासक इस पर राज करता था। रय के कमज़ोर होने के बाद, तेहरान ने जो इससे छह किलोमीटर की दूर पर एक गांव था, विकास और प्रगति का मार्ग तय करना आरंभ किया और यहां तक कि क़ाजारी शासन के आरंभ में आक़ा मुहम्मद ख़ान ने इसे अपनी राजधानी चुना। वर्तमान समय में रय, तेहरान के पड़ोस में स्थित है और शाह अब्दुल अज़ीम के मज़ार तथा दो अन्य इमाम ज़ादों इमामज़ादे ताहिर और इमाम ज़ादे हमज़ा के रौज़ों के दृष्टिगत, धार्मिक केन्द्रों में गिना जाता है जहां पूरी दुनिया से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं। पवित्र नगर मशहद और क़ुम के बाद शहरे रय ईरान का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक केन्द्र समझा जाता है। इसके अतिरिक्त शहरे रय में 198 प्राचीन, ऐतिहासिक व इस्लामी धरोहरें पायी जाती हैं। इन धरोहरों का संबंध विभिन्न ऐतिहासिक कालों से है।

शहरबानू बीबी का गुंबद

 

रय शहर की ऐतिहासिक धरोहरों का संबंध इस शहर की प्राचीनता से है। इन धरोहरों का पुरातन क्षेत्र में बहुत महत्व है। शहरे रय, इस्लाम से पहले और इस्लाम के बाद के काल के ऐतिहासिक अतीत के दृष्टिगत, प्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहरों का वारिस है जिनमें सबसे प्रसिद्ध, अशकानियान महल, तुग़रूल टावर, नक़्क़ारे ख़ाने, चशमये अली, बारूए रय, रय के अग्निकुड और शहरबानू बीबी के गुंबद की ओर संकेत किया जा सकता है।

 

रय शहर की सबसे प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों में, सासानी शासन काल की बची हुई प्राचीन इमारत के अवशेष हैं जो मील नामक चट्टान की चोटी पर स्थित है। ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर यह इमारत रय का अग्निकुंड ही है जो सिकंदर सम्राट द्वारा अन्य अग्निकुंडों की भांति तोड़ दिया गया और केवल उसके अवशेष ही बाक़ी रह गये।  दूसरी ओर रय के आस पास के टीले, इसी प्रकार प्लास्टर आफ़ पेरिस के बने अवशेष और सासानी काल से संबंधित प्रसिद्ध डिज़ाइनें भी प्राप्त हुई हैं जो ईरान के प्राचीन धरोहर के संग्राहलय में सासानी कमरे के सुसज्जित किए हुए है।

शहरबानू बीबी का गुंबद

चशमये अली का टीला भी रय शहर का अन्य ऐतिहासिक अवशेष समझा जाता है। इस चट्टान या टीले पर सबसे पहले 1313 से 1316 हिजरी शम्सी बराबर 1934 से 1937 तक, बोस्टन शहर के एक पुरातन विशेषज्ञ टीम तथा एरिक फ़ेड्रिक श्मिथ के नेतृत्व में फ़ेलेडेलफ़िया विश्व विद्यालय के विलियम बोइस सांस्कृतिक केन्द्र ने ध्यान दिया और सात हज़ार साल पहले कच्ची ईंटों के अवशेष प्राप्त हुए जिनमें से कुछ को वर्तमान समय में ईरान और दुनिया के कुछ संग्राहलयों में सुरक्षित रखा गया है। चशमये अली की डिज़ाइन की गयी ईंटों में मनुष्य, जानवर, ज्योमितीय और वनस्पतियों की डिज़ाइनें होती हैं और इनमें से हर एक डिज़ाइन का अपना अलग संदेश है।

       

बारूए रय, वह रक्षात्मक दीवारहै जिस अशकानियान शासन काल में बनाया गया था जो शहर के चारो ओर बनी हुई है। वर्तमान समय में अब केवल इस दीवार का तीन किलोमीटर का भाग बाक़ी है। इस दीवार का एक भाग चशमये अली के टीले पर भी स्थित है। टीले पर मौजूद दीवार का भाग भी बाक़ी है।

 

