फ़िरोज़कूह
अलबुर्ज़ पर्वत श्रंखला, ईरान के प्राचीन इतिहास की गाथा सुनाती हैं।
अलबुर्ज़ पर्वत श्रंखला का हरा भरा भाग, उस पर खिले रंग बिरंगे ट्यूलिप्स के फूल और मनोरम दृश्य, मनुष्य को बहुत ही लुभावने लगते हैं।
अपने पर्वतीय भौगोलिक व प्राकृतिक स्थल के दृष्टिगत, फ़िरोज़कूह गांव का वातावरण ठंडा रहता है। इस पर्वतीय श्रंखला की ऊंचाई समुद्र तल से 2147 मीटर है और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से पूरा क्षेत्र घिरा हुआ है जिसके कारण यहां का पर्यावरण बहुत ही मनोरम होता है। यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि यहां के क्षेत्र इतने ठंडे, हरे भरे और अच्छे हैं कि गर्मी में पहाड़ों पर बर्फ़ देखी जा सकती है। अच्छी वर्षा, पहाड़ों पर अच्छी बर्फ़ गिरने तथा सदैव बाक़ी रहने वाले ग्लेशियर और बहुत अधिक उबलते हुए सोतों के कारण इस क्षेत्र में बहुत सी नदियां जारी हो गयी हैं जिसके कारण फ़िरोज़कूह का क्षेत्र हरा भरा और जीवन की अनुकंपाओं से संपन्न होता है।
इस क्षेत्र में फ़िरोज़कूह के नाम से प्रसिद्ध हबला रूद या हबला नदी भी है यह नदी फ़िरोज़कूह के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण समझी जाती है। यह नदी फ़िरोज़कूह, सवाद कूह और शहमीरज़ाद पहाड़ों से निकली है और उसके बाद वह नम रूद, गूर सफ़ीद और देलीजान में मिल जाती है।

इस नदी के पास एक सोता मौजूद है जिसका जल निर्मल, स्वच्छ और साफ़ होता है जो चिकित्सा की विशेषताओं से संपन्न है। यहां के पानी को लेने और इसका आनंद उठाने के लिए प्रतिवर्ष हज़ारों लोग जाते हैं जो रोमाटीज़्म, गुर्दे की पत्थरी और त्वचा की परेशानियों के उपचार के लिए इस क्षेत्र की यात्रा करते हैं। सोते के किनारे बहुत से गांव आबाद हो गये हैं।
फ़िरोज़कूह के सुन्दर गांवों में वरसख़वारान और अरजुमंद का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है। हबला नदी के पास एक प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। हबला नदी के किनारे स्थित, आख़िरी गांव सीमीन दश्त है जहां संतुलित गर्मी पड़ती है इसीलिए इसका क्षेत्र न अधिक गर्म होता है न अधिक ठंडा होता है। सेमनान प्रांत जैसे गर्म क्षेत्र के क़बाईली गर्मी के मौसम में यहां आते हैं। अलबत्ता क्षेत्र के गांववासी, पशुपालन और कृषि से अपना जीवन यापन करते हैं। फ़िरोज़कूह व्यापक वनस्पतियों और झाड़ियों के कारण समृद्ध चारागाह से संपन्न है। बहुत अधिक बर्फ़ और बारिश तथा अच्छी हवा के कारण यहां के चरागाह और खेत बहुत ही हरियाले और उपजाऊ होते हैं।
घाटी में मौजूद दलदल और प्राकृतिक हरियाली या हरे भरे दृश्य नदी के किनारों पर देखे जा सकते हैं। हबला नदी के आसपास, नदी के पानी से लाभ उठाते हुए विभिन्न प्रकार के बाग़, हरियाली ज़मीनी और खेत खलिहान बन गये हैं।
सुर्ख़ दश्त, सीमीन दश्त और ज़र्रीन दशत, यहां बहुत ही हरे भरे गांव हैं तथा यह यहां के बहुत मूल्यवान ख़ज़ाने समझे जाते हैं। यह क्षेत्र बहुत सी प्राकृतिक वनस्तपतियों और जड़ी बूटियों के उगने का स्थान भी समझा जाता है।

