Sep ०४, २०१६ १४:५५ Asia/Kolkata

 ‘तारिक़’ पवित्र क़ुरआन का 86वां सूरा है। इसमें 17 आयतें हैं। यह मक्के में नाज़िल हुआ।

इस सूरे का आरंभ बड़ी क़सम से होता है और इंसान की निगरानी करने वाले फ़रिश्तों का उल्लेख है। प्रलय, इंसान की पैदाइश और उसकी पैदाइश का मूल पदार्थ, प्रलय के दिन की विशेषता, क़ुरआन सत्य से असत्य को अलग करने वाली किताब, ईश्वरीय प्रकोप की नास्तिकों को धमकी, इस सूरे में वर्णित अन्य विषय हैं।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत अबू तालिब उनके पास उपस्थित थे। पुछ्छल तारा आसमान पर प्रकट हुआ और बहुत तेज़ी से ग़ाएब हो गया। हज़रत अबू तालिब को इस घटना पर बहुत हैरत हुयी। उन्होंने इसका कारण पैग़म्बरे इस्लाम से पूछा। उनके जवाब में यह सूरा उतरा। यह सूरा शुरु की दो आयतों में दो क़सम के बाद चिंतन मनन करने वालों को सृष्टि की इस प्रकार की आश्चर्यजनक घटनाओं के बारे में चिंतन मनन करने के लिए प्रेरित करता है।

इस सूरे की पहली से तीन आयत में ईश्वर कह रहा है, साक्षी है आकाश और रात मे प्रकट होने वाला। और तुम क्या जानो कि रात में प्रकट होने वाला क्या है। दमकता हुआ तारा।

तारिक़ आसमान में प्रकट होने वाला चमकता सितारा है और इतनी ऊंचाई पर है मानो आसमान में सूराख़ कर देगा। इसका प्रकाश इतना तेज़ है कि रात की अंधकार चीरता है और इंसान की आँख पर प्रभाव डालता है। नज्मे साक़िब से अभिप्राय वह खगोलीय पिन्ड है जो अंधकार के पर्दे को चीरता है और इंसान की आंख को चकाचौंध कर देता है। चौथी आयत में इन क़सम का उद्देश्य बयान किया है। ये आयत इंसान का ध्यान इस ओर ले जाती है कि वह अकेला नहीं है बल्कि जहां भी हो ईश्वरीय फ़रिश्ते उस पर नज़र रखते हैं और उसके हर प्रकार के कर्म का हिसाब किताब लिखते हैं। जब यह पता चल गया कि हर व्यक्ति का कर्म ईश्वर के सामने सुरक्षित है और वह कोई चीज़ नहीं भूलता तो इंसान को यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि जल्द ही उसे ईश्वर के सामने हाज़िर होना होगा और जो कुछ उसने किया है उसके अनुसार उसे बदला दिया जाएगा। अगर वह चाहता है कि प्रलय के बारे में उसे विश्वास पैदा हो तो उसे चाहिए कि अपनी पैदाइश के आरंभ के बारे में सोचे। क्या इंसान एक तुच्छ नुत्फ़े अर्थात वीर्य केकण से नहीं पैदा किया गया और फिर वह कण विभिन्न जटिल चरणों को तय करके संपूर्ण इंसान बन कर सामने आया। इस प्रकार इंसान को फिर से ज़िन्दा करना ईश्वर के लिए कुछ कठिन नहीं है।

तारिक़ सूरे में प्रलय के दिन को भेद खुलने का दिन कहा गया है। यह वह दिन है जब ईमान, नास्तिकता, मिथ्याचार, अच्छी और बुरी नियत सहित भीतरी भेद खुल जाएंगे। इस भेद के खुलने से मोमिन बंदे ख़ुश होंगे जबकि अत्याचारी व अपराधी लज्जित व अपमानित होंगे। उस दिन इंसान के कर्म सबके सामने स्पष्ट होंगे और सबके सामने शर्मिन्दा होगा। ख़ास तौर पर उस दिन किसी व्यक्ति की कोई मदद नहीं करेगा।

