Sep ०४, २०१६ १४:०३ Asia/Kolkata

इन्शेक़ाक़ सूरा मक्के में उतरा और इसमें 25 आयते हैं।

इन्शेक़ाक़ का अर्थ है फटना, दरार पड़ना या फटना है। इन्शेक़ाक़ में प्रलय के चिन्ह और सृष्टि की व्यवस्था के बिखराव का उल्लेख किया गया है।

इस सूरे में भी तीसवें खंड के अन्य सूरों की भांति प्रलय के विषय पर चर्चा है। सूरे के शुरू में सृष्टि के अंत के समय भयानक घटनाओं और प्रलय शुरु होने की ओर संकेत है। अच्छे और बुरे लोगों के कर्म और उनका अंजाम, ईश्वरीय प्रकोप का कारण बनने वाले कृत्य, लोक-परलोक में इंसान के जीवन के चरण, अच्छे व बुरे कर्म का बदला वे विषय हैं जिनका इस सूरे में उल्लेख है।

दुनिया के अंत के समय की घटनाएं धरती, आसमान, इंसान, अन्य ग्रहों के मिटने और सृष्टि के नए चरण में प्रवेश करने की सूचक हैं। इसी प्रकार ये घटनाएं सर्वसमर्थ ईश्वर की हर चीज़ ख़ास तौर पर प्रलय के दिन इंसान को फिर से जीवित करने की शक्ति को दर्शाती है।

इन्शेक़ाक़ सूरे की छठी आयत इंसान को संबोधित करते हुए उसके भविष्य को स्पष्ट करती है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “हे मनुष्य तू परिश्रम करता हुआ अपने पालनहार की ओर खिंचा चला जा रहा है और अंततः उससे मिलने वाला है।” यह आयत सभी इंसान के जीवन के बारे में मूल सिद्धांत की तरह है। वह यह कि उसके जीवन में हमेशा कठिनाइयां शामिल रहती हैं चाहे उसका उद्देश्य लोक-परलोक या मुक्ति व ईश्वरीय सामिप्य हासिल करना हो। सांसारिक जीवन ही ऐसा है कि जो लोग बहुत ही आराम का जीवन बिताते हैं वे भी कठिनाइयां उठाते हैं। इस सृष्टि के कारवां में इंसान चाहते या न चाहते हुए ईश्वर की ओर बढ़ रहा है और इसी कोशिश व कठिनाइयों के साथ वह अपने पालनहार तक पहुंचता है। वास्तव में उसकी यह कोशिश ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और परिपूर्णतः तक पहंचना, उसके कार्यक्रम का एक भाग है।

इन्शेक़ाक़ सूरे की आगे की आयतें अच्छे और बुरे इंसान को बयान करती हैं। इस सूरे की आयत नंबर 12 में ईश्वर कह रहा है बुरे कर्म करने वाले का अंजाम यह है कि वह नरक की आग में जले। बाद की दो आयतें इसका कारण यूं बयान करती हैं कि वह लोगों और अपने परिजनों के बीच भौतिक इच्छाओं में डूबा और अपने पाप के संबंध में भी मस्त था। वह सोचता था कि उसे हिसाब-किताब के लिए ईश्वर के सामने कभी भी हाज़िर नहीं होना पड़ेगा।

इन्शेक़ाक़ सूरे की कुछ आयतें तीन क़सम के साथ पूरी मानवजाति को सृष्टि की सुदंर घटनाओं के बारे में चिंतन करने के लिए बाध्य करती हैं।

पहली क़सम में शफ़क़ की क़सम खायी है। शफ़क़ उस रौशनी को कहते हैं जिसमें रात शुरु होने के समय का अंधकार शामिल होता है। शफ़क़ सृष्टि में एक गहरे बदलाव की सूचक और दिन के अंत तथा रात के आरंभ का एलान करती है। इसके अलावा यह उस समय बहुत सुंदर जलवा बिखेरती है और वह मग़रिब की नमाज़ का वक़्त होता है।

फिर रात की क़सम खायी है।  रात में बहुत से रहस्य छिपे होते हैं। उस समय सभी पशु व इंसान अपने घरों को लौट चुके होते हैं। रात प्राणियों को शांति व सुकून प्रदान करती है।