तेहरान - गुरगान रेलमार्ग से गुज़रने के कारण फ़िरोज़कूह की बाग़बानी और कृषि में बहुत अधिक सहायता मिली है। किसान बड़ी सरलता से अपनी बाग़बानी के उत्पादन को बाज़ार में पहुंचा सकते हैं। आड़ू, आख़रोट, चेरी, आलूचा, ब्लैक चेरी, रशियन ओलीव, शहतूत, अंगूर, बादाम और सेब, इत्यादि यहां के बाग़ में उगते हैं।
उत्तरी ईरान जाने के लिए तेहरान से फ़िरोज़कूह राजमार्ग से जाया जाता है। यह नाम इसलिए चुना गया है क्योंकि यह फ़िरोज़कूह के पड़ोस में स्थित है और वहां जाने के लिए फ़िरोज़कूह के क्षेत्र से गुज़रा जाता है। प्राचीन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि फ़िरोज़कूह बाग़ियों और सेनापतियों के मध्य झड़पों का केन्द्र रहा है। शब्दावली मोजमुल बुलदान, हबीबुल यसीर, तारीख़े रशीदी जैसी ऐतिहासिक पुस्तकों में इन युद्धों के बारे में विस्तार लिखा हुआ है।
फ़िरोज़कूह गांव का केन्द्र, तेहरान से 135 किलोमीटर तथा दमावंद से 90 किलोमीटर तथा पर्वतीय श्रंखला के मध्य और फ़िरोज़कूह दुर्ग के अवशेष के किनारे मौजूद है।
हमदल्लाह मुस्तौफ़ी ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक गज़ीदे में फ़िरोज़कूह का नाम, शहर के रूप में उल्लेख किया है और इस प्रकार लिखते हैं कि फ़िरोज़कूह शहर के चार द्वार हैं और उसमें विभिन्न प्रकार के और भांति के लोग वहां रहते हैं। कुल मिलाकर ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर, फ़िरोज़कूह का अस्तित्व पांचवीं व छठी हिजरी क़मरी से पहले था। आजकल नये राजमार्ग का प्रयोग करके जिसे ऐतिहासिक व पुराने राजमार्ग के स्थान रखा गया, फ़िरोज़ ने बहुत अधिक प्रगति आरंभ की है।
यह जानना उचित है कि फ़िरोज़कूह के किनारे बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरें पायी जाती हैं जिनका संबंध प्राचीन काल से है। इन्हीं सुन्दर धरोहरों में से एक तंगे वाशी नामक जलडमरू के मध्य मौजूद पत्थर पर उकेर कर लिखी गयी शिलालेख है जो फ़िरोज़कूह के पश्चिमोत्तर में स्थित है। नदी के एक छोर से तथा जलडमरू से होते हुए जो पानी गुज़रने का एकमात्र रास्ता है, शिलालेख को देखा जा सकता है। वास्तव में जलडमरू हज़ारों वर्ष पहले, पानी की आवाजाही के प्रभाव से ख़ाली होने के बाद दिखने लगा। पत्थर पर उकेर कर बना शिलालेख, नदी की ओर है जिसमें शिकार स्थल, शिकार के प्रकार और शिकार के संसाधन बने हुए है जो समुद्र तल से दो से तीन मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है इसकी लंबाई दस मीटर है जबकि ऊंचाई छह से सात मीटर है और इसका संबंध क़ाजारी शासन काल से है। यहां पर दूसरी भी धरोहरों के अवशेष मौजूद हैं जैसे टावर, फ़िरोज़शाही दुर्ग तथा इमामज़ादा इस्माईल का मक़बरा। कहा जाता है कि इसी पहाड़ की चोटी के नीचे इमाम ज़ादा इस्माईल की क़ब्र है।