‘तारिक़’ सूरे की 15-17 तक आयतें पैग़म्बरे इस्लाम को दुश्मनों के षड्यंत्र के मुक़ाबले में तसल्ली देते हुए कहती हैं कि हालांकि वे हमेशा आपके ख़िलाफ़ बुरी चाल चलते हैं किन्तु ईश्वर अपने उपाय से उनके षड्यंत्र को नाकाम बनाता है। नास्तिक कभी मखौल उड़ाते और कभी आर्थिक नाकाबंदी करते। एक समय मोमिनों को यातना देते और कभी पैग़म्बरे इस्लाम को जादूगर, ज्योतिषी और पागल कहते थे और उनसे कहते थे कि निर्धनों व वंचितों को अपने पास से हटा दें। किन्तु ईश्वर ने अपनी चाल से दुश्मनों को उनका लक्ष्य साधने में नाकाम कर दिया। यहां ईश्वरीय चाल का मतलब वह कृपा थी जो ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम और मोमिनों के साथ करता था जिससे दुश्मन आश्चर्य में पड़ जाते थे। दुश्मन की कोशिशें नाकाम हो जातीं और उनके षड्यंत्र फ़ेल हो जाते कि इसके नमूने इस्लामी इतिहास में बहुत ज़्यादा हैं।

ये आयत सभी मुसलमानों के लिए इस बात का नमूना है कि वे अपने काम में ख़ास तौर पर शक्तिशाली व ख़तरनाक दुश्मन के मुक़ाबले में धैर्य व संयम बरतें और अपने व्यवहार पर बारीकी से नज़र रखें। इसी प्रकार दुश्मन के मुक़ाबले में हर प्रकार की जल्दबाज़ी व अनियोजित कार्यक्रम से बचें।             

‘आला’ पवित्र क़ुरआन का 87वां सूरा है। यह सूरा मक्के में नाज़िल हुआ। इसमें 19 आयते हैं।

ईश्वर का गुणगान और उसकी सात विशेषताएं, सृष्टि में व्यवस्था, संतुलन और मार्गदर्शन, आत्मउत्थान व आत्म निर्माण और हज़रत इब्राहीम और हज़रत मूसा पर उतरने वाले पवित्र ग्रंथ की शिक्षाओं की ओर संकेत वे विषय हैं जिनका इस सूरे में उल्लेख है।

आला नामक सूरे का आरंभ ईश्वर के गुणगान और उसकी अतुल्य विशेषताओं के वर्णन से होता है। इस सूरे की आरंभिक आयत कहती है कि ईश्वर के नाम को मूर्तियों के नाम के साथ न रखा जाए। उसकी हस्ती को हर प्रकार की त्रुटियों से पाक समझा जाए। उसे प्राणियों की विशेषताओं से पाक समझा जाए। पवित्र क़ुरआन की आयतों के अनुसार, ईश्वर हमारी कल्पनाओं में नहीं आ सकता। अगर ईश्वर के बारे में कोई कल्पना करे कि वह ऐसा होगा तो यह कल्पना उसके मन की उपज है। ईश्वर कल्पनाओं के दायरे में नहीं आ सकता। इसी प्रकार किसी चीज़ को उसका समतुल्य नहीं समझना चाहिए। उसने सृष्टि बनायी। उसे सुव्यवस्थित किया और हर चीज़ का अपनी ओर मार्गदर्शन किया है।

ईश्वर ने दो प्रकार के मार्गदर्शन की सुविधा रखी है। एक को तकवीनी और दूसरे को तशरीई कहते हैं। अगर एक ओर माँ में ममता की भावना पैदा की और उसके सीने में शिशु का खाना मुहय्या किया तो दूसरी ओर बच्चे में अपने खाने को हासिल करने की भावना पैदा की। इस तय्यारी और उद्देश्य की ओर दिपक्षीय आकर्षण को तकवीनी मार्गदर्शन कहा जाता है। सृष्टि की सभी चीज़ों में तकवीनी मार्गदर्शन मौजूद है। अलबत्ता इंसान के लिए तकवीनी मार्गदर्शन के अलावा एक और प्रकार के मार्गदर्शन की सुविधा मुहैया की जिसे तशरीई मार्गदर्शन मार्गदर्शन कहते हैं जो ईश्वरीय संदेश और ईश्वरीय दूत के ज़रिए अंजाम पाता है। यह मार्गदर्शन सभी क्षेत्र में तकवीनी र्शन की पूरक है।

‘आला’ सूरे की आयतें वनस्पतियों और यवेशिया के खाद्य पदार्थ की ओर इशारा करते हुए कि जिसे ईश्वर धरती से उगाता है, इंसान को ईश्वर के उच्च स्थान से भलिभांति परिचित कराती है। इसी प्रकार ये आयतें ईश्वरीय अनुकंपाओं व नेमतों का उल्लेख कर इंसान में आभार व्यक्त करने की भावना पैदा करती हैं।