यह दीवार सासानी और इस्लामी काल में भी पूर्ण रूप से मौजूद थी और शत्रुओं के हमलों के मुक़ाबले में मज़बूत ढाल के रूप में प्रयोग होती थी।  इस दीवार को सबसे अधिक क्षति महमूद ग़ज़नवी और तैमूर लंग के हमले के बाद हुई। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद चशमये अली के पत्तर पर मौजूद इस दीवार के कुछ भाग की मरमत की गयी थी।

मील चट्टान

 

 

तुग़रल टावर भी रय की ऐतिहासिक धरोहरों में है। तुग़रल टावर, सलजूक़ी शासन काल के अंतिम शासक तुग़रल बेग के मक़बरे से संबंधित है। इस टावर की ऊंचाई 20 मीटर है और ईंट के गोल टावर के रूप में बना हुआ है। इस टावर के बाहरी भाग पर विशेष तुर्क डिज़ाइनें बनी हुई हैं।  क्रिस्टन विलसन ने अपनी पुस्तक ईरान के उद्योग का इतिहास में इस टावर की ओर संकेत करते लिखा कि एक अनुमान के अनुसार टावर का इतिहास 534 हिजरी कमरी तक पहुंचता है। तुग़रल टावर की मरमत वर्ष 1301 हिजरी क़मरी में नासेरुद्दीन शाह क़ाजार के आदेश पर हुई। आपके लिए यह जानना उचित होगा कि तुग़रल टावर में कूफ़ी लिपि में डिज़ाइनें और शिखालेख हैं जो क़ाजारी शासन काल में मरमत के दौरान ख़राब हो गये। तुग़रल टावर के पास ईरान के समकालीनल साहित्यकार, आलोचक, इतिहासकार और शोधकर्ता प्रोफ़ेसर मुहीत तबातबाई की क़ब्र है।

 

रय के दक्षिणी पर्वातांचल में, पर्वतीय टीले पर गोल गुंबद वाली एक इमारत है। इस इमारत के पास रहने वालों का कहना है कि यह यज़्दगेर्द तृतीय की पुत्री और इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की माता बीबी शहरबानो का मक़बरा है। यह इमारत अद्वितीय है। इस इमारत की लंबाई 33 मीटर तथा चौड़ाई 22 मीटर है। इस पर बहुत ही प्रचीन पत्थर लगे हुए हैं और उत्तर से पर्वतीय श्रृंखला से मिलती है। दक्षिणी भाग में कुछ पत्थर की मज़बूत इमारतें बनी हुई हैं जिस पर पत्तर और ईंट के गुंबद बने हुए हैं।

मील चट्टान

 

 

यह इमारत दो भागों में विभाजित है। नयी दीवारें, प्रांगड़, कमरे, रास्ता इत्यादि इस इमारत में मौजूद है।  

इमारत का मुख्य गुंबद पत्तर और चूने से बना हुआ है और उसके ताक़ मिट्टी के बने हुए हैं। इमारत की डिज़ाइनिंग से समझ में आता है कि इसको मुख्य रूप से सासानी काल में बनाया गया है और चौथी शताब्दी में इसे क़ब्रिस्तान के लिए प्रयोग किया गया और इसमें कुछ भगा बढ़ाए गये हैं।

 

इस रौज़े में चौकोर कमरे बने हुए हैं जिनका क्षेत्रफल 3.25 मीटर है। इसका मुख्य द्वारा पूरब की ओर है जो बहुत ही सुन्दर है तथा सफ़वी काल से संबंधित मुनब्बत कारी दरवाज़े पर बनी हुए है किन्तु गुंबद पर काजारी काल के टाइल्स का काम तथा चूने का काम हुआ है और यह अन्य डिज़ाइनों से सजा है।

 

रौज़े के उत्तर में क़ाजारी काल का प्रांगड़ या मस्जिद है । इसका बाहरी भाग समझा जाना वाला रौज़े का प्रांगड़ मस्जिद के उत्तर में स्थित है। उत्तरी भाग में मेहमानों, मुतवल्ली और तीर्थयात्रियों के रहने के लिए कमरे बने हुए हैं। बीबी शहर बानो के हरम की सीढ़ियों के नीचे तथा दाहिनी ओर से गुफा दिखाई देती है जिसका मुहाना बहुत छोटा है। गुफा के पास सोते के पाये जाने से इसकी सुन्दरता में चार चांद लग गया है।