तीसरी क़सम पूरे चांद की खायी है। सृष्टि की यह घटनाएं जिनका क़सम के तौर पर पवित्र क़ुरआन के इन्शेक़ाक़ सूरे में उल्लेख है, इस वास्तविकता पर बल देती हैं कि पूरी सृष्टि ख़ास तौर पर इंसान हमेशा बदलाव की हालत में होता है। यह ख़ुद सृष्टि के हादिस व ईश्वर की मख़लूक़ होने का तर्क है। हादिस का अर्थ है जो चीज़ हमेशा से न हो चाहे वह कितनी ही पुरानी क्यों न हो। यह सुंदर सृष्टि, इसमें हरकत व गति इंसान को चिंतन के लिए प्रेरित करती हैं कि वह सृष्टि के बारे में सोचे। इन सुंदर बदलाव के ज़रिए इंसान प्रलय और ईश्वर की शक्ति से और अधिक परिचित होता है।

इन्शेक़ाक़ सूरे में इंसान की नास्तिकता पर हैरत जतायी गयी है। जैसा कि आगे की आयत में ईश्वर कह रहा है, इन्हें क्या हो गया ईमान नहीं लाते? ईश्वर को पहचानने के लिए क्षितिज व आत्मा में बहुत से स्पष्ट तर्क हैं। ये लोग क्यों क़ुरआन, ईश्वरीय दूत, प्रलय और अन्य सच्चाइयों पर ईमान नहीं लाते! आख़िर क्यों जब उनके सामने क़ुरआन पढ़ा जाता है तो क्यों क़ुरआन के स्वामी व सृष्टि के रचयिता ईश्वर के सामने नम्रता से झुकते व अराधना नहीं करते?        

बुरूज सूरा पवित्र क़ुरआन का 85वां सूरा है। यह सूरा मक्के में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति के शुरु के दिनों में नाज़िल हुआ। इस सूरे में 22 आयते हैं।

पहली आयत में ईश्वर ने आसमान की क़सम खायी है जिसमें नक्षत्र हैं। नक्षत्र सितारों का समूह है जो धरती पर मौजूद किसी चीज़ से समानता रखते हैं। बारह प्रकार के नक्षत्र माने गए हैं। सूरज हर महीने इनमें से किसी एक नक्षत्र के मुक़ाबिल में होता है।  अलबत्ता सूरज तो परिक्रमा नहीं करता बल्कि ज़मीन उसके चारों ओर घूमती है लेकिन ऐसा लगता है कि सूरज स्थान बदलता है और इन 12 आसमानी आकृति में से किसी एक के सामने होता है।

ऐसी व्याख्याएं बहुत कम हैं जिसमें नक्षत्र को इस प्रकार बयान किया गया है लेकिन लगता है कि इस आयत से अभिप्राय सभी ग्ह और सितारे हैं जिनमें अरबों आकाशगंगाएं है जो अलग अलग शहर की तरह हैं लेकिन सब मिल कर एक सुनियोजित व्यवस्था का हिस्सा हैं। सृष्टि की अनंत आकाशगंगाएं न सिर्फ़ एक दूसरे से संपर्क में हैं बल्कि

एक ढांचे के तहत हैं और ईश्वर की शक्ति, उपाय और महानता के चरम को दर्शाती हैं।

इस बात के मद्देनज़र कि यह सूरा मक्के में नाज़िल हुआ, ऐसा लगता है कि इसके नाज़िल होने का मुख्य लक्ष्य दुश्मनों के मुक़ाबले में मोमिनों के मनोबल को बढ़ाना और उन्हें दृढ़ता के लिए प्रेरित करना है।

उख़दूद जाति के लोगों की कहानी, नास्तिकों को धमकी, उन मोमिन बंदों को शुभसूचना जिन्होंने ईश्वर के मार्ग में मुश्किलों का धैर्य के साथ मुक़ाबला किया। फ़िरऔन और समूद जाति की कहानी, पवित्र क़ुरआन की महानता और इसकी बहुत ज़्यादा अहमियत, इस सूरे में उल्लेख हुए अन्य विषय हैं।