हर चीज़ को एक हद व सीमा के अनुसार पैदा करना, सृष्टि की सटीक व्यवस्था और हर चीज़ का साधारण मार्गदर्शन वे विषय है कि जैसे जैसे समय आगे बढ़ेगा, ज्ञान विज्ञान में प्रगति होगी इस चीज़ की वास्तविकता इंसान के लिए और स्पष्ट होती जाएगी। इस बारे में अनेक किताबें लिखी गयी हैं। इनमें से कुछ किताबों में सृष्टि के कुछ रहस्यों का वर्णन किया गया है। क्रेसी मोरिसन ने एक किताब लिखी है जिसके शीर्षक का हिन्दी रूपांतर है ‘इंसान की पैदाइश का रहस्य’। इस किताब में वह पशुओं व विभिन्न प्रकार के प्राणियों के मार्गदर्शन के बारे में लिखते हैं, “पलायन करने वाले पक्षी जो कभी कभी एक साल में महासागर, जंगल व मरुस्थल के ऊपर हज़ारों किलोमीटर की उड़ान भरते हैं, अपने घोसले को गुम नहीं करते। वे दोबारा अपने वतन की ओर लौटते हैं। इसी प्रकार शहद की मक्खी चाहे ख़ुद से या हवाओं के झोकों से अपने छत्ते से जितनी दूर चली जाएं फिर भी अपने छत्ते की ओर पलटती हैं। जबकि इंसान को अपने घर की ओर पलटने के लिए निशानी व सटीक पते की ज़रूरत होती है। एक छोटी सी मछली जो वर्षों समुद्र में रहती है, अंडे देने के लिए उसी धारा की ओर पलटती हैं जहां उसका जन्म हुआ था। यह मछली लहर बहने की विपरीत दिशा में आगे बढ़ती है और अपने मुख्य वतन की ओर जो उसकी परवरिश के लिए उचित है, वर्षों के बाद बहुत दूर से पलटती है।

आला सूरे की आयत नंबर 14 और 15 में आया है, “निःसंदेह उसे मुक्ति मिली जिसने अपनी आत्मा को पवित्र किया। वह जो अपने पालनहार को याद करे और नमाज़ पढ़े।”

आत्मशुद्धि का अर्थ बहुत व्यापक है जिसमें आत्मा को अनेकेश्वरवादिता व दूसरी नैतिक बुराइयों से पाक करना, वर्जित व दिखावे कर्मों से दूर रहना, इसी प्रकार अपने माल को ज़कात नामक विशेष कर के ज़रिए पाक करना शामिल है। ज़कात देने से आत्मा की शुद्धि होती है। इस संदर्भ में ज़रूरी है कि इंसान अपने इच्छाओं पर नियंत्रण करे। नमाज़ और ईश्वर की याद के ज़रिए सांसारिक मोहमाया को मन से निकाले। क्योंकि सांसारिक मोहमाया हर पाप की जड़ है। सांसारिक मोहमाया में पैसे, पद, कामुक इच्छाएं और इन जैसी चीज़ें शामिल हैं, अगर ये चीज़ें मध्यमार्ग से हट जाएं तो इंसान की आत्मा में ऐसा तूफ़ान पैदा करती हैं कि उसके हाथ से सभी चीज़ें निकल जाती हैं यहां तक कि उसके मन में अच्छे और बुरे का भेद पैदा करना मुश्किल हो जाता है। इसके नतीजे में इंसान इस सांसारिक जीवन को परलोक पर प्राथमिकता देता है। यह बात बुद्धि से दूर है कि इंसान बाक़ी रहने वाले परलोक को इस क्षणभंगुर दुनिया की चीज़ों के बदले में बेच दे।

‘आला’ सूरे की अंतिम आयतें इस ओर ध्यान खींचती हैं कि सत्य की शिक्षाएं अमर हैं। ये शिक्षाएं हज़रत इब्राहीम और हज़रत मूसा जैसे ईश्वरीय दूतों की किताबों में भी मौजूद हैं। सभी ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं में आया है कि इंसान को ईश्वर के गुणगान और उसका सामिप्य प्राप्त क४५रने के लिए पैदा किया गया है किन्तु इसके बावजूद वह ज़्यादातर समय अपने इस ज्ञान की अनदेखी करते हुए इच्छाओं के चंगुल में फंस कर अपनी आत्मा को पाप से दूषित करता है। इसलिए पाप के जड़ से सफ़ाए के लिए इंसान के पास आत्म शुद्धि करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसी प्रकार उसे चाहिए कि इस दुनिया को उस पुल के समान समझे जो उसे परलोक में पहुंचाएगी या उस खेती की तरह समझे कि जो कुछ उसमें बोएगा उसी का फल उसे परलोक में मिलेगा।

 

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