फ़िरोज़कूह, प्राकृतिक दृश्यों से संपन्न समृद्ध क्षेत्र है। फ़िरोज़कूह पर्वतीय क्षेत्र के आसपास बहुत सी गुफाएं पायी जाती हैं और इन्हीं गुफाओं में रूद अफ़शां गुफा का नाम लिया जा सकता है। यह गुफा रूद अफ़शां गांव के निकट मौजूद है। इसी प्रकार बूरनीके बुज़ुर्ग और कूचिक जैसी विभिन्न गुफाओं की ओर संकेत किया जा सकता है।
रूद अफ़शा गुफा, उस पहाड़ के मार्ग पर स्थित है जिस पर चढ़ना बहुत कठिन होता है। गुफाओं की रोचक विशेषता, ग्रीष्म ऋतु में उसके भीतर और बाहर के तापमान पर निर्भर होती है। जैसा कि ग्रीष्म ऋतु के मध्य गुफा के भीतर का मौसम बहुत ठंडा और मनमोहक होता है। गुफा के भीतर चूने की पुताई है जो चिराग के भांति गुफा की दीवारों पर लगे हुए हैं, इनमें से कुछ की लंबाई 20 मीटर तक है जो गुफा के भीतर है। गुफा के भीतर कुछ टीले भी मौजूद हैं जिनसे स्वच्छ और निर्मल जल निकल कर आता है। कहा जाता है कि रूद अफ़शां गुफा में पहुंचने के कुछ रास्ते अभी तक अपरिचित हैं।
फ़िरोज़कूह के प्राकृतिक सुन्दर दृश्यों में से एक गदूक दर्रा है। गदूक दर्रा वास्तव में माज़ेन्दरान के मरुस्थल और फ़िरोज़शाहकूह की पर्वतीय क्षेत्र के मिलने का स्थान है। इसीलिए यह क्षेत्र पूरे सप्ताह कोहरे से घिरा होता है। यहां के मौसम का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता जहां पहाड़ के दोनों ओर दो प्रकार के मौसम देखे जा सकते हैं। एक ओर दर्रा अर्थात घाटी है जहां का मौसम संतुलित और ठंडा होता है जबकि उसके सौ मीटर नीचे ही मरुस्थल के संतुलित मौसम का सामना करना पड़ता है जहां पर हरे भरे पेड़ और बाग़ देखे ज सकते हैं। मौसम में अचानक परिवर्तन ने गदूक घाटी को प्रकृति से प्रेम करने वालों के रुकने के स्थान में परिवर्तित कर दिया है। बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो घाटी के पास से गुज़रे और रुके नहीं और वहां की प्रसिद्ध छाछ न पिएं। गदूक क्षेत्र में शाह अब्बासी कारवां सराए के होने के कारण इस क्षेत्र की सुन्दरता में चार चांद लग गया है।
गादू का शिकार प्रतिबंधित क्षेत्र का क्षेत्रफल 174000 हेक्टेयर है जहां पर विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां और वनस्पतियां पायी जाती हैं। इस प्रकार यहां पर विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर और पक्षियों का बसेरा भी है जो अपने झुंड के साथ यहां रहते हैं। उक्त क्षेत्र फ़िरोज़कूह क्षेत्र के पूर्व में स्थित है जहां पर प्रसिद्ध जड़ी बूटियां, जैसे यूनानी सनोबर (Juniperus excels), जंगली पिस्ता, जंगली बादाम, बेरी, आख़रोट, बारबेरी, कासनी या Ferula gummosa, अजवाइन और अनेक प्रकार के दाने वाली वस्तुए इत्यादि पायी जाती हैं।

इस प्रकार इस घाटी में विभिन्न प्रकार के जानवर जैसे मेढा, बकरी, हिरन, तेंदुआ, जंगली सुअर, भेड़िया, लोमड़ी, सियार, जंगली बिल्ली, उल्लू, स्याही, तीतर, बटेर, विभिन्न प्रकार के सांप, कछुए इत्यादि पाए जाते हैं। इन जानवरों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की कार्यवाहियां की गयी हैं।