बुरूज सूरे की आयत नंबर चार में ईश्वर कह रहा है, खाई वालों को क़त्ल कर दिया गया। खाई वालों की घटना यमन के मशहूर क़बीले हमीर का अंतिम राजा ज़ू नुवास के बारे में है। ज़ू नुवास ने यहूदी धर्म अपना लिया था और हमीर क़बीले वाले उसका अनुसरण करते थे। कुछ दिनों बाद उसे यह बताया गया कि नजरान के क्षेत्र में अभी भी एक गुट ऐसा है जो ईसाई धर्म का पालन करता है। ज़ू नुवास अपने अनुयाइयों के आग्रह पर नजरान के लिए निकल पड़ा और वहां के लोगों को इकट्ठा किया। उसने उनसे यहूदी धर्म का पालन करने के लिए। कहा उन्होंने इंकार कर दिया और क़त्ल होने के लिए तय्यार हो गए।

ज़ू नुवास ने एक बड़ी खायी या ख़न्दक़ खोदने का आदेश दिया और उसमें आग भर दी गयी। एक गुट को ज़िन्दा आग में जलाया और एक गुट को तलवार से टुकड़े टुकड़े कर दिया गया। यहां तक कि जल कर और तलवार से क़त्ल होने वालों की संख्या 20000 (बीस हज़ार) तक पहुंच गयी। इस बीच एक इसाई नजरान से फ़रार करने में कामयाब हो गया। वह रोम गया और रोम के राजा के दरबार में पहुंचा और उससे मदद की गोहार लगायी। रोम के राजा ने कहा कि तुम्हारा इलाक़ा हमारे यहां से बहुत दूर है मैं एक ख़त हब्शा (मौजूदा इथियोपिया) के राजा नजाशी को लिखता हूं और उसे तुम्हारी मदद के लिए कहता हूं। वह ईसाई है और तुम्हारे क़रीब में रहता है। नज्जाशी ने क़त्ल हुए ईसाइयों का बदला लेने का फ़ैसला किया और अपनी फ़ौज के साथ यमन की ओर निकल पड़ा और एक बड़ी सख़्त जंग में उसने ज़ू नुवास को हराया।

                              

बुरूज सूरे में ईश्वर की कुछ विशेषताओं और काम का विशेष रूप से उल्लेख है जैसे उसका मेहरबान होना, हर चीज़ पर हावी रहना, उसकी मशीयत अर्थात उसकी मर्ज़ी और उसका इरादा करना। उसकी ये विशेषताएं इंसान के लिए उसकी बंदगी को साबित करती हैं। साथ ही सदाचारी व मोमिन बंदों को शुभसूचना देती हैं कि ईश्वर हर समय हर जगह हाज़िर है और देख रहा है। मोमिनों के अपनी आस्था की रक्षा में धैर्य व प्रतिरोध को देख रहा है। दूसरी ओर ईश्वर की शक्ति नास्तिकों के लिए एक प्रकार की चेतावनी है कि अगर ईश्वर उन्हें उनके कृत्यों से नहीं रोक रहा है तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह अक्षम है बल्कि इसके पीछे वह परीक्षा है जो वह बंदों से ले रहा है। वह महान है जो चाहे अंजाम देता है। नास्तिक अंततः ईश्वर की ओर से कड़े व दर्दनाम प्रकोप का मज़ा चखेंगे। जैसा कि फ़िरऔन और समूद जातियों का सर्वनाश हुआ।

बुरूज सूरे की आयत नंबर 21 में ईश्वरीय संदेश वही की अहमियत का वर्णन है। यह आयत बल देती है कि विरोधियों का पवित्र क़ुरआन को झुटलाने के लिए उसे जादू, शायरी या ज्योतिष कहना निरर्थक बात है। बुरूज सूरे की आख़िर की दो आयतों में आया है कि ये आयतें जादू व झूठ नहीं बल्कि महानता से संपन्न क़ुरआन है। इसकी बातें महान व व्यापक, इसके अर्थ बहुत गहरे हैं। चाहे आस्था हो या नैतिककता का विषय हो या उसका आदेश हो सबके सब ईश्वर की लौहे महफ़ूज़ नामक तख़्ती में मौजूद है और इनमें किसी प्रकार का फेर बदल नहीं हो सकता।  लौहे महफ़ूज़ वह किताब या तख्ती जिसमें इस संसार में घटने वाली हर छोटी-बड़ी चीज़ का उल्लेख है।

ये आयतें पैग़म्बरे इस्लाम को तसल्ली देती हैं कि अगर आपसे ग़लत बातों को जोड़ा जा रहा है, आपको शायर, जादूकर, ज्योतिषी या पागल कहा जा रहा है तो आप दुखी न हों क्योंकि आपका मार्ग स्पष्ट है और ईश्वर आपकी मदद के लिए तैयार है।

 

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